स्वर्गदूत और शैतान का विज्ञान - The Science of Angels and Satan
क. उसका व्यक्तित्व
मानव जाति को छोड़कर बुद्धिमान जीवी भी है यह बाइबल बताती है और वे हैं स्वर्गदूत। इनका वचन में कई बार, उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य में मिलता है। एंजल शब्द का अर्थ इब्रानी में (मलाचिएक) और यूनानी भाषा में (एगीलोस) इसका अर्थ हैं। "संदेशवाहक"। ये जीवी सोचने की संबंधी बनाने एवं बुद्धिमानी भी रखते हैं (मत्ती 8:29, 2 कुरिन्थियों 11:3, 1 पतरस 1:12) वे संवेदनशील है (लूका 2:13, याकूब 3:19, प्रकाशितवाक्य 12:17), चुनाव करने की क्षमता रखते हैं। (लूका 8:28-31, 2 तीमुथियुस 2:26, यूहदा 7) ये व्यक्तिगत जीव हैं।
स्वर्गदूत, आत्मिक जीव हैं (इब्रानियों 1:14 वे परमेश्वर की आज्ञा से मानव रूप धारण कर सकते हैं (लूका 2:9, 24:4)। ये अलौकिक जीव हैं जिनको गनुष्यों से ऊपर का दर्जा दिया गया है (इब्रानियों 2:7)। इसलिये वे गनुष्यों से ज्यादा शक्तिशाली एवं बुद्धिमान है (प्रकाशितवाक्य 10:1-3)। तौभी वे सब बातें जान नहीं सकते और पूरी नहीं रख सकते, न वे परमेश्वर के समान हर जगह उपस्थित हो सकते (1) पतरस 1:12, मत्ती 25:41)।
धर्मशास्त्र में हमें केवल 3 नाम दिये गये हैं वे हैं
1. मीकाएल (दानिय्येल 10:13, 21, 12:1) (यहूदा 1:9, प्रकाशितवाक्य 12:7)
2. जिब्राएल (दानिय्येल 8:16, 9:21. लूका 1:19, 26)
3. और शैतान (प्रकाशितवाक्य 12:9)।
ख. उन्हें बनाने वाला (सृष्टिकर्ता)
स्वर्गदूतों को परमेश्वर ने बनाया (भजन संहिता 148:2-5)। इससे कुछ पहले जब परमेश्वर ने पृथ्वी को रहने लायक स्थान बना (अय्यूब 38:7)। इसलिये कि स्वर्गदूत अपने समान संतान पैदा नहीं करते (लूका 20:35) और उसकी मृत्यु नहीं होती (लूका 20:36)। उनकी संख्या वैसी ही रहती है। हमें नहीं बताया गया है कि वे कितने हैं पर हमें यह ज्ञात है कि उनकी संख्या बहुत अधिक है (इब्रानियों 12:22, प्रकाशितवाक्य 5:11)।
हम इस बात को मानते एवं जानते हैं कि परमेश्वर ही शिद्ध है बिना पाप का है (मती 5:48, 2 कुरिन्थियों 5:21)। वह सिद्ध है इसलिये हर एक रचना जो ईश्वर रचता है वह भी सिद्ध है (भजन 5:4)। शैतान भी पापरहित सृजा गया पर उसने परमेश्वर का विरोध करने का चुनाव किया (यहेजकेल 28:12-15, यशायाह 14:12-24)।
कुछ लागों को यह विश्वास है कि स्वर्गदूत मनुष्य है जिनकी मृत्यु हो गई लेकिन यह बात स्पष्ट है कि वे मनुष्यों से पहले सृजे गए और वे मनुष्य नहीं हैं जो मृतक हैं लेकिन वे भिन्न और विशिष्ट कृतियां है।
ग. उनका संगठन
हमें ज्ञात है कि स्वर्गदूतों की पदवी है और संगठन भी है उनकी एक सभा है (भजन संहिता 89:5,7)। वे युद्ध के लिए संगठित होते हैं (प्रकाशितवाक्य 12:7)।
सबसे ऊंची पदवी का स्वर्गदूत प्रधान स्वर्गदूत है उनके नाम का अर्थ है शासक स्वर्गदूत मीकाईल जो प्रमुख राजकुमार कहलाता है (दानिय्येल 10:13)। वह भी एक प्रधान स्वर्गदूत है। उसके विषय में यह बयान मिलता है कि वह परमेश्वर के स्वर्गदूतों की अगुवाई करता है जब शैतान के विरुद्ध युद्ध होता है (प्रकाशितवाक्य 12:7)। इससे प्रदर्शित होता है कि वह एकमात्र प्रधानदूत है। उसके पास एक स्पष्ट स्वर है (1 थिस्सलुनीकियों 4:16)।
हम यह भी देखते हैं कि स्वर्गदूतों को शासक भी कहा गया है (रोगियों 8:38, इफिसियों 1:21, 2:2, 3:10, 6:12, कुलुस्सियों 1:16, 2:10, 15, 1 पत्तरस 3:22)। प्रधानताएं (2) पतरस 2:11 या सिंहासन (इफिसियों 1:21, कुलुस्सियों 1:10, 2 पतरस 2:10, यहूदा 1:8)। उपरोक्त संदर्भों उन दूतों की स्थिति एवं कार्यों के विषय में बताते हैं जो स्वर्गदूतों के क्षेत्र में होते हैं।
दो और भी. समूह के स्वर्गदूत है जो सरूफीम और करूबीम कहलाते हैं। सरूफिमियों का वर्णन बाइबल के एक ही अध्याय में मिलता है। इनके छः पंख और एक मानवीय शरीर है। यशायाह 6:2.6)। इनके नाम का अर्थ है जलाना। इनका कार्य है-आग के द्वारा साफ करना।
करूबीग एक अन्य प्रकार के स्वर्गदूत हैं, वे कुछ ऊंचा पद रखते हैं क्योंकि इनमें से एक शैतान था (यहेजकेल 28:14,16)। आदम और हव्वा के पतन के साथ जब उन्हें अदन की वाटिका के बाहर निकाला गया तब करूबीम का उपयोग लोगों को अदन की वाटिका में जाने से रोकने एवं जीवन के वृक्ष के समीप जाने से रोकने के लिए किया गया (उत्पत्ति 3:24)।
करूबीम तम्बू में वाचा के संदूक के एक भाग बनाकर उपयोग के लिये रचे गये थे (निर्गमन 25:18-22)। पदों (निर्गमन 26:1) और (निर्गमन 26:31) के भी वे भाग थे मूसा परमेश्वर की आवाज अनुग्रह के सिंहासन के ऊपर से एवं दोनों करूबीम के बीच से सुनते थे (गिनती 7:89)।
करुबीम सुलैमान के मंदिर के भी जरूरी भाग थे। दो करूबीम जैतून की लकड़ी से बनाये गये थे और उन पर सोना काढ़ा था और ये करुबीग 15 फीट ऊंचे थे (1 राजा 6:23-28)। उनके पंख वाचा के रांदूक के ऊपर फैले थे (1 राजा 8:6-7) और इन्हें दीवरों पर भी काढ़ा गया था। भीतरी भाग के दरवाजों पर भी (1 राजा 6:29-55)। उन्हें मंदिर के लकड़ी के सामानों पर भी स्थान दिया गया था (1) राजा 7:29, 36)।
यहेबजकेल के एक दर्शन में करुबीम परमेश्वर के सिंहासन के कमरे को स्थानान्तरित करता है (यहेजकेल 10:1-22)। धर्मशास्त्र के हिस्सों से यह स्पष्ट है जो उनके विषय वर्णन किया गया है कि करुबीम का इतिहास में महत्वपूर्ण भाग है, भले ही वह आसानी से समझा नहीं गया है। उनकी भूमि अभी समाप्त नहीं हो गई है क्योंकि वे हजार वर्ष के मन्दिर का हिस्सा होंगे जो अगी होने वाला है (यहेजकेल 41:18,20,25)।
करुबीम के विषय जो बात स्पष्ट है वो ये है कि वे परमेश्वर की योजना के विशेष और महत्त्वपूर्ण भाग हैं। हम उनकी भूमिका के विषय आगे विस्तार से बतायेंगे।
घ. इन स्वर्गदूतों की सेवकाई
मानव इतिहास अनेकों घटनाओं में स्वर्गदूतों का समावेश था और वे उपस्थित हैं। जब परमेश्वर ने पृथ्वी को रहने योग्य बनाया तो वे स्तुति एवं आनन्द मना रहे थे (अय्यूब 38:6-7)। मूसा की व्यवस्था देते समय भी वे विद्यमान थे (गलातियों 3:19, इब्रानियों 2:2) और बहुधा परमेश्वर की सच्चाइयों के प्रगटीकरण में भी सम्भागी थे (दानिय्येल 7:15-27, 8:13-26, 9:20-27, लूका 1:1, 22:6,8)। वे केवल इस्राएल के लिए ही नहीं (दानिय्येल 12:1)। लेकिन अन्य देशों के लिए भी चिन्तित हैं (दानिय्येल 4:17, 10:21, 11:1, प्रकाशितवाक्य 8:9-16)।
स्वर्गदूतों ने यीशु के जन्म की पूर्व घोषणा की (मत्ती 1:20)। यीशु के माता-पिता को मिस्र भागने की चेतावनी दी (मत्ती 2:13-15)। उन्हें बताया कि वे मिस्र से कब लौटें (मत्ती 2:19-21)। शैतान की परीक्षा के तुरंत बाद यीशु की सेवा की (मत्ती 4:11)। गतरामनी के बगीचे में (लूका 92:43)। यीशु के साथ थे, यीशु के जी उठने पर (मती 28:1.2) और पिता के पास स्वर्गारोहण के समय (प्रेरित 1:10-11)।
स्वर्गदूत प्रारंभिक कलीसियाओं के समय भी बड़े राक्रिय थे। प्रचारकों को निर्देशित करना और वे जो सुसमाचार सुनने के लिये तैयार थे (प्रेरित 8:26, 10:3)। जिन्हें निर्देशों की आवश्यकता थी उन्हें निर्देश न देना; प्रेरित.12:5-10)। लोगों को खतरे से बचाना (प्रेरित 12:11)। वे यीशु के पुर्नरागमन के समय की परिस्थितियों में भी शामिल रहेंगे (मत्ती 25:31, 2 थिस्सलुनीकियों 1:7) न्याय के समय की (प्रकाशितवाक्य 7:1,8:2)।
स्वर्गदूत परमेश्वर की स्तुति करते हैं (भजन संहिता 148:1-2, यशायाह 6:3) आराधना करते है (इब्रानियों 1:6, प्रकाशितवाक्य 5:8-13) और परमेश्वर के निर्देशों का वहन करते हैं (भजन संहिता 103:20, प्रकाशितवाक्य 22:9)।
स्वर्गदूत अधर्मियों के न्याय में भी भूमिका अदा करते हैं। वे न्याय के आने की घोषणा करते हैं (उत्पत्ति 19:13, प्रकाशितवाक्य 14:6-7, 19:17-18)। परमेश्वर के निर्देश अनुसार न्याय चुकाते हैं (प्रेरित 12:23. प्रकाशितवाक्य 16:1) और अन्त में धर्मियों को अधर्मियों से अलग करने में इस्तेगाल लिये जायेंगे (गत्ती 13:39-40)।
स्वर्गदूत अभी भी विश्वासियों की सहायता करते हैं (इब्रानियों 1:14)। और वास्तव में उनसे सीखते हैं (इफिसियों 3:8-10, 1 पतरस 1:10-12) विशेष परिस्थितियों में वे आकर हमें हगारी आवश्यकताओं में प्रोत्साहित कर सकते हैं (प्रेरित 27:23-24) 1 जब हम मरते हैं तो स्वर्गदूत हमें स्वर्गीय घर ले जायेंगे (लूका 16:22)।
ङ. शैतान
1. शैतान क्या है
शैतान व्यक्तिगत जीव है। उसके पास बुद्धिमानी है, (2 कुरिन्थियों 11:3) संवेदनाएं (प्रकाशितवाक्य 12:17, लूका 22:31) और चुनाव करने की क्षमता है (यशायाह 14:12-14, 2 तीमुथियुस 2:26)। कुछ लोगों का मत है शैतान व्यक्तिगत नहीं पर दुष्ट का प्रभाव है। यीशु ने यह स्पष्ट किया कि शैतान अपनी क्रियााओं हेतु जिम्मेदार है और एक दिन उसको आग की झील का दण्ड मिलेगा (मत्ती 25:41)। एक प्रभाव को दण्डित करना संभव नहीं है। इसलिए उसके अस्तित्व को नकारना यीशु की सच्चाई पर संदेह करना होगा। शैतान ने मनुष्यों में परमेश्वर के वचन पर शंका उत्पन्न करने का तरीका अपनाया है (उत्पति 3:1-5)।
2. क्या हुआ
शैतान सबसे उच्च पद का करूबीम था जो शिद्ध बनाया गया था पर उसने पाप किया (यहेजकेल 28:12-15) जहां "सूर का राजा" को उदाहरण के लिये इस्तेमाल किया गया है हमें सिखाने के लिये कि शैतान को क्या हुआ। सूर के राजा उसके ऊपर लगाये हुए थे (28:13) और ये कि उसने अपने भक्त की प्रतिष्ठा की (28:18)। ये संकेत देता है कि वह स्वर्गदूतों का महायाजक था। जैसे महायाजक और उसके 'व्यापार की बहुतायत से (उसके पदोन्नति का संदर्भदेता है) वह स्थिरता से स्वर्गदूतों के एक तिहाई की अगुवाई कर सकता था जो दूसरे स्वर्गदूत भटक गये थे (प्रकाशितवाक्य 12:14)।
शैतान ने परमेश्वर को बदलने का निश्चय किया। ये उसके वर्णन में पाया जाता है (यशायाह 14:12-14) उसका मुख्य पाप घमण्ड था (1 तीमुथियुस 3:6) और पांच वर्णनों में पाया जाता है स्वयं की इच्छा में (मैं क्या चाहता हूं कोई परवाह नहीं परमेश्वर क्या चाहता है) यशायाह में रिकार्ड किया गया है। शैतान वो है जिसने पाप उत्पन्न किया (यहेजकेल 28:15) और उसके लिये जिम्मेवार है (मत्ती 25:41) यह उसके हृदय से आया (यशायाह 14:13)।
1. ये है "मैं स्वर्ग में चढूंगा" जो उसके लक्ष्य को संदर्भ देता है कि परमेश्वर के तुल्य हो जाऊं।
2. उसका दूसरा वर्णन, "मैं अपने सिंहासन को परमेश्वर के सितारे से ऊंचा करूंगा" ये उसकी अभिलाषा को दर्शाता है कि वह स्वर्ग में स्वर्गदूतों पर शारान करना चाहता था।
3. तीरारा वर्णन, "मैं उत्तर के पहाड़ों पर बैठूंगा" ये बाबुलियों के देवताओं का सन्दर्भ देता है कि वे संसार पर राज्य करें।
4. उसकी चौथी इच्छा, "मैं बादलों की सर्वोच्य ऊंचाई पर चढूंगा" उस महिमा की जो परमेश्वर की है (जो अक्सर बादलों से जुड़ी है)
5. पांचवा वर्णन, "मैं अपने आपको सबसे उच्च की तरह बनाऊंगा। उसकी अधिकार की इच्छा कि परमेश्वर का स्थान ले लूं।
शैतान के पाप के असली कारणों को सीखने के बाद ये देखना आसान है कि हमें क्यों निर्देश दिया गया है, "विरोध और झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो (फिलिप्पियों 2:3) | यदि हमारे अन्दर घमण्ड है और स्वयं की इच्छा तो हम शैतान का अनुसरण कर रहे हैं।
3. शैतान के नाम और विषय
शैतान को भोर का तारा कहा गया (यशायाह 14:12)। इसका अर्थ है कि ज्योति को ले जाने वाला है, लैटिन भाषा में लूसीफर है, यीशु मसीह ही वास्तविक भोर का तारा है (प्रकाशितवाक्य 22:16)। यह प्रमाणित होता है शैतान अपने गिराये जाने के समय से यीशु की बराबरी करना चाहता है।
उसे शैतान कहते हैं। यह नाम इब्रानी भाषा के शब्द से आया है जिसका अर्थ है वह जो विरोध करता है, (गिनती 22:12-32. 1 शमूएल 29:4, 2 शमूएल 19:22, 1 राजा 5:4, 1:14, 23.25. 1 इतिहास 21:1, अय्यूब 1:67, 8.9, 12, 2:1, 2,3,4,5,6,7 भजन संहिता 109:6, जर्कयाह 3:1-2, मत्ती 4:10, 12:26, 16:23, मरकुरा 1:13, 3:23, 36, 4:15, 8:33, लूका 10:18, 11:18, 13:16, 22:3, 31, यूहन्ना 13:7, प्रेरित 5:3, 26:18)।
शैतान लगातार विश्वासियों पर दोष लगाता है (प्रकाशितवाक्य 12:10) पर प्रभु मसीह बचाते हैं (1 यूहन्ना 2:1-2)। शैतान लोगों को पाप करने हेतु परीक्षा करता है (उत्पत्ति 3:1-5, मती 4:3, 1 थिररालुनीकियों 3:5, प्रेरित 5:3, 1 कुरि 7:5)।
वह दुष्ट कहलाता है वह शीर्षक ग्रीक शब्द डाइबोलोरा शब्द का अर्थ झूठा जो किसी के विषय में झूठ बोलता है। गत्ती 4:1, 5,8,11,13:9, 25:41, लूका 4:2, 3,6, 13, 8:12, यूहन्ना 6:70, 8:44, 13:2, प्रेरित 10:38, 13:10, इफिसियों 4:27, 6:11, 1 तीमुथियुस 3:6.7।
वह पुराना सर्प कहलाता है दुष्टात्माई और चालाकी से भरा (उत्पत्ति 3:1,2,4,13,14, 2 कुरिन्थियों 11:3, प्रकाशितवाक्य 12, 9, 14, 15, 20:2।
वह महान लाल सर्प कहलाता है (प्रकाशितवाक्य 12:3,4,7,9,13,16,17, 13:2, 4,11,16:13, 20:2) वह बालजबूल कहलाता है जिसका अर्थ गोबर के ढेरों का स्वामी (मत्ती 10:25, 12:24, 27, मरकुस 3:22. लूका 11:15.18.19) ।
पौलुस प्रेरित ने उसे एक बार बलियाल कहा जिसका अर्थ दुष्टात्मा एवं जिसकी कोई भी कीमत न हो (2 कुरिन्थियों 6:15)।
यह संसार का शासक कहलाता है (यूहन्ना 13:31)। इस संसार का ईश्वर (2 कुरिन्थियों 4:4)। आकाश की सेनाओं का रारदार (इफिसियों 2:2) वह आत्मा जो आज्ञा न मानने वालों में अब भी कार्य करता है (इफिसियों 2:2)। ये सभी संदर्भ यह बताते हैं कि वह ईश्वर विरोधी है।
4. उसके वर्तमान क्रियाकलाप
शैतान की पूरी योजना यह है कि परमेश्वर की बनाई हुई योजनाओं को नष्ट करना। जिसके द्वारा वह अपनी इच्छा पूर्ण कर लें (यशायाह 14:12-14)। परमेश्वर की योजना को ध्वस्त करें-परमेश्वर को छोड़ना। इस कार्य के लिये उसे किसी भी दुष्ट शक्ति का भी उपयोग क्यों न करना पड़े (1 त्तीमुथियुस 1) और मानव जाति को भी 2 कुरिन्थियों 11:13-15)।
शैतान परमेश्वर की योजना पर हमला करने की योजना बनाता है साधारण पद्धतियों को शामिल करता परमेश्वर के विरोध में। ये साधारण पद्यति यूनानी शब्द संसार के लिये आता है जो 'कोसमोस' है, 'कोसमोस' का मुख्य विचार "आज्ञा" से है।
अपनी योजनाओं में कामयाब होने के लिये यह सबसे पहले मनों को अंधा करता है (2 कुरिन्थियों 4:4)। जिससे अविश्वासी यीशु मसीह के सुसमाचार को ग्रहण न करें एवं उन सत्य के वचनों की चोरी कर लेता है। जो उन्होंने प्रभु के विषय में सुना था (लूका 8:12)। लोग भक्ति का भेष तो धरेंगे लेकिन उसकी शक्ति को नहीं मानेंगे (2 तीमुथुियस 3:5)। बाहरी रूप से ऐसे लोग मसीही दिखेंगे लेकिन भीतर से शैतान (मती 23:25-26)। शैतान एक व्यक्ति को परमेश्वर के राज्य से जाने से रोकने का भरपूर प्रयास करता है (कुलुस्सियों 1:13, 1 यूहन्ना 2:15-17)।
जब एक व्यक्ति यीशु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता ग्रहण करता है और जब वह संसार को जीत लेता है तो शैतान उसे अकेला नहीं छोड़ता। वह एक चोर की नाई चोरी करने, घात और हत्या करने आता है (यूहन्ना 10:10)। वह मानव जाति से चिढ़ता है (भजन संहिता 69:1-4, मत्ती 10:22)।
मुख्य बात जो वह नष्ट करना चाहता है वह है मसीही गवाही, जिससे दूसरे लोग परमेश्वर के राज्य में आना नहीं चाहेंगे। वह विश्वासी की परीक्षा करता है कि वह संसार के सदृष्य व उसके स्तर का हो (1) थिस्सलुनीकियों 3:5; 1यूहन्ना 2:15-17)। वह विश्वासी की अनैतिक कार्य करने की परीक्षा में डालता है (1 कुरिन्थियों 7:5)।
"सचेत हो. और जागते रहो. क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गरजने वाले सिंह की नाई इस खोज में रहता है कि किसको फाड़ खाये (1) पतरस 5:8)। इसका मतलब है वह किसी की खोज में है जो उसकी परीक्षा का शिकार बन कर गिर जायेगा जिससे वह भाइयों को दोष लगा सके (प्रकाशितवाक्य 12:10)। वह अपना पूरा जोर विश्वासी पर लगायेगा और परमेश्वर का चेला होने से रोक लगा सके (लूका 22:31)।
विश्वासी को ये दिमाग में रखना चाहिये कि शैतान अपने स्वाभाव के अनुसार (यूहन्ना 8:44) सही चाल नहीं चलता। वह किसी को भी इस्तेमाल कर सकता है कि उराका उद्देश्य पूरा हो सके।
च. शैतान के दूत
शैतान के दूत वे हैं जो उसके साथ जाना चाहते हैं और वह एक तिहाई दूतों को शामिल करता है (प्रकाशितवाक्य 12:4) ये स्वर्गदूत या तो दुष्टात्माएं या अशुद्ध आत्माएं कहलाती हैं। वे ऐसी जीव हैं जिन्होंने उससे विरोध किया क्योंकि वह उनका सरदार है (मत्ती 12:24)। ग्रीक शब्द में डीमन का अर्थ है निचले स्तर के देवी देवता, अशुद्ध आत्माएं वे हैं जो पाप में एवं दुष्टात्मा में संलग्न है। दुष्ट शक्तियां शरीर से मजबूत है वे अपने अंदर कोई शक्तियों को समा के रखती है (मरकुस 5:3, प्रेरित 19:16)।
शैतान के दूत बुद्धिमान भी हैं जब उन्होंने यीशु को पहचाना (मरकुस 1:24) उन्हें अपने स्वयं और वास स्थान पर स्मरण आया (मत्ती 8:29) और स्वयं के सिद्धान्त एवं पदोन्नति के सिद्धांत मालूम है (1 तीगुथियुस 4:1-3)। वे उद्धार की योजना जो जानते हैं पर ग्रहण नहीं करते (याकूब 2:9)।
शैतान के दूतों की गतिविधियां हर चीज़ को शामिल करती जो परमेश्वर का विरोध करती हैं। वह उसकी प्रकाशित इच्छा को नष्ट करना चाहते हैं।
दुष्ट शक्तियां सभी प्रकार की मूर्तिपूजा और जादुई कला में संलग्न हैं (प्रेरित. 16:16)। मूर्तिपूजा तब प्रदर्शित होती है जब एक व्यक्ति अपने और परमेश्वर के बीच किसी भी वस्तु को लाता है। मूर्ति लकड़ी या पत्थर की हो सकती है। यह एक व्यक्ति भी हो सकता है जब मसीह विरोधी के आराधक उस समय दिखेंगे (प्रकाशितवाक्य 135) मनुष्य यहां तक की (यूहन्ना 5:39.40)। दुष्टशक्ति यह चाहती है कि उसके आराधक किसी की भी पूजा करें केवल जीवते परमेश्वर की नहीं।
दुष्ट शीक्तयां झूठा धर्म भी प्रेरित करते हैं। झूठा धर्म विश्वास का एक ऐसा तंत्र है जो ऐसे उद्धारक की आराधना करवात्ता है जिसकी कोई महता नहीं है (1 यूहन्ना 4:1-4) कार्यों के द्वारा उद्धार (1 तीमुथियुस 4:3-4, इफिसियों 2:8-9) एक ऐसी स्वतंत्रता जो पापमय क्रियायें करें और यह घोषणा करें कि बुराई ही भलाई है (प्रकाशितवाक्य 2:20-24, गलातियों 5:13, रोमियों 6:1)।
दुष्ट शक्तियां शारीरिक बीमारियां लाती है (मत्ती 9:33) या मानसिक समस्याएं (मरकुस 5:4-5) लेकिन सभी बीमारियां शैतानिक क्रियाओं के कारण नहीं है। बाइबल स्वभाविक बीमारियों और शैतानिक बीमारियों के मध्य भेद बनाती है (मत्ती 4:24, 1:32, 34, लूका 7:21, 9:1)।
दुष्ट शक्तियां मनुष्यों को ग्रसित कर लेती है (लूका 8:28-31) और जानवार को भी ग्रसित करती है (लूका 8:32-33)। ग्रसित होने का अर्थ है शारीरिक नियंत्रण करना। इस मनुष्य के भीतर जाकर शारीरिक नियंत्रण करना। इसीलिये हमें यह स्पष्ट रीत्ति से बता दिया गया है कि वह जो तुममें वास करता है (पवित्र आत्मा) वह बड़ा है उससे जो संसार में है (1) यूहन्ना 4:4)। हमें यह नहीं मालूम है कि शैतान स्वयं स्वर्गदूत का रूप धारण करता है (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। यह निर्णय लेना है कि कोई आत्मा यीशु मसीह को प्रभु होने से इंकार तो नहीं करती है (1 यूहन्ना 4:1-4)।
शैतान एक विश्वासी को धोखा देने का कई विधियां उपयोग करता है (2 कुरिन्थियों 2:11)। वह हमें प्रसिद्धि (पहचान) भाग्य (रुपया या धन) सामर्थ्य (अधिकार) या सुख के साधन पेश करेगा। उसकी चाल यह है कि वो विश्वासी को वो सब देना हैं, जो प्रभु उसे पहले ही दे चुके हैं परमेश्वर का पुत्र (1 यूहन्ना 3:11)। उसे भाग्य भी दे दिया क्योंकि अनन्त जीवन उसका है और रवर्गीय देश की सदस्यता (इफिसियों 2:19, 20), उसने सामर्थ दी है क्योंकि उसका अब प्रभु से मेल हो गया है (रोमियों 8:12) उसने सुख सुविधा दी है। जिसमें वह ऐसी शांति जो समझ से परे है प्राप्त करें (फिलिप्पियों 4:7)।
जब हम शैतान के तरीकों के विषय में सीख रहे हैं तो हमें सावधान होना चाहिये क्योंकि यदि वह हमको परमेश्वर की पद्यति से अधिक उसकी पद्यति का अध्ययन करें तो वह विजय हासिल कर लेगा। शैतान अपनी पद्यति पर हजारों साल से कार्य कर रहा है और बहुत सी भीड़ मुकाबले के लिये तैयार कर रहा है। मुकाबले का पता करने का सबसे उत्तम तरीका ये है कि सही चीज़ को मालूम करो जिससे तुरन्त पहचान सको।
यदि हम या तो शैतान को देखने में या उसके दुष्ट आत्माओं को अपने जीवनों में देखने में असफल हों तो हम उसके संघर्ष में परमेश्वर और शैतान के बीच फंस जाते हैं प्रेरित पौलुस स्पष्टता से हमें चितौनी देता है:-
"क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांरा से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से और इस संसार के अन्धकार के हाकिगों से और उस दुष्टता की आत्मिक सेवाओं से है जो आकाश में हैं। इसलिए परमेश्वर के सारे हथियार बांध लो, कि तुम बुरे दिन में सामना कर रुको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रहो (इफिसियों 6:12-13)।



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