अध्याय 5एक सेवक के रूप में आपका आदेश और कार्य क्या हैं
एक सेवक के रूप में, परमेश्वर ने आपको सबसे महान आदेश और कार्य दिया हैं जिस की कल्पना की जा सकती हैं। पवित्रशास्त्र विस्तृत रूप से बताता हैं कि आपके कर्तव्य क्या हैं।
विषय सूची
1. आप को लोगों को चुनौती देना और अगुवाई करना हैं कि वे प्रभु की आराधना करें, जो कि एक मात्र जीवित और सच्चा परमेश्वर हैं, आत्मा और सच्चाई से।
2. आप को उसी रीति से सेवकाई और सेवा करना हैं जैसे मसीह ने सेवकाई और सेवा की।
3. आप को उसी रीति से खोए हुओं को खोजना और बचाना हैं जैसे मसीह ने खोए हुओं को खोजा और बचाया।
4. आप को परमेश्वर के लिए इसी समय कार्य और परिश्रम करना हैं: फसल पक गई हैं और कार्य अति आवश्यक हैं।
5. आप को परमेश्वर के वचन का प्रचार करना हैं: लोगों को सुधारते, डांटते और उत्साहित करते हुए।
6. आप को शिक्षा देना हैं। आप को शिक्षा देना हैं -लोगों को यीशु मसीह में और परमेश्वर के वचन में जड़ पकड़ने और आधारित रहने की।
7. आप को विश्वासियों को उन्नत बनाना हैं और सेवकाई के कार्य के लिए उनको लैस करना हैं।
8. आप को विश्वासियों को खिलाना हैं।
9. आप को विश्वासियों की रखवाली करना और चेताना हैं।
10. आप को एक शुध्द और त्रुटिहीन धर्म में विश्वासियों की अगुवाई करना हैं।
11. आप को एक सुसमाचार प्रचारक का कार्य करना हैं।
12. आप को कलीसिया के प्रशासन का निरी क्षण करना, कलीसिया के कामकाज और संगठन को व्यवस्थित करना हैं।
13. कलीसिया को सर्वप्रथम घरों में बनाना हैं, जैसा निर्देश मसीह व्दारा दिया गया हैं।
14. एक बुध्दिमान प्रवीण निर्माणकर्ता के समान आप को कलीसिया का निर्माण करना हैं।
1. आप को लोगों को चुनौती देना और अगुवाई करना हैं कि वे प्रभु की आराधना करें, जो कि एक मात्र जीवित और सच्चा परमेश्वर हैं, आत्मा और सच्चाई से।
"परन्तु वह समय आता हैं, वरन अब भी हैं जिसमें सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही भजन करनेवालों को ढूंढता हैं। परमेश्वर आत्मा हैं, और अवश्य हैं कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें" (यूह 4:23-24)
"यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य हैं: भेंट लेकर उसके सम्मुख आओं, पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत करों" (1 इति. 16:29)।
"आओ हम झुककर दण्डवत करें और अपने कर्ता यहोवा के सामने घुटने टेकें" (भज 95:6)।
"पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत करो; हे सारी पृथ्वी के लोगों उसके सामने कांपते रहो" (भज 96:9)।
"उसके फाटकों में धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो और उसके नाम को धन्य कहो ! क्योंकि यहोवा भला हैं, उसकी करूणा सदा के लिए, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती हैं" (भज 100:4-5)
"और प्रेम और भलेकामों में उस्काने के लिए एक दूसरे की चिंता किया करें और एक दूसरे के साथ इकठ्ठा होना न छोड़े, जैसे कि कितनों की रीति हैं, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो" (इब्रा 10:24-25)
"तब यीशु ने उससे कहा; हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा हैं, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर" (मत्ती 4:10)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप को लोगों को परमेश्वर की आराधना करने की चुनौती देन। और अगुवाई करना हैं। परन्तु ध्यान दें, परमेश्वर एक अति विशेष प्रकार की आराधना चाहता हैं। परमेश्वर निर्देश देता हैं कि ठीक ठीक कैसे उसके निकट आकर उसकी आराधना करना हैं: आत्मा में और सच्चाई में। "अवश्य हैं कि उसके भजन करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें" (यूह 4:24)। अवश्य हैं कि यही चुनौती आप लोगों को दें और परमेश्वर का भजन करने में अगुवाई करेंः उन को परमेश्वर के समक्ष आना हैं और परमेश्वर का भजन "आत्मा में और सच्चाई में" करना हैं। यूह 4:23-24 में तीन महत्वपूर्ण सत्यों पर ध्यान दें।
प्रथम, भजन में एक परिवर्तन किया गया हैं: "वह समय आता हैं, वरन अब भी हैं। "मसीह ने भजन परिवर्तित कर दिया। मसीह से पूर्व, लोग परमेश्वर का भजन विशेष स्थानों में करते थे, उदाहरणार्थ, मंदिरों में और वेदियों के सामने। मसीह के पश्चात्, स्थल और स्थान का कोई अर्थ नहीं हैं। मसीह ने व्दार खोलदिया हैं परमेश्वर की उपस्थिति में जाने का और मनुष्य अब विश्व के किसी भी स्थल में परमेश्वर का भजन कर सकता हैं।
व्दितीय, भजन का स्वरूप हमें कैसे भजन करना हैं - स्पष्ट बताया गया हैः मनुष्य को परमेश्वर का भजन आत्मा में और सच्चाई में करना है।
अ) आत्मा में परमेश्वर का भजन करने का अर्थ हैं परमेश्वर का भजन करना...
* अपनी आत्मा की आत्मिक प्रेरणा और योग्यता के साथ, परमेश्वर के साथ सबसे घनिष्ठ सहभागिता और मित्रता खोजते हुए।
* अपने जीवन और अस्तित्व के आत्मिक केन्द्र से, परमेश्वर के स्वीकार्य और प्रेम और देखभाल में भरोसा और विश्राम करते हुए।
ब) सच्चाई में परमेश्वर का भजन करने का अर्थ हैं...
* परमेश्वर के समीप आना उचित या सत्य मार्ग व्दारा। केवल एक ही मार्ग हैंः उसके पुत्र यीशु मसीह व्दारा।
* निष्कपटता और सच्चाई से परमेश्वर का भजन करना, आधे मन और भ्रमणशील मस्तिष्क और नींद भरी आंखों के साथ नहीं।
तृतीय, भजन का कारण स्पष्ट दिया गया हैंः पिता उसका भजन करनेवाले मनुष्यों को खोजता हैं।
परमेश्वर भजन चाहता हैं, क्योंकि उस ने मनुष्य को सृजा कि वह उसका भजन करें और सहभागिता रखे। इसलिए परमेश्वर ऐसे मनुष्यों की खोज करता हैं जो उसका भजन आत्मा में और सच्चाई में करें।
परन्तु उपरोक्त इब्रा 10:25 पर ध्यान दें। आरभ्भिक कलीसिया के दिन में भी कुछ लोगों ने कलीसिया को छोड़ दिया था। प्रत्येक पीढ़ी में कुछ लोगों के समान हीं। आवश्यकता यही हैं जो यह वचन कहता हैं: एक दूसरे को समझाते रहो, और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो। किस दिन ? प्रभु के लौटने का दिन उसका तत्काल लौटना हमारे निकट हैं। इसलिए हमें उन को समझाना हैं जो मार्ग से हट गए हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे उसके आगमन के उध्दार से चूक जाएं और उसके न्याय का सामना उन्हें करना पड़े।
सच्चे विश्वासियों को एक दूसरे की आवश्यकता हैं एक दूसरे की उपस्थिति, संगति, बल, प्रोत्साहन, चिंता और प्रेम की। यह सब पाया जाता हैं जब विश्वासी एकत्रित होते हैं भजन करने के लिए, एक अति विशेष रीति में यह पाया जाता हैं। इसलिए आप को, परमेश्वर के एक सेवक के रूप में परमेश्वर का भजन करने के लिए लोगों को चुनौती देना और अगुवाई करना हैं। आपको लोगों को चुनौती देना और अगुवाई करना हैं...
* कि "प्रभु को वह महिमा दें जो उसके नाम को देय हैं"
* कि "एक भेंट लाकर उसके सन्मुख आएं"
* कि "पवित्रता की सुंदरता में प्रभु का भजन करें" (1 इति 16:29)।
2. आप को उसी रीति से सेवकाई और सेवा करना हैं जैसे मसीह ने सेवकाई और सेवा की।
"परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने। जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करेः और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दें" (मत्ती 20:26-28)
"तुम एक दूसरे के भार उठाओं, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो" (गला 6:2)।
"प्रभु का आत्मा मुझ पर हैं, इसलिए कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया हैं, और मुझे इसलिए भेजा हैं, कि बन्धुओं को छुटकारे का और अंधों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं। और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूं” (लूका 4:18-19)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप की मसीह को व्यवस्था को पूरा करना हैं। मसीह की व्यवस्था सेवकाई और प्रेम की व्यवस्था हैं। उपरोक्त वचनों पर ध्यान दें तो यह स्पष्ट दिखता हैं।
मनुष्यों तक पहुंचने के लिए मसीह ने सब कुछ दे दिया और स्वयं का बलिदान दियाः उसने मनुष्यों के पापों को उठा लिया। अवश्य ही, आप मनुष्यों के पापों को नहीं उठा सकते; परन्तु आप मनुष्यों के भार उठा सकते हो। आप...
* दयावान हो सकते हैं
* प्रोत्साहन दे सकते हैं
* प्रार्थना कर सकते हैं
* क्षमा कर सकते हैं
* सजीव और कोमल हो सकते हैं
* परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को बांट सकते हैं
* सहानुभूति और, संवेदना दर्शा सकते हैं
* आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं
* मिलकर प्रोत्साहन और बल दे सकते हैं
* अनन्त जीवन की आशा बांट सकते हैं
* टूटे मनवालों को चंगा कर सकते हैं
* अंधों को आंखों दे सकते हैं
* कुचले हुओं को स्वतन्त्र कर सकते हैं
* सुसमाचार की आशा बांट सकते हैं, विशेषकर निर्धनों के साथ
"सेवक" शब्द पर ध्यान दें (मत्ती 20:26-28)। इसका अर्थ हैं बंधुआ दास, जीवन के प्रत्येक क्षण प्रभु के साथ बंधा हुआ। विचार "कभी-कभी" सेवा का नहीं हैं परन्तु लगातार सेवा का हैं। आप को सदा सेवा और सेवकाई करते रहना हैं, समय या बुलाहट या कठिनाई की परवाह किए बिना। एक सेवक के रूप में, आप मसीह के एक बंधुआ - दास हैं - प्रत्येक दिन के प्रत्येक घंटे उसके सेवक लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नियुक्त किए गए हैं। आप को सेवकाई और सेवा करना हैं जैसे मसीह ने सेवकाई और सेवा की।
3. आप को उसी रीति से खोए हुओं को खोजना और बचाना हैं जैसे मसीह ने खोए हुओं को खोजा और बचाया। (देखें अध्याय 3 में "आप को मसीह के लिए एक गवाह होना हैं)।
"क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढने और उन का उध्दार करने आया हैं” (लूका 19:10)।
"यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शांति मिले, जैसे पिता ने मुझे भेजा हैं, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ" (यूह 20:11)।
विचार
मसीह के एक सेवक के रूप में, आपका जीवन कार्य मसीह के जीवन - कार्य से जुड़ा हैं। आपका जीवन - कार्य वही जीवनकार्य हैं जैसा मसीह का जीवन कार्य था। ठीक ठीक ध्यान दें कि यूह 20:21 क्या कहता हैं:
* परमेश्वर ने मसीह को एक विशिष्ट जीवन कार्य पर भेजा।
* मसीह आप को उसी जीवन कार्य पर भेजता हैं। वह जीवन कार्य क्या हैं?
"मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढने और उनका उध्दार करने आया हैं" (लूका 19:10)।
मनुष्य "खोया" हुआ हैंः परमेश्वर से अलग और भटक रहा हैं बिना परमेश्वर के; परमेश्वर से अलग किया गया, नाश हो रहा हैं और नष्ट किया जा रहा हैंः मरने और अनन्त जीवन खोने की दण्डाज्ञा उस पर हैं।
आप, सेवक, भेजे जाते हैं खोए हुओं को ढूंढने और बचाने के लिए, खोए हुओं को ढूंढकर परमेश्वर के उध्दार की घोषणा उन के लिए करने के लिए जीवित प्रभु के आप प्रवक्ता और गवाह हैं।
* मसीह मार्ग हैं: खोए हुओं का आप मार्गदर्शन करें।
* मसीह सत्य हैंः खोए हुओं पर सत्य की घोषणा आप करें।
* मसीह जीवन हैंः खोए हुओं के साथ आप जीवन बांटें। परमेश्वर के सेवक के रूप में आप का कार्य हैं जाना जैसे कि मसीह गयाः आप के समाज और संसार के खोए हुओं को ढूंढने और बचाने के लिए।
4. आप को परमेश्वर के लिए इसी समय कार्य और परिश्रम करना हैं: फसल पक गई हैं और कार्य अति आवश्यक हैं।
"क्या तुम नहीं कहते कि कहनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं? देखो, मैं तुम से कहता हूं, अपनी आंखों उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिए पक चुके हैं” (यूह 4:35)।
विचार
यीशु का मन सदा आत्माओं की कटनी पर लगा हैं। मनुष्य उनके मनों को जगत की कटनीपर लगाते हैं: बीज बोने और अनाज काटने, पूंजी निवेश और मजदूरी और लाभपाने पर परन्तु यीशु का मन लोगों पर लगा हैं; सुसमाचार के बीज बोने और परमेश्वर के लिए आत्माओं की कटनी पर।
प्रभु के सेवक, आप के लिए यीशु की चुनौती यह हैं: "अपनी आंखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो।" चुनौती हैं कि पृथ्वी और सांसारिक बातों पर नीचे दृष्टि डालना बंद करो, परन्तु अपनी आंखे "उठाकर" जगत में लहलहाते लोगों के खेतों को देखो।
अ) आत्माओं के खेत पक चुके हैं: इसी समय कटनी के लिए वे तैयार हैं। जब से मसीह पृथ्वी पर आया, परमेश्वर ने अपने आत्मा को जगत में रखा हैं और अलौकिक रूप से सक्रिय किया हैं...
परमेश्वर के लिए एक प्यास ।
पाप की एक चेतना, न पहुंच पाने का एक दोषनिश्चय ।
* एक गहरा अकेलापन और खालीपन ।
* उद्देश्यहीनता की एक चेतना।
यह ज्ञान कि यीशु मसीह पृथ्वी पर आया जगत का उध्दारकर्ता होने का, परमेश्वर पुत्र होने का दावा करते हुए।
यह अत्यन्त अनिवार्य हैं कि आप अपनी आंखें उठाकर इसी समय देखें। यदि ऐसा न करें तो आत्माओं और शरीरों की पकी फसल...
* पृथ्वी के खेतों में रह जाएगी।
स्वादिष्ट और उपयोगी होने से परे पक जाएगी (अत्यन्त पुरानी, गई-बीती हो जाएगी)।
सड़ कर सदा के लिए खो जाएगी।
भूमि पर गिरकर सड़ जाएगी।
ब) देखने के लिए आपकों अपनी आंखे उठाना अनिवार्य हैं। आप आगे या चारों ओर नहीं देख सकते यदि आप अपनी आंखें उठाकर न देखें। सांसारिक बातों को धूमिल हो जाना हैं इससे पहिले कि आप दृष्टि डालें और देखें।
स) आप को देखना हैं कि आप कहां हैं। आपकी आंखों को उस वास्तविकता को देखना हैं जो आपके चारों ओर हैं। आप के चारों ओर आत्माओं की जो कटनी हैं उस पर दृष्टि डालकर आपको अपना ध्यान केंद्रित करना हैं।
ध्यान देंः आप विदेशी खेतों पर दूसरों की चुनौती व्दारा दुष्टि डाल सकते हैं। एक और सत्य पर ध्यान दें जगत अधिकाधिक एक बस्ती बनता जा रहा हैं। दूरी अधिकाधिक महत्वहीन बनती जा रही हैं। प्रत्येक विश्वासी विदेशी के लिए अधिकाधिक उत्तरदायी बनता जा रहा हैं। सत्य तो यह हैं, कि एक मनुष्य का देश, जगत के अन्य प्रत्येक के लिए विदेश हैं, चाहे वह जो भी हो।
"क्योंकि जो अपने शरीर के लिए बोता हैं, वह शरीर के व्दारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिए बोता हैं, वह आत्मा के व्दारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा। हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे" (गला 6:8-9)।
"परन्तु जब दाना पक जाता हैं, तब वह तुरन्त हंसिया लगाता हैं क्योंकि कटनी आ पहुंची हैं" (मर 4:29)।
"और उस ने उन से कहा; पक्के खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं: इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दें" (लूका 10:2)।
"और उन से कहा, मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा" (मत्ती 4:19)।
"तुमने मुझे नहीं चुना परन्तु मैंने तुम्हें चुना हैं और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओं; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे" (यूह 15:16)।
"तो वह यह जानले, कि जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा" (याकूब 5:20)।
"जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, परन्तु वह फिर पूलियां लिए जय जयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा" (भज 126:5-6)।
5. आप को परमेश्वर के वचन का प्रचार करना हैं: लोगों को सुधारते, डांटते और उत्साहित करते हुए। (देखें अध्याय 6, "आपके संदेश आपके प्रचार और शिक्षा को क्या होना हैं)।
"परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, उसे और उसके प्रगट होने, और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे चिताता हूँ कि तू वचन को प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, और सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डांट और समझा" (2 तीमु 4:1-2)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप को परमेश्वर के वचन का प्रचार करना हैं। यह आप के लिए प्रभु की बुलाहट हैं। वचन का प्रचार करना सेवक के जीवन का उपभोगी जोश होना हैं। ध्यान दें कि किस प्रभावी रूप से इस वचन में यह व्यक्त किया गया हैं:
* "वचन का प्रचार कर" पवित्र बाईबिल का पवित्र शास्त्र।
"समय और असमय तैयार रह": शीघ्रता की चेतना रखें; प्रचार के लिए अवसरों को पकड़ें और बनाएं।
प्रचार करते समय "उलाहना दें"।
प्रचार करते समय "डांटें"।
प्रचार करते समय "सब सहनशीलता और शिक्षा के साथ समझाएं"।
प्रथम, वचन का प्रचार करें। संपूर्ण बल ग्रसन पर हैं सेवक को प्रचार से ग्रसित होना हैं। प्रचार को आपकी आत्मा के भीतर जलना हैं; प्रचार व्दारा आप को उपभुक्त हो जाना हैं, मसीह के अपार धन का प्रचार करने के एक ज्वलन्त जोश के साथ। क्यों?
* क्योंकि मनुष्यों का उध्दार करने के लिए प्रचार परमेश्वर का चुना हुआ तरीका हैं।
"क्योंकि क्रूस की कथा नाश होनेवालों के निकट मूर्खता हैं, परन्तु हम उध्दारपानेवालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ हैं... क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रकार की मूर्खता के व्दारा विश्वास करनेवालों को उध्दार दें", (1 कुरि 1:18,21)।
* क्योंकि प्रचार के लिए सेवक उत्तरदायी हैं।
"और यदि मैं सुसमाचार सुनाऊं, तो मेरा कुछ घमंड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिए अवश्य हैं, और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय!" (1 कुरि. 9:16)।
प्रचार करने पर अत्याधिक बल देना असंभव हैं। प्रचार करने के महत्व को पूर्णतः समझना तक असंभव हैं। इस पाठ का संपूर्ण प्रघात यही हैं। वचन एक में दिए गए गंभीर प्रभाव और चेतावनी पर तनिक विचार करें:
परमेश्वर और मसीह दोनों की आंखें सेवक पर लगी हैं यह देखने के लिए कि क्या वह वचन का प्रचार कर रहा हैं।
प्रभु यीशु मसीह व्दारा सेवक का न्याय किया जाएगा कि उसने वचन का प्रचार किया या नहीं।
सेवक मसीह के सामने लाया जाएगा जब मसीह विजयी प्रभु के रूप में महिमा में लौटेगा - उस के सामने उसके प्रचार करने का लेखा देना होगा।
प्रभु के राज्य में सेवक का स्थान और पद निर्धारित होगा इस पर कि कितनी विश्वासयोग्यतापूर्वक उसने वचन का प्रचार किया था।
इसलिए, प्रभार हैं वचन का प्रचार करने के लिए। दो अत्यन्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान दें।
अ) "प्रचार" (के रूस्सो) शब्द चित्रण करता हैं सेवक का लोगों के सामने खड़े होने का स्वयं परमेश्वर के समस्त आदर और अधिकार में। यह वही शब्द हैं जिसका प्रयोग राजदूत के लिए किया गया था जो राजा व्दारा भेजा गया था उसके संदेश की घोषणा करने के लिए स्वयं राजा के समस्त अधिकार और आदर में।
"आज प्रचारक के लिए यही नमूना होना चाहिए। उसका प्रचार होना चाहिए (आदर के साथ) ... वह आदर जो आता हैं... इस सत्य के साथ कि वह राजाओं के राजा का एक अधिकृत संदेश - वाहक हैं। इसे होना चाहिए... अधिकार (के साथ) जो श्रोताओं के व्दारा आदर, सावधानीपूर्वक दिए गए ध्यान, और उचित प्रतिक्रिया की मांग करे" (केने थ व्यूएस्ट)
ब) सेवक को "वचन" का प्रचार करना हैं। "वचन" का क्या अर्थ हैं?
* "समस्त पवित्रशास्त्र" समस्त पवित्रशास्त्र जो परमेश्वर की प्रेरणा व्दारा दिया गया हैं (2 तीमु 3:16)।
वचन का अर्थ हैं पवित्रशास्त्र, परमेश्वर का वचन यह "संपूर्ण प्रकाशित सत्य" हैं। यह परमेश्वर का संपूर्ण परामर्श हैं जिसे मनुष्य" पवित्र बाइबिल" कहते हैं। सेवक को वचन, पवित्रशास्त्र, स्वयं परमेश्वर के वचन का प्रचार करना हैं। उसे प्रचार नहीं करना हैं..
* उसके स्वयं के विचार
* अन्य मनुष्यों के विचार
* दर्शन - शास्त्र
* मनोविज्ञान
* आत्म- स्वरूप
* आत्म धार्मिकता
* समाज विज्ञान
* विज्ञान
* शिक्षण - विकास
* व्यक्तिगत प्रयास
* अहं - विकास
* मानव - निर्मित धर्म
महान यूनानी विव्दान केनेथ व्यूएस्ट के पास "प्रचार" शब्द के सर्वाधिक चुनौती पूर्ण विवरणों में से एक हैं जो कि कभी भी किसी मनुष्य व्दारा लिखित होः
"(प्रचार) शब्द एक आदेश हैं जिसका तुरन्त पालन किया जाना हैं। यह एक तीक्ष्ण आदेश हैं जैसा कि सैनिक भाषा में हैं... प्रचारक को पुस्तक समीक्षाएं नहीं, राजनीति नहीं, अर्थ शास्त्र नहीं, आधुनिक विषय नहीं, जीवन की एक दार्शनिकता नहीं जो बाईबिल का इंकार करे और जो विज्ञान के असिध्द सिध्दांतों पर आधारित हो, परन्तु वचन का प्रचार करना हैं। एक संदेशवाहक के रूप में प्रचारक अपने संदेश का चुनाव नहीं कर सकता। उसके सर्वप्रभु व्दारा उसे एक संदेश घोषणा करने के लिए दिया गया हैं। यदि वह उसकी घोषणा न करें, तो उसे उसके उच्च पद से नीचे उतर आना चाहिए।"
मैथ्यू हेनरी ध्यानाकर्षित करनेवाली भाषा का प्रयोग करता हैं:
"उन्हें स्वयं की धारणाओं और कल्पनाओं का प्रचार नहीं करना हैं, परन्तु शुध्द, स्पष्ट परमेश्वर के वचन का; और उन्हें उसे भ्रष्ट नहीं करना हैं।"
"और चलते - चलते प्रचार कर कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया हैं... जो मैं तुम से अंधियारे में कहता हूँ, उसे उजियाले में कहो; और जो कानोंकान सुनते हो, उसे कोठों पर से प्रचार करो" (मत्ती 10:7,27)।
"और उस ने उन से कहा, तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो" (मर 16:15)।
"जाओ, मंदिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओं" (प्रेरि 5:20)।
"वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दें, और डांट, और समझा" (2 तीमु 4:2)।
व्दितीय, समय और असमय तैयार रह। "तैयार" (एपिसटेथी) शब्द का अर्थ हैं खड़े होकर प्रचार करते रहना चाहे जो भी परिस्थितियो हों, सरल का कठिन।
केनेथ व्यूएस्ट कहता हैं:
"प्रचारक को वचन का प्रचार करना हैं जब समय शुभ, उपयुक्त, उचित हो, और तब भी जब परिस्थितियां प्रतिकूल लगती हों। प्रचार के लिए इतने कम अवसर मिलते हैं कि प्रचारक को प्रत्येक अवसर को लेना हैं जो उसे मिलता हैं वचन के प्रचार करने के लिए। प्रचार करने के लिए कोई बन्द मौसम नहीं हैं।"
मैथ्यू हेनरी कहता हैं:
"इस कार्य को आत्मा के पूरे जोश के साथ करो। जो आप की देखरेख में हैं उन से कहें कि पाप से सतर्क रहें, अपना कर्त्तव्य करें; उन से कहें कि मनफिराएं और विश्वास करें, और एक पवित्र जीवन जीए और यह समय और असमय में... हमें समय में यह करना हैं, अर्थात्, कोई अवसर न खोएं; और असमय यह करना हैं, अर्थात्, कर्त्तव्य को न टालें, इस दिखावे में कि समय ठीक नहीं हैं।"
विलियम बार्ले कहता हैं:
"मसीही शिक्षक को शीघ्रता करना हैं। जो संदेश वह लाता हैं वह अक्षरक्षः एक जीवन और मृत्यु का मामला हैं। वह शिक्षक और प्रचारक जो वास्तव में लोगों तक उनके संदेश को पहुंचाते हैं, वे हैं जिनकी वाणी में तत्परता का स्वर होता हैं"..
"मसीही शिक्षक को सदा प्रयत्नशील होना हैं। समय और असमय उसे मसीह के दावों का आग्रह करना हैं। जैसा कि किसी ने कहा हैं: अपना अवसर लें या बनाएं"।
एमप्लीफाईड न्यू टेस्टामेन्ट कहता हैं:
"शीघ्रता की चेतना रखें (खड़े रहे, तत्पर और तैयार, चाहे अवसर अनुकूल प्रतीत हो या प्रतिकूल, चाहे यह सुविधायुक्त हो या असुविधायुक्त हो, चाहे स्वागत हो या न हो, वचन के प्रचारक के रूप में आप को लोगों को दर्शाना हैं कि उनके जीवन किस प्रकार गलत हैं)"।
तृतीय, उलाहना (एलिगक्सौन) दें। इस शब्द का अर्थ हैं कि एक व्यक्ति को स्वयं को प्रमाणित करने के लिए उसकाएं; एक व्यक्ति को दोष का अहसास कराएं; एक व्यक्ति की अगुवाई करें उसका पाप देखने और उस पर दोषी ठहराए जाने के लिए। इसका अर्थ हैं एक व्यक्ति को पाप के लिए दोष का अहसास कराना और अंगीकार और मनफिराव के लिए उसकी अगुवाई करना।
"प्रचारक को पाप से निपटना हैं, उस के उध्दार न पाए हुए श्रोताओं के जीवनों में, और उन संतों के भी जिनकी सेवकाई वह करता हैं, और उसे यह निश्चित स्पष्टता से करना हैं। आज के हमारे प्रचार की शब्दावली में 'पाप' शब्द पर्याप्त नहीं हैं" (केनेथ व्यूएस्ट)।
चतुर्थ, डांट (एपिटिमेसन)। यह एक प्रबल शब्द हैं, अत्यन्त प्रबल। इसका अर्थ हैं एक तोक्ष्ण, कठोर डांट और आनेवाले न्याय का विचार रखता हैं यदि व्यक्ति मन न फिराए।
"चेतावनी और डांट के शब्द एक भाई को अनेक पाप और विनाश से बहुधा बचाएगा। परन्तु, जैसा कि किसी ने कहा हैं, भाई व्दारा भाई को ठीक करने के रूप में इन शब्दों को सदा कहा जाना हैं। हमारे समान दोष की एक चेतना के साथ इसे कहना हैं। यह हमारे लिए अनुचित हैं कि स्वयं को किसी के नैतिक न्यायाधीश के रूप में रखें; तथापि, यह हमारा कर्त्तव्य हैं कि जब उसकी आवश्यकता हो तो हम वह चेतावनी का शब्द कहें" (विलियम बाले)।
"पाप करने वालों को सबसे सामने डांट, ताकि और लोग भी डरें" (1 तीमु 5:20)।
"और विश्वासयोग्य वचन पर, जो धर्मोपदेश के अनुसार हैं, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा में उपदेश दे सके, और विवादियों (विरोधियों) का मुंह भी बंद कर सके" (तीतु 1:9)।
"पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह, और समझा और सिखाता रह; कोई तुझे तुच्छ न जानने पाए" (तीतु 2:15)।
पंचम, सब सहनशीलता, और शिक्षा के साथ समझा। "समझा" शब्द का अर्थ हे आग्रह करना, प्रोत्साहन देना, शांति और सहायता देना। लोगों को उलाहना देना और डांटना पर्याप्त नहीं हैं। सेवक को उस व्यक्ति को प्रोत्साहन, शांति और सहायता दे कर मसीह तक ले जाना हैं। ध्यान दें कि यह बिन्दु कितना महत्वपूर्ण हैं।
अ) सेवक को "सब सहनशीलता (माकरोथमिया) के साथ समझाना हैं"। विचार यह हैं कि सेवक लोगों को समझाने में धैर्यपूर्वक सहता हैं चाहे परिस्थितियां जो भी हों। वह समझाता हैं और समझाता हैं, प्रोत्साहित करता हैं और प्रोत्साहित करता हैं। वह लोगों के साथ एक लम्बे समय तक दुख सहता हैं...
* सहनशील रहता हैं चाहे उन की जो भी निर्बलताएं और असफलताएं हों।
* सहनशील रहता हैं चाहे जो भी बुराई और हानि हो।
सेवक एक लम्बे समय तक दुख उठाता हैं बिना कड़वाहट या क्रोध के, और वह कभी हार नहीं मानता, क्योंकि जीवनों को परिवर्तित करने की मसीह की सामर्थ को वह जानता हैं। AP
ब) सेवक "सबशिक्षा के साथ समझाता हैं।" परमेश्वर के वचन के अंशों की शिक्षा वह नहीं देता। वह विषयों पर ध्यान केंद्रित्त नहीं करता...
* जो लोकप्रिय हैं।
* जो प्रिय हैं।
* जो उत्सुकता जगाते हैं।
* जो उसके विचार में आवश्यक हैं।
वह परमेश्वर की सब शिक्षाओं पर परमेश्वर के संपूर्ण परामर्श पर ध्यान केंद्रित करता हैं। परमेश्वर की सब शिक्षा वह लोगों को समझाता हैं।
"वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता हैं, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो; ऐसा न हो कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए" (इब्रा 3:13)।
एक सेवक के रूप में, आप को परमेश्वर के वचन का प्रचार स्वयं परमेश्वर के सब अधिकार के साथ करना हैं।
6. आप को शिक्षा देना हैं। आप को शिक्षा देना लोगों की जड़ें और आधार यीशु मसीह में और परमेश्वर के वचन में करना हैं।
"और उसने कितनों को प्रेरित नियुक्त करके, और कितनों को भविष्यवक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दियाः जिससे पवित्र लोग सिध्द हो जाएं, और सेवा का कार्य किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए" (इफि 4:11-12)
"इन बातों की आज्ञा कर, और सिखाता रह" (1 तीमु 4:11)।
"और जो बातें तूने बहुत गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दें; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों" (2 तीमु 2:2)।
"इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओं और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो; और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी हैं, मानना सिखाओंः और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ" (मत्ती 28:19-20)।
"और प्रतिदिन मंदिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह हैं न रूके" (प्रेरि 5:42)1
"और वह उन में परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा" (प्रेरि 18:11)।
"मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिए विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया" (1 तीमु 2:7)।
"यीशु मसीह ने मृत्यु का नाश किया और जीवन और अमरता को सुसमाचार व्दारा प्रकाशित कर दिया जिस के लिए मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा" (2 तीमु 1:10-11)
विचार
एक सेवक के रूप में, आप को परमेश्वर के वचन की शिक्षा देना हैं। शिक्षा देना एक उच्च बुलाहट हैं, महानतम् बुलाहटों में से एक हैं। प्रेरित और भविष्यवक्ता के आत्मिक वरदानों के बाद ही उपदेशक हैं। प्रत्येक प्रेरित और भविष्यवक्ता और पासबान के पास उपदेश का वरदान हैं, परन्तु प्रत्येक उपदेशक एक प्रेरित या भविष्यवक्ता या पासबान नहीं हैं। शिक्षा देने का वरदान परमेश्वर प्रदन्त महानतम उत्तरदायित्वों में से एक हैं; इसलिए, शिक्षक को अपने वरदान के उपयोग में विश्वासयोग्यता के लिए परमेश्वर को कड़ाई से लेखा देना पडेगा।
शिक्षा का आत्मिक वरदान परमेश्वर के वचन को समझने और बताने और परमेश्वर के वचन के सत्यों में विश्वासियों को उन्नत बनाने का वरदान हैं। इस से सम्बध्द हैं परमेश्वर के वचन को समझना, व्याख्या करना, क्रमबध्द करना, और संदेश देना। शिक्षा देने का वरदान उस विश्वासी को दिया जाता हैं जो परमेश्वर के वचन के प्रति उसके जीवन को समर्पित करता और उसके महान सत्यों को परमेश्वर के लोगों के साथ बांटता हैं।
एक सेवक के रूप में आप को शिक्षा देना हैं। शिक्षा देने की आप की बुलाहट हैं। लोगों को शिक्षा देना आपकी सेवकाई का एक बड़ा भाग हैं। इसलिए, आप को एक बलवान शिक्षक होना हैं। ध्यान दें कि एक बलवान शिक्षक क्या करता हैं:
"और जो बातें तूने बहुत गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दें; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों" (2 तीमु 2:2)।
यह वचन कहता हैं कि एक बलवान शिक्षक के पास दो अत्यन्त मूल गुण होते हैं।
अ) एक बलवान शिक्षक स्वयं सत्य को ग्रहण करता हैं। जो शिक्षा आप देते हैं, वैसा जीवन आप का होना हैं जो आप कहते हैं उस पर आप का विश्वास होना हैं -जो आप अंगीकार करते हैं वह आप का अनुभव होना हैं। एक सेवक के रूप में आप को अन्य विश्वासी गवाहों की शिक्षा पर ध्यान देना हैं। जैसा कि मत्ती 28:19-20 कहता हैं, जब कोई अन्य सेवक या शिक्षक जाकर मसीह व्दारा आज्ञा दी गई बातों को सिखाता हैं, तब आप को सत्य को ग्रहण करना और ध्यान देना हैं। आप ने जो सीखा हैं उस सत्य पर आप को चलना हैं - जैसा पहिले कभी नहीं चले। आप को एक ज्वलन्त नमूना बनना हैं एक ऐसे व्यक्ति का जो मसीह के सत्य पर चलता हैं। एक बलवान शिक्षक का यह प्रथम कार्य हैं।
"फिर यहां भंडारी में यह बात देखी जाती हैं, कि विश्वासयोग्य निकले" (1 कुरि 4:2)।
"हे भाईयों, हम तुम से विनती करते हैं, और तुम्हें प्रभु यीशु में समझाते हैं, कि जैसे तुम ने हम से योग्य चाल चलना, और परमेश्वर को प्रसन्न करना सीखा हैं, वैसे ही तुम और भी बढ़ते जाओ" (1 थिस्स. 4:1)।
एक बलवान शिक्षक सत्य की शिक्षा देने के लिए दूसरों का प्रशिक्षण करता हैं। दो पीढ़ियों के बीच की कड़ी आप हैं। आप ने सत्य को सुना और उसे ग्रहण किया। अब आप को सत्य को दूसरों तक पहुंचाना हैं। क्यों? जिस से कि वे अपनी बारी में उसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाएं। एक बलवान शिक्षक का यह दूसरा गुण हैं।
ब) एक बलवान शिक्षक के विषय में एक अन्य महत्वपूर्ण सत्य पर ध्यान दें। वह सत्य को विश्वासयोग्य विश्वासियों को सौंप देता हैं। एक विश्नासयोग्य विश्वासी एक व्यक्ति हैं...
* जो मसीह में और परमेश्वर के वचन में विश्वास करता हैं।
* जो सत्यनिष्ठ, विश्वासयोग्य, अवलम्बनीय और विश्वसनीय हैं।
स्वाभाविक हैं, कि एक व्यक्ति जो परमेश्वर में या परमेश्वर के वचन में विश्वास नहीं करता उसे परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं कहा जा सकता। वह अविश्वासयोग्य और निष्ठाहीन हैं। परमेश्वर उस पर विश्वास नहीं कर सकता या निर्भर नहीं रह सकता।
बिन्दु यह हैं: एक बलवान शिक्षक एक अविश्वसनीय व्यक्ति को सत्य नहीं सौंपेगा। बलवान शिक्षक विश्वसनीय लोगों को खोज कर सत्य को उन को सौंपेगा।
7. आप को विश्वासियों को उन्नत करना और सेवकाई का कार्य करने के लिए उन को लैस करना हैं।
"और उस ने कुछ प्रेरितों, कुछ भविष्यवक्ताओं, कुछ सुसमाचार प्रचारकों, और कुछ रखवालों और उपदेशकों को नियुक्त करके दे दिया; जिससे कि पवित्रलोग सिध्द हों और सेवा का कार्य हो और मसीह की देह उन्नति पाए" (इफि 4:11-13)।
"परन्तु जो भविष्यवाणी करता हैं, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शांति की बाते कहता हैं" (1 कुरि 14:3)।
"इसलिए हे भाईयों क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्टे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्य भाषा, या प्रकाश, या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता हैं। सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिए होना चाहिए" (1 कुरि. 14:26)।
"फिर, क्या तुम समझते हो कि हम तुम्हारे सामने प्रत्युत्तर दे रहे हैं? हम मसीह में परमेश्वर के समक्ष कहते हैं और हे प्रियो, सब बातें तुम्हारी उन्नति ही के लिए कहते हैं" (2) कुरि 12:19)।
"कोई गंदी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिए उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो" (इफि 4:29)।
"वचन का प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दें, और डांट, और समझा" (2 तीमु. 4:2)।
"और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार हैं, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश दे सके, और विवादियों का मुंह भी बंद कर सके" (तीतु 1:9)।
"पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह, और समझा और सिखाता रहः कोई तुझे तुच्छ न जानने पाए" (तीतु 2:15)।
विचार
एक सेवक के रूप में सेवकाई का कार्य करने के लिए विश्वासियों को लैस करना आपका कार्य हैं। "सिध्द" करने का अर्थ हैं सेवा और सेवकाई के लिए लैस करना। यह देखना महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आप सेवक को सेवकाई का कार्य करनेवाला एकमात्र नहीं होना हैं। यथार्थ में, आपका प्राथमिक कार्य हैं लैस करना, एक ऐसा व्यक्ति जो दूसरों को चेला बनाता और मसीह की सेवा करने के लिए तैयार करता हैं। एक और महत्वपूर्ण बिन्दु पर ध्यान देंः साधारण लोगों को लैस करने का उद्देश्य यही हैं कि मसीह की देह, कलीसिया उन्नति करे। यह एक महत्वपूर्ण बिन्दु हैं, क्योंकि इस का अर्थ हैं कि सदस्यों व्दारा सेवकाई का कार्य स्वयं किए बिना कलीसिया की उन्नति नहीं हो सकती। एक कलीसिया में सब विश्वासियों को सेवकाई के कार्य में सम्बध्द होना हैं।
परमेश्वर के सेवक के रूप में यह आपका कार्य हैं कि विश्वासियों को उन्नत करे और जगत के खोए हुओं और जरूरतमंदों की सेवकाई के लिए उन्हें लैस करें।
ध्यान देंः आप को जो करना हैं वह स्पष्ट हैं। तीन बातें कही गई हैं।
अ) परमेश्वर के लोगों के मध्य एक सिध्द एकता लाने के लिए आप को आपको कार्य करना हैं। परमेश्वर के सेवक की बुलाहट हैं...
* कलोसिया में शांति और मेलमिलाप लाने के लिए।
* लोगों को सिध्द तालमेल और आत्मा की एकता में लाने की अगुवाई करने के लिए।
* गुटों और विभाजन, कुड़कुड़ाने, बड़बड़ाने, शिकायत और अन्य सब पापों से जो एक सिध्द एकता के विरूध्द हैं, लोगों की रखवाली करने के लिए।
"हे भाईयों, मैं तुम से हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में विनती करता हूँ, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो" (1 कुरि. 1:10)।
"निदान, हे भाईयों, आनन्दित रहो; सिध्द बनते जाओं; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो, मेल से रहो, और प्रेम और शांति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा" (2) कुरि. 13:11)1
"निदान, सब के सब एक मन और कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करूणामय, और नम्र बनों" (1 पत 3:8)।
ब) परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान के विषय में आप को कार्यरत होना हैं।
"तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उनकी प्रतीति की थी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे; और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा" (यूह 8:31-32)।
"और अनन्त जीवन यह हैं, कि वे तुझ अव्दैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा जानें" (यूह 17:3)।
"और मैं उस को और उसके पुनरूत्थान की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागो होने के मर्म को जानूं और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं" (फिलि 3:10)।
"ताकि तुम्हारा चालचलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाओ" (कुलु. 1:10)।
स) आप को कार्य करना है एक सिध्द मनुष्य के निर्माण का, एक ऐसा मनुष्य जो स्वयं मसीह के स्तर तक पहुंचे उस के स्तर की पूर्णता तक।
"जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाई बोलता था, बालकों का सा मन था, बालकों की सी समझ थी, परन्तु जब सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी" (1 कुरि 13:11)।
"पर अन्न सियानों के लिए हैं, जिनके ज्ञानेन्द्रिय अम्भास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिए पक्के हो गए हैं" (इब्रा 5:14)।
"इसलिए आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिध्दता की ओर आगे आगे बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने की नेव फिर से न डालें" (इब्रा 6:1)।
8. आप को विश्वासियों को भोजन देना हैं।
"उसने तीसरी बार उस से कहा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता हैं? पतरस उदरस हुआ कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा; कि क्या तू मुझ से प्रीति रखता हैं? और उस से कहा, हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता हैंः तू यह जानता हैं कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ: यीशु ने उस से कहा, मेरी भेड़ों को चरा" (यूह 21:17)।
"इसलिए अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया हैं; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लोहू से मोल लिया हैं" (प्रेरि 20:28)।
"परमेश्वर के उस झुंड की जो तुम्हारे बीच में हैं रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच कमाई के लिए नहीं, पर मन लगा कर; और परमेश्वर की मीरास पर अधिकारियों के समान नहीं, परन्तु झुंड के लिए आदर्श बनों" (1 पत 5:2-3)।
"और मैं तुम्हें मेरे मन के अनुसार पासबान दूंगा, जो तुम्हें बुध्दिमानी और समझ से चराएंगे' (यिर्म 3:15; तुलना, यिर्म 23:4; यहे 34:23)।
विचार
एक सेवक के रूप में, यह उपदेश आप के लिए हैं, और यह प्रत्यक्ष और बलपूर्वक हैं। यह उतना स्पष्ट हैं जितना कि हो सकता हैं: "परमेश्वर के झुंड को चरा।" उपरोक्त 1 पत 5:2-3 पर ध्यान दें। "चरा" शब्द (पौइम नेट) एक सर्वसम्मिलित शब्द हैं जो सेवक के सब कर्त्तव्यों को आच्छादित करता हैं। इसका अर्थ हैं कि न केवल परमेश्वर के वचन का प्रचार और उपदेश दिया जाए, परन्तु झुंड की देख भाल और रखवाली की जाए। इस का अर्थ हैं एक रखवाले के समान कार्य करना, एक रखवाले के कर्त्तव्यों को निभाना। एक रखवाले के अनेक कर्तव्य हैं:
* भेड़ों को चराना, चाहे उसे उन को अपनी बाहों में उठाकर चराई तक ले जाना पड़े।
* भेड़ों को चराई तक ले जाना और पथरीले स्थानों और खाईयों से दूर रखना।
* भेड़ों की रक्षा करना। सच्चा चरवाहा भेड़ों के लिए अपने प्राण तक देने के लिए तैयार हैं।
* उन भेड़ों को बहाल करना जो भटक जाती और लौट आती हैं।
* भेड़ों को आज्ञाकारिता और विश्वासयोग्यता के लिए प्रतिफल देना।
* भेड़ों को बकरियों से अलग रखना।
एक और महत्वपूर्ण सत्य पर ध्यान देंः झुंड, परमेश्वर का झुंड हैं; यह सेवक का झुंड नहीं हैं। सेवक तो केवल परमेश्वर के अधीन रखवाले हैं। परन्तु उन को उपरखवाले होना हैं: उन को परमेश्वर के झुंड की देखभाल और रखवाली करना हैं। प्रधान रखवाला परमेश्वर हैं, परन्तु इस का यह अर्थ नहीं कि झुंड की देख-भाल आप परमेश्वर पर छोड़ दें जैसे कि स्वचालित रूप से वह झुंड की देखभाल करेगा। परमेश्वर झुंड की रखवाली उन उपरखवालों के व्दारा करता हैं जिन को वह चुनता हैं। इसी रीति से वह रखवाली करता हैं। इसलिए आप महत्वपूर्ण हैं; आप को परमेश्वर के झुंड को चराना, देख-भाल करना और रखवाली करना हैं। और पवित्रशास्त्र इस सत्य के विषय में कोई संकोच नहीं करताः पवित्रशास्त्र ठीक - ठीक आदेश देता हैं कि आप को झुंडे को कैसे चराना हैं।
अ) आप, सेवक को, झुंड की देख भाल का कार्य स्वेच्छा से लेना हैं, विवश होकर नहीं। इस का यह अर्थ नहीं कि आपकी सेवकाई में आप परमेश्वर का दबाव और उसके प्रेम का अहसास नहीं करते। आप करते हैं; यथार्थ में सब सेवकों को परमेश्वर के दबाव का अहसास करना हैं। पौलुस ने इस सत्य को प्रबलता से घोषित कियाः
"यह तो मेरे लिए अवश्य हैं; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय!" (1 कुरि 9:16)।
"क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश करता हैं" (2 कुरि 5:14)।
परन्तु बिन्दु यह हैंः सेवकाई करने के लिए आप को विवश नहीं किया जाना चाहिए। आप को स्वेच्छा से परमेश्वर के झुंड को चराना चाहिए। आप को स्वेच्छा से परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहिए। परमेश्वर के लोगों के लिए सेवकाई करने के लिए आप को कभी भी विवश नहीं किया जाना चाहिए।
महान त्रासदी यह हैं: परमेश्वर व्दारा सेवकाई में अनेक बुलाए गए हैं, उसके झुंड को चराने के लिए बुलाए गए हैं परन्तु उन्होंने इंकार कर दिया। क्यों?
* कुछ ने अयोग्यता और अपर्याप्तता का अहसास किया।
* कुछ को अहसास हुआ कि उन्हें अत्याधिक मूल्य चुकाना होगा।
* कुछ को अहसास हुआ कि इस में अत्याधिक बलिदान देना होगा।
* कुछ सेवकाई की निंदा को सहना नहीं चाहते थे।
* कुछ को अहसास हुआ कि मांगे और कर्तव्य और अपेक्षाएं सहने से बाहर थीं।
आगे और आगे सूची जा सकती थी, परन्तु पवित्रशास्त्र स्पष्ट हैं। यदि परमेश्वर व्दारा सेवकाई में आप बुलाए गए हैं, तो आप को उसकी बुलाहट का तिरस्कार नहीं करना हैं। परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए आप को विवश नहीं किया जाना चाहिए। आप को स्वेच्छा से सेवकाई करना और परमेश्वर के झुंड को चराना हैं।
"यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह हैं, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं" (यूह 4:34)।
"और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार पर स्वयं अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिए कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे" (1 थिस्स 2:8)।
ब) आप, सेवक को, झुंड की देखभाल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं करना हैं, परन्तु एक तैयार और तत्पर मन से करना हैं। यूनानी का कथन हैं कि सेवकाई में किसी भी व्यक्ति को "मलिन पैसे" (मेडेइस क्रोकर्डोस) अर्थात्, मलिन लाभ या किसी गंदे लाभ के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सेवकाई में कभी भी प्रविष्ट नहीं होना चाहिए...
* मात्र एक पेशे के रूप में।
* केवल एक जीविका उपार्जन के लिए।
* केवल मानव जाति की सेवा के लिए।
* क्योंकि लोग कहते हैं कि उस के पास यह वरदान हैं।
* क्योंकि लोग कहते हैं कि वह एक अच्छा सेवक बनेगा।
* क्योंकि परिजन और मित्र सेवकाई में प्रवेश करने के लिए उसे प्रोत्साहित करते हैं।
प्रायः ये सब कारण घेरे रहते हैं एक व्यक्ति को सेवकाई में प्रवेश करने में परन्तु उन को कभी भी वे कारण नहीं होना हैं जिन से एक व्यक्ति सेवकाई में प्रवेश करता और परमेश्वर के लोगों की देखरेख करता हैं। सेवकाई परमेश्वर से एक बुलाहट हैं, और किसी को भी सेवकाई में प्रवेश करने का साहस नहीं करना चाहिए बिना सेवकाई की एक व्यक्तिगत बुलाहट के। परन्तु ध्यान देंः जब बुलाहट होती हैं, तब व्यक्ति के पास एक तत्पर मन होना हैं। उसे परमेश्वर के लोगों की सेवकाई करना हैं; उसे परमेश्वर के झुंड को तत्परता से चराना हैं।
"तब पतरस उस से कहने लगा, देख, हम तो सब कुछ छोड़ कर तेरे पीछे हो लिए हैं" (मर 10:28)।
"इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता (लूका 14:33)।
"मैं ने किसी की चांदी सोने या कपड़े का लालच नहीं किया" (प्रेरि 20:33)।
"कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, वरन औरों की" (1 कुरि. 10:24)।
स) आप, सेवक, झंड की देखरेख एक प्रभु के रूप में नहीं, पन्तु एक नमूना होने के रूप में करें। ध्यान देंः परमेश्वर का झुंड परमेश्वर की मीरास कहलाता हैं (क्लेरोन)। यही शब्द पुराने नियम में इस्त्राएल के लिए प्रयोगित था। इसका अर्थ हैं कि यहूदी वे लोग थे जो अलग किए गए और आवंटित और परमेश्वर के लिए थे। वे उसका अत्यन्त विशेष आवंटन और नियुक्ति थे, ऐसे लोग जो उसकी देख - भाल में थे। यही चित्रण हैं सेवक और परमेश्वर के झुंड का परमेश्वर ने आपको एक अत्यन्त विशेष मीराम या आवंटन और नियुक्ति दी हैंः आप को नियुक्त किया गया हैं परमेश्वर की मीरास को चराने के लिए, उस झुंड को जो स्वयं परमेश्वर का हैं।
अब ध्यान दें कि किस प्रकार आप को परमेश्वर के झुंड की अगुवाई करना हैं। आप को उन पर प्रभुता नहीं करना हैं, परन्तु आप को उनकी अगुवाई एक नमूने व्दारा करना हैं। आप...
* को एक तानाशाह नहीं, परन्तु एक आदर्श होना हैं।
* को एक बात का प्रचार करके कुछ और बात नहीं करना हैं।
मसीह के लिए जीने के व्दारा आप को लोगों की अगुवाई करना हैं। आप को मसीह का प्रचार और शिक्षा देना हैं, परन्तु सब से प्रथम आप को मसीह के समान एक पवित्र और धर्मी जीवन जीना हैं। आप को ठीक वैसा जीवन जीना हैं जैसा आप प्रचार करते हैं। मसीह के लिए आप को एक नमूना और आदर्श होना हैं, एक नमूना और आदर्श जो परमेश्वर चाहता हैं कि उसके लोग हो।
"क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिखा दिया हैं, कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया हैं, तुम भी वैसा ही किया करो' (यूह 13:15)।
"सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बनाः तेरे उपदेश में सफाई गंभीरता, सच्चाई दिखे" (तीतु 2:7)।
9. आप को विश्वासियों की चौकसी करना और उन्हें चिताना हैं।
"अपने अगुवों की मानो; और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिए जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं" (इब्रा 13:17)।
"हे यरूशलेम मैं ने तेरी शहरपनाह पर पहरूए बैठा दिए हैं; वे दिन - रात कभी चुप न रहेंगेः हे यहोवा को स्मरण करने वालो, छुप न रहो" (यशा 62:6)।
"हे मनुष्य के पुत्र मैंने तुझे इस्त्राएल के घराने के लिए पहरूआ नियुक्त किया हैंः तू मेरे मुख की बात सुन कर उन्हें मेरी ओर से चिताना" (यहे 3:17; तुलना यिर्म 6:17)।
"परन्तु यदि पहरूआ यह देखने पर कि तलवार चला चाहती हैं नरसिंगा फेककर लोगों को न चिताए, और तलवार के चलने से उन में से कोई मर जाए, तो वह तो अपने अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं पहरूए ही से लूंगा। इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, मैंने तुझे इस्त्राएल के घराने का पहरूआ ठहरा दिया हैं; तू मेरे मुंह से वचन सुन सुनकर उन्हें मेरी ओर से चिता दे। यदि मैं दुष्ट के कहूं, हे दुष्ट, तू निश्चय मरेगा, तब यदि तू दुष्ट को उस के मार्ग के विषय में न चिताए, तो वह दुष्ट अपने अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उस के खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा। परन्तु यदि तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय में चिताए कि वह अपने मार्ग से फिरे और वह अपने मार्ग से न फिरे, तो वह तो अपने अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु तू अपना प्राण बचा लेगा" (यहे 33:6-9)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप परमेश्वर के पहरूए हैं। पुराने नियम से यह एक चित्र हैं। राजा या सेनापति व्दारा नियुक्त किए गए मनुष्य पहरूए होते थे...
* सेनापति के मुख्यालय और उसकी सेना की रक्षा करने के लिए।
* नगर और उसके नागरिकों की रक्षा करने के लिए।
पहरूआ नगर की दीवारों या एक पर्वतशिखर पर खड़ा होता था जिससे उसे यथा सभव स्पष्टतम दृष्य मिले। उसका कर्तव्य था पहरा देना, रक्षा करना, सुरक्षित रखना, और आनेवाले किसी भी संकट की चेतावनी देना।
आप, सेवक, परमेश्वर के पहरूए हो। परमेश्वर के पहरूए के रूप में आप के कर्तव्य उपरोक्त वचनों में स्पष्ट कर दिए गए हैं।
अ) परमेश्वर के पहरूए के रूप में, आप को परमेश्वर के लोगों के प्राणों की चौकसी रखना हैं (इब्रा 13:17)।
आप को ध्यान रखना हैं उनके...
* भलाई * प्रेम * पवित्रता
* विकास * शांति * ज्ञान
* शुध्दता * आनन्द * विश्वास का।
आप को सब प्रलोभनों और परीक्षणों से उन को सुरक्षित रखना हैं। आप को उन की आत्माओं की रक्षा करना और यथासंभव उन को बलवान बनाना हैं कि वे सब रोगों, निर्बलताओं, दुर्घटनाओं, और दुखों का सामना कर सकें।
ब) परमेश्वर के पहरूए के रूप में, दिन हो या रात हो आप को कभी भी चुप नहीं रहना हैं (यशा 62:6)।
आप को लगातार प्रभु का प्रचार करना और उसके विषय में बताना हैं। आप को कभी शांत नहीं होना हैं।
आप को लगातार प्रभु के समक्ष परमेश्वर के लोगों की ओर से पुकारते रहना हैं।
प्रार्थना में परमेश्वर के समक्ष आप को पुकारना हैंः कि परमेश्वर उसके लोगों की सुरक्षा, छुटकारे और प्रावधान की उसकी प्रतिज्ञाओं को स्मरण करे। आप को प्रार्थना में कभी भी चुप नहीं रहना हैंः परमेश्वर के समक्ष आप को प्रार्थना का एक पहरूआ होना हैं।
स) परमेश्वर के पहरूए के रूप में, आप उसके घर, कलीसिया उसके सब प्रिय लोगों के ऊपर पहरूए हो (यहेज 3:17)। उस के घर पर पहरूए के रूप में, आप के दो कर्तव्य हैं:
परमेश्वर के वचन को सुनना जो परमेश्वर के स्वयं के हृदय और मुख से निकला हैं।
आनेवाले आक्रमणों और न्याय की चेतावनी लोगों को देना।
ड) परमेश्वर के पहरूए के रूप में, आप को चेतावनी की तुरही फूंकना हैं। आप को लोगों को चिताना हैं आनेवाली तलवार के विषय में जो...
* प्रलोभनों
* परीक्षणों
* मृत्यु
* न्याय
* विनाश की हैं।
ध्यान दें कि यदि आप लोगों को चिताएं तो क्या होता हैं:
* परमेश्वर व्दारा आप विश्वासयोग्य गिने जाते हैं और आप का प्राण मृत्यु से बच जाता हैं, किसी प्रकार के लेखा देने से।
* दुष्टों को उध्दार पाने और मृत्यु से बचने का अवसर मिलता हैं।
परन्तु ध्यान दें कि यदि आप लोगों को न चिताएं तो क्या होता हैं। दो बातें होंगीः
* दुष्ट अपने पाप में मरेंगे।
* दुष्ट की मृत्यु का लेखा आप से लिया जाएगा। यहे 33:6-9 पर ध्यान दें। विचार यह हैं कि स्वयं आप को मृत्यु दण्ड दिया जाएगा।
बिन्दु यह हैं: आप परमेश्वर के पहरूए हो। आप को पहरा देना और परमेश्वर के वचन का प्रचार करना हैं; आनेवाले प्रलोभन, परीक्षण, मृत्यु, न्याय और विनाश की चेतावनी देना हैं। आप को इसी उद्देश्य के लिए परमेश्वर व्दारा बुलाया गया थाः एक पहरूए होने और लोगों को चेतावनी देने के लिए।
10. आप को विश्वासियों को एक शुध्द और निर्दोष धर्म में ले चलना हैं।
"परमेश्वर और पिता के समक्ष शुध्द और निर्मल भक्ति यह हैं कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और स्वयं को संसार से निष्कलंक रखें" (याकू 1:27)।
विचार
परमेश्वर के सेवक के रूप में, आप को शुध्द धर्म के अभ्यास में विश्वासियों की अगुवाई करना हैं। शुध्द धर्म क्या हैं? संक्षेप में यह दो बातें हैं।
अ) एक व्यक्ति को अनाथों और विधवाओं की उनके क्लेश में सुधि लेना हैं। अवश्य ही इसमें सम्मिलित हैं एक समाज में सब जरूरतमंदों की सुधि लेना जो हैं...
* अनाथ * पितारहित
* विधवा * मातारहित
* बन्दीगृह में * अकेले
* नवागन्तुक * शोकित
* खोए हुए या उध्दार न पाए हुए * बिस्तर पर
जोभी आवश्यकता हो, परमेश्वर आप से अपेक्षा करता हैं कि उन की सुधि लें। वह अपेक्षा करता हैं कि आप अपने समाज में सब तक पहुंचें, और कार्य उतना जटिल नहीं हैं, ऐसे देश में जहां प्रत्येक समाज में एक कलीसिया हैं। तनिक विचार करें समाज में एक कलीसिया पर जो घरों की कतारों से, घिरी हैं। आप और सब सदस्य सरलता से प्रत्येक घर तक जा सकते हैं मात्र कुछ घंटों को इस कार्य के लिए अलग करके घर - घर जाने के लिए। जब आप जाते हैं तो आप को केवल यह बांटना हैं कि आप मसीह और कलीसिया के लिए यह कर रहे हैं। आप चाहते हैं कि वे यह जाने कि आप उपलब्ध हैं यदि उन को कभी आप की सहायता की आवश्यकता हो। समाज को यह जानकारी देना कि आप वास्तव में चिंतित हैं अनेकों को प्रेरणा देगा कि वे कलीसिया के विश्वासियों से सहायता लें जब संकट की घड़ी आए, और आएगी यह अवश्य, क्योंकि यह हम सब पर आती हैं। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक कलीसिया में सच्चे विश्वासियों का एक दल होना चाहिए जो खोए हुओं के साथ मसीह को बांट सकें। अब ध्यान देंः
"तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगों, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिए तैयार किया हुआ हैं। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया; मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहिनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दी गृह में था, तुम मुझसे मिलते आए" (मत्ती 25:34-36)।
"निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलता को सहें; न कि अपने को प्रसन्न करें" (रोमि 15:1)।
"तुम एक दूसरे के भार उठाओं, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो" (गला 6:2)
"कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह हैं" (इब्रा 13:3)।
ब) शुध्द धर्म हैं स्वयं को संसार से निर्मल रखना। शुध्द धर्म झूठे विश्वासों या झूठे धर्म से भ्रष्ट नहीं होता। सुसमाचार की शुध्दता और परमेश्वर के वचन की शुध्दता को यह पकड़े रहता हैं। शुध्द धर्म रूप, रीति और संस्कार पर ध्यान केंद्रित नहीं करता। यह अनन्तकाल के लिए जीवनों को परिवर्तित करने की परमेश्वर की सामर्थ पर ध्यान केंद्रित करता हैं और यह बाहर पहुंचता हैं लोगों के जीवनों को परिवर्तित करने के लिए उन से मिलने के व्दारा।
शुध्द धर्म नैतिक रूप से भ्रष्ट नहीं बनता; इस संसार की बातों और आनन्दों में फंसता नहीं। सच्चा धर्म लोगों को उसकाता हैं कि वे स्वयं को इस संसार की बातों से अलग रखें, उन बातों से जो उनकी शारीरिक अभिलाषाओं और लालसाओं को जागृत करती हैं। सच्चा धर्म लोगों को उसकाता हैं कि वे स्वयं को आंखों की अभिलाषा शरीर की, अभिलाषा और जीविका के घमंड से निर्मल रखें - जो सब इस संसार का हैं। यह एक आवश्यक तैयारी हैं यदि एक व्यक्ति को इस संसार के प्रलोभनों और पापों पर जय पाना हैं।
"इसलिए प्रभु कहता हैं, कि उनके बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुध्द वस्तु को मत छुओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा और तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होंगेः यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन हैं" (2 कुरि 6:17-18)।
"तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो; यदि कोई संसार से प्रेम रखता हैं, तो उस में पिता का प्रेम नहीं हैं। क्योंकि जो कुछ संसार में हैं, अर्थात् शरीर की अभिलाषा और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमंण्ड, वह पिता की ओर नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से हैं" (1 यूह 2:15-16)।
"और अंधकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन उन पर उलाहना दो" (इफि 5:11)।
11. आप को सुसमाचार प्रचारक का कार्य करना है।
"और उसने कितनों को प्रेरित; और कितनों को भविष्यवक्ता, और कितनों को सुसमाचार प्रचारक; और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया" (इफि 4:11)।
"पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर" (2 तीमु 4:5)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप को एक सुसमाचार प्रचारक का कार्य करना हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि आप को एक भ्रमण करनेवाला या पेशेवर सुसमाचार प्रचारक बन जाना हैं। इसका अर्थ हैं आपके कार्य को सुसमाचारीय होना हैं आप को आत्माएं जीतने का प्रयास करना हैं उस सब में जो आप करते हैं। आपके सब प्रचारों और उपदेशों में आप को परमेश्वर के प्रेम को बांटना हैं और अन्य सब कुछ में जो आप करते हैं। आपकी सेवा की धकेल को लोगों का मेलमिलाप परमेश्वर से कराना होना चाहिए, परमेश्वर केन्प्रेम के महिमामय समाचार को बांटना होना हैं: यह कि परमेश्वर लोगों को उसके पुत्र, प्रभु यीशु मसीह के व्दारा बचाता हैं।
12. आप को कलीसिया के प्रशासन का पर्यवेक्षण करना हैं, कलीसिया के मामलों और संगठन को ठीक करना हैं।
"मैं इसलिए तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारे, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त करें" (तीतु 1:5)।
"जब उन बारहों ने चेलों की मण्डली को अपने पास बुलाकर कहा, यह ठीक नहीं कि हम परमेश्वर का वचन छोड़कर खिलाने -पिलाने की सेवा में रहें। इसलिए, हे भाईयो, अपने में से सात सुनाम पुरूषों को जो पवित्र आत्मा और बुध्दि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें। परन्तु हम तो प्रार्थना और वचन की सेवा में लगे रहेंगे" (प्रेरि 6:2-4)।
"पर जैसा प्रभु ने हर एक को बांटा हैं, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया हैं; वैसा ही वह चले; और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ" (1 कुरि 7:17)।
"और शेष बातों को मैं आकर ठीक कर दूंगा" (1 कुरि 11:34)।
"कि परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में हैं रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच कमाई के लिए नहीं, पर मन लगा कर" (1 पत 5:2)।
विचार
एक सेवक के रूप में, आप को कलीसिया के प्रशासन का पर्यवेक्षण करना हैं, उसके मामलों और संगठन को ठीक करना हैं। तीतुस 1:5 पर ऊपर ध्यान दें। सेवक के लिए दो प्रशासनिक कर्त्तव्य ठहराए जा रहे हैं (तीतुस)।
प्रथम, आप को उन बातों को सुधारना हैं जो बिगड़ी हैं और अपूर्ण हैं। चाहे जो भी कलीसिया हो, कुछ दोष अब भी हैं और कुछ बातें जिन का किया जाना हैं। प्रत्येक कलीसिया को अब भी एक लम्बा सफर तय करना हैं इस से पहिले कि वह उस पूर्ण स्तर तक पहुंचे जैसा उसे प्रभु के समक्ष होना चाहिए। परन्तु दुख की बात हैं कि अत्याधिक कलीसियाओं में दो गंभीर दोष और त्रुटियां हैं: सेवा के लिए वे पर्याप्त संगठित नहीं हैं और उन्होंने उन के मध्य झूठी शिक्षा को आने दिया हैं। परिणामस्वरूप मसीह के लिए वे लोगों तक नहीं पहुंच रहे हैं, और कुछ मामलों में वे भयानक विभाजन और अपनी गवाही के विनाश का सामना कर रहे हैं।
व्दितीय, आप को कलीसिया की सेवा को चलाने के लिए (प्रेरितों 6:2-4 ऊपर) जिस भी अगुवाई की आवश्यकता हो उसे नियुक्त करना हैं। यदि आप स्वयं कलीसिया के प्रत्येक सदस्य की देखभाल नहीं कर सकते हैं तब तीन बातें अनिवार्य हैं।
अ) आप को और कलीसिया को अधिक सहायकों को खोजना हैं। आप को ऐसे व्यक्तियों को खोजना हैं जो प्रभु और लोगों से प्रेम रखते हैं, और जो अपने ऊपर परमेश्वर के हाथ का अहसास करते हैं, उसकी बुलाहट का अहसास करते हैं दूसरों की सेवा और देखभाल करने के लिए।
ब) आप और कलीसिया को स्वयं से इतनी अधिक मांग करना छोडने के लिए तैयार रहना हैं। आप और कलीसिया को दूसरों की सेवा को स्वीकार करना हैं जो परमेश्वर के झुंड की सेवा के लिए बुलाए गए हैं।
स) आप को तैयार रहना हैं कि संपूर्ण कलीसिया को एक साथ बुलाए कि एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अन्तर्गत सहयोगी बनें। ठीक यही तो प्रेरितों ने स्वयं किया। कलीसिया को संगठित करने में यदि उन्होंने लोकतन्त्र के नियम का अनुकरण किया, तो कितना अधिक आप और परमेश्वर के अन्य सब सेवकों को करना चाहिए ? ध्यान देंः समिति या प्रेरितों के दल ने मिलकर समस्या और आवश्यकता पर चर्चा की थी कलीसिया में आने से पूर्व। प्रशासन और अगुवाई स्तरों की एक बड़ी मात्रा इस पाठ में दिखाई देती हैं:
* प्रेरितों की समिति।
* डीकन्स (तुलना करें 1 तीमु 3:8-13) या सेवक।
* कलीसिया, विश्वासियों का समूह।
ध्यान दें कि आप को क्यों यह निश्चित करना हैं कि कलीसिया संगठित हैं और सुचारू रूप से और दक्षतापूर्वक चल रही हैं: जिस से कि आप स्वयं को प्रार्थना और वचन की सेवकाई के लिए दे सकें। आप की प्राथमिक बुलाहट हैं...
* स्वयं को, अपने लोगों को, और मसीह के विश्वव्यापी कार्य को प्रार्थना में डुबाए रखें।
* लोगों के लिए परमेश्वर के वचन की सेवा सदा करते रहें शांति, प्रोत्साहन, चुनौती देने, उन को विकसित करने और उन के परिवर्तन की खोज करने के व्दारा।
आप की कलीसिया को व्यवस्थित होना हैं सुसंगठित होना हैं - जिस से कि आप प्रभावी हो सकें और अपनी सेवकाई में फलवन्त हों।
13. आप को कलीसिया का निर्माण प्रथम और सबसे पहिले घरों में करना हैं, जैसा मसीह व्दारा आदेशित हैं।
"और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने, और बीमारों को अच्छा करने के लिए भेजा... जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो, और वही से विदा हो” (लूका 9:2,4)।
"बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो" (1 पत 4:9)।
विचार
एक सेवके रूप में, आप को कलीसिया को प्रथम और सब से पहिले विश्वासियों के घरों में केंद्रित करना हैं। कलीसिया केंद्रित नहीं की जा सकती हैं और उसे नहीं करना हैं उस में जिसे हम गिर्जाघर कहते हैं। क्यों? छह बातें हमें यह उत्तर देती हैं।
प्रथम, जगत तक पहुंचने के लिए जिस तरीके को मसीह ने चुना वह था गृह सुसमाचार प्रचार का तरीका ऊपर लूका 9:2,4 पर ध्यान दें।; चेले को सावधानी से जांच कर के एक ग्राह्य परिवार और घर को खोजना था। उसे उस घर को उस की सेवकाई का केंन्द्र बनाना था। इस तरीके के विषय में कुछ बातों पर ध्यान दें।
अ) यह परिवार पर बल देता हैं, उसे सेवकाई का केन्द्र बनाते हुए।
ब) यह स्थिरता, सुरक्षा, और निश्चित निवास स्थान पर बल देता हैं। पृथ्वी पर परिवार से अधिक किसी भी वस्तु को अधिक सुरक्षित और स्थिर नहीं होना हैं। घर में सेवकाई का केंन्द्र रखने के व्दारा परमेश्वर का राज्य सुरक्षित और स्थिर बन जाता हैं।
स) यह प्रचार और सेवकाई को केंद्रित करता हैं समाज में, ठीक वहीं जहां लोग जीते और चलते हैं। यह मसीह की उपस्थिति को दैनिक जीवन में सब पर प्रकट कर देता हैं।
ड) यह एक केन्द्र के रूप में कार्य करता हैं जहां से संदेश क्रमशः वृहद होनेवाले वृत्तों में बाहर जा सकता हैं, परिवार से परिवार तक फैलते हुए।
सुसमाचार प्रचार का सबसे आदर्श रूप संभवतः मसीह व्दारा दिया गया यह तरीका हैः एक चुना हुआ घर और परिवार एक समाज या नगर के मध्य गवाही के केन्द्र के रूप में कार्यरत।
व्दितीय, आरम्भिक कलीसिया विश्वासियों के घरों में केंद्रित थी। वास्तव में, मसीह के लगभग दो सौ वर्षों बाद तक कोई कलीसियाई ईमारतें नहीं थीं। पवित्रशास्त्र में एक गृह - केंद्रित कलीसिया के कुछ संदर्भों पर ध्यान दें।
"और प्रतिदिन मंदिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह हैं न रूके" (प्रेरि 5:42)।
"और जो जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उन को बताने और लोगों के सामने और घर घर सिखाने से कभी न झिझका" (प्रेरि 20:20)।
"और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उनके घर में हैं। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिए आसिया का पहला फल हैं, नमस्कार" (रोमि 16:5)।
"आसिया की कलीसियाओं की ओर से तुम को नमस्कार; अक्विला और प्रिसका और उन के घर की कलीसिया का भी तुम को प्रभु में बहुत बहुत नमस्कार" (1 कुरि 16:19)।
"लौदीकिया के भाइयों को और नुमफास और उनके घर की कलीसिया को नमस्कार कहना" (कुलु 4:15)।
"और बहिन अफफिया, और हमारे साथी योध्दा अरखिप्पुस और फिलेमोन के घर की कलीसिया के नाम" (फिले 2 तुलना करें, प्रेरि 12:12; 16:40)।
तृतीय, आरम्भिक विश्वासियों को उनके घरों को खोलकर परस्पर पहुनाई करना था अन्यथा कलीसिया का जीवित रहना कठिन हो जाता। कारण ये हैं:
* जब विश्वासी सताए गए थे और अन्य नगरों में भाग जाने के लिए विवश थे, तो उनके पास रहने का स्थान न था (तुलना प्रेरि 8:1-4)।
* जब सुसमाचार प्रचारक और मिशनरी भ्रमण करते थे, तो उनको रहने के लिए एक स्थान की आवश्यकता पड़ती थी, और उन में से अनेक निर्धन थे। सराय अत्यन्त गंदे और अनैतिक थे; इसलिए, विश्वासियों के घरों में उन के ठहरने और भोजन का प्रावधान करना पड़ता था।
* जब मसीहियों को कार्यवश भ्रमण करना पड़ता था, तो उन को सरायों की अनुपयुक्तता के कारण घरों में रहने की आवश्यकता पड़ती थी।
आरम्भिक कलीसिया के लिए पहुनाई अत्यन्त आवश्यक थी, और कलीसिया में आज यह अत्यन्त आवश्यक हैं। क्यों? प्रेम और देख भाल और सेवकाई और घनिष्ठ संगति के लिए। एक प्रेम और देखभाल करनेवाली कलीसिया और एक गतिशील सेवकाई बनाए रखना लगभग असंभव हैं जब तक कि विश्वासी उन के घरों में एक साथ संगति न करें। वास्तव में, मसीह ने सिखाया कि हमें अपने घरों का उपयोग करना हैं मसीही प्रेम, संगति, और बाहर पहुंचने के केंद्रों के रूप में। यह एक ऐसा सत्य हैं जो बहुधा अज्ञात या अनदेखा होता हैं (देखें प्रचारक की रूपरेखा और उपदेश बाइबिल लेख -लूका 9:4; 10:5-6)।
ध्यान देंः हमें बिना कुड़कुड़ाए अपने घरों को खोलना हैं, अर्थात्. बिना बुदबुदाए या शिकायत किए (1 पत 4:9)। हमें स्वेच्छा पूर्वक और सत्कार पूर्वक हमारे घरों को खोलना हैं, आनन्द से उन को खोलते हुए परमेश्वर से बड़ी आशा रखते हुए।
क्या होगा यदि मसीह के लिए आप प्रत्येक समाज में एक घर स्थापित करना आरम्भ करें, एक घर जो प्रेम, संगति, आराधना, और बाहर पहुंचने के लिए एक केन्द्र हो? काश परमेश्वर अनेक सेवकों और कलीसियाओं के हृदयों को स्पर्श करे उस ठीक तरीके को अपनाने के लिए जो स्वयं मसीह व्दारा निर्देशित हैं (देखें प्रचारक की रूपरेखा और उपदेश बाईबिल लेख लूका 9:4; 10:5-6)।
* अध्यक्ष या सेवक को पहुनाई करनेवाला होना हैं।
"सो चाहिए कि अध्यक्ष निर्दोष, और एक ही पत्नी का पति संयमी, सुशील, सभ्य, पहुनाई करनेवाला, और सिखाने में निपुण हो" (1 तीमु 3:2)।
"पर (अध्यक्ष) पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, नयायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो" (तीमु 1:8)।
* सब विश्वासियों को उनके व्दार खोलना हैं जरूरतमंद अजनबियों तक के लिए।
"पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इसके व्दारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की हैं" (इब्रा 13:2)।
* सब विश्वासियों को पहुनाई का प्रयोग सेवकाई के एक माध्यम के रूप में करना हैं और बिना कुड़कुड़ाए इस का प्रयोग करना हैं।
"पहुनाई करनेवाला" (रोमि 12:13)।
"बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो" (1 पत 4:9)।
* विशेषकर विधवाओं को पहुनाई का प्रयोग सेवकाई के एक माध्यम के रूप में करना हैं।
"और भले काम में सुनाम रही हो, जिसने बच्चों का पालन पोषण किया हो; पाहुनों की सेवा की हो, पवित्रलोगों के पांव धोए हो, दुखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो" (1 तीमु 5:10)।
चतुर्थ, एक गृह-केंद्रित कलीसिया एक मात्र उपाय हैं मसीह के लिए जगत स्थायी रूप से पहुंचा जा सकता हैं। राजनीति और विधि परिवर्तन बहुधा दमन या कलीसियाई संपत्ति को जब्त होने तक पहुंचाते हैं। और जब तक जगत रहेगा, राजनीति और विधि परिवर्तन और दमन होंगे जो कलीसियाई संपत्ति को प्रभावित करते हैं - कभी कभी प्रबलतापूर्वक - लोकतन्त्रों में तक।
बिन्दु यह हैं: जब जगत के घरों में कलीसिया केंद्रित हैं, तब राज्य और सरकार में परिवर्तन कलीसिया को उतना प्रभावित नहीं करते जितना कि एक ईमारत - केंद्रित कलीसिया को।
पांचवां, कलीसियाई संपदाओं के निर्माण और रख रखाव का मूल्य अत्याधिक हैं और सदा रहेगा। क्यों? क्योंकि कलीसिया को अपने पैरों पर खड़ा होना हैं, राज्य और सरकार से स्वतन्त्र कलीसिया को सरकारों और जगत की धर्म निर्पेक्ष संस्थाओं में उलझना नहीं हैं, क्योंकि वे मांग कर सकते हैं और सुसमाचार के संदेश को सीमित कर सकते हैं।
छटवां, ईमारतों और कलीसियाई संपदाओं का अत्याधिक और अत्यन्त खर्चीला मूल्य पैसे को निगल जाता हैं, पैसे की बड़ी मात्रा को, पैसा जिसका बहुधा उपयोग किया जाना चाहिए जगत भर में सुसमाचार भेजने के लिए अनेक, विश्वासी विशेषकर जो औद्योगिक समाजों में हैं - इस पर तर्क करेंगे। परन्तु जब आप और मुझे सारे जगत में सुसमाचार प्रचार करने के लिए मसीह के सेवक और अगुवे होने के लिए चुना गया हैं -जब आप और मैं न्याय के दिन परमेश्वर के समक्ष खड़े होंगे तब अत्यन्त खर्चीली कलीसियाई ईमारतों को अनदेखा करना परमेश्वर के लिए असंभव होगा जब इतने अधिक लोग इतने पीड़ित हैं और सुसमाचार की एक स्पष्ट प्रस्तुति को उन्होंने कभी नहीं सुना हैं। हम में से अनेक - सेवक और सामान्य अगुवे दोषी ठहराए जाएंगे और परमेश्वर के भयानक न्याय की पीड़ा सहेंगे। हम असफल होंगे ठीक वैसे ही जैसे कि धनवान युवक शासक हुआः जगत के निर्धनों और जरूरतमंदों को वह सब देने से चूक गए जो हम हैं और जो हमारे पास हैं उसे। परमेश्वर हमारी सहायता करे मसीह और उसके कार्य के लिए - खोए हुओं को खोजने और बचाने में और जगत के जरूरतमंदों की सेवा करने में।
14. आप को कलीसिया का निर्माण करना हैं एक बुध्दिमान राजमिस्त्री के रूप में।
"परमेश्वर ने उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैंने बुध्दिमान राजमिस्त्री की नाई नेव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता हैं। परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता हैं। क्योंकि उस नेव को छोड़ जो पड़ी हैं, और वह यीशु मसीह हैं: कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता", (1 कुरि 3:10-11)।
विचार
"राजमिस्त्री" (आर्कटेकटॉन) का अर्थ हैं ईमारत परियोजना का पर्यवेक्षक या शिल्पी। पौलुस कहता हैं कि उसी ने कुरिन्थ की कलीसिया की योजना बनाई थी। उसी ने नींव डाली, और कलीसिया की स्थापना का आरम्भ और पर्यवेक्षण किया (प्रबन्ध) । उपरोक्त पवित्रशास्त्र में पांच बातों पर ध्यान दें।
अ) एक सेवक के रूप में, आप एक राजमिस्त्री हैं "परमेश्वर के अनुग्रह" के कारण, किसी व्यक्तिगत योग्यता या गुण के कारण नहीं। "अनुग्रह" शब्द का अर्थ एक कलीसिया में सेवा करने की बुलाहट मात्र से कहीं अधिक हैं; इसका अर्थ हैं कार्य करने के लिए योग्य बनाया जाना, शक्ति प्रदान किया जाना और लैस किया जाना। यह है परमेश्वर की सामर्थ, परमेश्वर के वरदान, परमेश्वर की योग्यताएं जो पौलुस को दी गई थीं उस कार्य को करने के लिए जिसे करने के लिए परमेश्वर ने उसे बुलाया था। पौलुस केवल वह औजार था जिस के व्दारा परमेश्वर ने कलीसिया का निर्माण किया। आप के विषय में यही सत्य हैं।
अब एक महत्वपूर्ण गुणक पर ध्यान दें। पौलुस एक ईसारत के विषय में नहीं कह रहा था। वह लोगों के विषय में कह रहा था। कलीसिया एक ईमारत नहीं हैं: कलीसिया लोगों का एक समूह हैं जो यीशु मसीह में वास्तव में विश्वास करते हैं। परमेश्वर अपने सेवक को अनुग्रह देता हैं सामर्थः शक्ति, और योग्यता - लोगों तक यीशु मसीह के लिए पहुंचने के लिए और उन को एक देह में एक साथ जोड़ने के लिए परमेश्वर की आराधना करने और उसके पुत्र यीशु मसीह का आदर करने के लिए। यह महत्वपूर्ण नहीं हैं कि कलीसिया कहां एकत्रित होती हैं। विश्वासी एक घर, एक झोंपड़ी, एक खेत, एक आंगन, एक सार्वजनिक ईमारत, या एक गिर्जाघर में मिल सकते हैं। महत्व की बात यह हैं कि वे एक हैं उनके...
* प्रभु में विश्वास में।
* परमेश्वर में विश्वास और आराधना में।
* उद्देश्य और कार्य में परमेश्वर के महान प्रेम के संदेश के साथ उन के पड़ोसियों और जगत तक पहुंचने में।
ब) एक सेवक के रूप में, आप को एक "बुध्दिमान राजमिस्त्री" होना हैं। "बुध्दिमान" शब्द का अर्थ हैं निपुण। आप को कलीसिया के निर्माण कार्य और परियोजना को विना विचार किए नहीं करना हैं। आप को देर तक पूर्ण विचार करना हैं, आप को आपकी बुध्दि को कार्य पर लगाए रखना हैं। जगत के आनन्दों को आप को ध्यानाकर्षण करने नहीं देना हैं; और न आप की शारीरिक इच्छाओं को अनुमति देना हैं, जो कि कभी - कभी बाधा डालने के लिए सरल कार्य की मांग करती हैं। पौलुस जानता था कि परमेश्वर ने उसे क्या करने के लिए बुलाया था, संपूर्ण जगत में कलीसियाओं को स्थापना करने और इसकी योजना बनाने के लिए एक "बुध्दिमान" शिल्पी और ईमारत पर्यवेक्षक के रूप में उस ने यह किया। मसीह के एक सेवक के रूप में, आप को एक "बुध्दिमान राजमिस्त्री" होना हैं।
स) कुरिन्थ में पौलुस के कार्य पर दूसरों ने निर्माण किया। जब पौलुस ने कुरिन्थ छोड़ा, तो परमेश्वर ने दूसरों को खड़ा किया परिश्रम करने कलीसिया का निर्माण करते रहने के लिए। उन में होंगे...
* सेवक
* अगुवे
* शिक्षक
* सदस्य जिन्होंने कलीसिया का निर्माण करने के सेवा कार्य किया। इसमें होना चाहिए एक कलीसिया के सब सदस्य, क्योंकि सब सदस्यों को प्रभु के लिए उन की गवाही और सेवा के व्दारा अवश्य ही कलीसिया का निर्माण करना हैं। प्रत्येक सदस्य एक कलीसिया का या तो निर्माण कर रहा हैं या उसकी गवाही और बल को नष्ट कर रहा हैं।
एक आश्चर्यजनक सत्य के विषय में विचार करेंः प्रत्येक कलीसिया का एक व्यक्ति रहा हैं जो राजमिस्त्री, शिल्पी, कलीसिया का संस्थापक था। परमेश्वर के लिए किसी ने जाने के लिए स्वयं को समर्पित किया। किसी ने स्वयं को परमेश्वर को समर्पित किया एक राजमिस्त्री, एक शिल्पी, एक पथः प्रदर्शक, कलीसियाओं के एक निर्माता, परमेश्वर के लिए बनने के लिए।
सर्वाधिक महत्व का प्रश्न हैं: आज वे पुरूष और स्त्रियां कहां हैं जो परमेश्वर को अपने जीवनों को समर्पित करेंगे? जो राजमिस्त्री होंगे? जो परमेश्वर के लिए जाकर कलीसियाओं का निर्माण करेगे? अत्यन्त आवश्यकता हैंः मसीह के प्रेम और कार्य के नीचे लोगों तक पहुंचने और एकत्रित करने की आवश्यकता हैं।
"उस ने उन से कहा; परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो? शमौन पतरस ने उत्तर दिया, कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह हैं। यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि हे शमौन योना के पुत्र, तू धन्य हैं; क्योंकि मांस और लोहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में हैं, यह बात तुझ पर प्रगट की हैं। और मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू पतरस हैं; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगाः और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे" (मत्ती 16:15-18)।
एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह हैं: कितने सेवक कलीसिया का निर्माण वास्तव में निर्माण कर रहे हैं? उस नींव पर जो पहिले से डाली गई हैं कितने लोग बुध्दिमानी और निपुणता से निर्माण कर रहे हैं? क्या आप ? क्या मैं? कितने अन्य सेवक यीशु मसीह पर बुध्दिमानी और निपुणता से निर्माण कर रहे हैं?
ड) एक सेवक के रूप में स्पष्ट चेतावनी पर ध्यान दें प्रत्येक सेवक ध्यान दे कि कलीसिया की नींव पर वह कैसा निर्माण करता हैं। नीव डल चुकी है. और वह मजबूत हैं। वह कभी भी न हटेगी। उस पर अब निर्माण करना हैं, परन्तु कलीसिया में सेवक और साधारण मनुष्य सब को ध्यान देना हैं कि वह उस पर कैसा निर्माण करता हैं।
इ) एक सेवक के रूप में केवल एक ही नींव हैं जिस पर आप एक सच्ची कलीसिया बना सकते हैं: स्वयं यीशु मसीह की नींव। अन्य सब नींवें डूबनेवाली रेत के समान हैं। वे जीवन की आंधियों के समाने खड़ी नहीं रह सकतीं। कोई भी सेवक - चाहे वह जो भी हो - कोई अन्य नींव नहीं डाल सकता जो बनी रहे। अन्य सब नींवे चूर - चूर होकर सदा के लिए नष्ट हो जाएंगी। यह कहने का क्या अर्थ हैं कि मसीह ही एकमात्र नींव हैं?
* इसका अर्थ हैं कि स्वयं मसीह, उसका व्यक्तित्व ही, एक मात्र नींव हैं जिस पर मनुष्य अपने जीवनों का निर्माण कर सकते हैं।
"यीशु ने उससे कहा, मार्ग सत्य, और जीवन में ही हूं: बिना मेरे व्दारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता" (युह 14:6)।
"और किसी दूसरे के व्दारा उध्दार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के व्दारा हम उध्दार पा सकें" (प्रेरि. 4:12)।
* इसका अर्थ हैं कि मसीह की शिक्षा या सिध्दान्त ही वह एकमात्र नींव है जिस पर मनुष्य अपने जीवनों का निर्माण कर सकते हैं।
"इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता हैं वह उस बुध्दिमान मनुष्य की नाई ठहरेगा जिस ने अपना घर चट्टान पर बनाया" (मत्ती 7:24)।
"मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा” (यूह 8:51)।
"शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, कि हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे हीं पास हैं" (यूह 8:51)।
* इसका अर्थ हैं कि यीशु मसीह एक मात्र नींव हैं जिस पर मनुष्य एक सच्ची कलीसिया बना सकते हैं।
"उस ने उन से कहा; परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो? शमौन पतरस ने उत्तर दिया, कि तू जीवने परमेश्वर का पुत्र मसीह हैं। यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि हैं शमौन योना के पुत्र, तू धन्य हैं; क्योंकि मांस और लोहू ने कहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में हैं, यह बात तुझ पर प्रगट की हैं। और मैं भी तुझ से कहता हूं, कि तू पतरस हैं, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा; और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे" (मत्ती 16:15-18)।
"यह वह पत्थर हैं जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया। और किसी दूसरे के व्दारा उध्दार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के व्दारा हम उध्दार पा सकें (प्रेरि. 4:11-12)।
"और प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नेव पर जिस के कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही हैं, बनाए गए हो। जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मंदिर बनती जाती हैं" (इफि. 2:20-21)। READ MORE...

0 टिप्पणियाँ