आपको परमेश्वर के आनन्द के लिए बनाया गया है
You were Created to be God Joy
भाग 08
यशायाह 61:3
जिस से वे धर्म के बांजवृक्ष और यहोवा के लगाए हुए कहलाएं और जिस से उसकी महिमा प्रगट हो।
प्रकाशित वाक्य 4:11
क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं॥
भजन संहिता 149:4
क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है।
आपको परमेश्वर की खुशी के लिए बनाया गया है।
जिस पल पृथ्वी पर आपका जन्म हुआ उस पल परमेश्वर भी अदृष्य साक्षी के रूप में वहाँ थे, और आपके जन्म पर मुस्कुरा रहे थे। वे आपको जीवित चाहते थे, और आपके आगमन से उनको अत्याधिक खुशी थी। परमेश्वर को आपकी सृष्टि करने की कोई जरूरत नहीं थी, परन्तु उन्होंने अपने आनंद के लिए आपको रचा। आप उनके लाभ, उनकी महिमा, उनके उद्देश्य और उनकी खुशी के लिए ही जीवित हैं।
परमेश्वर को आनन्द देना व उनकी खुशी के लिए जीना ही आपके जीवन का प्रथम उद्देश्य है। जब आप इस सत्य को पूरी तरह समझ जाएंगे तो आप स्वयं को कभी भी महत्वहीन महसूस नहीं करेंगे, वरन इससे आपके महत्व की पुष्टि होगी। यदि आप परमेश्वर के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं और यदि परमेश्वर अनन्तकाल में आपको अपने साथ रखने का विचार रखते हैं तो आपके लिए इससे अधिक अच्छा और क्या हो सकता है? आप परमेश्वर की एक सन्तान है, और जितनी खुशी आप
परमेश्वर को देते हैं उतनी खुशी उन्हें अपनी किसी और रचना से नहीं होती। बाइबल कहती है, "और अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों।"
खुशियों का लुत्फ उठाने की योग्यता परमेश्वर का एक सर्वोत्तम उपहार है, जो उन्होंने आपको प्रदान की है। उन्होंने आपको पाँच इन्द्रिय और भावनायें प्रदान की है ताकि आप उनका अहसास कर सकें। वे चाहते हैं कि आप इसे ऐसे ही व्यर्थ न गवाएं बल्कि जीवन का आनन्द लें। जीवन का आनन्द उठाने के योग्य आप केवल इसलिए हैं क्योंकि परमेश्वर ने आपको अपने स्वरूप में रचा है।
हम अक्सर भूल जाते हैं कि परमेश्वर में भी भावनायें हैं। वे भी परिस्थितियों को गहराई से महसूस करते हैं। बाइबल हमें बताती है कि "परमेश्वर दुखी होते हैं, ईर्ष्या रखते हैं, क्रोधित होते हैं, उन्हें करुणा, कृपा, दया, खेद और तरस के आभास के साथ-साथ प्रसन्नता, आनन्द और सन्तुष्टि का आभास भी होता है। परमेश्वर प्रेम करते हैं, आनन्दित होते हैं, प्रफुल्लित होते हैं, प्रसन्न होते हैं और हँसते भी हैं!"
परमेश्वर को प्रसन्न करना ही "आराधना" कहलाता है
बाइबल कहती है, "यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है; अर्थात् उनसे जो उसकी करुणा कि आशा लगाए रहते हैं। "
परमेश्वर को संतुष्ट करने की प्रत्येक प्रक्रिया आराधना की प्रक्रिया है
आपका हर वो काम जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है आराधना कहलाता है। एक हीरे के समान आराधना के भी कई प्रकार होते हैं। आराधना को पूर्ण रीति से समझने के लिए विस्तृत व्याख्या की आवश्यकता है। अतः अध्ययन के इस भाग में हम आराधना की प्रारम्भिक अवस्था को ही देखेंगे।
मानव-शास्त्रियों के अनुसार आराधना एक सर्वव्यापी जरूरत है, जो परमेश्वर ने हमारे अन्तःकरण में पिरो दी है-परमेश्वर से सम्पर्क साधने की अनिवार्यता। आराधना भोजन करने और श्वास लेने की क्रिया के समान ही एक स्वभाविक प्रक्रिया है। यदि हम परमेश्वर की आराधना नहीं कर पाते तो उनके स्थान पर किसी अन्य को चुन लेते हैं। कभी-कभी तो
हम अपनी ही आराधना करने लगते हैं। परमेश्वर ने हमें इस लालसा के साथ इसलिए बनाया है क्योंकि वे आराधक चाहते हैं! यीशु ने कहा है, "क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही आराधकों को ढूँढता है।"
आराधना संगीत से कहीं अधिक बढ़कर है।
अपनी धार्मिक पृष्ठ-भूमि के आधार पर आपको "आराधना" के विषय में अपना ज्ञान विस्तृत करने की जरूरत पड़ सकती है। और वचन सुनने को चर्च की सभा समझ सकते हैं। या फिर आप धार्मिक अनुष्ठान, मोमबत्तियां और प्रभु-भोज के बारे में सोच सकते हैं। या फिर आप चंगाई, आश्चर्यकर्म एवं हर्षोन्माद जैसे अनुभवों को सोच सकते हैं। इन सबको आराधना में सम्मिलित किया जा सकता है, किन्तु आराधना वास्तव में इन सभी अभिव्यक्तियों से कहीं अधिक है। आराधना एक जीवनशैली है।
आराधना संगीत से कहीं अधिक है
कई लोगों के लिए आराधना संगीत का पर्याय है। वे कहते हैं, "हमारे गिरजाघर में पहले आराधना होती है उसके बाद शिक्षा।" यह बहुत बड़ी गलतफहमी है। गिरजाघर की सम्पूर्ण सभा का प्रत्येक भाग आराधना की प्रक्रिया होती है: प्रार्थना, परमेश्वर के वचन को पढ़ना, गायन, पाप अंगीकार, शांत समय, प्रवचन सुनना, नोट्स लिखना, भेंट-अर्पण, बपतिस्मा, प्रभु-भोज, समर्पण के कार्ड भरना और अन्य विश्वासियों का अभिनन्दन करना सभी आराधना का हिस्सा है।
वास्तव में आराधना संगीत से कहीं पहले से थी। अदन की वाटिका में आदम आराधना करते थे, जबकि संगीत का उल्लेख यूबाल के जन्म के साथ उत्पत्ति 4:21 में हुआ है। यदि आराधना मात्र संगीत ही होता तो संगीत से अपरिचित लोग तो कभी भी आराधना न कर पाते। आराधना संगीत से कहीं अधिक बढ़कर है।
इससे दुःखद बात तो यह है कि "आराधना" को संगीत की एक विशेष शैली कहकर उसका दुरुपयोग किया जाता हैः उदाहरणार्थ, "अभी हमने एक भजन गाया, और अब स्तुति और आराधना के गीत गायेंगे" या "मुझे तेज स्तुति गीत पसन्द है। परन्तु मैं आराधना के स्लो गीतों का आनन्द ज्यादा लेता हूँ।" इसके अनुसार यदि गीत की लय तेज हो या वह ऊँची आवाज में गाया जाए या उसमें वाद्य-यन्त्र का उपयोग किया जाए, तो उसे "स्तुति" कहते हैं। परन्तु यदि ये धीमी गति के शांत व अन्तरंग गीत हैं, चाहे उनके साथ गिटार का भी प्रयोग हो उन्हें आराधना के गीत कहते हैं। ये आराधना के अर्थ का एक सामान्य दुरुपयोग है।
आराधना का सम्बन्ध किसी शैली या संगीत या गीत की लय से नहीं है। परमेश्वर को सब प्रकार का संगीत पसन्द है क्योंकि संगीत की उत्पत्ति उन्हीं ने की है-तेज और धीमा, कानों में लगने वाला और मीठा, नया और पुराना। हो सकता है कि आपको ये न पसन्द आए, परन्तु परमेश्वर को ये पसन्द है। यदि ये परमेश्वर को आत्मा और सत्यता के साथ अर्पित किया जाए, तो यही आराधना है।
परमेश्वर खुशी के की लिए बनाए गए
आराधना के संगीत के विषय में मसीहीयों में अनेक मतभेद हैं, ज्यादातर लोग अपने पसन्द की संगीत शैली को बाइबल के निकट या परमेश्वर के प्रति माननीय समझते हैं। किन्तु इस विषय में बाइबल किसी शैली का उल्लेख नहीं करती है! बाइबल में संगीत के स्वरों का कोई उल्लेख नहीं है; और न ही हमारे पास वे यन्त्र ही हैं जिनका उपयोग उस समय किया जाता था।
वास्तविकता तो यह है कि जिस संगीत शैली को आप सर्वोत्तम समझते हैं, उसमें पहले आपकी पृष्ठभूमि और आपका व्यक्तित्व-व्यक्त होता है उसके बाद परमेश्वर। किसी एक समूह का संगीत दूसरे समूह के लिए शोर हो सकता है। परन्तु परमेश्वर को विविधता अच्छी लगती है और वे उसका आनन्द लेते हैं।
"मसीही" संगीत नाम का कोई संगीत नहीं होता; केवल गीत के बोल मसीही होते हैं, शब्द ही गीत को आत्मिक रूप देते हैं न कि धुन। किसी भी धुन को आत्मिक नहीं कहा जा सकता। यदि संगीत को बिना शब्द के बजाया जाए तो यह जानना कठिन होगा कि वह मसीही गीत है।
आराधना आपके लाभ के लिए नहीं है
एक पास्टर के रूप में, मुझे ऐसे सन्देश प्राप्त होते रहते हैं: "मुझे आज की आराधना बहुत पसन्द आई, उससे बहुत कुछ प्राप्त हुआ।" आराधना के विषय में यह भी एक गलत धारणा है। आराधना हमारे लाभ के लिए नहीं है! आराधना, हम परमेश्वर के लाभ के लिए करते हैं। आराधना के समय हमारा लक्ष्य परमेश्वर को प्रसन्न करना होता है, न कि स्वयं को।
यदि कभी आपने ऐसा कहा है कि, "आज की आराधना से मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ", तो आपकी आराधना का कारण अनुचित था। आराधना आपके लिए नहीं है। वह परमेश्वर के लिए है। ये ठीक है कि, अधिकतर "आराधना" सभाओं में मंडली की संगति, आत्मिक विकास और सुसमाचार होता है, एवं इस प्रकार आराधना का लाभ भी होता है, किन्तु आराधना हम अपनी खुशी के लिए नहीं करते। आराधना में हमारा लक्ष्य सृष्टि को रचने वाले की महिमा करना और उन्हें प्रसन्न करना है।
यशायाह 29 अध्याय में परमेश्वर आराधना के विषय में बताते हैं कि लोगों की आराधना अधूरे मन और कपट से भरी है। कैसे लोग परमेश्वर को बिना अर्थ जाने घिसी-पिटी प्रार्थनायें, दिखावटी प्रशंसा, खोखले शब्द और निरर्थक मानव-निर्मित संस्कार अर्पित करते हैं। परमेश्वर का मन आराधना में परम्परागत तरीकों से नहीं वरन् लगन और समर्पण से स्पर्श किया जाता है। बाइबल कहती है, "ये लोग जो मुँह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं।"
आराधना आपके जीवन का केवल एक भाग नहीं; बल्कि यह आपका जीवन है
"यहोवा और उसकी सामर्थ्य को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो" और "उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है।" बाइबल ऐसे लोगों का उल्लेख करती है, जो परमेश्वर की स्तुति, घर में, युद्ध में, बन्दीगृह में पलंग पर और काम के समय भी करते थे! अवश्य है कि प्रातःकाल आपकी आँख खुलते ही आपका पहला काम और रात को सोने से पूर्व आपका आखिरी काम परमेश्वर की स्तुति होनी चाहिए।* राजा दाऊद ने कहा है, "मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी।"
आप हर काम के द्वारा आराधना कर सकते हैं यदि आप उसे परमेश्वर की महिमा के लिए, उसकी स्तुति के लिए और उनको प्रसन्न करने के लिए करें। बाइबल कहती है, "इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो।" मार्टिन लूथर ने कहा था, "एक ग्वालिन परमेश्वर की महिमा के लिए गायों का दूध दोह सकती है।"
परमेश्वर की महिमा के लिए सब कुछ करना कैसे सम्भव हो सकता है? यह तब सम्भव है जब आप सब कुछ ऐसे करें मानों आप मसीह के लिए कर रहे हों और कार्य करते समय लगातार उनके साथ बातचीत में व्यस्त हों। बाइबल कहती है, "जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिए नहीं परन्तु प्रभु के लिए करते हो। "1
आराधना के जीवन का रहस्य है-प्रत्येक कार्य को इस रीति से करना मानों मसीह यीशु के लिए किया जा रहा हो। बाइबल कहती है, "इसलिए हे भाइयों मैं तुमसे परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूँ कि अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ। यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।" 12 आपका कार्य तब आराधना हो जाता है, जब आप उसे परमेश्वर को अर्पित कर देते हैं और उनकी उपस्थिति के आभास के साथ उसे करते हैं।
जब मुझे अपनी पत्नी से पहली बार प्रेम हुआ, मैं उसके विषय में हमेशा सोचता रहता था; खाते समय, विद्यालय जाते समय, कक्षा में, बाजार में, गैस भरवाते समय उसके विषय में सोचने से मैं स्वयं को कभी भी रोक नहीं पाया अनेक बार उसके विषय में मैं स्वयं से बातें करता था और उन बातों के विषय में सोचता था जो उसके बारे में मुझे अच्छी लगती थी। इससे मुझे उसकी निकटता का आभास करने में सहायता मिलती थी। यद्यपि हम एक दूसरे से सैकड़ों मील दूर अलग-अलग कॉलेजों में थे। उसके विषय में लगातार सोचते रहने के द्वारा मैं उससे बँधा हुआ था। यह ही वास्तविक आराधना है- यीशु के साथ प्रेम में पड़ जाना।
आठवाँ दिन
अपने उद्देश्य के बारे में सोचना
विचार करने का अंशः मैं परमेश्वर की खुशी के लिए ही बनाया गया हूँ।
याद करने केलिए पद्यः "क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है;" भजन संहिता 149:4 अ
सोचने योग्य प्रश्नः मैं ऐसा कौन सा साधारण कार्य करना शुरु करूँ जो ऐसे लगे कि मैं प्रत्यक्ष रूप से मसीह के लिए ही यह कर रहा / रही हूँ?

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