बाइबल के विषय में और अधिक अध्ययन - More Bible Studies Hindi - History of Bible in Hindi
प्रस्तावना
बाइबल में परमेश्वर का वचन नहीं है, बाइबल स्वयं परमेश्वर का वचन है।
यदि बाइबल मात्र एक मानवीय पुस्तक होती तो शीघ्र ही हम दूसरी पुस्तक की अपेक्षा रखते। यदि बाइबल मात्र एक मानवीय पुस्तक है तो मनुष्य इसके प्रत्येक अनुच्छेद को समझना और इसका ज्ञाता बनना क्यों अपनी शक्ति से बाहर समझता है?
पवित्र शास्त्र की पूर्ण प्रेरणा से मनुष्यों के इनकार करने का कारण पाप की वास्तविकता और उसके प्रभाव और अन्तिम परिणाम को कम आंकने का प्रयास है।
बाइबल में वे सत्य पाए जाते हैं जो युगों से मनुष्य से छिपे रहे, और जिनका वह अब पता लगा रहा है; इफिसियों 3:5
जो प्रकाशन भविष्यद्वाक्ताओं को दिया गया, जब वे उन तथ्यों को जो उनको प्रकाशित की गई प्रचार करते या लिखते थे तो वह उनके अपने विचारों से स्वतंत्र था. 1 पतरस 1:10-12
कोई भी भविष्यद्वाणी सम्बन्धी कथन भविष्यद्वक्ता की अपनी इच्छा पर आधारित नहीं था; 2 पतरस 1:21।
दाऊद ने अपने कथनों को ईश्वर प्रेरित होने का दावा किया; 2 शमूएल 23:21
प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं के लेख परमेश्वर का वचन थे; 2 पतरस 1:21। बाइबल पूर्ण शुद्ध सोना है जिसमें कोई चमकीला पत्थर नहीं है (कम मूल्य वाली कोई वस्तु); 2 तीमुथियुस 3:16
नहेम्याह ने भविष्यद्वक्ताओं के वचन को परमेश्वर के वचन के रूप में स्वीकार किया; नहेम्याह 9:13, 30।
यीशु ने मत्ती 22:31, 32 में बाइबल को मानव जाति के लिए परमेश्वर के यथार्थ वचन के रूप में उद्धृत किया।
पुराने नियम में 2600 बार भविष्यद्वक्ताओं ने दृढ़तापूर्वक कहा कि उनके कथन परमेश्वर का 525 बार पाया जाता है। वचन है। नए नियम में भी ऐसा ही बयान
1. बाइबल का अधिपत्य
कई शाताब्दियों पूर्व बाइबल को अधिकृत परमेश्वर का वचन स्वीकार किया गया। यह एक दुःखद वास्तविकता है कि अब वह स्थिति नहीं रही है, आज मनुष्य इसके अधिकार को चुनौती देने में अपने को गर्वानिन्वत अनुभव करते हैं।
हम एक अधर्मी युग में रह रहे हैं जिसमें मनुष्य, जीवन के हर एक क्षेत्र, राजनीतिक, धार्मिक और बौद्धिक आदि सभी क्षेत्रों में, अधिकार के विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं। अपनी सृष्टि से ही मनुष्य अधिकार की मांग और श्रेष्ठ सत्ता की आराधना के प्रति लालायित रहा है।
आज बहुत से लोग बाइबल की प्रशंसा एक उत्कृष्ट पुस्तक के रूप में करते हैं, परन्तु इसके प्रभुत्व को स्वीकार नहीं करते। यहाँ तक कि नास्तिक भी बाइबल का ऐसे साहित्य के रूप में गुणगान करेंगे जिसने अपने सभी प्रतियोगियों को पीछे छोड़ दिया है।
कुछ मसीही यीशु ख्रीष्ट को एक सर्वोच्च अधिकार के रूप में स्वीकार करते हैं, परन्तु पवित्र शास्त्र के अधिकार के सम्मुख समर्पण से इनकार करते हैं; यह एक अधिकार से बाहर की स्थिति है। जिस मसीह का प्रभुत्व हम स्वीकार करते हैं, वह पवित्र शास्त्र का मसीह है।
कुछ लोगों द्वारा बाइबल को निर्णायक अधिकार स्वीकार न करने के कारणः
क) उनका विचार है कि बाइबल और विज्ञान में परस्पर सहमति नहीं है, यह सच है कि बहुत से अप्रमाणित अवैज्ञानिक सिद्धान्त बाइबल से असहमत हैं; परन्तु ऐसा एक भी प्रमाण नहीं है जहाँ सही प्रमाणित विज्ञान और बाइबल सहमत न हों, 1 तीमुथियुस 6:20।
ख) उनका विचार है कि बाइबल और भूविज्ञान असहमत है; भूवैज्ञानिक गुयोट, दृढ़तापूर्वक कहता कि सच्चा भूविज्ञान और बाइबल पूर्णतः सहमत हैं।
ग) उनका विचार है कि बाइबल और सामान्य विज्ञान असहमत हैं; स्वर्गीय सर जी० जी० स्टोक्स, जो रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष थे, इसका सीधा खण्डन करते हैं।
घ) उनका विचार है कि बाइबल और रसायन-विज्ञान असहमत है; एक महान अमेरिकन रसायन-वैज्ञानिक राडार इस मूल का भी खण्डन करता है।
च) कुछ लोगों का विचार है कि बाइबल और भूगोल असहमत हैं; एक प्रतिष्ठित भूगोल वेत्ता, डॉ० क्रिस्टी, घोषित करता है कि बाइबल में एक भी भौगोलिक भूल नहीं है।
छ) कुछ लोगों का विचार है कि निर्णायक अधिकार कलीसिया का है, बाइबल का नहीं; कलीसिया नए नियम की समकालीन है, परन्तु पुराना नियम परमेश्वर का अमोघ वचन कलीसिया से कहीं अधिक प्राचीन और अचूक है।
ज) सम्भवतः वास्तविक कारण प्रेरितों के काम 18:17 में व्यक्त गल्लियो के समान ही उदासीनता है।
2. बाइबल की सर्वोच्चता
यह एक सर्वोच्च पुस्तक है क्योंकि यह आज तक लिखी गई सभी पुस्तकों से श्रेष्ठ है। यह एक ऐसी पुस्तक रही है जिसकी ओर मनुष्य दुख और मृत्यु के अवसर पर आकर्षित होते रहे हैं।
यह सर्वोच्च है क्योंकि इसमें जीवन और मृत्यु के प्रश्नों के उत्तर हैं। यह प्राचीनतम पुस्तक है; इसका राष्ट्रों और मनुष्यों पर प्रभाव परिकलन से परे है। यह एक शुद्ध पुस्तक है, यह मिथ्य कथाओं और व्यर्थ कल्पनाओं से रहित है। यह परमेश्वर का वचन है।
3. बाइबल में कुछ तथाकथित विरोधाभास
क) यूहन्ना 1:18 "परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा"; निर्गमन 24:10 "और इस्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया।" वस्तुतः दोनों ही बयान सही है। उन्होंने परमेश्वर को नहीं देखा क्योंकि वह आत्मा है, परन्तु उन्होंने परमेश्वर का शारीरिक प्रतिबिम्ब देखा।
जब मैं दर्पण में अपना चेहरा देखता हूँ तो मुझे अपने चेहरे का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, परन्तु मैंने वास्तव में कभी अपना चेहरा नहीं देखा जैसा दूसरे उसे देखते हैं।
ख) गिनती 25:9, 24,000 व्यक्ति महामारी से मर गए; 1 कुरिन्थियों 10:8, एक ही दिन में 23,000 मर गए।
23,000 उन लोगों की संख्या है जो एक दिन में मरे और 24,000 कुल मरने वालों की संख्या है।
ग) 2 शमूएल 24:24, सो दाऊद ने खलिहान और बैलों को चाँदी के पचास शेकेल में मोल लिया; 1 इतिहास 21:25, दाऊद ने 6 सौ शेकेल सोना तौल कर दिया।
उत्तरः यहाँ दो भिन्न सौदे किये गए हैं; पहले दाऊद ने पचास शेकेल चाँदी में खलिहान खरीदा और फिर 6 सौ शेकेल सोने में समस्त सम्पत्ति खरीद ली।
घ) 1 तीमुथियुस 6:16, परमेश्वर अगम्य ज्योति में रहता है; 1 राजा 8:12, परमेश्वर ने कहा था कि मैं घोर अन्धकार में वास किए रहूँगा। उत्तरः दोनों ही बातें सत्य हैं क्योंकि परमेश्वर सर्वव्यापी है, वह सर्वत्र वास करता है।
च) यशायाह 40:28, परमेश्वर न थकता और न श्रमित होता है, निर्गमन 31:17,6 दिन में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया और 7वें दिन विश्राम करके अपने जी को ठण्डा किया। यह ऐसा नहीं कहता कि परमेश्वर ने इसलिए विश्राम किया कि वह थक गया था. परमेश्वर थकता नहीं है। परमेश्वर ने सातवें दिन उस सृष्टि का अवलोकन करने के लिए विश्राम किया जिसकी उसने रचना की थी।
छ) यूहन्ना 13:27, अन्तिम भोज के अवसर पर शैतान यहूदा में समाया; लूका 22:3,4,7 से यह स्पष्ट है कि शैतान यहूदा में अन्तिम भोज से पहले समा चुका था।
उत्तरः शैतान यहूदा में दो बार समाया, दूसरी बार अधिक पूर्णता से समाया।
ज) प्रेरितों के काम 1:9-12, यीशु जैतून पर्वत से स्वर्ग पर उठा लिया गया; लूका 24:50, 51, यीशु बैतनिय्याह से स्वर्ग पर उठा लिया गया।
उत्तरः दोनों ही सही है, क्योंकि बैतनिय्याह जैतून पर्वत के एक ओर बसा हुआ है।
झ) प्रेरितों के काम 9:7, पौलुस के संगियों ने शब्द सुना; प्रेरितों के काम 22:9; 26:14 पौलुस के संगियों ने शब्द नहीं सुना। उत्तरः पौलुस के संगियों ने गर्जन के समान एक शब्द सुना परन्तु उन शब्दों को नहीं समझा।
ट ) पहला राजा पुस्तक के छठे अध्याय में निर्गमन से लेकर मन्दिर के निर्माण के आरम्भ का काल 480 वर्ष बताया गया है, जब कि इतिहास के अनुसार यह काल 573 वर्षों का है।
उत्तर यह 93 वर्ष का अन्तर वास्तव में न्यायियों के समय के बन्धुआई के वर्ष हैं जिनकी यहूदी इतिहास में गणना नहीं की गई। जो वर्ष परमेश्वर से दूर रह कर व्यतीत किए जाते हैं, वे गवांए गए और व्यर्थ वर्ष होते हैं और परमेश्वर की संगति के साथ उनकी गिनती नहीं होती।
ठ) 1 शमूएल 6:19 बताता है कि यहोवा के सन्दूक के अन्दर झांकने के कारण परमेश्वर ने 50,070 व्यक्तियों को मार डालाः जोसेफस इतिहासकार कहता है कि केवल 70 पुरुष मारे गए थे।।
सम्भवतः दोनों ही सही हैं, परमेश्वर ने घटना स्थल पर ही 70 पुरुषों को मार डाला होगा और पचास हजार व्यक्ति बाद में इस घटना के फलस्वरूप मारे गए होंगे।
ड) लूका 18:35,43, यीशु ने यरीहो के निकट पहुँच कर एक अन्धे को दृष्टि प्रदान की; मरकुस 10:46,52 यीशु ने एक व्यक्ति को यरीहो से निकलते समय दृष्टि प्रदान की; मत्ती 20:29-34, यीशु ने यरीहो से कुछ दूरी पर दो अज्ञात व्यक्तियों को चंगा किया। उत्तरः ये तीनों विभिन्न और पृथक अवसर हैं, और एक ही कहानी के तीन विवरण नहीं हैं।
ढ) दूसरे आभासी विरोधाभासों को इतनी ही सरलता से स्पष्ट किया जा सकता है; बाइबल निर्भान्त है।
4. बाइबल की विश्वसनीयता
आप कैसे कह सकते हैं कि बाइबल अधिकृत है? हम कैसे जानते हैं कि कथित लेखकों ने वास्तव में पुस्तकों को लिखा ? क्या बाइबल विश्वास के योग्य है? हाँ।
मूल प्रतिलिपियों में से आज एक भी अस्तित्व में नहीं है-सम्भवतः ऐसा मूर्ख मनुष्य को उनकी पूजा करने से रोकने के लिए हुआ है।
सबसे प्राचीन पांडुलिपियाँ जिनका अस्तित्व है वे हैं, (1) बैटीकन, रोम में चौथी शताब्दी की है, (2) सिनिएटिक, लेनिनग्राड, रूस में है जो चौथी शताब्दी की है, (3) एलैक्जैन्ड्रियन, जो लन्दन में है, यह पांचवी शताब्दी की है।
हम बाइबल को विश्वसनीय स्वीकार करते हैं क्योंकि ईस्वी सन् 18 में कलीसिया द्वारा उसे अधिकृत स्वीकार किया गया।
इसकी स्वीकृति के बाहरी प्रमाण प्रेरितीय (Apostolic) फादर्स से प्राप्त किया जा सकते हैं। यहाँ तक कि अन्य जाति तथा नास्तिक भी इसकी पूर्ण विश्वसनीयता को प्रमाणित समझने पर बाध्य हुए हैं, इनमें बैसीलीड्स कैपरोकेट, सेलमस, पोरफ्रीरी आदि है।
4000 प्राचीन पांडुलिपियों का जिनका आज अस्तित्व है; उनकी जाँच से बाइबल की विश्वसनीयता की पुष्टि होती है। हमारा विश्वास है कि बाइबल पूर्णतः विश्वसनीय है और हम इसके लिए अपने प्राण दाव पर लगाने के लिए तैयार हैं।
सारांश
बाइबल की आराधना न कीजिए, परन्तु उसे पढ़िए, उस पर विश्वास कीजिए और उसकी आज्ञाओं का पालन कीजिए।
(इस अध्याय की सामग्री आर० ली द्वारा लिखित "Doctrinal Outlines" पृष्ठ 47-59 से ली गई है)।
Pastor Bablu Kumar Ghaziabad

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