परमेश्वर कैसे मुस्कुराते हैं? - How does God smile? - Pastor Bablu Kumar Ghaziabad



परमेश्वर कैसे मुस्कुराते हैं?



यहोवा तुझ पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे: गिनती 6:25


अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियां मुझे सिखा। भजन संहिता 119:135

परमेश्वर की मुस्कुराहट ही आपके जीवन का लक्ष्य है।

 
   अब चूंकि परमेश्वर को प्रसन्न करना ही आपके जीवन का प्रथम उद्देश्य है इसलिये ये जानना आपके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि वे किस काम से प्रसन्न होते हैं। बाइबल कहती है, "और यह परखो कि प्रभु को क्या भाता है।" खुशी की बात है कि, बाइबल हमें एक ऐसे जीवन का स्पष्ट उदाहरण देती है जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है। उस मनुष्य का नाम था नूह।

   नूह के समय में सम्पूर्ण जगत का नैतिक पतन हो चुका था। हर कोई अपने ही आनन्द के लिए जी रहा था, परमेश्वर के लिए नहीं। परमेश्वर को ऐसा कोई भी नहीं मिला, जिससे उन्हें खुशी प्राप्त हो इसलिए उन्हें दुःख हुआ और वह मनुष्य की सृष्टि से निराश हुए। वे मानवजाति से इतने अधिक निराश थे कि वे उसके विनाश का विचार करने लगे। परन्तु वहाँ एक व्यक्ति था जिसको देख परमेश्वर मुस्कुराए। बाइबल कहती है, "परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।"

   परमेश्वर ने कहा, "इस व्यक्ति ने मुझे प्रसन्न किया है। ये मुझे मुस्कान दिलाता है। मैं इसके परिवार के साथ सृष्टि का प्रारम्भ फिर से करूँगा।" आप जानते हैं कि आज हमारे अस्तित्व का कारण नूह द्वारा लाई गई परमेश्वर की मुस्कान थी। नूह के जीवन से हम आराधना के पाँच तरीके सीख सकते हैं, जो परमेश्वर को मुस्कान दिलाते हैं।

जब हम उनसे अत्याधिक प्रेम करते हैं तो परमेश्वर मुस्कुराते हैं


    नूह ने संसार की समस्त वस्तुओं से अधिक परमेश्वर से उस समय प्रेम किया, जब कोई भी परमेश्वर से प्रेम नहीं करता था। बाइबल बताती है कि अपने सम्पूर्ण जीवन में, "नूह परमेश्वर ही के साथ-साथ चलता
रहा।"

   परमेश्वर हम सबसे यही चाहते हैं: एक सम्बन्ध ! यह सृष्टि का सबसे आश्चर्य-जनक सत्य है कि हमारा सृष्टिकर्ता हमारे साथ सम्बन्ध रखना चाहता है। परमेश्वर ने आपको प्रेम करने के लिए बनाया है और वे चाहते हैं कि आप प्रत्युत्तर में उनसे प्रेम करें। वह कहते हैं, "क्योंकि मैं बलिदान से नहीं, स्थिर प्रेम ही से प्रसन्न होता हूँ, और होमबलियों से अधिक यह चाहता हूँ कि लोग परमेश्वर का ज्ञान रखें।"

    इस पद्य में क्या आप परमेश्वर की चाहत को जो आपके प्रति है, महसूस कर सकते हैं? परमेश्वर आपसे अत्यधिक प्रेम करते हैं और प्रत्युत्तर में अपने प्रति आपका प्रेम चाहते हैं। उनकी लालसा है कि आप उन्हें जानें और उनके साथ समय व्यतीत करें। इसी कारण परमेश्वर से प्रेम करना और उनका प्रेम पाना ही आपके जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए है। इससे अधिक महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। यीशु ने इसे सर्वश्रेष्ठ आज्ञा कहा है, उन्होंने कहा, "तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।"

परमेश्वर तब मुस्कुराते हैं, जब हम उन पर सम्पूर्ण भरोसा करते हैं


    दूसरा कारण जिसके द्वारा नूह परमेश्वर को प्रसन्न कर सके, वह था, उनका परमेश्वर में सम्पूर्ण भरोसा। वह भी उस समय, जब सब कुछ अर्थहीन लग रहा था। बाइबल कहती है, "विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिए जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ जो विश्वास से होता है।"*

परमेश्वर आपसे सिर्फ एक रिश्ता चाहते हैं।

    इस दृष्य की कल्पना कीजिए: एक दिन परमेश्वर नूह के पास आते हैं, और कहते हैं, "मैं मानवजाति से अत्यन्त निराश हूँ। जगत में केवल एक तुम ही हो, जो मेरे विषय में सोचते हो। किन्तु नूह, जब मैं तुम्हारी ओर देखता हूँ, मैं मुस्कुराने लगता हूँ। मैं तुम्हारे जीवन से प्रसन्न हूँ, मैं एक जलप्रलय लाऊँगा और उसके पश्चात तुम्हारे परिवार के साथ फिर से सृष्टि का आरम्भ करूँगा। अतः तुम एक विशाल नौका का निर्माण करो, जिससे तुम्हारा परिवार और जीव-जन्तु बच सकें।"

    वहाँ नूह के सामने तीन समस्या थी, जिनके कारण उसके मन में शक उत्पन्न हो सकता था। पहली, नूह ने इससे पूर्व कभी वर्षा नहीं देखी थी, क्योंकि जलप्रलय से पूर्व परमेश्वर ने पृथ्वी पर जब नहीं बरसाया था तौभी कोहरा पृथ्वी से उठता था जिससे सारी भूमि सिंच जाती थी। दूसरी, नूह निकटतम समुद्र से सैंकड़ों मील दूर रहते थे। यदि वह विशाल नौका का निर्माण करना सीख भी लेते तो उसे जल में कैसे ले जाते। तीसरी समस्या थी, जीव-जन्तुओं को एकत्रित करना और उनकी देख-रेख करना। परन्तु नूह ने न तो शक किया और न ही कोई बहाना बनाया। उन्होंने परमेश्वर में पूरा भरोसा रखा और उसी ने परमेश्वर को मुस्कान दिलायी।

    परमेश्वर में सम्पूर्ण भरोसा रखने का अर्थ है यह विश्वास करना कि वे जानते हैं कि, आपके जीवन के लिए सर्वोत्तम क्या है। आप यह अपेक्षा करते हैं कि परमेश्वर आपके लिए अपनी प्रतिज्ञायें पूरी करें, आपकी समस्याओं में सहायक हों, और आवश्यकता में असम्भव को सम्भव करें। बाइबल कहती है, "यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है. अर्थात उनसे जो उसकी करुणा की आशा लगाए रहते हैं।"

    उस विशाल नौका के निर्माण में नूह को 120 वर्ष लगे। मैं कल्पना करता हूँ कि उन्होंने बहुत से निराशा-युक्त दिनों का सामना किया होगा। वहाँ वर्षा का कोई चिह्न न होने के कारण प्रति वर्ष नूह आलोचना के पात्र बने रहे होंगे, "सनकी व्यक्ति कहता है, कि परमेश्वर उससे बातें करता है।" मैं कल्पना करता हूँ कि नूह के बच्चों को अपने आंगन में एक विशाल नौका का निर्माण होते हुए देखकर कितना लज्जित होना पड़ता होगा। फिर भी, नूह का भरोसा परमेश्वर में बना रहा।

     अपने जीवन के कौन से क्षेत्र में आप परमेश्वर में सम्पूर्ण भरोसा करना चाहते हैं? भरोसा करना एक प्रकार की आराधना है। जिस प्रकार माता-पिता के प्रेम और बुद्धि पर बालक के भरोसा करने से माता-पिता प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार आपका विश्वास परमेश्वर को प्रसन्न करता है। बाइबल कहती है, "और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है।"

परमेश्वर तब मुस्कुराते हैं, जब हम सम्पूर्ण मन से उनकी आज्ञा का पालन करते हैं


     एक विश्वव्यापी प्रलय से जीव-जन्तुओं को बचाने के लिए सुव्यवस्थित प्रबन्ध की आवश्यकता थी। सब कुछ परमेश्वर के दिशा-निर्देश के अनुसार ही होना था। परमेश्वर ने यह नहीं कहा था, "नूह अपनी पसन्द की एक पुरानी नौका का निर्माण करो।" उन्होंने नौका के आकार, नाप, सामग्री और उसमें रखने वाले विभिन्न जानवरों की संख्या, सब कुछ नूह को स्पष्ट कर दी थी। इसके प्रति नूह का प्रत्युत्तर बाइबल इस प्रकार देती है: "परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।"

    ध्यान दीजिए, नूह ने पूरी तरह से आज्ञापालन किया (किसी भी निर्देश की अनदेखी नहीं हुई), उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा परमेश्वर चाहते थे (ठीक समय पर और सही रीति से) इसे ही कहते हैं सम्पूर्ण हृदय से। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर नूह को देखकर मुस्कुराये।

परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखने का अर्थ यह विश्वास करना है कि वो जानते हैं आपके जीवन के लिए सर्वोत्तम क्या है

   यदि परमेश्वर आपको एक विशाल नौका का निर्माण करने का आदेश दें तो क्या आप सोचते हैं कि आपके मन में कुछ प्रश्न, आपत्ति या प्रतिबन्ध नहीं होंगे? नूह की ऐसी प्रतिक्रिया नहीं थी। उन्होंने परमेश्वर के आदेश का पालन पूर्ण मन से किया। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर ने आपसे जो कुछ भी कहा उसे बिना किसी आपत्ति या हिचकिचाहट के करें। इस स्थिति में आप विलम्ब करते हुए यह नहीं कह सकते, "हम इसके लिए प्रार्थना करेंगे।" आप कार्य को बिना किसी देरी के करे। प्रत्येक माता-पिता इसे जानते हैं कि देर से आज्ञा को मानना वास्तव में आज्ञा न मानना है।

    परमेश्वर, जो कुछ भी आपसे करवाना चाहते हैं, उन्हें उसका स्पष्टीकरण देने या कारण बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। समझ प्रतीक्षा कर सकती है किन्तु आज्ञाकारिता नहीं। परमेश्वर के विषय में जीवन भर बाइबल के बारे में बहस करने के बदले तुरन्त आज्ञा मानने के द्वारा कहीं अधिक सीखा जा सकता है। सच्चाई तो ये है कि कुछ आदेशों का पहले पालन किए बिना हम उसे समझ नहीं सकते। आज्ञाकारिता समझ को बढ़ाती है।

     अक्सर हम परमेश्वर के प्रति अधूरी आज्ञाकारिता व्यक्त करते हैं। हम अपनी इच्छानुसार आदेशों को चुनना और मानना चाहते हैं। हम उन आदेशों की सूची तैयार करते हैं जो हमें पसन्द है, और उन्हीं का पालन करते हैं, जबकि हम उन आदेशों को छोड़ देते हैं जिन्हें हम अनुचित, कठिन, महंगा या अलोकप्रिय समझते हैं। उदाहरणार्थ, मैं गिरजाघर जाऊँगा किन्तु दशमांश अर्पित नहीं करूँगा। मैं अपनी बाइबल पढूँगा किन्तु उस व्यक्ति को क्षमा नहीं करूँगा, जिसने मुझे दुःख पहुँचाया है। अधूरी आज्ञा मानना ही आज्ञा न मानना है।

   पूर्ण आज्ञाकारिता आनन्द और उत्साह-पूर्वक की जाती है। बाइबल कहती है, "आनन्द से यहोवा की आराधना करो!" यही दाऊद का विचार-भाव था "हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा।"

    मसीहीयों को सम्बोधित करते हुए याकूब ने कहा, "इस प्रकार तुमने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन् कर्मों से भी धर्मी ठहरता है।" परमेश्वर का वचन स्पष्ट बताता है कि, आप मोक्ष अर्जित नहीं कर सकते। वह तो केवल अनुग्रह के द्वारा ही मिलती है, प्रयास के द्वारा नहीं। किन्तु परमेश्वर की सन्तान के रूप में आप आज्ञाकारिता द्वारा अपने स्वर्गीय पिता को प्रसन्न कर सकते हैं। आज्ञाकारिता का प्रत्येक कार्य आराधना का भी कार्य है। परमेश्वर को आज्ञाकारिता इतनी पसन्द क्यों है? क्योंकि इससे उनके प्रति आपके प्रेम की पुष्टि होती है। यीशु ने कहा, "यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।"

परमेश्वर तब मुस्कुराते हैं, जब हम लगातार उनकी स्तुति और धन्यवाद करते हैं


    किसी की हृदय पूर्वक प्रशंसा और सराहना से अधिक कुछ चीजें ज्यादा अच्छी तरह महसूस की जा सकती है, परमेश्वर को भी यह पसन्द है। जब हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता एवं आराधना व्यक्त करते हैं, तो परमेश्वर मुस्कुराते हैं।

     नूह के जीवन ने परमेश्वर को खुशी दी क्योंकि नूह ने अपना जीवन परमेश्वर की प्रशंसा और धन्यवाद के साथ व्यतीत किया। प्रलय से बचने के पश्चात, नूह ने सबसे पहला काम जो किया वो परमेश्वर को एक बलि अर्पण कर धन्यवाद दिया। बाइबल कहती है, "तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई और सब शुद्ध पशुओं और सब शुद्ध पक्षियों में से कुछ-कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया।"

    मसीह यीशु की बलि के कारण हम नूह के समान पशुबलि नहीं करते। बल्कि हमें परमेश्वर के निमित्त "स्तुतिरूपी बलिदान" और "धन्यवाद बलि"" अर्पित करने के लिए कहा गया है। हम परमेश्वर की प्रशंसा जो वे हैं, उसके लिए करते, और जो उन्होंने हमारे लिए किया है उसका हम धन्यवाद करते हैं। दाऊद ने कहा है, "मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूँगा और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूँगा। यह यहोवा को बैल से अधिक, वरन सींग और खुरवाने बैल से भी अधिक भाएगा।"

   जब हम परमेश्वर की स्तुति करते और धन्यवाद देते हैं तब आश्चर्यजनक कार्य होते हैं। जब हम उन्हें प्रसन्न करते हैं तो हमारा हृदय भी आनन्द से भर जाता है।

    मेरी माँ को मेरे लिए भोजन पकाना अच्छा लगता था। मेरे विवाह के पश्चात्, जब भी मैं और मेरी पत्नी 'के' मेरे माता-पिता के घर जाते, तो मेरी माँ अत्यन्त स्वादिष्ट भोजन तैयार करती थी। अपने बच्चों को भोजन करते हुए देखने में उन्हें बहुत आनन्द मिलता था। भोजन का जितना आनन्द हम लेते थे, उतना ही आनन्द वह हमें देखकर लेती थीं।

   परन्तु हम उनके हाथ के बनाए भोजन के लिए आनन्द व्यक्त करके भी उन्हें प्रसन्न करते थे। दोनों रूप से यह सही था। वह भोजन खाकर, मैं उसका आनन्द लेता और माँ की प्रशंसा करने लगता। मेरा आशय मात्र भोजन का आनन्द लेना ही नहीं था लेकिन अपनी माँ को प्रसन्न करना भी था। सब लोग खुश थे।

    आराधना भी दोनों तरीकों से कार्य करती है। हम उसका आनन्द लेते हैं, जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया है और, जब हम वह आनन्द परमेश्वर के समक्ष व्यक्त करते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है- किन्तु ये हमारे आनन्द को भी बढ़ाता है। भजन संहिता की पुस्तक बताती है, "परन्तु धर्मी आनन्दित हों, वे परमेश्वर के सामने प्रफुल्लित हों; वे आनन्द में मगन हों।"

जब हम अपनी योग्यता का इस्तेमाल करते हैं तब परमेश्वर मुस्कुराते हैं


   प्रलय के पश्चात परमेश्वर ने नूह को यह साधारण निर्देश दिए: "फूलो-फलो और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ। तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पक्षियों, और भूमि पर के सब रेंगने वाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा: ये सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। सब चलने वाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसा तुम को हरे-हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसे ही अब सब कुछ देता हूँ।"

   परमेश्वर ने कहा, "यह समय है कि तुम अपने जीवन को नया रूप दो! वैसे ही कार्य करो जैसे मैंने मनुष्यों को करने के लिए बनाया है, अपनी पत्नी से प्रेम करो, सन्तान उत्पन्न करो। परिवार बढ़ाओ। फसल उगाओ, भोजन करो। मानव बनो! मैंने तुम्हें इसीलिए बनाया है!"

परमेश्वर हमारे जीवन की प्रत्येक गति-विधि का आनन्द लेते हैं

   सम्भव है कि आपको ऐसा लगता हो कि परमेश्वर आपसे तभी प्रसन्न होते हैं, जब आप किसी "आत्मिक" गतिविधि-अर्थात बाइबल-पढ़ने, आराधना में उपस्थिति होने, प्रार्थना या विश्वास की चर्चा करने में संलग्न होते हैं और वे जीवन के अन्य पहलू के प्रति उत्सुक नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि परमेश्वर हमारे जीवन की प्रत्येक गतिविधि का आनन्द लेते हैं, चाहे हम काम कर रहे हों, विश्राम कर रहे हों या भोजन कर रहे हों। वे हमारी किसी भी प्रक्रिया से अज्ञात नहीं रहना चाहते। बाइबल कहती है, "मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है।"

   पाप के अतिरिक्त, मनुष्य की प्रत्येक गतिविधि परमेश्वर के आनन्द के लिए की जा सकती है, यदि वह प्रशंसा के भाव में की जाए। परमेश्वर की महिमा के लिए आप बर्तन धो सकते हैं, किसी मशीन की मरम्मत कर सकते हैं, कोई उत्पादन बेच सकते हैं, कम्प्यूटर-कार्यक्रम लिख सकते हैं, फसल उगा सकते हैं, परिवार स्थापित कर सकते हैं।

    एक गर्वित माता-पिता के समान, परमेश्वर भी आपसे प्रसन्न होते हैं, विशेषकर उस समय, जब आप उनके द्वारा दी गयी योग्यताओं का उपयोग करते हैं। परमेश्वर ने अपने आनन्द के लिए हमें जानबूझकर विभिन्न योग्यताओं से आशीषित किया है। कुछ को उन्होंने खिलाड़ी और कुछ को विश्लेषणात्मक बनाया है। आप यान्त्रिकी या गणित, या संगीत या किसी और अन्य कला में दक्ष हो सकते हैं। ये सभी योग्यताएँ परमेश्वर के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है। बाइबल कहती है, "वही जो उन सभों के हृदयों को गढ़ता, और उनके सब कामों का विचार करता है।"

परमेश्वर को क्या मुस्कान दिलाता है?

    आप अपनी प्रतिभा छिपाकर या कोई और बन कर परमेश्वर को न तो प्रसन्न कर सकते हैं, और न ही उनकी महिमा कर सकते हैं। परमेश्वर आपसे तभी प्रसन्न होते हैं, जब आप वही रहते हैं, जो आप हैं। जब भी आप अपने जीवन के किसी भी भाग का तिरस्कार करते हैं तो, आप अपनी सृष्टि में उपयोग की गई परमेश्वर की बुद्धि और प्रभु सत्ता का तिरस्कार करते हैं। परमेश्वर कहते हैं, "हाय उस पर जो अपने रचने वाले से झगड़ता है! वह तो मिट्टी के ठीकरों में से एक ठीकरा ही है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहेगी, 'तू यह क्या करता है?' क्या कारीगर का बनाया हुआ कार्य उसके विषय कहेगा, 'उसके हाथ नहीं है?"

   प्रसिद्ध फिल्म चैरियट्स ऑफ फायर में ओलम्पिक धावक एरिक लिड्ल कहते हैं, "मेरा विश्वास है कि परमेश्वर ने मुझे एक उद्देश्य के लिए बनाया है, परन्तु उन्होंने तेज भी बनाया है, और जब मैं दौड़ता हूँ, तो मुझे परमेश्वर के आनन्द की अनुभूति होती है।" बाद में वे कहते हैं, "दौड़ना छोड़ना उनका अपमान होगा।" अनात्मिक योग्यतायें नाम का कुछ नहीं होता, केवल वही, जिनका दुरुपयोग किया जाता है। अपनी प्रतिभाओं का उपयोग परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए करना प्रारम्भ कर दीजिए।

   जब आप परमेश्वर की सृष्टि का आनन्द लेते हैं, तो वह इससे भी प्रसन्न होते हैं। उन्होंने आपको आँखे प्रदान की है कि आप सुन्दरता को निहारें, कान दिए हैं कि आप ध्वनि का आनन्द लें, नाक दी है कि आप सुगन्ध का आनन्द लें, स्वाद की अनुभूति प्रदान की है कि आप स्वाद का आनन्द लें, त्वचा के नीचे शिरायें दी हैं कि आप स्पर्श का आनन्द ले सकें। परमेश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने से आनन्द की प्रत्येक प्रक्रिया आराधना की प्रक्रिया बन जाती है। वास्तव में बाइबल कहती है, "परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिए सब कुछ बहुतायत से देता है।"

   परमेश्वर आपको सोते हुए देखकर भी प्रसन्न होते हैं! जब मेरे बच्चे छोटे थे, उन्हें सोते हुए देखकर हमें बहुत संतोष होता था। कभी-कभी दिन समस्या और अनाज्ञाकारिता से भरा हुआ होता था, किन्तु सोते हुए वे कितने संतुष्ट, सुरक्षित और शांत लगते थे और मैं सोचता था कि मैं उनसे कितना अधिक प्रेम करता हूँ।

   मेरे आनन्द के लिए मेरी सन्तान को कुछ करना नहीं पड़ता था। मैं उन्हें श्वांस लेते हुए देखकर खुश होता था, क्योंकि मैं उनसे प्रेम करता था। उनकी छोटी छाती को ऊपर-नीचे होते देखकर मैं आनन्दित होता था। कभी-कभी तो मेरी आँखों से प्रसन्नता के आँसू भी निकल पड़ते थे। जब आप निद्रा में होते हैं, परमेश्वर प्रेम से आपको निहारते हैं, क्योंकि आप उनका विचार थे। वह आपसे इस प्रकार प्रेम करते हैं मानों पृथ्वी पर केवल आप ही एकमात्र प्राणी हों।

   बच्चों का आनन्द लेने के लिए माता-पिता के लिए ये आवश्यक नहीं कि उनके बच्चे सिद्ध या परिपक्व हो। वे उनका आनन्द जीवन के विकास के प्रत्येक स्तर पर लेते हैं। इसी प्रकार, परमेश्वर आपको पसन्द करने के लिए आपके परिपक्व होने की प्रतीक्षा नहीं करते वे आपसे प्रेम करते हैं और आपके आत्मिक जीवन के विकास के प्रत्येक स्तर पर आपका आनन्द लेते हैं।

    हो सकता है कि, आपके भौतिक विकास के समय आपके शिक्षक या माता-पिता अप्रिय रहे हों। परमेश्वर के विषय में आप ऐसा नहीं सोच सकते। वे जानते हैं कि आपके लिए सिद्ध या पापरहित रहना असम्भव है। बाइबल कहती है, "क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है।" 

   परमेश्वर हमारे मन के स्वभाव को देखते हैं: क्या परमेश्वर को प्रसन्न करना ही आपकी गहरी इच्छा है? पौलुस के जीवन का लक्ष्य यही थाः "इस कारण हमारे मन की उमंग यह है कि चाहे साथ रहे चाहे अलग रहें, पर हम उसे भाते रहें।" जब आप अपना जीवन नित्यता की रोशनी के अनुसार व्यतीत करते हैं तो, आपका ध्यान "मेरे जीवन से मुझे कितना आनन्द मिल रहा है?" से हटकर "परमेश्वर को मेरे जीवन से कितना आनन्द प्राप्त हो रहा है?" में बदल जाता है।

    इक्कीसवीं शताब्दि में परमेश्वर नूह जैसे व्यक्तियों को खोज रहे हैं। ऐसे लोग, जो परमेश्वर के आनन्द के लिए जीवन व्यतीत करने की इच्छा रखते हों। बाइबल कहती है, "परमेश्वर ने स्वर्ग में मनुष्यों पर दृष्टि की है कि देखें कि कोई बुद्धिमान, कोई परमेश्वर का खोजी है या नहीं।" क्या आप परमेश्वर को प्रसन्न करना अपने जीवन का लक्ष्य बनायेंगे? अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति के लिए परमेश्वर कुछ भी कर सकते हैं।


अपने उद्देश्य के बारे में सोचना


विचार करने का अंशः जब मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ परमेश्वर मुस्कुराते हैं। 

याद करने का पद्यः "यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है; अर्थात् उनसे जो उसकी करुणा की आशा लगाए रहते हैं।" भजन संहिता 147:11

सोचने योग्य प्रश्नः क्योंकि परमेश्वर जानते हैं कि सर्वोत्तम क्या है, मेरे जीवन के किन क्षेत्रों में मुझे उन पर सर्वाधिक भरोसा करना चाहिए?