आपको बाइबल कैसे मिली? - How did you get the Bible?
पुराना - नियम
पुराना-नियम एक हजार वर्ष, लगभग 1400 B.C. से 400 B.C. के दौरान लिखा गया। मूसा ने लगभग 1400 B.C. में, पुराने नियम की पहली पांच पुस्तकें लिखीं। कभी-कभी इन पांच पुस्तकों को व्यवस्था की पुस्तकें या मूसा की व्यवस्था भी कहा जाता है। पुराने नियम की आखिरी पुस्तक मलाकी भविष्यद्वक्ता के द्वारा करीब 400 B.C. में लिखी गयी।
पुराने-नियम की धार्मिक हस्तलिपियाँ तैयार कीं। इस तरह उन्होंने इन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का क्रम जारी रखा। यही कारण है कि पुराने नियम की सर्वाधिक प्राचीन लिपियों का अब कोई अस्तित्व नहीं है। वास्तव में संपूर्ण पुराने-नियम की सबसे पहली या पुरानी लिपि, जो आज उपलब्ध है, को 10वीं शताब्दी A.D. में लिखा गया। तथापि, सन् 1947 में, इस्त्राएल में एक गड़रिया बालक ने सबसे प्राचीन चर्मपत्रों की खोज की। उसने इन्हें यरीहो नगर से आठ भील दूर दक्षिण में मृत्यु सागर के पास स्थित गुफाओं में पाया। इसलिये इन्हें "मृत्यु सागर चर्मपत्र" के नाम से जाना जाता है। इन चर्मपत्रों में पुराने नियम की प्रायः प्रत्येक पुस्तक के कुछ खंड उपलब्ध हैं। डेड सी स्क्रोल्स (मृत्यु सागर चर्मपत्र) को ली और 2री शताब्दी ई. पू. के दौरान लिखा गयाथा। ये उच्चारण और शैली में थोड़ी भिन्नता के अतिरिक्त वर्तमान पुराने नियम की 10वी. शताब्दी की लिपियों के बिल्कुल समान हैं। इससे प्रमाणित होता है कि यहूदी लेखकोंने इन लिपियों की नकल करने में अत्याधिक सतर्कता और यथार्थता (त्रुटिहीन) बरती थी। इस प्रकार हम इस बात पर निश्चयपूर्वक विश्वास कर सकते हैं कि पुराने नियम (जिससे हमारी सभी आधुनिक बाइबल लिखी गयी हैं) की हाल की नयी प्रतियाँ, पुराने नियम के लेखकों के मौलिक लेखों की पूर्णतः यथार्थ प्रतियां हैं। यह अत्याधिक महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि मौलिक लेखक, परमेश्वर के द्वारा सीधे और विशेष तौर पर उत्प्रेरित होकर, वही लिखते थे, जो परमेश्वर चाहता था कि वे लिखें। हम इस विषय पर आगे चर्चा करेंगे। इस तरह हमें इस बात का निश्चय हो सकता है कि उनके द्वारा लिखे गये लेखों की प्रतियों को लगातार सदियों से हम तक विश्वास योग्यता और यथार्थता से पहुंचाया गया है।
पुराने-नियम की अधिकांश प्रतिलिपियों को यहूदियों की प्राचीन भाषा, इब्रानी में लिखा गया था। तथापि, मसीह के समय में साधारण लोग इब्रानी भाषा नहीं बोलते थे। यहूदी पुरोहित और धार्मिक शास्त्री ही मुख्यतया इसका प्रयोग करते थे। मसीह के समय में मध्य-पूर्वी देशों की सामान्य भाषा अरामी थी; जिसका मसीह ने स्वयं प्रयोग किया। अरामी भाषा, इब्रानी भाषा से उसी तरह संबंधित है, जिस तरह आधुनिक भारतीय भाषाएँ संस्कृत भाषा से संबंधित हैं। तथापि, मसीह के समय में दूसरी बहुसंख्यक भाषा "यूनानी" का प्रयोग किया जाता था। संपूर्ण भूमध्य सागर क्षेत्र में यूनानी भाषा बोली जाती थी। अधिकांश शिक्षित लोग इस भाषा से परिचित थे। चूंकि बहुत थोड़े लोग इब्रानी समझते थे; इसलिये लगभग 200 B.C में पुराने नियम का यूनानी में अनुवाद किया गया। नये नियम के लेखकों ने पुराने नियम की पुस्तकों में से उद्धरण प्रस्तुत करने के लिये, सामान्यतया मौलिक इब्रानी की अपेक्षा इस यूनानी अनुवाद का प्रयोग किया।
पुराने - नियम में विभिन्न लेखकों के द्वारा लिखी गयी उनतालीस (39) पुस्तकें उपलब्ध हैं। इन पुस्तकों के मुख्य विषयों की चर्चा के लिये देखें, सामान्य अनुच्छेदः पुराने नियम का सारांश।
नया-नियम
मसीह की मृत्यु के लगभग बीस वर्ष बाद, नये नियम को यूनानी भाषा में लिखा गया था। मसीह ने अपने चेलों को अंतिम आज्ञा दी थी कि उन्हें समस्त संसार के लिये उसके गवाह बनना है (प्रेरितों के काम 1:8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तबतुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।” )। अतः चेलों ने पिंतेकुस्त के दिन से ही दूसरे लोगों को मसीह के जीवन और उसकी शिक्षां के विषय में बताना आरंभ किया। मसीह की मृत्यु के बाद के पहले बीस वर्ष में चेलों या प्रेरितों ने मुख्यतः मुंह से बोलकर शब्दों के द्वारा शिक्षा दी। परंतु प्रेरितों के वृद्धावस्था में पहुंचते ही, यह स्पष्ट हो गया कि उनको शिक्षा के लिखित संग्रह, आगामी पीढ़ियों को यथार्थता सहित उनके स्थानांतरण को निश्चित् करने के लिये आवश्यक हैं। इसलिये कुछ प्रेरितों और उनके घनिष्ट सहयोगियों ने मसीह का जीवन वृतांत लिखना आरंभ किया। पतरस प्रेरित ने मरकुस को, मरकुस रचित सुसमाचार लिखने में सहयोग दिया (देखें मरकुसः परचिय)। मत्ती प्रेरित ने मत्ती रचित सुसमाचार और यूहन्ना प्रेरित ने यूहन्ना रचित सुसमाचार लिखा। पौलुस प्रेरित के घनिष्ट सहयोगी लूका ने लूका रचित सुसमाचार, और आरंभिक कलीसिया की कहानी प्रेरितों के काम की पुस्तक को लिखा। मसीह का जीवन वृतांत लिखने के साथ साथ ही साथ प्रेरितों के लिये इन न ब बातों की पूर्णतः व्याख्या करना आवश्यक हो गयाः पृथ्वी में मसीह के आने का कारण क्या था तथा आरंभिक कलीसियाओं में फैलती हुई गलतियों और झूठी शिक्षाओं को सुधारना। इसलिये उन्होंने उन नयी कलीसियाओं को पत्र लिखना आरंभ किया, जिन्हें उन्होंने स्थापित किया था। पौलुस प्रेरित ने ऐसे तेरह पत्र लिखे। उसने सबसे पहला पत्र गलतियों की कलीसिया को लगभग 50 A.D. में लिखा (देखें गलतियों; परिचय)। कुछ शास्त्री मानते हैं कि नये नियम की सबसे पहले लिखी गयी पुस्तक, याकूब की पत्री है; जिसे यीशु के भाई याकूब ने लिखा (देखें याकूबः परिचय)।
नये-नियम की अंत में लिखी गयी पुस्तक प्रकाशितवाक्य है, जिसे यूहन्ना प्रेरित ने लगभाग 90-95 A.D. में लिखा। इस प्रकार संपूर्ण नया-नियम 50 A.D. और 100 A.D. के बीच लिखकर पूरा किया गया।
नये-नियम के लेखकों ने अपने अधिकांश मौलिक लेखों को एक प्रकार के कागज पर लिखा, जो पेपीरस' नामक पौधे से बनाया जाता था। हमारे आधुनिक पेपर की तरह, यह पेपीरस टिकाऊ नहीं था और ज्यादा समय तक स्थायी नहीं रहा। परिणामतः, नये नियम के लेखकों ने, पेपीरस की जिन प्रपटिटयों पर वासत्व में लिखा था, वे खो गयीं। पुराने-नियम के मामले की तरह ही नये नियम की वर्तमान शेष सभी प्रतियाँ उनके मौलिक लेखों से नकल की गयी प्रतिलिपियाँ हैं।
मसीह के बाद पहली तीन शतब्दियों तक लेखकों ने पेपीरस प्रपटिटयों पर नये नियम को सतर्कता और यथार्थता के साथ लिखा। बीसवीं शताब्दी (1900) के आरंभ में, नये नियम की ये कुछ प्राचीन पेपीरस प्रतियाँ मिस्त्र की रेत में दबी हुई पायी गयीं। अब तक प्राप्त इन प्रतियों (प्रपटिटयों) को सुरक्षित पात्रों में रखा गया है। इन प्रतियों में सबसे पुरानी प्रति 135 A.D. में लिखी गयी थी। इसमें यूहन्ना रचित सुसमाचार का कुछ भाग उपलब्ध है। इसके बाद की प्रपटिंटयाँ लगभाग 200 A.D. में लिखी गयीं थीं। इनमें नये-नियम का अधिकांश भाग उपलब्ध है। इन प्राचीन प्रपटिटयों को अभी संग्रहालयों (म्यूज़ियम) में सुरक्षित रखा गया है।
उन दिनों में दूसरे प्रकार के "कागज़" का प्रयोग भी किया जाता था; जिसे पर्चमेंट कहा जाता था। इसे बकरी या भेड़ की चमड़ी को विशेष रीति से मुलायम करके बनाया जाता था। पर्चमेंट, पेपीरस से अधिक मंहगा था। यह संभव है कि नये-नियम की पहली कुछ पुस्तकों को पर्चमेंट पर लिखा गया हो; लेकिन अगर ऐसा हो, तो वे सुरक्षित नहीं रखी गयीं। नये-नियम की पूर्ण प्रति 4थी शताब्दी में तैयार की गयी। इसे पर्चमेंट पर लिखा गया था। यह सबसे पुरानी प्रति, मिस्त्र में सीनै पर्वत के पास एक मठ में 19वीं शताब्दी (1805) के मध्य में पायी गयी थी। इस प्राचीन प्रति के साथ ही, यूनानी नये-नियम की 4थी और 9वीं शताब्दी के बीच, पर्चमेंट पर लिखी गयी अन्य 270 प्रतियाँ, अब तक उपलब्ध हैं।
नौंवी शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक यूनानी नये नियम की अनेक अतिरिक्त प्रतियाँ तैयार की गयीं। इनकी 2700 से अधिक प्रतियों को आज तक सुरक्षित रखा गया है। इसके बाद 1456 A.D. में जर्मनी के योहान गुटनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस (छापनेवाली मशीन) का अविष्कार किया सर्वप्रथम पहली पुस्तक, जिसे प्रकाशित किया गया था, वह थीः बाइबल इसके बाद हाथों के द्वारा पुस्तकों की नकल तैयार करने की आवश्यक्ता नहीं हुई। अब छापने की मशीनों की सुविधा के कारण पुस्तकों को जल्द ही बड़ी संख्या में सस्ती कीमत पर प्रकाशित किया जा सकता है। विभिन्न भाषाओं में बाइबल के सभी अनुवाद को अब सामान्य लोगों में सब तरफ वितरित किया जा सकता है। आज बाइबल या उसके भागों का संसार की 1200 भिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है। विश्व के इतिहास में बाइबल के अतिरिक्त अन्य ऐसी कोई पुस्तक नहीं है, जिसका इतनी अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया हो अथवा जिसे इतनी अधिक संख्या में लोगों ने पढ़ा हो।
आज तक सुरक्षित रखी गयीं ये सैकड़ों और हजारों प्रतिलिपियाँ प्रमाणित करती हैं कि हमें बाइबल, बड़ी यथार्थता पूर्वव मौलिक यूनानी प्रतिलिपि के द्वारा प्राप्त हुई है। यद्यपि लेखको ने व्यक्तिगत रुप से प्रतिलिपि लिखने के दौरान कई स्थलों में गलतियाँ की थीं; तौभी अधिकांशतः प्रत्येक मामले में सभी प्रतिलिपियों का एक साथ अध्ययन करके, यह निश्चित् किया जा सकता है कि मौलिक लेखकों ने वास्तव में क्या लिखा था। किसी अन्य प्राचीन पुस्तक की अनेक आरंभिक प्रतिलिपियाँ अब उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण, हम निश्चित् रुप से विश्वास कर सकते हैं कि हमारी सभी आधुनिक बाइबल, परमेश्वर के वचन का यथार्थ अनुवाद हैं, जो उसने बाइबल के मौलिक लेखकों को पहले आज हमारी सभी बाइबल की यथार्थता पर विश्वास करने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है: परमेश्वर ने कहा है कि वह अपने वचन को सभी पीढ़ियों के लिये स्थिर और सुरक्षित रखेगा
(भजन संहिता 119:89,152,160;
89 हे यहोवा, तेरा वचन,
आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। 152 बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ,
कि तूने उनकी नींव सदा के लिये डाली है। 160 तेरा सारा वचन सत्य ही है;
और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदाकाल तक अटल है। )।
हम पूरी तरह विश्वास में निश्चिंत हो सकते हैं कि परमेश्वर ने अपने वचन को किसी अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण ढंग से अदृश्य या परिवर्तित नहीं होने दिया।।
नया-नियम केनन
आरंभ से ही इस बात पर सामान्य समझौता किया गया कि नया नियम कैनन में कौन सी पुस्तकों को सम्मिलित करना चाहिये। नये नियम में 200 A.D. तक वे पुस्तकें शामिल थीं, जो हमारी आज की बाइबल में उपलब्ध हैं।
तथापि, कई पुस्तकों के बारे में असहमति थी। यह असहमति 4 थी शताब्दी तक बनी रही। कुछ मसीहियों ने विशेष तौर पर प्रश्न उठाया कि इब्रानियों, याकूब, 2 पतरस, 2 और 3 यूहन्ना, यहूदा और प्रकाशितवाक्य की पुस्तकों को नये- नियम में सम्मिलित करना चाहिये अथवा नहीं। इसके साथ ही लगभग पहली शताब्दी के आसपास मसीही अगुवों के द्वारा लिखे गये कुछ दूसरे गैर-बाइबल लेख पाये जाते थे; जिन्हें कैनन में शामिल करना, कुछ लोगों के दृष्टिकोण के अनुसार उचित था और अन्य लोगों के अनुसार अनुचित था। तथापि, 4थी शताब्दी के अंत तक इन सभी असहमति को सुलझा लिया गया। इसके साथ ही विश्वव्यापी कलीसिया ने वर्तमान नया नियम कैनन को सर्वसम्मति से स्वीकार कर, उसे वैधानिक बना दिया। इसके बाद से लेकर अब तक नया नियम कैनन के किसी भाग पर मतभेद नहीं पाया गया है. नये-नियम में, पुस्तकों का चुनाव कर उन्हें शामिल करने का निर्णय चार बातों पर आधारित था। पहली बात, पुस्तक किसी प्रेरित अथवा किसी प्रेरित के घनिष्ट सहयोगी के द्वारा लिखी गयी हो। दूसरी बात, पुस्तक के तत्व या उसकी सामग्री में उच्च आत्मिकता मौजूद हो और वे पुराने नियम तथा प्रेरितों की शिक्षाओं से सहमत हों। तीसरी, पुस्तक को अधिकांश कलीसियाओं के द्वारा बहुमत स्वीकृति प्राप्त हो। चौथी बात यह थी कि पुस्तक प्रत्यक्षतः परमेश्वर के द्वारा प्रेरित हो। किन पुस्तकों को सम्मिलित किया जाये; इस विषय में आरंभिक कलीसिया को पवित्र आत्मा की अगुवाई प्राप्त थी। बाइबल में किन पुस्तकों को होना चाहिये; यह निश्चित् करना मनुष्यों का कार्य नहीं था। परंतु इस विषय में लोगों को पवित्र आत्मा के द्वारा दर्शाया जाता था कि कौन सी पुस्तकें सचमुच परमेश्वर का वचन थीं।
बाइबल अन्य सभी पुस्तकों से भिन्न क्यों है?
बाइबल दूसरी पुस्तकों से भिन्न है; क्योंकि बाइबल के लेखक स्वयं परमेश्वर के द्वारा विशिष्ट व सीधी रीति से प्रेरित किये गये थे। परमेश्वर के पवित्र आत्मा ने बाइबल के लेखकों को वे सब बातें लिखने में अगुवाई दी, जिन बातों को परमेश्वर चाहता था कि वे लिखें (देखें। 2 तीमुथियुस 3:16
हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।; 2 पतरस 1:21
क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे॥ )। बाइबल केवल मनुष्य का वचन नहीं है; वरन् यह स्वयं परमेश्वर का वचन है।
निमाण तथापि, परमेश्वर ने अपने वचन को लिखने के लिये मनुष्यों का प्रयोग किया। परमेश्वर ने प्रत्येक शब्द को लिखने का निर्देश नहीं दिया। बाइबल के लेखकों ने पवित्र आत्मा की अगुवाई में लिखने के लिये अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व और चरित्र को उनके लेखों में देखा जा सकता है। जिस प्रकार यीशु ईश्वर और मनुष्य एकसाथ दोनों था, उसी प्रकार बाइबल परमेश्वर और मनुष्य एकसाथ दोनों का वचन था। यह उन लोगों के द्वारा लिखा गया, जो परमेश्वर की बुद्धि को एक विशेष रीति से जानते थे। परमेश्वर ने अपना ज्ञान उन पर प्रकट किया और उन्होंने परमेश्वर के द्वारा प्रकट की गयी बातों के अनुसार लिखा। यह सच है कि मसीही लेखक पवित्र आत्मा के द्वारा सामान्य रीति से प्ररित किये गये और उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली पुस्तकें लिखीं। परंतु उनके पास परमेश्वर की बुद्धि का वह विशेष ज्ञान नहीं था, जो बाइबल के लेखकों के पास था। यही कारण है कि बाइबल अन्य सभी पुस्तकों से भिन्न हैः सिर्फ यही परमेश्वर का प्रकाशित और अधिकृत वचन है।
चूंकि बाइबल परमेश्वर का वचन है; इसलिये पूर्णतः सत्य है। यह त्रुटिहीन है। कुछ लोगों ने बाइबल में कई बार त्रुटि निकाली, परंतु बाद में उन्होंने पाया कि वे गलत थे, बाइबल नहीं। ऐतिहासिक और खगौलिक खोजों ने समय- समय पर बारम्बार बाइबल के लेखों की सच्चाई को प्रमाणित किया है। ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तौर पर बाइबल का प्रत्येक पहलु सच्चा है।
तथापि, इतिहास अथवा विज्ञान की पुस्तक को पढ़ने की समान रीति या विधि से बाइबल को पढ़ना पर्याप्त नहीं है। बाइबल को केवल हमारी बुद्धि से पढ़ना पर्याप्त नहीं है। हमें अपनी आत्मा से बाइबल को पढ़ना चाहिये, अन्यथा हम बाइबल की गहरी आत्मिक सच्चाईयों को जानने और पाने से चूक जायेंगे। जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तब हमें परमेश्वर के सत्य को ग्रहण करने के लिये अपने आपको नम्र करते हुए अपनी बुद्धि को खोलना चाहिये। अगर हम विश्वास में ऐसा करते हैं, तो हमारे लिये बाइबल का वचन जीवित बनकर आयेगा और हमारे जीवन को परिवर्तित करेगा।
पवित्र आत्मा बाइबल को पाठक के हृदय में "जीवित" और बलवान बनाता है ( 2 कुरिन्थियों 3:6 जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। )। जिन लोगों में पवित्र आत्मा निवास करता है, वे अपने अनुभव में जानते हैं कि बाइबल परमेश्वर का जीवित और सत्य वचन है। वे बाइबल के द्वारा निश्चित् रुप से जान सकते हैं कि परमेश्वर कौन है और मसीह कौन है। उन्हें बाइबल से यह भी मालम् होता है कि परमेश्वर ने क्या किया है। पुराना-नियम परमेश्वर के मनुष्य तक पहुंचने और मनुष्य की अनाज्ञाकारिता व पाप का वृतांत है। पुराना-नियम स्पष्ट रुप से प्रदर्शित करता है कि सभी मनुष्य पापी हैं और उन्हें अनंत जीवन देने के लिये दुख उठाकर अपना प्राण बलिदान कर सके।
यह अपेक्षा की जाती है कि इस टीका के अध्ययन के दौरान पाठक, धर्मशास्त्र के द्वारा परमेश्वर को उससे बातें करने की अनुमति देगा। बाइबल को समझना ही पर्याप्त नहीं है; हमें उसके अनुसार जीवन भी जीना चाहिये।
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1 पेपीरस, मिस्त्र देश में पाया जाने वाला, पानी का एक ऊँचा पौधा है। इसके तने के पतले सूत्राकार लम्बे टुकड़ों को क्रमवत् स्तरों में एक साथ व्यवस्थित कर रखा जाता है। पेपीरस एक प्रमुख प्रकार का "कागज" था जिसका 3री शताब्दी A.D. तक प्रयोग किया गया।
नया-नियम केनन, अधीकृत रुप से स्वीकृत या प्रमाणित पवित्रशास्त्रों की सूची है, जिसे सभी कलीसियाओं के द्वारा स्वीकार किया गया है।
Pastor Bablu Kumar Ghaziabad
बाइबल विषय अध्ययन: https://vishwasitv.blogspot.com/p/blog-page.html


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