
शत्रु का सामना:
सुरक्षा व प्रभाव के साथ करने के लिए आपका हृदय शुद्ध होना चाहिए,
जब आप अपनी विनती लेकर परमेश्वर की उपस्थिति में आएं. आपको सबसे पहले सारे व्यक्तिगत पाप को दूर करना है,
धर्मशास्त्र कहता हैं, “ यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता, भजन संहिता 66:18
इसलिए शत्रु का सामना करने से पहले आपका पहला कदम प्रलोभन का सामना करना है,
मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊंगा॥ भजन संहिता 101:3
अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, और अपने मुंह की चौकसी कर कि उससे छल की बात न निकले। भजन संहिता 34:13
हे यहोवा, मेरे मुख का पहरा बैठा, मेरे हाठों के द्वार पर रखवाली कर! भजन संहिता 141:3
तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको॥ 1 कुरिन्थियों 10:13
जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। मत्ती 26:41
और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं।” मत्ती 6:13
धर्म के लिये जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्ज़ित करते के लिये यह कहता हूं॥ 1 कुरिन्थियों 15:34
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