Spiritual Gifts for Believers - PASTOR BABLU KUMAR, GHAZIABAD

विश्वासियों के लिये आत्मिक वरदान
Spiritual Gifts for Believers


"किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।" 1कुर. 12:7

सामान्य परिदृश्य। विश्वासियों को दिये गये अलग अलग आत्मिक वरदानों

(1कुर. 12:7 किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है। ) के द्वारा पवित्र आत्मा का प्रकटीकरण होता है। पवित्र आत्मा का यह प्रकटीकरण सामान्य दृष्टिकोण से कलीसिया के निर्माण एवं पवित्रीकरण के लिये दिया गया (1कुर. 12:7  किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।; देखें. 1कुर. 14:26. इसलिये हे भाइयो क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्यभाषा, या प्रकाश, या अन्यभाषा का अर्थ बताना रहता है: सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए।, टिप्पणी)। यह आत्मिक वरदान से; 1कुर. 12: 6-8 
6 और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
7 किन्तु सब के लाभ पहुंचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।
8 क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें। और इफ 4:11, उसने कुछ को प्रेरित नियुक्‍त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्‍ता नियुक्‍त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्‍त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्‍त करके दे दिया, में, बताये गये वरदान और सेवकाइयों से भिन्न है। जिनसे एक विश्वासी को कलीसिया में स्थाई तौर से सेवकाई निभाने के लिये सामर्थ्य एवं क्षमता प्राप्त होती है। 1कुर. 12:8-10, क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें।
9 और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है।
10 फिर किसी को सामर्थ के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना। में दिए गये वरदानों की सूची सम्पूर्ण नहीं है और यह वरदान संघटित तौर से भी पाया जाता है।

(1) आत्मा का प्रकटीकरण आत्मा की इच्छा द्वारा दिया जाता है, 1कुर. 12:11, परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है॥ ) विश्वासियों के उत्सुक इच्छा से उसकी ज़रूरतों को उदित करते है (1कुर. 12:31; क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं॥ 1कुर. 14:1, प्रेम का अनुकरण करो, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो)।

(2) कुछ वरदान विश्वासी के द्वारा नियमित ढंग से प्रगट होता है और किसी विशेष जरूरतों के सामने उसको सेवकाई निभाने के लिये एक से अधिक वरदान दिया जा सकता है विश्वासी को चाहिए वो केवल एक वरदान का नहीं लेकिन "वरदानों" की लालसा करें (1कुर. 12:31; क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं॥ 1कुर. 14:1, प्रेम का अनुकरण करो, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो)।

(3) यह सोच लेना कि किसी व्यक्ति के पास प्रभावशाली वरदान है, तो वह उस व्यक्ति से अधिक आत्मिक है, जिसके पास उससे कम वरदान हो जो वचन के विपरीत एवं मूर्खता पूर्ण बात है। इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति के पास वरदान होने का यह मतलब नहीं है कि परमेश्वर उस व्यक्ति की हर एक कार्य एवं शिक्षाओं को मान्यता देता है। आत्मिक वरदानों को और आत्मा के फलों को पहिचानना जरूरी है। आत्मा के फल मसीह चरित्र एवं पवित्रीकरण के साथ संबंधित है ( गल. 5:22-23, पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, 23 और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।)।

(4) आत्मा के वरदानों की नकल शैतान या झूठे सेवक, मसीह के दास का नकाब पहन कर करते है (मत 7:21-23, 21 जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।
22 उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?
23 तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ।
 मत 24:11,24, 
   11 और बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को भरमाएंगे।
24 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएंगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें।
2कुर 11:13-15; 
   13 क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं।
14 और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।
15 सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामों के अनुसार होगा।
2थिस 2:8-10
   8 तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुंह की फूंक से मार डालेगा, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा।
9 उस अधर्मी का आना शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ, और चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ।
10 और नाश होने वालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा; क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिस से उन का उद्धार होता।) यह जरूरी है कि विश्वासी हर एक आत्मिक प्रकटीकरण पर विश्वास न करें वरन् वहाँ "आत्माओं को परखे, कि वे परमेश्वर की ओर से है कि नहीं, बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुये है" (1 यूह 4:1; तुलना करें 1थिस 5:20-21, 20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानो।
21 सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो।


व्यक्तिगत वरदान। 
1कुर 12:8-10 
8, क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें।
9 और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है।
10 फिर किसी को सामर्थ के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना। में, पौलुस पवित्र आत्मा के द्वारा विश्वासियों को दिए गये वरदानों की सूची प्रस्तुत करता है। यद्यपि यहाँ पर वो इसकी विशेषता नहीं बताता, हम वचन के अन्य भागों से इसकी विशेषता सीख सकते हैं।

(1) बुद्धि का सन्देश। पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा बोली गई बुद्धि की वाणी है। यह किसी विशेष परिस्थिति या समस्या के लिये दिया गया प्रकाशन या पवित्र आत्मा का ज्ञान है (प्रे. 6:10 परन्तु उस ज्ञान और उस आत्मा का जिस से वह बातें करता था, वे साम्हना न कर सके।
प्रे.15:13-22, 
13 जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा, कि॥
14 हे भाइयो, मेरी सुनो: शमौन ने बताया, कि परमेश्वर ने पहिले पहिल अन्यजातियों पर कैसी कृपा दृष्टि की, कि उन में से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले।
15 और इस से भविष्यद्वक्ताओं की बातें मिलती हैं, जैसा लिखा है, कि।
16 इस के बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊंगा, और उसके खंडहरों को फिर बनाऊंगा, और उसे खड़ा करूंगा।
17 इसलिये कि शेष मनुष्य, अर्थात सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूंढें।
18 यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातों का समाचार देता आया है।
19 इसलिये मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दु:ख न दें।
20 परन्तु उन्हें लिख भेंजें, कि वे मूरतों की अशुद्धताओं और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के मांस से और लोहू से परे रहें।
21 क्योंकि पुराने समय से नगर नगर मूसा की व्यवस्था के प्रचार करने वाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन अराधनालय में पढ़ी जाती है।
22 तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कई मनुष्यों को चुनें, अर्थात यहूदा, जो बरसब्बा कहलाता है, और सीलास को जो भाइयों में मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें। )। यह एक दैनिक जीवन निभाने के लिये दिया गया परमेश्वर का ज्ञान नहीं है। दैनिक जीवन जीने के लिये बुद्धि परमेश्वर के वचनों मार्गों एवं प्रार्थना (याकू. 1:5-6 पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।
6 पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ) पर परिश्रमी अध्ययन करने पर प्राप्त होगा। 

(2) ज्ञान का सन्देश। यह पवित्र आत्मा के द्वारा व्यक्त किया गया ज्ञान की वाणी है जो इसका भविष्यद्वाणी के सत्य निकट सम्बन्ध है 
(प्रे 5:1-10 
1 और हनन्याह नाम एक मनुष्य, और उस की पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची।
2 और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उस की पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पावों के आगे रख दिया।
3 परन्तु पतरस ने कहा; हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े?
4 जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न थी? तू ने यह बात अपने मन में क्यों विचारी? तू मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला।
5 ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुनने वालों पर बड़ा भय छा गया।
6 फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाढ़ दिया॥
7 लगभग तीन घंटे के बाद उस की पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई।
8 तब पतरस ने उस से कहा; मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी? उस ने कहा; हां, इतने ही में।
9 पतरस ने उस से कहा; यह क्या बात है, कि तुम दोनों ने प्रभु की आत्मा की परीक्षा के लिये एका किया है देख, तेरे पति के गाड़ने वाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएंगे।
10 तब वह तुरन्त उसके पांवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए: और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया।; 10:47-48 इस पर पतरस ने कहा; क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है
48 और उस ने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह ने नाम में बपतिस्मा दिया जाए: तब उन्होंने उस से बिनती की कि कुछ दिन हमारे साथ रह॥; 15:7-11 तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद के बाद खड़े होकर उन से कहा॥ हे भाइयो, तुम जानते हो, कि बहुत दिन हुए, कि परमेश्वर ने तुम में से मुझे चुन लिया, कि मेरे मुंह से अन्यजाति सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें।
8 और मन के जांचने वाले परमेश्वर ने उन को भी हमारी नाईं पवित्र आत्मा देकर उन की गवाही दी।
9 और विश्वास के द्वारा उन के मन शुद्ध कर के हम में और उन में कुछ भेद न रखा।
10 तो अब तुम क्यों परमेश्वर की परीक्षा करते हो कि चेलों की गरदन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे बाप दादे उठा सके थे और न हम उठा सकते।
11 हां, हमारा यह तो निश्चय है, कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएंगे; उसी रीति से हम भी पाएंगे॥; 1कुर 14:24-25 परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या अनपढ़ा मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परखलेंगे।
25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है)।

(3) विश्वास। यह उद्धार पाने वाला विश्वास नहीं है, लेकिन पवित्र आत्मा के द्वारा विश्वासी को परमेश्वर पर असाधारण और अद्भुत कार्यों की क्षमता है। यह ऐसा विश्वास हो कि जिससे हम पहाड़ों को हटा सकते है (1कुर 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। ) और यह चंगाई तथा अद्भुत कामों के साथ सम्मिलित है (देखे मत 17:20, उस ने उन से कहा, अपने विश्वास की घटी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह स को गे, कि यहां से सरककर वहां चला जा, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अन्होनी न होगी। सच्चा विश्वास पर टिप्पणी, मर 11:22-24, परन्तु मैं तुम से कहता हूं; कि न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
23 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा; जो सामर्थ के काम तुझ में किए गए है, यदि सदोम में किए जाते, तो वह आज तक बना रहता।
24 पर मैं तुम से कहता हूं, कि न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के देश की दशा अधिक सहने योग्य होगी। लूक 17:6 प्रभु ने कहा; कि यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस तूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता )।

(4) चंगाई के वरदान। यह वरदान कलीसिया को इसलिये दिया गया है कि अलौकिक तरीके से लोगों को शारीरिक तन्दुरुस्ती मिलें (मत 4:23-25;और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उन की सभाओं में उपदेश करता और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बल्ता को दूर करता रहा।
24 और सारे सूरिया में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, जो नाना प्रकार की बीमारियों और दुखों में जकड़े हुए थे, और जिन में दुष्टात्माएं थीं और मिर्गी वालों और झोले के मारे हुओं को उसके पास लाए और उस ने उन्हें चंगा किया।
25 और गलील और दिकापुलिस और यरूशलेम और यहूदिया से और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली॥
 10:1 फिर उस ने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें॥
प्रे 3:6-8तब पतरस ने कहा, चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर।
7 और उस ने उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया: और तुरन्त उसके पावों और टखनों में बल आ गया।
8 और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने फिरने लगा और चलता; और कूदता, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ उन के साथ मन्दिर में गया।; प्रे 4:30 और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा; कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएं )। बहुवचन ("वरदानों") का संकेत है कि नाना प्रकार की बीमारी से चंगाई और प्रत्येक चंगाई परमेश्वर का एक विशेष दान है। यद्यपि चंगाई का वरदान मसीह की देह के प्रत्येक सदस्य को नहीं दिया गया है (तुलना करें 1कुर 12:11,30 
11 परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है॥ 30 क्या सब को चंगा करने का वरदान मिला है? क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं? ), सभी सदस्य बीमारों के लिये प्रार्थना कर सकते हैं। जब विश्वास है तो बीमार चंगे हो जाऐंगे, 
याकू. 5:14-16 
14 यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें।
15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठा कर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।
16 इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। के निर्देशों के पालन से चंगाई मिल सकती है देखें याकू. 5:15
15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठा कर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।

(5) चमत्कारात्मक सामर्थ्य। यह ऐसा अलौकिक चमत्कार के कार्य है, जो सामान्य प्राकृतिक बातों को बदल देते हैं। इसमें ऐसे ईश्वरीय कार्य है जिनके द्वारा शैतान एवं दुष्टात्माओं के विरुद्ध परमेश्वर का राज्य व्यक्त होता है; 
यूहन्ना 6:2
और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्य कर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उन को देखते थे।

(6) भविष्यद्वाणी। हमें इस बात का भेद पहिचानना जरूरी है कि भविष्यद्वाणी आत्मा का अस्थाई या अल्प कालिक प्रगटीकरण (1 कुरिन्थियों 12:10 फिर किसी को सामर्थ के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की;  और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना। ) और भविष्यद्वाणी कलीसिया के सेवकाई के दान के रूप में (इफिसियों 4:11 और उस ने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया।)। सेवकाई के वरदान के रूप में, भविष्यद्वाणी केवल कुछ विश्वासियों को दिया गया, जिनको कलीसिया में भविष्यद्वाक्ताओं का कार्य करना है, एक आत्मिक प्रगटीकरण के रूप में भविष्यद्वाणी प्रत्येक आत्मा से परिपूर्ण मसीही के लिये उपलब्ध है (प्रेरितों के काम 2:17-18 कि परमेश्वर कहता है, कि अन्त कि दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरिनए स्वप्न देखेंगे। 18 वरन मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे। )

भविष्यद्वाणी आत्मिक भविष्यद्वाणी को जब हम आत्मिक प्रकटीकरण के रूप में देखते हैं: 

(A) भविष्यद्वाणी विशेष दान या वरदान है कि जिसके द्वारा पवित्र आत्मा की प्रेरणा से विश्वासी परमेश्वर की ओर से कुछ शब्द का प्रकाशन कर सकता है (1कुर 14:24-25, 29-31
 24 परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या अनपढ़ा मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परखलेंगे।
25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है। 
29 भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें।
30 परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहिला चुप हो जाए।
31 क्योंकि तुम सब एक एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएं। )। यह पहले से तैयार किये गये प्रचार को प्रस्तुत नहीं करता है। 

(B) पुराना और नया नियम दोनों में भविष्यद्वाणी केवल भविष्य के बारे में बताना नहीं है, लेकिन परमेश्वर की इच्छा की घोषणा एवं उलाहना देना ताकि परमेश्वर की प्रजा धार्मिक निष्ठा के लिये प्रस्तुत है, 1कुर.14:3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है।

(C) संदेश किसी भी व्यक्ति की हृदय की अवस्था को व्यक् कर सकती है (1कुर 14:25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है। ) या बल, उत्साह, तसल्ली चेतावनी या न्याय प्रस्तुत कर सकती है (1कुर 14:3; 25-26,31
3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है।
25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।
26 इसलिये हे भाइयो क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्यभाषा, या प्रकाश, या अन्यभाषा का अर्थ बताना रहता है: सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए)। 
31 क्योंकि तुम सब एक एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएं।

(D) कलीसिया सभी भविष्यद्वाणी अचूक संदेश के रूप में स्वीकार न करे क्योंकि अनेक झूठे भविष्यद्वक्ता गण कलीसिया में प्रवेश करेंगे (1 यूह 4:1 हे प्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। )। इसलिये, सभी भविष्यवाणियों को उसकी निष्कपटता एवं सच्चाई के लिये परखा जाना चाहिये (1कुर 14:29, 32; 
29 भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें।
32 और भविष्यद्वक्ताओं की आत्मा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है।

1थिस 5:20-21
20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानो।
21 सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो। ) यह पूछने से कि क्या परमेश्वर का वचन आधारित है 
(1यूह 4:1 हे प्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। ), क्या यह भक्ति के जीवन के लिये प्रेरणात्मक है (1तीम 6:3 यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है; और खरी बातों को, अर्थात हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है।), और क्या यह वाणी उस व्यक्ति से निकली जो  यीशु के प्रभुता के अधीन है (1कुर 12:3 इसलिये मैं तुम्हें चितौनी देता हूं कि जो कोई परमेश्वर की आत्मा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु स्त्रापित है; और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है॥)। 

(E) भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं परमेश्वर की इच्छा के अनुसार क्रियाशील होनी चाहिये। नया नियम में कहीं भी संकेत नहीं दिया गया कि कलीसिया में उनसे प्रकाशन या निर्देशन पाने के लिये प्रयास किया जो अपने आपको भविष्यद्वक्ता करके दावा करते है। कलीसिया को भविष्यद्वाणी तभी दिया गया जब परमेश्वर की ओर से संदेश मिला (1कुर 12:11 परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है॥

 2पत 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे॥ ) 

(7) आत्माओं को परखना। यह वरदान भविष्यद्वाणियों को परखने के लिये दिया गया आत्मा की क्षमता है कि जिसके द्वारा यह पहचान सकते हैं वाणी पवित्र आत्मा की ओर से है कि नहीं (देखें 1 कुर 14:29,क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब उपदेशक हैं? क्या सब सामर्थ के काम करने वाले हैं?  1यूह 4:1 हे प्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। )। इस युग के अन्त में जब झूठे शिक्षक (देखे मत्ती 24:5 क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं मसीह हूं: और बहुतों को भरमाएंगे। ) और बाइबल आधारित मसीहीयत विकृति बहुत बढ़ेंगी (देखें 1तीमुथियुस 4:1
परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आने वाले समयों में कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।), यह वरदान कलीसिया के लिये अति महत्वपूर्ण होगा। 


(8) अलग अलग भाषाओं में बोलना। "भाषाएं" (यूनानी, ग्लोसा, जिसका मतलब है भाषा) जो आत्मा का अलौकिक प्रकटीकरण है, निम्न लिखित बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए: 

(A) भाषाओं को वरदान वर्तमान उच्चोरित भाषा हो सकती है 
(प्रे 2:4-6 और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे॥
5 और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रहते थे।
6 जब वह शब्द हुआ तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाईं देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। ) या ऐसी भाषा हो सकती है जो पृथ्वी में अज्ञात है, अर्थात् "स्वर्ग दूतों की बोली" (1कुर 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।; 

देखे 1कुर. अध्याय 14, 
1 प्रेम का अनुकरण करो, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो। 2 क्योंकि जो अन्य ‘भाषा में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिये कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है।3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है।4 जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है।5 मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्यान्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यद्ववाणी करने वाला उस से बढ़कर है।6 इसलिये हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य अन्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा?7 इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएं भी, जिन से ध्वनि निकलती है जैसे बांसुरी, या बीन, यदि उन के स्वरों में भेद न हो तो जो फूंका या बजाया जाता है, वह क्योंकर पहिचाना जाएगा?8 और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिये तैयारी करेगा?9 ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे।10 जगत में कितने ही प्रकार की भाषाएं क्यों न हों, परन्तु उन में से कोई भी बिना अर्थ की न होगी।11 इसलिये यदि मैं किसी भाषा का अर्थ न समझूं, तो बोलने वाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूंगा; और बोलने वाला मेरे दृष्टि में परदेशी ठहरेगा।12 इसलिये तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो।13 इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्थना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके।14 इसलिये यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूं, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।15 सो क्या करना चाहिए मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूंगा; मैं आत्मा से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।16 नहीं तो यदि तू आत्मा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्योंकर कहेगा? इसलिये कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है?17 तू तो भली भांति से धन्यवाद करता है, परन्तु दूसरे की उन्नति नहीं होती।18 मैं अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि मैं तुम सब से अधिक अन्य अन्य भाषा में बोलता हूं।19 परन्तु कलीसिया में अन्य भाषा में दस हजार बातें कहने से यह मुझे और भी अच्छा जान पड़ता है, कि औरों के सिखाने के लिये बुद्धि से पांच ही बातें कहूं॥20 हे भाइयो, तुम समझ में बालक न बनो: तौभी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बनो।21 व्यवस्था में लिखा है, कि प्रभु कहता है; मैं अन्य भाषा बोलने वालों के द्वारा, और पराए मुख के द्वारा इन लोगों से बात करूंगा तौभी वे मेरी न सुनेंगे।22 इसलिये अन्य अन्य भाषाएं विश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्वासियों के लिये चिन्ह हैं, और भविष्यद्वाणी अविश्वासीयों के लिये नहीं परन्तु विश्वासियों के लिये चिन्ह हैं।23 सो यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्य अन्य भाषा बोलें, और अनपढ़े या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएं तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे?24 परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या अनपढ़ा मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परखलेंगे।25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।26 इसलिये हे भाइयो क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्यभाषा, या प्रकाश, या अन्यभाषा का अर्थ बताना रहता है: सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए।27 यदि अन्य भाषा में बातें करनीं हों, तो दो दो, या बहुत हो तो तीन तीन जन बारी बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे।28 परन्तु यदि अनुवाद करने वाला न हो, तो अन्य भाषा बालने वाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्वर से बातें करे।29 भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें।30 परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहिला चुप हो जाए।31 क्योंकि तुम सब एक एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएं।32 और भविष्यद्वक्ताओं की आत्मा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है।33 क्योंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है; जैसा पवित्र लोगों की सब कलीसियाओं में है॥34 स्त्रियां कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की आज्ञा नहीं, परन्तु आधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्था में लिखा भी है।35 और यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपने अपने पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्ज़ा की बात है।36 क्या परमेश्वर का वचन तुम में से निकला? या केवल तुम ही तक पहुंचा है?37 यदि कोई मनुष्य अपने आप को भविष्यद्वक्ता या आत्मिक जन समझे, तो यह जान ले, कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, वे प्रभु की आज्ञाएं हैं।38 परन्तु यदि कोई न जाने, तो न जाने॥39 सो हे भाइयों, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्य भाषा बोलने से मना न करो।40 पर सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।;  ऐसी भाषा सीखी नहीं गयी है, दोनों वक्त एवं श्रोता के लिये अबोधगम्य है (1कुर. 14:14 इसलिये यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूं, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।) और सुनने वालो के लिए (1कुर. 14:16 नहीं तो यदि तू आत्मा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्योंकर कहेगा? इसलिये कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है?)। 

(B) अन्य भाषाओं में बोलने की प्रक्रिया में मनुष्य की आत्मा एवं परमेश्वर की आत्मा दोनो का मिलकर काम हैं कि जिससे विश्वासी परमेश्वर के साथ सीधा सम्पर्क रख सकता है (अर्थात् प्रार्थना, स्तुति, आशीष या धन्यवाद में), यह वाणी मन से नहीं आत्मा से प्रगट किया जाता है (1कुर 14:2,14
2 क्योंकि जो अन्य ‘भाषा में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिये कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। 14 इसलिये यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूं, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती। ) और अपने लिये या दूसरों के लिये मन की इच्छानुसार नहीं लेकिन पवित्र आत्मा की प्रेरणा से प्रार्थना करना (तुलना करें 1कुर 14:2,4,15,28;
2 क्योंकि जो अन्य ‘भाषा में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिये कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। 
4 जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है।
15 सो क्या करना चाहिए मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूंगा; मैं आत्मा से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।
28 परन्तु यदि अनुवाद करने वाला न हो, तो अन्य भाषा बालने वाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्वर से बातें करे।

 यहूदा 1:20 पर हे प्रियोंतुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए।)। 

(C) मण्डली में अन्य भाषाओं के साथ आत्मा के द्वारा दिया गया अनुवाद भी होना चाहिये जिससे विश्वासियों को उस वाणी का विषय एवं अर्थ स्पष्ट हो (1कुर 14:3,27-28
3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है।
27 यदि अन्य भाषा में बातें करनीं हों, तो दो दो, या बहुत हो तो तीन तीन जन बारी बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे।
28 परन्तु यदि अनुवाद करने वाला न हो, तो अन्य भाषा बालने वाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्वर से बातें करे। )। यह एक प्रकाशन ज्ञान, भविष्यद्वाणी या सभा के लिये उपदेश हो सकता है (तुलना करें, 1कुर 14:5 मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्यान्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यद्ववाणी करने वाला उस से बढ़कर है।) 

(D) मण्डली के अंदर अन्यभाषाओं का बोलना व्यवस्थित होना चाहिये। वक्ता को कभी भी "हर्षोन्माद" या "नियंत्रण के बाहर" नहीं होना चाहिय (1कुर 14:27-28
27 यदि अन्य भाषा में बातें करनीं हों, तो दो दो, या बहुत हो तो तीन तीन जन बारी बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे।
28 परन्तु यदि अनुवाद करने वाला न हो, तो अन्य भाषा बालने वाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्वर से बातें करे।

(9) अन्यभाषा काक अनुवाद। यह आत्मा द्वारा दिया गया सामर्थ है जिसके द्वारा अन्य भाषा के अर्थ को समझ सके और दूसरो को इसकी व्याख्या कर सके। जब आराधना में इसकी व्याख्या की जाती है, तो यह आराधना का नेतृत्व और प्रार्थना था भविष्यद्वाणी के रूप में प्रयोम किया जाता है। विश्वासी जन इस आत्मिक उत्तेजित प्रकाशन में भाग के सकते हैं। अन्य भाषा का अनुवाद का अर्थ है भाग ले सकते है। अन्य भाषा का अनुवाद का अर्थ है कि यह आराधना की उन्नति का कारण बने (तुलना करें, 1कुर. 14:6,13
6 इसलिये हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य अन्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा?
13 इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्थना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके )। यह वरदान उसको दिया जा सकता है जो अन्य भाषाओं में बोलता है या अन्य किसी को दी जा सकती है। इसलिये जो अन्य भाषाओं में बोले वे प्रार्थना करें कि उसका अनुवाद भी कर सके (1कुर 14:13 इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्थना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके। )। 
Pastor Bablu Kumar Ghaziabad