पृथकरण - Sepuration
प्रस्तावना
इस अध्याय की सामग्री "विजयी या आत्मा से परिपूर्ण जीवन" (The Victorious or Spirit Filled Life) जिसके लेखक जे० इरविन ओवर होल्ट्जर हैं, के सोलहवें अध्याय, तथा दूसरे लेखों से लेकर तैयार की गई है।
1 यूहन्ना 2:15, "तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखोः यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है।"
ये बड़े कठोर शब्द हैं, तौभी एक मसीही होने के नाते हमें अवश्य ही प्रतिदिन इनका सामना करना चाहिए। कुछ अतिवादी इनका पालन करने के उद्देश्य से एकान्त में मठों में चले जाते हैं। हम ऐसा अनुभव करते हैं कि यह अनुचित है, परन्तु यह नहीं जानते कि सीमा रेखा कहाँ पर खींची जानी चाहिए।
1. पवित्रशास्त्र में शब्द "संसार" का अर्थ
यूहन्ना 3:16 में हमें बताया गया है कि परमेश्वर ने संसार से प्रेम किया और उसको बचाने के लिए अपना पुत्र दे दिया। यहाँ पर "शब्द संसार या जगत," लोगों के लिए आया है-पापी जो इसमें रहते हैं। यीशु ने पापियों के संसार से प्रेम किया और हम मसीहियों को भी पापियों से प्रेम रखना चाहिए।
यूहन्ना प्रेरित 1 यूहन्ना 2:16 में शब्द "संसार" का अर्थ स्पष्ट करता है, इससे पहिले के पद में हमें बताता है कि हमें इससे प्रेम नहीं रखना चाहिए। "संसार" का अर्थ है "शरीर की अभिलाषा" और "आँखों की अभिलाषा" और "जीवन का घमण्ड"। शब्द "संसार" का अर्थ है इस संसार की वर्तमान प्रणाली, जिसका नियंत्रण शैतान द्वारा किया जाता है।
इस जीवन की भौतिक आशिषों का त्याग करने का कोई संकेत नहीं है। ये आशिषे परमेश्वर उदारतापूर्वक पर्याप्त मात्रा में सभी को सुख प्रदान करने के लिए देता है। 1 तीमुथियुस 6:17, "परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिए सब कुछ बहुतायत से देता है।"
इसमें निर्दोष हास-परिहास, बच्चों का खेल कूद, शुद्ध सामाजिक जीवन, स्वस्थ मनोरंजन, प्रकृति की सुन्दरता और फूलों के प्रति प्रेम सम्मिलित है। ये पवित्रशास्त्र के विरुद्ध, सांसारिक या पापपूर्ण नहीं हो सकते। इनको गलत समझने के कारण ही मनुष्य सन्यासी बन जाता है।
यीशु प्रकृति का आनन्द लेता था, उसने पौधों, बीजों और वृक्षों के विषय में बातचीत की। यीशु के सामाजिक सम्पर्क व्यापक थे-बैतनिय्याह के परिवार, फरीसी के घर में भोजन करना, लूका 7:36, काना में विवाह, यूहन्ना 2 अध्याय; एकान्त स्थान पर विश्राम करना, मरकुस 6:31
वास्तविकता तो यह है कि उद्धारकर्ता पर पेटू होने का दोष लगाया गया, मत्ती 11:16-19, "मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, महसूल लेने वालों और पापियों का मित्र।" क्या उचित है और क्या अनुचित इनके बीच सीमा रेखा खींचने की समस्या अत्यन्त कठिन है।
2. विषय जिनमें हमको निश्चय हो सकता है
1) विश्वासी और अविश्वासी में परस्पर विवाह निषेध है: 2 कुरिन्थियों 6:14-17, "अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतो।" आमोस 3:3, "यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हों, तो क्या वे एक संग चल सकेंगे?" यह बाइबल का एक निश्चित सिद्धान्त है, जो युगों के बदलने पर भी नहीं बदलता।
2) सभी प्रकार की अधार्मिकता से अलग रहनाः 2 कुरिन्थियों 6:14, "क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल?" कुछ लोग विश्वासियों और अविश्वासियों के बीच व्यापारिक साझेदारी को भी इस पद के आधार पर अनुचित मानते हैं।
3) अन्धकार के सभी कार्यों से अलग रहनाः 2 कुरिन्थियों 6:14, "ज्योति और अंधकार की क्या संगति।" मसीही के अन्तर में मसीह वास करता है जो कि संसार की ज्योति है।
4) बलियाल, पुराने शैतान से अलग रहनाः 2 कुरिन्थियों 6:15, "और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव ?" मसीही के अन्तर में परमेश्वर का पुत्र वास करता है।
5 ) अविश्वासियों से अलग रहनाः 2 कुरिन्थियों 6:15, "विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? हमें अवश्य ही अलग रहना होगा क्योंकि हमारी परस्पर संगति नहीं हो सकती।
6) मूरतों से अलग रहनाः 2 कुरिन्थियों 6:16, "और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध?" एक मसीही परमेश्वर का मन्दिर है, उसके अन्तर में स्वयं प्रभु वास करता है
7 ) झूठे शिक्षकों से पृथक रहना जो प्रमुख सिद्धान्तों पर विवाद करते हैंः 1 तीमुथियुस 6:5, ऐसे लोगों से अलग रह। देखिए 1 तीमुथियुस 1:4; 1 तीमुथियुस 1:6; गलातियों 3:2 ।
8 ) भरमाने वालों से अलग रहनाः 2 यूहन्ना 9-11। ऐसो को अपने घर में आने की अनुमति न दो।
9 ) सभी प्रकार के ज्ञात पापों और अनैतिकता से अलग रहना (शराब इत्यादि): 1 पतरस 1:16।
3. विषय जिनमें हमको निश्चय नहीं हो सकता है
1) समय हमें आराधना, व्यापार, अध्ययन, परिवार और मनोरंजन में कितना समय व्यतीत करना चाहिए? किसी भी एक क्षेत्र में अत्यधिक समय लगाना, अपने समस्त दिन या जीवन के सम्बन्ध में, पूर्णतः अनुचित है, जिसके लिए हम जिम्मेवार हैं।
2) सुख-चैन; साधारणतः मधुर, निर्दोष और आनन्दायक होता है, परन्तु कुछ किस्म के सुख-चैन हानिकारक होते हैं।
3) शेलः अधिकांश खेल लाभकारी और स्वास्थवर्धक होते हैं, परन्तु यहाँ पर मनुष्य को सन्तुलन बनाए रखना चाहिए।
4) सांसारिक मनोरंजनः नाच, ताश खेलना, थियेटर, पत्रिकाएं, पानसुपारी, धूम्रपान, चित्रकारी, आधुनिक फैशन के वस्त्र और बाल गूंथना, शौक, टेलीविजन, त्यौहार, क्लब, तिथि निर्धारण। इनका वर्णन बाइबल में नहीं पाया जाता, इसलिए इनके लिए विशिष्ट निर्देश नहीं है।
4. अनुसरण के लिए तीन मूलभूत नियम।
यदि कोई विषय हमें व्याकुल करता है तो इन तीनों नियमों को लागू कीजिए। इसको पूर्णतः व्यक्तिगत रहने दीजिये।
1) मुझे उन सभी बातों से अलग रहना चाहिए जो परमेश्वर पर मेरे विश्वास को नष्ट कर सकती है, जैसे अविश्वासियों और नास्तिक क्लबों, साम्यवादी संगठनों इत्यादि से।
2) मुझे उन सभी बातों से अलग रहना चाहिए जो मेरी साक्षी को नष्ट कर सकती है। मेरी साक्षी ही पृथ्वी पर मेरी सर्वाधिक मूल्यवान निधि है।
3) मुझे उन सभी बातों से अलग रहना चाहिए जो मेरी नैतिकता को भ्रष्ट करके मुझे पाप की ओर अग्रसर कर सकती है। यदि ताश मुझे जुआ खेलने की ओर अग्रसर करते हैं, तो मुझे अवश्य ताश खेलना छोड़ देना चाहिए। यदि नाचने से मेरे अन्दर अशुद्ध और अपवित्र इच्छा उत्पन्न होती है, तो यह मेरे लिए पाप बन जाती है।
5. प्रस्तुत करने योग्य कुछ सामान्य नियम।
1) यदि मेरे कार्य द्वारा मेरे भाई को ठोकर लगती है, तो मुझे वह काम कभी नहीं करना चाहिए। 1 कुरिन्थियों 8:13, "इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं कभी किसी रीति से मांस न खाऊँगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूं।" यदि इससे उसकी साक्षी में बाधा उत्पन्न होती थी तो पौलुस स्वयं को हानिकारक सुख से वंचित रखने के लिए तैयार रहता था।
2) किसी विशेष विषय के लिए बाइबल के अध्ययन और प्रार्थना द्वारा परमेश्वर का मार्गदर्शन खोजिए। परमेश्वर और मनुष्य की ओर अपना विवेक सदा निर्दोष रखने के लिए संघर्ष कीजिए।; प्रेरितों के काम 24:16
3) जो कुछ भी करो, परमेश्वर की महिमा के लिए करो, कुलुस्सियों 3:17, "और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।" क्या मैं इसके (पान चबाने, हॉलीवुड के नायक-नायिकाओं के समान वस्त्र पहिनने) द्वारा परमेश्वर की महिमा कर सकता हूँ? यदि प्रार्थना के उपरान्त इसका उत्तर, "नहीं" है, तब यह बात मेरे लिए पाप बन जाती है; याकूब 4:17
4) सभी बातों में पवित्र किए गए सामान्य ज्ञान का प्रयोग कीजिए। परमेश्वर बुद्धि सम्पन्न हस्ती है और वह विषयों पर आपके साथ तर्क वितर्क करने का इच्छुक रहता है। यशायाह 1:18, "आओ, हम आपस में वाद-विवाद करें।"
5) मुझे उन सभी वस्तुओं से अलग रहना चाहिए जो मेरे शरीर को हानि पहुँचाती है-शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से। 1 कुरिन्थियों 6:19,20, "क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है, और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? क्योंकि दाम देकर मोल लिए गए हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।"
6) क्या इससे यीशु ख्रीष्ट प्रसन्न होता है? क्या यीशु ऐसा करता? यदि वह ऐसा नहीं करता, तब तो मुझे भी ऐसा नहीं करना चाहिए। 1 पतरस 2:21, "मसीह ने तुम्हारे लिए एक आदर्श रखा कि तुम भी उसके पद-चिह्नों पर चलो।" (नया अनुवाद-पवित्र बाइबल)।
6. बाइबल के कुछ सहायक पद
रोमियों 12:2, "और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए," यह बाइबल की एक सुस्पष्ट आज्ञा है।
याकूब 4:4, "हे व्यभिचारिणियों, (और व्यभिचारियों) क्या तुम नहीं जानती, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है? सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आपको परमेश्वर का बैरी बनाता है।"
इब्रानियों 11:13, "और मान लिया, कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी है।" मूसा पर विचार कीजिए; इब्रानियों 11:25, "इसलिए कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।" देमास पर विचार कीजिए; 2 तीमुथियुस 4:10. "क्योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जानकर मुझे छोड़ दिया है, और चला गया है।"
2 कुरिन्थियों 6:17, "इसलिए प्रभु कहता है, कि उनके बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छुओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा।"
सारांश
आइए हम विवेकशील हो और कटुता के साथ दूसरों को न परखें; वह अपने ही स्वामी के लिए खड़ा हुआ है। आइए हम अपने को श्रेष्ठ जान कर अलग न हों। आइए हम दीनता के साथ अलग हों। याद रखिए अलगाव दोहरा है (1) पाप से और (2) परमेश्वर की ओर।

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