नरक की पाँचवीं गवाही - Narak Ki Paanchaveen Gawahi - Fifth Testimony of Hell - Pastor Bablu Kumar


रोमियो की पत्री के छटवें अध्याय के तेइसवें वचन में परमेश्वर का बचन हमें बताता है कि, "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु, परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है"।

जब हम उस स्थान पर नीचे उतरे, मुझे मर जाने के अनुभव के साथ-साथ एक पीड़ा भी महसूस होनी शुरू हो गयी। जो कुछ मैं वहाँ निरीक्षण कर रहा था उसे देखते-देखते मैं भय से सिहर उठा। मैंने अनुभव किया कि वास्तव में उस स्थान में वहाँ बहुत सारे लोग थे और वे सारे लोग पीडा से चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे। प्रभु की उपस्थिति के साथ रहकर भी हम देख सकते थे कि यह स्थान पूर्णतः अन्धकारमय था। धीरे-धीरे यह अन्धकार सरकता हुआ दूर होने लगा और तब हमारी आँखों ने उन हजारों हज़ार लोगों की आत्माओं को तड़पकर सहायता की पुकार लगाते और दया चाहने के लिये तरसते हुए देख की दुहाई दे रहे थे कि वे उन लोगों को उस स्थान से बाहर निकाल हमे भी अपने अन्दर एक गहरी वेदना महसूस होने लगी कि जानते थे कि हमारे प्रभु ने जब कभी ऐसे लोगों को देखा यह भी गह हृदय वेदना से भर उठा था। हर समय लगातार बहुतेरे यही एक साथ प्रभु को पुकार रहे थे, कि वह उन्हें उस स्थान से बस एक मिनट के लिये ही अथवा केवल एक सेकण्ड के लिये ही बाहर निकाल ले। लगातार पीड़ा सहते-सहते वे सभी बेहाल हो चुके थे। कि तभी प्रभु ने उनसे पूछा "क्यों तुम बाहर आना चाहते हो? लोगों ने नम्रता के साथ कहा, "की मैं उद्धार पाना चाहता हूँ। तौभी हर तरह से यह उनके लिये असम्भव था क्योकि अब इसके लिये बहुत देर हो चुकी थी।

   प्रिय लोगों जो अभी मेरी गवाही सुन रहे हो, केवल अभी आपके पास समय है, आपको अपना अनन्त लक्ष्य हासिल करने का अवस्तर है। आप चाई तो छुटकारे का अनन्त स्थान प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा आपके लिये दण्ड का अनन्त स्थान ही होगा।

हम नीचे की ओर जाने लगे और तब मैंने देखा कि वह फर्श जिस पर हम लोग चल रहे थे आग से नष्ट हो रहा था और हमने उसमें से आग की लपटों के साथ कीचड़ भरी गन्दगी बाहर आले देखी। वहाँ हर तरफ एक भयानक दुर्गन्ध फैली हुई थी। वहाँ के सब लोग की चीख-पुकार सुन-सुनकर और उस भीषण दुर्गन्ध के कारण हम गड़ब्बड़ा गये और हमे मिचली सी आने लगी।

तब हमने एक आदमी को हमसे दूर देखा जो कि जलती हवी जस कीचड़ में कमर तक डूबा हुआ था। जब कभी उसने अपने हाथों को पकड़ा तो उसके हाथों का मांस हड्डियों से अलग होकर उस जलते हये कीचड़ में (मानो गलकर) गिर गया। हम उस आदमी की हड्डियों के कंकाल के अन्दर एक भूरे रंग की धुंध देख सकते थे, जब हमने नरक में हर एक व्यक्ति के कंकाल में उस ही तरह की भूरे रंग की धुंध को देखा तब हमने प्रभु जी से पूछा कि वह क्या था? प्रभु जी ने हमें बतलाया कि वह उनके पापमय शरीर में फंसी हुई उनकी आत्मा थी; जैसा कि यह प्रकाशितवाक्य के चौदहवें अध्याय के ग्यारहवें वचन में लिखा हुआ है, कि "और उनकी पीड़ा का धुंआ युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते हैं और जो उसके नाम की छाप लेते हैं, उनको रात-दिन चैन न मिलेगा"।

उस क्षण में हमें बहुत सी बातें समझ में आने लगीं जिन बातों की हमने पृथ्वी पर उपेक्षा की थी। सबसे महत्वपूर्ण वह संदेश जो अब स्पष्ट हो गया था, कि हमारा जीवन ही यह निर्णय लेता कि हम अपनी नित्यता कहाँ बिताएँगे।

हम प्रभु जी के हाथ में हाथ दिये उसके साथ लगातार चले जा रहे थे। और हमने सच में अनुभव किया कि नरक में विभिन्न स्थान हैं जो अलग-अलग कई प्रकार की पीड़ाओं के लिये उपयुक्त हैं। हम अब एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ पर बहुत से प्रकोष्ठ थे जिनमें प्रताड़ित आत्माएँ थी। वे आत्माएँ कई प्रकार के पिशाचों द्वारा प्रताड़ित की गयी थीं। पिशाच उन आत्माओं को श्राप दे देकर कहते थे, "तुम श्रापित, नीच अधम, शैतान को सराहो! उसकी सेवा करो जैसी कि तुम जब पृथ्वी पर रहते रामय किया करते थे!"

यीशु मसीह को ना ग्रहण करने के कारण नर्क में लड़ रहे हैं दो लोग

  वे सारी आत्माएँ केंचुओं और आग द्वारा दी जा रही यातनाओं से भयंकर रूप से पीडित थीं, जो उन्हें नष्ट कर रहे थे जैसे कि शरीर उनके मानो तेजाब द्वारा नाश हो रहे हों। विशेषकर हम उस एक जेलनुमा प्रकाष्ठ में दो आदमियों को देख सकते थे। उन दोनों के हाथों में कटारें थीं और वे आपस में एक दूसरे को घायल किये जा रहे थे। वे एक दूसरे को कहते थे, "तू श्रापित नीच ! यह सब तेरे कारण ही है कि मैं इस स्थान में हूँ! तुमने ही मुझे यहाँ धकेला क्योंकि तुमने मुझे सच्चाई की तरफ से अंधा बना डाला और मुझे प्रभु को पहचानकर स्वीकार करने नहीं दिया ! तुमने मुझे प्रभु को ग्रहण करने नहीं दिया। कई बार मुझे अवसर मिले परन्तु तुमने मुझे रोक दिया कि प्रभु को ग्रहण न करूँ और यही वजह है कि दिन रात में इस पीड़ादायक स्थान में हूँ!"

प्रभु जी ने हमें उन दोनों युवाओं से सम्बन्धित एक दर्शन दिखाया। हमने देखा कि वे दोनों एक दिन बाहर एक शराबखाने में इकट्ठा हुए और उनमें एक बहस छिड़ गयी। जब कि दोनों काफी शराब पिये हुये थे ऐसे में उनमें यह बहस, लड़ाई में बदल गयी। उनमें से एक ने एक टूटी हुयी बोतल उठा ली और दूसरे ने एक चाकू निकाल लिया और फिर दोनों लड़ने लगे। वे दोनों एक दूसरे पर प्राणघातक प्रहार करते रहे जब तक प्रत्येक पूरी तरह से जख्मी होकर मर नहीं गया। वे दोनों आदमी अब हमेशा के लिये वही दृश्य दोहराने वाले दुर्भागी बन गये थे। और यह बात भी उन्हें पीड़ा देने वाली बन गयी जो बार-बार उन्हें स्मरण कराती थी कि वे दोनों पृथ्वी पर कभी अच्छे मित्र थे, और उनका परस्पर प्रेम दो भाईयों की तरह प्रगाढ़ था।

आज मैं आपको बताना चाहता हूँ, कि वहाँ हमारा सच्चा मित्र केवल एक ही है, और उस मित्र का नाम नासरत का यीशु है। वह ही हमारा सच्चा मित्र है। वह ही हर एक पल में सच्चा साथ निभाने वाला विश्वासयोग्य मित्र है। 

मैंने पृथ्वी पर व्यभिचार किया इस कारण नर्क में सर्प मुझे बार-बार व्यभिचार कर रहा है


   हम लगातार चलते रहे थे और हमने एक अन्य प्रकोष्ठ में एक स्त्री को देखा जो कीचड़ पर इधर-उधर लुढ़क रही थी। उसके बाल सिर सहित सारे गन्दगी से लथपथ हो गये थे और कीचड़ से सने थे। हमने तब उसी प्रकोष्ठ में जिस में वह स्त्री थी; एक बहुत बड़े और मोटे सर्प को भी देखा। वह सर्प स्त्री के करीब सरकता आ रहा था, तब उस सर्प ने उस स्त्री के शरीर को लपेट लिया। सर्प उस स्त्री के शरीर के निचले हिस्से में प्रविष्ट हो गया। वह स्त्री भी उस सर्प के साथ बलपूर्वक शारीरिक चेष्टा लालसापूर्वक करने लगी।

उस स्थान में वे सभी स्त्री पुरूष रखे गये थे, जिन्होंने व्यभिचारी जीवन बिताया था और वे वहाँ पर भी बलपूर्वक वही क्रियाएँ दोहरा रहे थे। किसी तरह उस स्थान में वे लोग सर्पों के साथ उस शारीरिक क्रियाओं के साथ दिखायी दिये जिनके अर्थात् सर्पों के शरीरों पर छह इंची काँटे उभरे हुए थे। प्रत्येक बार उस स्त्री के शरीर में प्रविष्ट होने के कारण सर्प के वे काँटे उस स्त्री के शरीर को क्षत-विक्षत करते थे। तब उस स्त्री ने वेदना के साथ प्रभु की दोहाई दी और इस बार होने वाली क्रिया को रोक देने की याचना करने लगी। वह इस शारीरिक यातना को और अधिक सहन नहीं कर सकती थी। दर्द से तड़प कर वह कराहते हुये बिनती करने लगी इसे रोक दीजिए, मैं अब अधिक यह फिर सहन नहीं कर सकती, कृपा करके इसे रोकिये। इन शब्दों के साथ वह प्रभु से गिड़गिड़ाने लगी, और उधर वह सर्प बार-बार अपने कांटेदार शरीर के साथ उस स्त्री में प्रविष्ट होता और उसके शरीर को क्षत-विक्षत करते रहता।

इस स्त्री की पुकार को न सुनने के लिये हमने अपने कानों को बन्द करने का पूरा प्रयत्न किया पर फिर भी हम उसको सुन पा रहे थे। अपने कानों को बन्द रखने का हमने और भी अधिक प्रयत्न किया परन्तु उससे कुछ भी सहायता न मिल सकी। हमने प्रभु से कहा, 'कृपया, प्रभु हम और यह सब कुछ देखना और सुनना नहीं चाहते हैं! दया करो प्रभु । प्रमु हमसे कहाः यह आवश्यक है कि तुम यह सब कुछ देखो, ताकि तुम आगे जाकर यह सब कुछ दूसरों को बता सको, क्योंकि मेरे लोग नाश हो रहे हैं. मेरे लोग सच्चा उद्धार और उद्धार के सही मार्ग का टाल को रहे हैं।

मेरे मित्रों और भाईयों, मैं अभी आपको यीशु को ग्रहण करने के लिये आमन्त्रित करता हूँ। यदि आप पश्चात्ताप् करेंगे तो प्रमु उसका दया का हाथ आपके जीवन की ओर बढ़ा रहा है। प्रभु का वचन में बताता है कि जो अपने बुराई के मार्गों से फिरेगा और पश्चात्ताप करेगा उस पर दया की जाएगी। रूकने और अपने अनुभवों द्वारा पता लगाने से बेहतर यही है कि आप अभी विश्वास करें। परमेश्वर आपको आशषि दें।

हम निरन्तर चलते रहे, और हमें एक नया दृश्य दिखाई देने लगा हमने एक बड़ी झील देखी जिसमें हजारों हज़ार लोग थे जो बड़ी ज्वालाओं के मध्य दिखाई दिये। उन बड़ी ज्वालाओं के बीच से भी वे अपने हाथों को सहायता की आशा से हिला रहे थे, परन्तु वहाँ कई पिशाच उस स्थान के ऊपर उड़ रहे थे। ये पिशाच (S) अंग्रेजी के एस के आकार में बने हुए नोक वाले भाले रखे थे। इन भालों की नोकों से वे पिशाच उस सभी लोगों पर प्रहार कर रहे थे जो उस आग की झील में जल रहे थे साथ के पिशाच उन लोगों का मजाक उड़ाकर उन्हें श्राप भी दे रहे थे. "कि तुम श्रापित नीच! अब तुम्हें शैतान की आराधना करनी चाहिये! उसको सराहो उसकी स्तुति करो जैसे कि तुम पृथ्वी पर रहते वक्त किया करते थे"।

वहाँ पर हज़ारों हज़ार लोग ऐसी पीड़ा में थे। हम लोग इतने ज़्यादा डर गये थे कि हमने ऐसा महसूस किया कि यदि हमने प्रभु का हाथ पकड़ न रखा होता तो हम उस भयानक स्थान में छूट गये होते। उस समय हम महसूस करने वाली बातों से हम बहुत डर गये।

सुसमाचार ना सुनने के कारण नर्क में है


हमने थोड़ी सी दूरी पर एक आदमी को खड़े देखा वह बहुत ही कष्टदायक यातना सह रहा था। उसके ऊपर दो पिशाच उड़ रहे थे और उड़ते-उड़ते वे अपने भालों से उसके शरीर को छेद-छेद कर पीड़ा पहुँचा रहे थे; इसी कारण उसकी पसलियाँ भी दिखने लगी थीं। वे लगातार उसका मज़ाक भी उड़ा रहे थे। इसके आगे प्रभु ने मुझे दिखाया कि इस पीड़ा के अतिरिक्त उस आदमी को एक अन्य पीड़ा भी होती थी, कि उसे अपने परिवार की बेहद चिन्ता हमेशा सताती थी जिसे वह पृथ्वी पर छोड़कर वहाँ पहुँचा था। यह आदमी नहीं चाहता था कि उसके परिवार के लोग भी उसके समान इस स्थान पर पहुँचे जो इतनी कष्टदायक थी। परन्तु उस आदमी को चिन्ता इस बात की थी कि उसने अपने परिवार वालों को कभी भी उद्धार का सन्देश नहीं सुनाया था।

उसे इसलिये भी मन में पीड़ा होती थी क्योंकि वह याद करता था कि उसके घर के लोगों को यह सन्देश ग्रहण करने का एक मौका मिला था। यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति था जिसने उसके परिवार को यह सन्देश दिया था, परन्तु उन लोगों ने इस सन्देश को अनदेखा करना पसन्द किया, और अब यही व्यक्ति अपनी पत्नी और अपने बच्चों के विषय में बेहद चिन्तित था। हम देख रहे थे कि वह भयानक यातना निरन्तर जारी थी। वे भयानक पिशाच आये और उन्होंने उसकी भुजाओं को काट कर अलग कर दिया, और इस कारण वह व्यक्ति उस अग्निमय लावा में गिर पड़ा। वह दायें-बायें पलटता हुआ एक स्थान से दूसरे स्थान पर एक केंचुए या कीडे की मानिन्द तड़पने लगा क्योंकि उस अग्निमय लावा में गिर जाने से उसका शरीर जलने लगा और यह दर्द उसके लिये असहनीय था। उस भीषण ताप ने उसके शरीर के माँस को हड्डियों से अलग करना शुरू कर दिया और तब वह फिसलता हुआ एक सर्प की मानिन्द आगे बढ़ने का प्रयास करने लगा ताकि उस स्थान से बच जाये। इसी तरह, प्रत्येक बार उसका प्रयास यही था कि चला जाये, परन्तु पिशाचों ने उसे ऐसा नहीं करने दिया; उन्होंने उसे वापस ढकेल दिया और वह उस लावा के अन्दर गहराई में डाल दिया गया।

प्रिय मित्रों आप लोग, जो इस गवाही के वचनों को सुन रहे हैं, यह गवाही दोषी ठहराने के लिये नहीं हैं, परन्तु उद्धार में लाने के लिये है। इसलिये आप अपने आप को जाँच लें और प्रभु के साम्हने अपने हृदय की दशा का अवलोकन स्वयं कीजिए और यह इस कारण ताकि आप अपने मार्ग को बदल लें और दोषी न ठहरें पर उद्धार प्राप्त करें! अच्छा अब प्रभु के साम्हने अपने हृदय को उठाकर अपने पापों का अंगीकार करते हुये पश्चाताप् कीजिए ताकि हमारा प्रभु यदि इसी घड़ी आ जाये तो आप उसके साथ जा सकें और उस स्थान पर न जायें जो कि यातना का स्थान है क्योंकि वह स्थान चीखने, रोने व दान्त पीसने की जगह है!

वहाँ आप सचमुच समझ सकते है कि क्यों प्रभु यीशु ने कलवरी की सलीब पर वह भारी दाम हमारे पापों के लिये चुकाया था। हमने नरक में बहुत से व्यक्तियों को देखा जो वास्तव में इस बात से अनभिज्ञ थे, कि उन्हें वहाँ क्यों रखा गया था क्योंकि उनका जीवन बहुत सी ऐसी गतिविधियों से भरपूर थे। जो पाप करने के बावजूद भी उन्हें वह बात पाप होकर महसूस करने नहीं देता था।

प्रिय मित्र आज बल्कि अभी ही स्वयं को जाँचिये ! यह मत सोचिये कि झूठ बोलना, चुराना या चोरी करना आदि खराब आदतें, या बुरी बात नहीं है इसलिये इन्हें करने में कोई बुराई नहीं है। ये सभी हमारे प्रभु की दृष्टि में पाप हैं इसलिये आज ही बदल जाइये प्रभु की ओर लौटिये और इस प्रकार के काम करना छोड़ दीजिये। प्रिय भाई! मैं आपको यह संदेश इसलिये देता हूँ, ताकि आप मन फिरायें प्रभु की ओर लौटें और अभिलाषा पूर्वक पाप न करें, परन्तु अधिक से अधिक प्रभु के चेहरे की ओर देखें। Read More