एक सेवक के रूप में आपका लक्ष्य क्या होना चाहिए - What Should Be Your Goal As A Servant - Bible Servants Chapter 2 -  Pastor Bablu Kumar Vishwasi Tv


एक सेवक के रूप में आपका लक्ष्य क्या होना चाहिए - What Should Be Your Goal As A Servant - Bible Servants Chapter 2


1. आप को परमेश्वर को जानना, समझना और उस पर विश्वास करना हैं।

    "यहोवा की वाणी हैं कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैंने इसलिए चुना हैं कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूँ: मुझ से पहिले कोई ईश्वर न हुआ और न मेरे बाद भी कोई होगा" (यशा 43:10)


विचार

   यही कारण हैं कि परमेश्वर ने आप को सृजा, उध्दार किया, और सेवकाई में आप को बुलायाः कि आप उसे जाने, समझें और उसपर विश्वास करें।

अ)    आप का लक्ष्य अवश्य ही परमेश्वर को जानना हैं: उसे व्यक्तिगत रूप से और घनिष्ठता से जानना आप के दिन प्रति-दिन के चलन में उसे अधिकाधिक जानते जाएं।

आ)    आप का लक्ष्य परमेश्वर पर विश्वास करना हैं।

* जगत के लिए उस के प्रेम पर विश्वास करना हैं।

* उस के उध्दार और बुलाहट पर विश्वास करना।

* अनन्त जीवन की उसकी प्रतिज्ञा पर विश्वास करना।

* उसके वचन, पवित्रशास्त्र पर विश्वास करना।

* विश्वास करना कि वह आप के साथ हैं चाहे जो भी परीक्षण या प्रलोभन होः
यह कि आप को वह कभी नहीं छोड़ेगा, यह कि वह आप की चिंता करता हैं और आप की देख - भाल कर रहा हैं।

* विश्वास करना कि उस ने आप को बुलाया और नियुक्त किया है एक खोए हुए और मरणासन जगत को उस के वचन का प्रचार करना, एक जगत को जो अत्यन्त आवश्यकता में हैं।

इ ) आपका लक्ष्य परमेश्वर को समझना हैं।

*    समझें कि केवल वह एक मात्र परमेश्वर एक मात्र जीवित और सच्चा परमेश्वर, विश्व का सर्वप्रभु और राजा हैं। समझे कि परमेश्वर प्रेमी और पवित्र और धर्मी भी है - कि परमेश्वर दयालु और अनुग्रहकारी और धर्मी भी है - कि परमेश्वर पाप को क्षमा कर देगा और पाप का न्याय भी करेगा।

*    समझें कि परमेश्वर मनुष्य से प्रेम करता और उसकी चिंता करता हैं, कि उसने प्रेम सर्वोच्च संभव रूप में प्रदर्शित किया है: उस ने अपने पुत्र को पाप के लिए मरने को दिया हैं जिस से कि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए।

*    समझें कि केवल परमेश्वर मनुष्य का उध्दार करता हैः इसलिए मनुष्य द्वारा उसी की उपासना और सेवा की जानी हैं।

    आप को पृथ्वी पर परमेश्वर के गवाह और सेवक होने की बुलाहट हैं केवल इस एक महान लक्ष्य के लिएः कि आप परमेश्वर को जाने, समझें और उस पर विश्वास करें।

2.आप को व्यक्तिगत रूप से मसीह और उस के पुनरूत्थान की सामर्थ को जानना हैं

    "और मैं उस को और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूं और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं; ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।" (फिलि 3:10-11)।

विचार
   एक सेवक के रूप में, मसीह के साथ एक विजयी अनुभव की खोज करना आप के लिए अनिवार्य हैं। आप को मसीह को जानने की खोज में रहना हैं उसे व्यक्तिगत रूप से जानने और उसे धनिष्ठता से जानने जगत और जो कुछ उस में हैं उस पर उसकी महिमामय सामर्थ को जानने की। जीवन का आप का महान प्रयत्न होना चाहिए मसीह की खोज करना।

अ)   आपका लक्ष्य होना चाहिए मसीह को जाननाः उसे व्यक्तिगत रूप से और घनिष्ठता से जानना - आप के दिन प्रतिदिन के चलन में उसे अधिकाधिक जानते जाएं।

ब)    आप का लक्ष्य होना चाहिए मसीह के पुनरूत्थान की सामर्थ को जाननाः मसीह की सामर्थ को बुलाना इस जगत पर विजय पाने के लिए उस के सब परीक्षणोंऔर प्रलोभनों, पाप और मृत्यु समेत ।

स)    आप का लक्ष्य होना चाहिए मसीह के दुखों की सहभागिता को जाननाः उन ही कारणों से दुख उठाना जिन से मसीह ने दुख उठाया लोगों को बचाने और सेवा करने के लिए।

ड)    आप का लक्ष्य होना चाहिए मसीह की मृत्यु के अनुरूप होनाः स्वयं को पूर्णतः परमेश्वर के अधीन करना अपने आपे से इंकार करना और अपनी इच्छाओं और शारीरिक अभिलाषाओं को मारना और केवल परमेश्वर की इच्छा का पालन करना।

   “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इंकार करे, और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले" (लूका 9:23)।

    "मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ, यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है" (रोमि. 12:1)। 

3. आप को विगत बातों को भूलना और प्रतिफल के लिए आगे बढ़ना हैं।

   "हे भाइयो, मेरी भावना यह नहीं हैं कि मैं पकड़ चुका : परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूलकर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिए परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया हैं" (फिलि 3:13-14)।

विचार
    विगत बातों को भूलकर आगे बढ़ना एक कठिन कार्य हैं। परन्तु एक सेवक के रूप में आपको यह करना हैं। कैसे? अपने मन को नियंत्रित करने और ध्यान केन्द्रित करने के द्वारा और उन बातों को पकड़ने के द्वारा जो आपके आगे हैं। ध्यान के न्द्रित करने और केन्द्र बिन्दु पर ध्यान दें।

* परन्तु यह एक बात मैं करता हूं।

   एक ही बार के ध्यान केन्द्रित कृत्य में आप को विगत भूल जाना हैं और उन बातों की ओर पहुंचना हैं जो आप के आगे हैं। इस कृत्य में दो कदम हैं: भूलना और आगे पहुंचना दोनों। विगत भुलाया नहीं जा सकता जब तक उस तक न पहुंचा जाए जो आगे हैं। आप को आहें भरते हुए विगत पर दुख व्यक्त करते हुए नहीं बैठे रहना हैं। आप को आत्म शोक में नहीं डूबे रहना हैं जब आप पहुंच नहीं पाते या असफल होते हैं। अयोग्य होने की भावनाओं को आप को स्वयं को जकड़ने नहीं देना हैं। हम सब अयोग्य हैं, पूर्णतः अयोग्य, और हम पूर्णतः अयोग्य होने से अधिक अयोग्य नहीं हो सकते। हमारी असफलता और त्रुटि को यह क्षमा करना नहीं हैं। परमेश्वर को हमें लेखा देना हैं। परन्तु पाप और असफलता का अंगीकार कर के हमें उन्हें छोड़ देना हैं। यही आप परमेश्वर के सब सेवको - को सदा करना हैं। अंगीकार और मन फिराव करें और उठकर एक नई प्रतिबध्दता के साथ मसीह की सेवा करना आरम्भ करें। विगत पर ध्यान केन्द्रित न करें। विगत बातों को भूल जाना हैं। आप के मन का केन्द्रबिन्दु भविष्य की बातें होना हैं। आप को वर्तमान और भविष्य की बातों पर ध्यान लगाना हैं। यदि आप यह करें, तो आप जीवन में जय पाएंगे और प्रभु यीशु मसीह के लिए अपनी सेवकाई को पूरी करेंगे।

4. आप को इसे अपने महान लक्ष्य के रूप में रखना हैं और उस तक पहुंचने की उत्सुकता पूर्वक अपेक्षा और आशा करना है:


* किसी भी बात में लज्जित न होना

* मसीह की महिमा करना चाहे यह जीवन या मृत्यु द्वारा हो

   “मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूँ कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रहती हैं, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं या मर जाऊं" (फिलि 1:20)।

    "इसलिए हे भाईयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया का स्मरण दिला कर विनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ; यही तुम्हारी आत्मिक सेवा हैं। और इस संसार के सदृश न बनों; परन्तु तुम्हारी बुध्दि के नए हो जाने से तुम्हारा चालचलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिध्द इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो" (रोमि 12:1-2)।

    "जिस परमेश्वर की सेवा मैं अपने बापदादों की रीति पर शुध्द विवेक से करता हूं, उसका धन्यवाद हो" (2 तीमु. 1:3)।

विचार
   वह एक मात्र स्थल जहां पर लोग यीशु मसीह को जीवित देख सकते हैं वह एक विश्वासी के शरीर और जीवन में हैं। इसलिए, एकमात्र स्थल जहां पर आप यीशु मसीह का आदर और महिमा कर सकते हैं, आपके शरीर में हैं। इसलिए, आप को अपने शरीर को पूर्णतः यीशु मसीह को समर्पित करना अनिवार्य हैं।

अ)    आप को रक्षा करना हैं और अपने शरीर को बचाना हैं...

* परमेश्वर और उस के वचन पर संदेह और प्रश्न करने से

* निराशा और हताश होने से

* लापरवाह और सुस्त होने से

* आलसी और अनुशासन हीन होने से

* पाप करने और असफल होने से

* मसीह का इंकार करने और उस से विमुख होने से

* पेटूपन और मतवालेपन से

* अनैतिकता और नशीले पदार्थों से

आ)    आप को अपने शरीर को पूर्णतः यीशु मसीह को समर्पित करना हैं... 

* जिस से कि आप किसी बात के लिए लज्जित न हों 

* जिस से कि आप मसीह को महिमा दें, चाहे वह जीवन द्वारा हो या मृत्यु द्वारा

5. आप में एक बड़ी चिंता का होना अनिवार्य है: स्थिरता, किसी बात में ठोकर का कारण न बने । आप को प्रमाणित करना हैं कि आप परमेश्वर के एक सच्चे सेवक हैं - यह कि आप जीवन के सब अनुभवों, सब परीक्षणों और प्रलोभनों में विश्वासयोग्य हैं।


    "हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आएः परन्तु हर बात से परमेश्वर के सेवकों की नाई अपने सद्गुणों को प्रकट करते हैं,

* बड़े धैर्य से

* क्लेशों से

* दरिद्रता से

* संकटों से

* कोड़े खाने से

* कैद होने से

* हुल्लड़ों से

* परिश्रम से

* जागते रहने से

* उपवास करने से

* पवित्रता से

* ज्ञान से

* धीरज से

* कृपालुता से

* पवित्र आत्मा से

* सच्चे प्रेम से

* सत्य के वचन से

* परमेश्वर की सामर्थ से

* धार्मिकता के हथियारों से जो दहिने, बाए हैं।

* आदर और निरादर से

* दुरनाम और सुनाम से

* भरमानेवालों के रूप में तथापि सच्चे हैं

* अनजानों के रूप में तथापि प्रसिध्द हैं

* मरनेवालों के रूप में, तथापि देखो हम जीवित हैं

* मारखानेवालों के रूप में, और मार डाले नहीं जाते

* शोक करनेवालों के रूप में, परन्तु सदा आनंदित हैं

* निर्धनों के रूप में, परन्तु बहुतों को धनवान बनाते हैं

* ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं, तौभी सब कुछ रखते हैं" (2) कुरि 6:3-10; तुलना करें 2 कुरि. 4:8-10 से)।

   "तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने के बाहर हैः परन्तु परमेश्वर सच्चा हैं, जो तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको" (1 कुरि 10:13)।

विचार
   एक सेवक के रूप में, आप में एक बड़ी चिंता का होना अनिवार्य है: स्थिरता, किसी बात में ठोकर का कारण न बनें। आप को इतना स्थिर होना हैं...

* कि आप कभी किसी के प्रभु यीशु मसीह को तिरस्कृत करने या खट्टे हो जाने का कारण न बनें।

* कि आप कभी किसी व्यक्ति के ठोकर खाने या गिरने का कारण नहीं बनेंगे।

* कि आप कभी सेवकाई को बुरी दृष्टि से देखे जाने का कारण नहीं बनेंगे।

    आप का लक्ष्य और परिश्रम होना चाहिए कि सेवकाई और प्रभु यीशु मसीह के नाम का आदर हो। आप को प्रमाणित करना हैं कि आप परमेश्वर के एक सच्चे सेवक हैं, चाहे कितनी ही कठोर परीक्षा या प्रलोभन हो। आप को सब परीक्षाओं और प्रलोभनों के विरूध्द बलवान होना हैं, उन सब पर जय पाने का संघर्ष करते हुए। आप को किसी भी बात में किसी के ठोकर का कारण नहीं होना हैं। इसे आप की महान चिंता होना है, सेवकाई में आपका महान लक्ष्य होना हैं।

6. आप को परमेश्वर की सर्वोच्च मांग को पूरा करना हैः कि आप विश्वासयोग्य हों।

   "मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों के भंडारी समझे। फिर यहां भंडारी में यह बात देखी जाती हैं, कि विश्वासयोग्य निकले" (1 कुरि 4:1-2)1

विचार
   मसीह के एक सेवक के रूप में, आप से परमेश्वर एक मांग करता हैः विश्वासयोग्यता । विश्वासयोग्यता एक अनिवार्य मांग हैं जो आप से की जाती हैं।

*   आप से सुबक्ता, तेजोमय, बुध्दिमान, योग्यता से भरपूर या सफल होने की मांग नहीं की जाती हैं। आप से विश्वासयोग्य होने की मांग की जाती हैं।

*   परमेश्वर द्वारा आप से प्रशासक, परामर्शदाता, मिलनेवाला, व्दार पर स्वागत करने वाला या सामाजिक व्यक्ति होने की मांग नहीं की जाती हैं- यद्यपि ये सेवकाईयां भी महत्वपूर्ण हैं। आप से विश्वास योग्य होने की मांग की जाती हैं।

   परमेश्वर के भेदों की सेवकाई में विश्वासयोग्य होने की आप से मांग की जाती हैं। भेदों से अर्थ हैं परमेश्वर के वचन के सत्य। आप को लेखा देना हैं कि कितनी अच्छी रीति से आप परमेश्वर के वचन के सत्यों की सेवा करते हैं।

* परमेश्वर के सत्यों को आप को रोक कर नहीं रखना या बांटने से नहीं चूकना हैं।

* परमेश्वर के सत्यों का स्थानापन्न किसी अन्य संदेश से आप को नहीं करना हैं।

* परमेश्वर के सत्यों के साथ किसी अन्य संदेश का मिश्रण आप को नहीं करना हैं।

    आप को अपनी बुलाहट के प्रति विश्वासयोग्य होना हैं। आप मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों, उसके वचन के सत्यों के भंडारी हैं। आप के लिए परमेश्वर के भेदों, उस के पवित्र वचन का प्रचार करना अत्यन्त आवश्यक और अनिवार्य हैं।

    "यही परमधन्य परमेश्वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार हैं जो मुझे सौंपा गया हैं। और मैं, अपने प्रभु मसीह यीशु का, जिस ने मुझे सामर्थ दी हैं, धन्यवाद करता हूँ, कि उसने मुझे विश्वासयोग्य समझकर अपनी सेवा के लिए ठहराया" (1) तीमु. 1:11-12)। 

    "यहोवा का यह वचन अमिते के पुत्र योना के पास पहुंचा, उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उस के विरूध्द प्रचार कर; क्योंकि उस की बुराई मेरी दुष्टि में बढ़ गई हैं। परन्तु योना यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को भाग जाने के लिए उठा, और यापो नगर को जाकर तींश जाने वाला एक जहाज पाया; और भाड़ा देकर उस पर चढ़ गया कि उनके साथ होकर यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को चला जाए" (योना 1:1-3)।

    "तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुंचा, उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूंगा, उसका उसमें प्रचार कर। तब योना यहोवा के वचन के अनुसार नीनवे को गया" (योना 3:1-3)।

7. आप को विश्वासयोग्य होना हैं, इतना विश्वासयोग्य कि आप पूर्णतः मसीह के प्रति समर्पित हैं।

   "परंतु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझताः कि उसे प्रिय जानू, वरन यह कि मैं अपनी दौड़ को और उस सेवकाई को पूरी करूं, जो मैं ने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिए प्रभु यीशु से पाई हैं" (प्रेरि 20:24)।

विचार
   यह एक आश्चर्यजनक वचन हैं, परन्तु यह एक मूल्यवान वचन भी हैं और उसके संदेश का पूर्ण प्रभाव पाने के लिए अनेक बार पढ़ा जाना चाहिए।

   पौलुस ने अपने जीवन को स्वयं के लिए "प्रिय" नहीं जाना। उसका जीवन उसके उपयोग के लिए नहीं था जैसा वह चाहे, सांसारिक सुख - विलास के लिए नहीं था। उसका जीवन उसके लिए नहीं थाः वह मसीह के लिए था। उसका जीवन "प्रिय" (टिमियन) था, अर्थात्, बहुमूल्य और मूल्यवान, परन्तु वह उसके लिए नहीं था, उसके‌ स्वयं के उपयोगके लिए नहीं था। उसका जीवन प्रभु की बहुमूल्य और मूल्यवान संपत्ति थी। प्रभु उस के जीवन का स्वामी था, क्योंकि उस ने उसे प्रभु को दे दिया था, और प्रभु उसका अधिकतम उपयोग कर रहा था। पौलुस ने अपने जीवन को प्रभु को दो कारणों से दिया था।

    प्रथम, पौलुस की इच्छा थी कि वह अपने जीवन की समाप्ति आनन्द से करे। वह विश्वासयोग्य और परिश्रमी रहना चाहता था, मसीही दौड़ को अन्त तक दौड़ते रहना चाहता था (1) कुरि. 9:24-27; फिलि 3:13-14) । ध्यान दें कि उसने अपनी दौड़ को पूरा किया सब विश्वासियों को उसके पूरा करने की घोषणा करते हुए।

   "क्योंकि अब मैं अर्घ की नाई उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा हैं। मैं अपनी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली हैं, मैंने विश्वास की रखवाली की हैं। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ हैं। जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी हैं, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं" (2 तीमु. 4:6-8)।

   आप के और उन सब के लिए जो मसीह के सुसमाचार का प्रचार करते हैं क्या ही महिमामय गवाही और चुनौती हैं। काश परमेश्वर होने दे कि आप और परमेश्वर का प्रत्येक सच्चा सेवक - अपनी दौड़ को अन्त तक दौड़ते हुए आनन्द, विश्वासयोग्यता और परिश्रम से पूरी करें।

   क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुर्झानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुर्झाने का नहीं। इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूँ, परन्तु उसके समान नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूँ; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूँ। (1) कुरि 9:24-27)। 

    व्दितीय, पौलुस उस सेवकाई को पूरा करना चाहता था जो प्रभु यीशु मसीह ने उसे दी थी। ध्यान दें कि यह सेवकाई क्या थी - परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार की घोषणा।

   मसीह के सेवक के रूप में, आप को वही करना हैं जो पौलुस ने किया; आप के पास वही गवाही होना चाहिए जो पौलुस के पास थी: आप को स्वयं को पूर्णतः मसीह को समर्पित कर देना हैं।

   "तब मैंने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं। मुझे भेज" (यशा 6:8)1

    "सो चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू (यहेजकेल) मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े बलवई हैं" (यहें 2:7)।

8. आप को जीवन के अन्त तक विश्वासयोग्य रहना हैं।

    "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली हैं, मैंने विश्वास की रखवाली की हैं। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ हैं, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी हैं, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं" (2 तीमु 4:7-8)।

विचार
    एक सेवक के रूप में, जब आप जीवन के अन्त में आते हैं, तो आपके पास अत्यन्त महिमामय गवाहियों का होना अवश्य हैं। पौलुस के साथ आप का यह कह पाना अवश्य हैं:

   "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली हैं, मैंने विश्वास की रखवाली की हैं। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ हैं, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी हैं, मुझे उस दिन देगा" (2 तीमु. 4:7-8)।

   जिस प्रकार पौलुस अपने जीवन का वर्णन करता हैं वह अर्थ से परिपूर्ण हैं। वह शीघ्रतापूर्वक अपने पिछले जीवन को देखता हैं और उसका वर्णन करने के लिए तीन चित्रों का उपयोग करता हैं, एक सैनिक, एक धावक, और एक भंडारी का। एक सेवक के रूप में, आप को अपने जीवन के विषय में वही बातें कहने के योग्य होना हैं।

अ)    आप को एक विश्वासयोग्य सैनिक के समान जीवन जीना हैं: "मैं ने अच्छी कुरती लड़ली हैं। “पौलुस ने प्रभु यीशु मसीह की बुलाहट का प्रत्युत्तर दिया था...

* उसने मसीह की सेवा करने की स्वेच्छा दर्शायी थी।

* उस ने स्वयं को इस जगत से अलग किया था, मसीह के लिए एक सैनिक होने के लिए उसने वह सब बलिदान कर दिया था जो वह था और जो उसका था - एक सैनिक जो मसीह के कार्य के लिए पूर्णतः समर्पित था।

* परीक्षणों, प्रलोभनों, आलोचनाओं, और मसीह के शत्रुओं, दोनों द्वारा किए गए आक्रमणों द्वारा उसने क्लेश उठाया था।

* उसने एक "अच्छी" लड़ाई लड़ी थी: एक लड़ाई जो कि योग्य, आदरनीय, कुलीन, और सराहनीय थी।

* उस ने अपना समय पूरा किया था, मसीह के कार्य को अन्त तक किया था।

    इसलिए पौलुस विजय से घोषणा कर सका, "मैं एक अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूं।" राजा के लिए एक सैनिक के रूप में उसकी सेवा से वह मुक्त किया जा रहा था, मुक्त किया जा रहा था कि घर जाकर अपने प्रिय प्रभु के राज्य में शांति से अनन्तकाल तक रहे। इसे भी आप की गवाही होना चाहिए: यीशु मसीह के एक अच्छे सैनिक के रूप में, आप को यह घोषित करने के योग्य होना है, कि "मैं ने एक अच्छी लड़ाई लड़ली हैं।"

   "विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिसके लिए तू बुलाया गया, और बहुत गवाहों के सामने अच्छा अंगीकार किया था" (1 तीमु. 6:12)।

   "परन्तु उन पहिले दिनों को स्मरण करो, जिन में तुम ज्योंति पाकर दुखों के बड़े झमेले में स्थिर रहे (इब्रा 10:32)1

ब)    आप को दौड़ना हैं और अपने जीवन की दौड़ को पूरा करना है; आप को जीवन की दौड़ को उसी रीति से पूरा करना हैं जिस प्रकार एक धावक दौड़ कर उसकी दौड़ को पूरा करता हैं। यह शक्तिशाली हैं, क्योंकि इस का अर्थ हैं कि पौलुस उस के जीवन को अत्यन्त अनुशासन और नियंत्रण में रखता था ठीक वैसे ही जैसे कि एक ओलम्पिक धावक रखता था।

* जो वह खाता और पीता और जो वह अपने शरीर और बुध्दि से करता था उसे वह नियंत्रित रखता था।

* उसका ध्यान केन्द्रित था जीवन की दौड़ पर, कि वह कैसे दौड़ता था। सांसारिक वस्तुओं और शारीरिक बातों द्वारा ध्यान हटाए जाने का जोखिम वह नहीं उठा सकता था कहीं वह बाहर न फेंक दिया जाए और दौड़ के दौड़ने के अयोग्य न ठहरा दिया जाए।

   "क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता हैं? तुम वैसे ही दौड़ो कि जीतों। और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता हैं, वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिए यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिए करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उसकी नाई नहीं जो हवा को पीटता हुआ लड़ता हैं। परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं, ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं" (इब्रा 9:24-27)।

स)    आप को विश्वास की रखवाली करना हैं। आप को विश्वास की रखवाली उसी प्रकार करना हैं जैसे कि एक अच्छा भंडारी अपने स्वामी की संपत्ति की देख रेख करता हैं। प्रभु ने पौलुस को विश्वास सौंपा था, और पौलुस ने विश्वास की रखवाली की। वह विश्वासयोग्य सिध्द हुआ; उस ने विश्वासयोग्यता से उस के स्वामी, प्रभु यीशु मसीह के लिए विश्वास का प्रबन्ध किया था। विचार हैं एक भरोसे का, एक प्रबन्धन अनुबन्ध का मसीह और पौलुस के बीच। पौलुस कह रहा हैं कि उसने अनुबंध की शर्तों का पालन किया हैं; उसने विश्वास योग्यता और अच्छे से उस भरोसे का प्रबन्ध और देखभाल की थी। एक क्षण के लिए इसके विषय में विचार करें - उन सब क्लेशों का जिन से पौलुस गुजरा - उन कठिन परीक्षाओं का - उन समयों का जब वह... उस विश्वास के भरोसे को उठाकर फेंक देता या उसे अलग हटाकर उसकी उपेक्षा कर सकता था। परन्तु उसने ऐसा कभी न किया। जीवन के प्रभु और स्वामी द्वारा उसका चुनाव किया गया था परमेश्वर के भरोसे का प्रबन्ध करने के लिए, जो कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का विश्वास हैं। इसलिए पौलुस ने उस भरोसे को लिया और अच्छे और बुरे दोनों समयों के दौरान उसका प्रबन्ध किया। उसने विश्वास को कभी नहीं त्यागा। और क्योंकि वह विश्वासयोग्य रहा था, इसलिए अब समय आ गया था कि वह अपने परिश्रम का फल उत्पन्न करे। अब वह विश्वास के लाभों की कटनी काटने जा रहा था; प्रभु की संपत्ति के सब अधिकारों और विशेषाधिकारों को वह प्राप्त करने जा रहा था - उसके सुखों का आनन्द अनन्तकाल तक जीकर लेने जा रहा था।

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