मसीही विवाह
प्रस्तावना
इस अध्याय की सामग्री "The Home", लेखक जॉन आर० राइस, और " A Guide for the Course in Marriage and Family Relationships", लेखिका मरिया फे जी० एटिएन्जा, से ली गई है।
विवाह का अभिप्राय प्रसन्नता था, क्योंकि यह निष्पाप अदन का अवशेष है,
उत्पत्ति 1:28
और परमेश्वर ने उन को आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ,
नीतिवचन 18:22, “जिसने स्त्री ब्याह ली, उसने उत्तम पदार्थ पाया, और यहोवा (परमेश्वर) का अनुग्रह उस पर हुआ है।"
विवाह की नियुक्ति प्रभु ने जाति के प्रजनन, परिवारों की स्थापना, और बच्चों की उत्पत्ति के लिए किया ताकि वहाँ आनन्द का साम्राज्य स्थापित हो। विवाह सबसे प्राचीन मानव प्रथा है। यह कलीसिया, मानवीय शासन से भी प्राचीन है।
हम एक निम्न नैतिक स्तर के युग में रहते हैं, जहाँ विवाह की प्रतिज्ञाएं सरलता से तोड़ दी जाती है और तलाक को साधारण बात माना जाता है। परमेश्वर के नियम और स्तर कभी नहीं बदलते।
1. विवाह के कारण
1) परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना: उत्पत्ति 1:28, "फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ।"
2) संगति के लिए: उत्पत्ति 2:18, "फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं।"
यहाँ पौलुस जैसा पथ-प्रदर्शक मिशनरी इसका अपवाद प्रतीत होता है जिसमें 1 कुरिन्थियों 7:32 सो मैं यह चाहता हूं, कि तुम्हें चिन्ता न हो: अविवाहित पुरूष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को क्योंकर प्रसन्न रखे। सच ठहरा है।
3) साझेदारी के लिए: सभोपदेशक 4:9-11 "एक से दो अच्छे हैं क्योंकि यदि उनमें से एक गिरे तो दूसरा उसको उठाएगा,"
"एक शरीर" बनाने के लिए दो की आवश्यकता होती है,
उत्पत्ति 2:24
इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे।
4) जीव-विज्ञान सम्बन्धी अभिलाषाओं की सन्तुष्टि के लिए: मनुष्य कुछ अभिलाषाओं के साथ जन्म लेता है जो कि भली, पवित्र, और वैध होती हैं, परन्तु उनकी तुष्टि केवल विवाह में ही हो सकती है।
5) मानव जाति के प्रजनन और फैलान के लिए; उत्पत्ति 1:28; 9:11
2. विवाह किससे करना चाहिए
मसीही केवल मसीहियों से विवाह कर सकते हैं। 2 कुरिन्थियों 6:14-17, "अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतो।”
परमेश्वर की दृष्टि में ईश्वरीय व्यक्ति और एक अविश्वासी का परस्पर विवाह के पवित्र बन्धन में बंध कर एक तन हो जाना विडम्बना है। वे दोनों एक कैसे हो सकते हैं जबकि एक परमेश्वर, पवित्रता और धार्मिकता की सेवा करता है और दूसरा पाप और शैतान की सेवा करता है? वे सच्ची साझेदारी और संगति कैसे बनाए रख सकते हैं जबकि उनमें इतना भारी अन्तर होता है?
मसीही सुसमाचार सेवकों को ऐसे मिले-जुले विवाह सम्पन्न नहीं करवाने चाहिए। साधारणतः लड़का एक परिपक्व मसीही चरित्र की किसी लड़की को चुन लेता है, जिसकी वही पृष्ठभूमि, रूचि, शिक्षा, धर्म और अभिरूचि होती है, और जो आयु में उससे थोड़ी छोटी होती है। लड़की उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है, जिसका धर्म, पृष्ठभूमि शिक्षा, रूचियाँ और अरूचियाँ उसी के समान होती हैं और जो सदा ही सज्जन बना रहता है।
3. विवाह कब करना चाहिए
1) जब बहुत अधिक प्रार्थना करने और उसकी इच्छा खोजने के बाद परमेश्वर विवाह के मार्ग में आपका मार्गदर्शन करता है।
2) जब कि आप दूसरे व्यक्ति को अच्छी तरह से जान लेते हैं, आप परस्पर एक दूसरे की रूचियों और अरूचियों, अच्छे और बुरे गुणों से परिचित हो जाते हैं। जल्दबाजी में किए गए विवाह खतरनाक होते हैं।
3) प्रेम की प्रतीक्षा कीजिए, प्रेमोन्माद आदि काफी नहीं है। विवाह जीवन भर के लिए होता है, और सुखी परिवार के लिए ईश्वरीय प्रेम आवश्यक होता है, (1 कुरिन्थियों 13 अध्याय)।
4) जब तक आपकी विवाह के योग्य आयु नहीं हो जाती तब तक प्रतीक्षा कीजिए। विवाह वयस्कों के लिए है, बच्चों के लिए नहीं, क्योंकि इसके साथ भारी जिम्मेवारियां आ जाती हैं, जिनमें परिपक्वता और अनुभव की आवश्यकता होती है।
5) जब तक नैतिक समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता, तब तक प्रतीक्षा कीजिए। किसी पुरुष को सुधारने के उद्देश्य से उससे विवाह न कीजिए। ऐसे पुरुष से विवाह न करना ही अच्छा है, जिसकी आदतों के फलस्वरूप कटुता उत्पन्न हो सकती है और विवाह तथा पारिवारिक सुख नष्ट हो सकता है।
6) स्वस्थ होने तक प्रतीक्षा कीजिए। विवाह में बलवान शरीरों की आवश्यकता होती है। यदि विवाह के बाद कोई बीमारी आ जाती हैं तो आपकी विवाह की प्रतिज्ञा में पीड़ित सदस्य की प्रेमपूर्वक देखभाल सम्मिलित होती है।
7) लड़की के माता-पिता के अनुमोदन की प्रतीक्षा कीजिए। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है।
8) आर्थिक स्थिरता तक प्रतीक्षा कीजिए, धनवान होने तक नहीं, परन्तु कुछ अंशों तक सुरक्षा आवश्यक है।
4. सुखी विवाह के सिद्धान्त
1) एक सफल विवाह दम्पति की यथार्थ हार्दिक सम्मति पर आधारित होता है।
2) उनको एक मसीही परिवार की स्थापना करने के लिए तैयार होना चाहिए, जिसका प्रमुख पति है और पत्नी एक प्रफुल्ल सहायिका है; और इसके साथ ही एक पारिवारिक प्रार्थना की वेदी हो।
3) यह जीवन पर्यन्त प्रत्याशा पर आधारित होना चाहिए, "जब तक मृत्यु हमें अलग न करे।" विवाह थोड़े समय के लिए परीक्षण नहीं है; यह स्थाई है।
4) सफल विवाह में बच्चों की आशिष सम्मिलित होनी चाहिए। भजन संहिता 127:3-5, “देखो, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं धन्य है वह पुरुष जिसने अपने तर्कश को उनसे भर लिया है।"
5) सुखी विवाह में निष्कपट प्रेम परमावश्यक है। इफिसियों 5:25, "हे पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो" तीतुस 2:4, पत्नियों अपने पति से प्रेम रखो।
6) एक आदरपूर्ण मंगनी से सुखी और सफल विवाह का मार्ग प्रशस्त होता है। युवतियों, उस पुरुष से सावधान रहो जो गुप्त मंगनी का प्रस्ताव रखता है।
7) सार्वजनिक मसीही विवाह का आग्रह कीजिए। एक पल के लिए भी अपने हृदय में गुप्त विवाह का विचार न पनपने दीजिए। विवाह इससे कहीं अधिक पवित्र बन्धन है।
8) दम्पति को सम्पूर्ण हृदय से किसी भी मूल्य पर विवाह की प्रतिज्ञाएं पूरी करने पर सहमत होना चाहिए। यदि एक सदस्य अनिच्छुक हैं, तो फिर विवाह को स्थगित कर दीजिए, और परिपक्वता और आश्वासन की प्रतीक्षा कीजिए।
9) पति-पत्नी दोनों को प्रत्येक समस्या और गलतफहमी में एक साथ प्रार्थना करना सीखना चाहिए।
10) दोनों ही को अपने कार्यों तथा शब्दों द्वारा एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते रहना चाहिए।
5. मंगनी और विवाह
मंगनी समाज के सामने एक आदरयुक्त घोषणा है कि दम्पति शीघ्र ही विवाह करने की योजना बना रहे हैं सम्भवतः एक वर्ष के भीतर। दम्पति के लिए यह एक दूसरे को जानने का और निश्चय कर लेने का अवसर होता है कि वे विवाह के लिए तैयार हैं या नहीं, और वास्तव में एक दूसरे के लिए समर्पित हैं।
यह स्वाभाविक है कि जिनकी मांगनी हो चुकी है, वे मिलते रहें और मिलकर बातचीत करें, विवाह के लिए अपने अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करें, बच्चों और परिवार नियंत्रण, अभिरूचियों, आकांक्षाओं आदि पर बातचीत करें। परन्तु उनको स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि अभी उनका विवाह नहीं हुआ है।
विवाह के विशेषाधिकार विवाह के पश्चात् तक संरक्षित रखे जाने आवश्यक हैं, कहीं ऐसा न हो कि प्रेम घृणा में बदल जाए, और परस्पर आदर पूर्णतः नष्ट न हो जाए, ( 2 शमूएल 13:15 तब अम्नोन उस से अत्यन्त बैर रखने लगा; यहां तक कि यह बैर उसके पहिले मोह से बढ़कर हुआ। तब अम्नोन ने उस से कहा, उठ कर चली जा। ) अलिंगन आदि उत्तेजक क्रियाओं से दूर रहिए ताकि कामना विवेक पर प्रबल होकर उसे पूर्णतः नष्ट न कर सके।
दम्पति को एक दूसरे के प्रति ईमानदार और निष्कपट रहना चाहिए। ऐसा कोई कार्य न कीजिए जिससे आपके निजी प्रार्थना के जीवन और मसीही साक्षी में बाधा पड़े। यह भावी सुखी जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात है कि विवाह के समय दोनों ही कुंआरे हों।
6. व्यभिचार
निर्गमन 20:14, “तू व्यभिचार न करना", निर्गमन 20:17 तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना।
केवल यह देख कर ही कि परमेश्वर व्यभिचार से कितनी घृणा करता है, हम विवाह की पवित्रता को देख सकते हैं। विवाह को "पवित्र पाणिग्रहण" कहा जाता है, क्योंकि यह वास्तव में पवित्र संगठन है।
परमेश्वर ने व्यभिचार के लिए मृत्युदण्ड की आज्ञा दी थी (दोनों के लिए मृत्युदण्ड) लैव्यवस्था 20:10 फिर यदि कोई पराई स्त्री के साथ व्यभिचार करे, तो जिसने किसी दूसरे की स्त्री के साथ व्यभिचार किया हो तो वह व्यभिचारी और वह व्यभिचारिणी दोनों निश्चय मार डाले जाएं।
व्यभिचार, लाल रंग का पाप ही केवल पवित्रशास्त्र सम्मत तलाक का आधार है, मत्ती 19:9 और मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्यागकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई को ब्याह करे, वह भी व्यभिचार करता है।
यौन रोग शारीरिक विपत्ति है जिसका प्रयोग परमेश्वर दोषी को दण्ड देने के लिए करता है। व्यभिचार और परस्त्रीगमन नरक में पहुँचते हैं;
नीतिवचन 7:27
उसका घर अधोलोक का मार्ग है, वह मृत्यु के घर में पहुंचाता है॥
नीतिवचन 9:13-17
13 मूर्खता बक-बक करनेवाली स्त्री के समान है; वह तो निर्बुद्धि है, और कुछ नहीं जानती।
14 वह अपने घर के द्वार में, और नगर के ऊँचे स्थानों में अपने आसन पर बैठी हुई
15 वह उन लोगों को जो अपने मार्गों पर सीधे-सीधे चलते हैं यह कहकर पुकारती है,
16 “जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए;” जो निर्बुद्धि है, उससे वह कहती है,
17 “चोरी का पानी मीठा होता है, और लुके-छिपे की रोटी अच्छी लगती है।”
1 कुरिन्थियों 6:9-10
9 क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी।
10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देने वाले, न अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।
7. तलाक
मानव जाति के लिए तलाक परमेश्वर की मूल योजना में सम्मिलित नहीं था;
मत्ती 19:8
उस ने उन से कहा, मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी अपनी पत्नी को छोड़ देने की आज्ञा दी, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था।
विवाह जीवन भर का साथ है।
मत्ती 19:6
सो व अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं: इसलिये जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।
"जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।" क्योंकि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्याग कर दूसरी से ब्याह करता है, वह व्यभिचार करता है;
मत्ती 19:9
और मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्यागकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई को ब्याह करे, वह भी व्यभिचार करता है।
जिस पत्नी का त्याग किया जाता है, वह पुनः विवाह कर सकती है, व्यवस्थाविवरण 24:2
2 कुरिन्थियों 6:14-17
14 अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अंधकार की क्या संगति?
15 और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता?
16 और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बंध? क्योंकि हम तो जीविते परमेश्वर के मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है
“मैं उनमें बसूँगा और उनमें चला फिरा करूँगा; और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा, और वे मेरे लोग होंगे।
17 इसलिए प्रभु कहता है, “उनके बीच में से निकलो
और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूँगा;
इस के अनुसार छः निम्नलिखित कारण है जिनके कारण एक विश्वासी को एक अविश्वासी के साथ विवाह नहीं करना चाहिए।
1) परमेश्वर की आज्ञा, अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतो।
2) धार्मिकता और अधार्मिकता में परस्पर कोई संगति नहीं है।
3) अन्धकार के साथ ज्योति का कोई मेल नहीं है।
4) मसीह का बलियाल के साथ कोई लगाव नहीं है।
5) विश्वासियों का अविश्वासियों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।
6) परमेश्वर के मन्दिर का मूरतों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।
सारांश
मसीह को परिवार का प्रधान बना लीजिए उसको परिवार का प्रभु और उद्धारकर्ता दोनों ही बना लीजिए। पति के हृदय में पत्नी और बच्चों के प्रति कोमल प्रेम बना रहना चाहिए। पत्नी के हृदय में एक पत्नी और माता का निःस्वार्थ प्रेम होना चाहिए। इस महत्वपूर्ण विषय पर दम्पति तथा युवक-युवतियों को जिनकी मंगनी हो चुकी है, बहुत अधिक प्रार्थना करनी चाहिए।

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