नरक की छटवीं गवाही - Narak Ki Chhataveen Gawahi - Sixth Testimony of Hell - Pastor Bablu Kumar
भजनसंहिता 62:12 और हे प्रभु, करूणा भी तेरी है, क्योंकि तू एक-एक जन को, उसके काम के अनुसार फल देता है"।
उस सुबह जिस वक्त प्रभु ने उस कमरे में हमसे मुलाकात की, उसके हाथ ने हमें थामा और हम जमीन की गहराई में उतरने लगे। मेरा हृदय भय से भरपूर हो गया था। मैं इसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता; मैं केवल इतना जानता था कि मैं अपने उद्धारकर्ता स्वामी का हाथ नहीं छोड़ सकता था। मैंने अनुभव किया कि यीशु ही मेरा जीवन और मेरा उजियाला था और मेरी सारी उम्मीदें केवल उसमें ही थी, नहीं तो मैं भी उस स्थान में छोड़ दिया जा सकता था।
मैंने कभी यह सोचा भी नहीं था, कि अपने जीवन में कभी एक बार उस स्थान पर जा सकूँगा। सबसे पहले मैंने विश्वास ही नहीं किया था, कि ऐसी कोई जगह वास्तव में है। एक मसीही होने के बावजूद मैं हमेशा यह सोचा करता था कि नरक एक आत्मशुद्धि स्थल है। या फिर थोड़े समय के लिये ही वहाँ का कष्ट या यातना मिलते होंगे, परन्तु परमेश्वर ने मुझे नरक की वास्तविकता प्रत्यक्ष दिखा दी। जब हम नरक में पहुँचे मैंने महसूस किया कि वह स्थान जैसे हिल गया और उस स्थान के सारे के सारे पिशाच दौडे और दौडकर अपने-अपने छिपने का स्थान तलाश करने लगे क्योंकि उन पिशाचों में से कोई एक भी ऐसा नहीं था, कि वह प्रभु की उपस्थिति में खड़ा रह सके।
हम सुन सकते थे कि वहाँ पर जितनी भी आत्माएँ बन्दी की दशा में थीं वे सब चिल्लाने वरन् ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगीं, उनमें एक खलबली सी मच गयी। क्योंकि उन्हें यह मालूम हो गया था कि नासरत का यीशु वहाँ पर मौजूद था। वे सभी बन्दी आत्माएँ जानती थीं कि वह यीशु हो एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो उन्हें उस स्थान से छुटकारा देने वाला सम्मावित सामर्थी था। उन सभी को ऐसी आशा तो थी यद्यपि यह आशा पूरी नहीं होने वाली थी।
हम अपने हाथों को यीशु के हाथ में दिये चलते रहे, लगातार चलते ही रहे और तब हम जिस स्थान पर पहुंचे, उसका नाम था अविवाहित व्यभिचारियों का स्थान, वहाँ यीशु ने मुड़कर एक स्त्री को देखा वह बुरी तरह से आग की लपटों से घिरी थी। जब यीशु ने उसे देखा, उस स्त्री ने धीरे-धीरे उसे आग से बाहर निकलने की कोशिश की, पर उस समय उसकी पीड़ा कम न हो सकी। हम देख सकते थे कि वह स्त्री पूरी तरह वस्त्रविहीन थी और वह अपने शरीर को छिपाने या ढाँपने की भी समर्थ नहीं थी। उसके शरीर पर एक गंदगी की पर्त जमी हुई थी और शरीर की बदबू घृणा उत्पन्न करने वाली थी। उसके सारे बाल गंदगी से भरपूर थे और शरीर एक तरह के पीले हरे कीचड में सना था। उसकी आँखों का स्थान खाली हो चुका था और उसके होंठ भी मानो टुकड़ों-टुकड़ों में गलकर टपक रहे थे। कानों के स्थान पर केवल छेद ही रह गये थे, और हाथों के स्थान पर उसके पास केवल काली पड़ चुकी हड्डियां ही बाकी थीं। वह अपने चेहरे पर से गिरते हुए मांस के कतरों को हाथ में लेकर पुनः उनके स्थान पर लगाने की असफल कोशिश कर रही थी और इसी प्रयास में उसे असहनीय पीड़ा होने लगी। अब वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी और कांपने भी लगी। उसकी चिल्लाहट न समाप्त होने वाली चीत्कार बन गयी थी। उसके शरीर पर बहुत से केंचुए नज़र आ रहे थे और उसके हाथ से एक बहुत मोटा सर्प लिपटा हुआ था। उस सर्प के पूरे शरीर पर कांटे निकले हुए थे।
इस स्त्री के शरीर पर 666 यह संख्या खुदी हुई थी अर्थात् वही पशु का अंक जिसके विषय में बाइबिल की अंतिम पुस्तक प्रकाशितवाक्य में लिखा हुआ है। उसकी छाती पर एक धातु की प्लेट जड़ी हुई थी जो एक अनजानी धातु से बनी हुई थी जिसे अग्नि से भी कुछ हानि नहीं होती। उस धातुई प्लेट पर कुछ ऐसा लिखा था जो साधारणतः पढ़ा न जा सके। वह भाषा ही एक अज्ञात भाषा थी, परन्तु हम उस भाषा की लिपि को समझ सकते थे, कि वह क्या लिखा है और वह जो लिखा था वह यह है कि "मैं अविवाहित होकर किये जाने वाले व्यभिचार के कारण से यहाँ हूँ"।
जब यीशु ने उसे देखा तो उससे पूछा, "एलेना तुम इस स्थान में क्यो हो?" उसका शरीर उस स्थान के दण्ड की पीड़ा के कारण ऐंठने लगा। वह कहने लगी कि वह वहाँ पर पृथ्वी पर किये हुए व्यभिचार के - कारण रो थी। अब वह बार-बार प्रभु से क्षमा याचना करने लगी।
जब यीशु ने उसे देखा तो उससे पूछा, "एलेना तुम इस स्थान में क्यो हो?" उसका शरीर उस स्थान के दण्ड की पीड़ा के कारण ऐंठने लगा। वह कहने लगी कि वह वहाँ पर पृथ्वी पर किये हुए व्यभिचार के - कारण थी। अब वह बार-बार प्रभु से क्षमा याचना करने लगी।
और क्षणों में उसकी मृत्यु के पहिले घटी घटना दिखाई देने लगी। जब वह मरी थी तब वह अपने प्रेमियों में से एक के साथ सहवासबद्ध थी क्योंकि उसने सोचा था कि जिसके साथ वह रह रही थी वह तो बाहर दौरे पर गया है। कैसे तो भी दौरे पर गया हुआ वह व्यक्ति लौट आया। वापस आकर उसने एलेना को उसके एक प्रेमी के साथ बिस्तर पर पाया। वह तब किचन में गया और एक बड़ी छुरी के साथ लौटा उसने वह छुरी आलिगंनबद्ध एलेना की पीठ में झोक दिया। एलेना मर गयी और उसी वक्त की नग्नावस्था में ही नरक को पहुंचायी गयी।
नरक में प्रत्येक बात जैसी है वैसी घटित होकर दिखलाई देती है। इसलिये उसकी वह बड़ी छुरी नरक में भी वैसी ही उसकी पीठ में धंसी हुई थी और उसे भयानक कष्ट हो रहा था। अब तक उसने नरक के उस स्थान में सात वर्ष बिताये थे और अब भी वह बिताये गये किसी भी क्षण को स्मरण कर सकती थी, चाहे जीवन का हो अथवा मृत्यु का हो। वह उस समय को भी याद करती थी जब किसी ने उसे यीशु के बारे में प्रचार करने का प्रयास किया था और कि वह व्यक्ति ही एकमात्र जन था जो उसे बचा सकता था यह यीशु ही था, परन्तु अब वह समय बीत चुका था और बहुत देर हो चुकी थी कि एलेना बचा ली जा सकती। इसी कारण से ही अब वह शेष सारा समय इस स्थान पर बिताने के लिये रखी गयी थी।
प्रभु का वचन व्यभिचार के विषय में बहुत ही स्पष्ट रूप से एवं विस्तार से बयान करता है। व्यभिचार अर्थात् विवाहित होते हुए भी व्यक्ति (स्त्री अथवा पुरूष) बाहर भी शारीरिक सम्बन्ध बनाये । । कुरि 6:13 में "भोजन पेट के लिये है और पेट भोजन के लिये है, परन्तु परमेश्वर इन दोनों को ही नाश करेगा। शरीर अभिलाषा के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये है और प्रभु शरीर के लिये है"। और हम । कुरि 6:18 में ऐसा भी पढ़ते हैं, कि "व्यभिचार से बचे रहो, जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर है, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है"।
जब यीशु ने उस स्त्री से बात करना समाप्त किया, तब हमने देखा कि आग का एक बड़ा शोला आया और उसकी देह उस आग में घिर गयी और तब हम उसे और अधिक देर न देख सके। हम केवल उस आवाज़ को ही सुन सकते थे जो उसके शरीर के जलने से हो रही थी और भयानक वेदना से उठनेवाली उसकी चीत्कारें जिन्हें मैं कभी भी शब्दों में बयान कर ही नहीं सकता। जैसे हम लगातार प्रभु के साथ-साथ ही चलते रहे, उन्होंने हमें वे सारे लोग वहां दिखलाये जो मूर्तियों की पूजा करनेवाले थे, जो जादू टोना करनेवाले थे, अनैतिक काम करनेवाले, परस्त्रीगामी अथवा परपुरूषगामी, झूठ बोलनेवाले, और समलैंगिक सम्बन्ध रखने वाले।
उस स्थान की भयावहता एवं विभत्सता इतनी ज़्यादा थी कि हमारे दिल दहल चुके थे और हम और ज़्यादा यह सब नहीं देख सकते थे। हम जो चाहते थे वह यही. एक बात थी, कि जितनी जल्दी हो सके हम उस स्थान से बाहर निकल जायें। तौभी प्रभु यीशु ने अपनी बात कहना जारी रखते हुए हमसे ऐसा कहा कि वह अतिआवश्यक था कि हम वे सब बातें विशेष करके उस स्थान की घटनाओं को ध्यानपूर्वक देखें ताकि दूसरों के सामने वह हकीकत बयान कर सकें, और लोग उन बातों पर विश्वास करें। तब हमने प्रभु के हाथों को और अधिक कसकर थाम लिया और उसके साथ आगे बढ़ते रहे।
हम एक अन्य हिस्से में पहुंचे उस स्थान ने सचमुच मुझे अत्यधिक भावित कर दिया। हमने वहाँ एक युवक को देखा जो लगभग 23 वर्ष की आयु का होगा। वह ऊपर से जाकर आग के भीतर कमर तक डूबा हुआ था। उसे दी जानेवाली यातना को हम अच्छी तरह देख न सके, परन्तु हमने देखा कि उस पर 666 यह अंक खुदा हुआ था और उसकी छाती पर वह धातुई प्लेट भी लटक रही थी जिस पर यह लिखा था कि "मैं साधारण या सामान्य होने के कारण यहाँ हूँ"। इस जवान ने जब यीशु को देखा उसने दया की याचना में अपने हाथों को यीशु की ओर बढ़ा दिया। परमेश्वर का वचन नीतिवचन 14:12 ऐसा कहता है, "ऐसा मी एक मार्ग है जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है"।
जब हमने उस प्लेट पर ऐसा लिखा हुआ पढ़ा कि 'मैं साधारण या सामान्य होने के कारण यहाँ हूँ" तब हमने प्रभु से पूछा, "प्रभु यह व्यक्ति कैसे यहाँ आया? क्या यह सम्भव है, कि इस कारण से कोई व्यक्ति इस स्थान पर आ सकता है क्या?" तब यीशु ने उसे देखा और उस युवक से पूछा, "एन्ड्रयू, तुम यहाँ इस स्थान पर किसलिये हो?" उसने उत्तर दिया, "यीशु जी जब मैं पृथ्वी पर था, तब मैंने सोचा था कि केवल हत्या करना और चोरी करना ये ही पाप है ऐसा पाप मैं नहीं करता था, इसीलिये मैंने सोचा कि मैं ठीक हूँ, और इसलिये मैंने कभी भी आपके करीब आने के लिये कोशिश नहीं किया"। परमेश्वर के वचन में भजन 9:17 के अनुसार "दुष्ट अधोलोक में लौट जायेंगे, तथा वे सब जातियाँ भी जो परमेश्वर को भूल जाती हैं"।
एन्ड्रयू के नरक में आने का कारण यह था कि उसने अलग-अलग पापों के लिये अलग-अलग श्रेणी दिया था, वही गलती इन दिनों में बहुत लोग करते हैं। परमेश्वर का वचन बहुत स्पष्टता से कहता है जैसा लिखा है कि, "पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु नसीह यीशु में अनन्त जीवन है"। आगे भी पवित्रशास्त्र जब पाप के विषय में बोलता है तो यह पापों को अलग-अलग श्रेणी में नहीं रखता, क्योंकि सभी पाप, बस पाप ही हैं। एन्ड्रयू को पृथ्वी पर यह मौका मिला था कि वह प्रभु यीशु को पहचाने और उसे ग्रहण करे क्योंकि प्रभु ने स्वयं ही उसे पहचाना था परन्तु एन्ड्रयू ने परमेश्वर द्वारा दिये गये अवसर का मूल्य नहीं जाना। हो सकता है, कि एन्ड्रयू को एक हज़ार अवसर मिले होंगे कि वह अपने प्रभु को जाने परन्तु उसने कभी भी प्रभु को जानना या ग्रहण करना नहीं चाहा और यही वह कारण था कि उसे ऐसी पीड़ादायक स्थान में आना पड़ा। इसी विचार के साथ ही आग के एक बड़े शोले ने उसके शरीर को लपेट लिया और हमने उसे फिर कभी नहीं देखा।
हम लगातार प्रभु यीशु के साथ चलते ही रहे तब हमने देखा कि कुछ दूरी पर एक बड़े ढेर की तरह कुछ गिर रहा है। जब हम कुछ और नज़दीक पहुंचे हमने तब जाना कि वह बड़ा ढेर कुछ और वस्तु नहीं परन्तु बहुत से लोग हैं जो उस क्षण में नरक में गिर रहे थे। जो लोग पृथ्वी पर रहते समय प्रभु यीशु मसीह को अपने हृदय में ग्रहण किये बिना ही मर - जाते हैं, वे नरक में आते हैं।
हमने तब एक जवान को देखा और बहुत से पिशाचों को भी देखा। ये पिशाच उस जवान की तरफ दौड़ रहे थे। ये पिशाच प्रबल शक्ति से प्रहार कर करके उस जवान के शरीर को नष्ट कर रहे थे। तुरन्त ही उस जवान का शरीर केंचुओं से भर गया। इस बीच वह जवान बोला, "नहीं। न यह क्या है? रूको। मैं इस स्थान में रहना नहीं चाहता। यह सब हरकतें रोको यह कोई स्वप्न ही होना चाहिये। मुझे इस स्थान से बाहर निकालो" वह यह भी नहीं जानता था कि वह मर चुका था और यह भी कि वह प्रभु यीशु मसीह को अपने हृदय में ग्रहण किये बिना ही मर गया है। पिशाच उसका मजाक उड़ा रहे थे और सारे समय उसके शरीर को यातना दे रहे थे।
तब उसके माथे पर 666 का अंक प्रगट हुआ और उसकी छाती पर एक धातुई प्लेट भी दिखने लगी। यद्यपि हम वह कारण उस प्लेट पर नहीं देख पाये कि यह जवान नरक में क्यों आया तथापि एक बात हम जानते थे जो निश्चित थी और वह बात यह थी कि वह अब कभी फिर से बाहर नहीं जा पायेगा।
प्रभु ने हमें बताया कि नरक में आये हुए ऐसे सभी लोगों की पीड़ाएं इससे कहीं ज़्यादा भयंकर होंगी जब न्याय किया जायेगा। मैंने सोचा कि ठीक है, यदि वे इस समय यहाँ इतनी भयंकर व कठोर पीड़ा झेल रहे हैं मैं अनुमान नहीं लगा सकता कि तब वे न्याय के पश्चात् और कितनी अधिक तकलीफ सहन करेंगे।
हमने उस स्थान में किसी बच्चे को नहीं देखा। हमने केवल हज़ारों और हज़ारों युवा लोगों, स्त्री और पुरुषों को देखा जो अलग-अलग राष्ट्र के थे। यद्यपि उस स्थान में वहाँ राष्ट्रीयता अथवा सामाजिक स्तर अथवा इससे अलग और कोई भी तरह की बाते नहीं थी। वे सभी वहाँ केवल दण्ड सहने और पीड़ाएँ झेलने के लिये ही आये अथवा लाये गये थे। प्रिय पाठकों, और देरी न करें, प्रभु यीशु ही केवल आप को नरक से बचा सकता है। अपने पापों को प्रभु यीशु के साम्हने इकरार करे, प्रभु यीशु को अपने जीवन में जगह दें, और उस नरक की आग से बच जाएँ।
स्वर्ग का यात्रा:
(जिस प्रकार नरक सच है, उसी प्रकार स्वर्ग भी सच है। प्रस्तुत विषय स्वर्ग पर्यटन किये लोगों के द्वारा प्राप्त हुआ सन्देश है।)
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