कलीसिया में महिलाएँ - Women In The Church - Hindi Bible Study

कलीसिया में महिलाएँ - Women In The Church - Hindi Bible Study

प्रमुख पद

   न्यायियों 4:4- दबोरा, एक भविष्यद्वक्तिन, इस्त्राएलियों की अगुवा और न्यायाधीश। 
   
    प्रेरितों के काम 1:14; 2:1-4; 16:18; 21:8-9 पवित्र आत्मा और भविष्यद्वाणी करने का वरदान महिलाओं के लिये भी है।

   रोमियों 16:1.7 - फीबे, एक सेविका (डीकन), यूनियास, एक प्रेरित महिला ?

   कुरिंथियों 11:3-16 - (विशेष पद 5) महिलाएँ प्रार्थना और भविष्यद्वाणी करती हैं। 
   
    गलतियों 3:26-28 - परमेश्वर के सामने पुरुष और महिला समान (बराबर) हैं। 
    
    1तीमुथियुस 2:11-15- महिलाओं के लिये शिक्षा देना और पुरुषों पर अधिकार प्रदर्शित करना, निषेध है। 
    
    1तीमुथियुस 3:11-13 कलीसिया में महिलाएं कार्यकर्त्ता के रुप में।

कलीसिया में महिलाओं का कार्य क्या है?


   कलीसिया के इतिहास में अधिकांशतः महिलाओं को कलीसिया में अगुवाई करने की अनुमति नहीं थी। सामान्यतः महिलाओं को कलीसिया में अगुवाई करने की अनुमति नहीं थी। सामान्यतः प्रचारक, शिक्षक और उपदेशक (पास्टर) कलीसिया के पुरुष ही होते थे। इसके बावजूद, संसार के कुछ भागों में महिलाओं ने समय-समय पर कलीसिया को अगुवाई और शिक्षा दी। पिछले कुछ शताब्दियों में महिलाएँ क्रमशः अधिकाधिक संख्या में कलीसिया के प्रचार करने, शिक्षा देने और उपदेश देने (पास्टर) आदि कार्यों में शामिल रही हैं। ऐसा उस समय हुआ जब संसार की अनेक संस्थाओं ने अपनी महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक संवतंत्रता प्रदान की।

   बाइबल में महिलाओं के द्वारा कलीसिया में नेतृत्व करने के संबंध में, क्या कहा गया है? यह अधिक स्पष्ट नहीं है। यद्यपि कई कलीसियाएँ महिलाओं को मिशनरी के रूप में प्रचार करने और शिक्षा देने की अनुमति देती हैं; तौभी ये महिलाओं को साधारण तथा प्रचार करने या पास्टर बनने की अनुमति नहीं देती हैं। दूसरी ओर कई अन्य कलीसियाओं में आज महिलाओं को प्रचार करने, शिक्षा देने और यहां तक कि पास्टर व बिशप बनने की अनुमति दी गयी है।

कलीसिया में महिलाओं के द्वारा प्रार्थना और भविष्यद्वाणी करना

   पौलुस ने गलतियों 3:28 में स्पष्ट लिखा है कि यीशु मसीह में पुरुष और महिलाएँ एक हैं। पाश्चात्य देशों में दासत्व के विरुद्ध मसीहियों की लड़ाई में गलतियों 3:28 उनके लिये सर्वोधिक महत्वपूर्ण सहायक पद था। यद्यपि मसीह में पुरुष और महिलाएँ एक हैं; तौभी इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे हर पहलु में एक-दूसरे के समान हैं। परमेश्वर के सामने पुरुष और महिलाएँ एक हैं। परंतु कलीसिया में उनके उत्तरदायित्व भिन्न हो सकते हैं। इसी प्रकार, यद्यपि पति और पत्नी एक- दूसरे के अधीन होते हैं; तौभी विवाह में उनके उत्तरदायित्व अलग हो सकते हैं (देखें इफिसियों 5:21-23; सामान्य अनुच्छेदः मसीही विवाह )।

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   प्रेरितों के काम के अध्याय 1 और 2 में, यह स्पष्ट है कि पिंतेकुस्त के दिन, जब पवित्र आत्मा यीशु के चेलों पर उन्हें सामर्थ देने के लिये उतरा, तब वहां पुरुष और महिलाएँ दोनों उपस्थित थे। पतरस ने योएल भविष्यद्वक्ता का उल्लेख करते हुए उसके वक्तव्य के बारे में लिखा है कि परमेश्वर अपना पवित्र आत्मा पुरुष और महिलाओं दोनों पर उंडेलेगा और पुत्र व पुत्रियाँ दोनों भविष्यद्वाणी करेंगे (योएल 2:28-29, प्रेरितों के काम 2:16-18)। पुराने नियम में अनेक महिलाएँ भविष्यद्वक्तिन थीं (निर्गमन 15:20 न्यायियों 4:4; 2राजा 22:14; नहेम्याह 6:14: यशायाह 8:3)। नये नियम में प्रचारक फिलिप्पुस की सभी चार पुत्रियाँ भविष्यद्वाणी करती थीं (प्रेरितों के काम 21:8-9)

   पौलुस भी 1कुरिंथियों 12:11 में इस बात से सहमत था कि पवित्र आत्मा अपने वरदान केवल पुरुषों को ही नहीं, वरन् सबको देगा। पौलुस ने 1कुरिंथियों 11:5 में कुरिंथुस की उन महिलाओं के बारे में बताया है जो कलीसिया की सेवकाई के लिये प्रार्थना और भविष्यद्वाणी करती थीं। पौलुस ने जब कहा कि कलीसिया में आराधना के दौरान प्रार्थना और भविष्यद्वाणी करने वाली महिलाओं को सिर ढंकना चाहिये, तब उसने स्पष्ट संकेत दिया कि आराधना में महिलाओं के द्वारा प्रार्थना और भविष्यद्वाणी करना उचित है। पौलुस ने कहा कि कलीसिया की सभा में सभी लोग भाग लेकर शामिल हो सकते हैं (1 कुरिंथियों 14:26), और इसमें निश्चित रुप से महिलाएँ भी शामिल की गयीं हैं।

महिलाएँ सेविका और सहकर्मी के रुप में

   कई लोग विश्वास करते हैं कि कलीसिया में महिलाएँ सेविकोएँ (डीकन्स) हो सकती हैं। पौलुस ने 1तीमुथियुस 3:8-13 में पुरुष और पति के बारे में लिखा है। पद 11 में महिलाओं का उल्लेख है। संभवतः पद 11 में दो प्रकार की महिलाओं के विषय में बताया गया है: या तो "पत्नियाँ" या फिर "महिला सेविकाएँ" यहां निश्चित नहीं है कि पौलुस का तात्पर्य किस प्रकार की महिलाओं से है। हमें मालूम है कि पौलुस ने रोमियों 16:1 में फ्रीबे नामक महिला की प्रशंसा की है और उसे एक "सेविका" (डीकनेस या सर्वेन्ट) कहा है। (यहां इस शब्द का "सर्वेन्ट" के रुप में अनुवाद किया गया है, लेकिन यूनानी भाषा में यह शब्द "डीकन" के समान है)।

    पौलुस ने रोमियों 16:36, 12 और फिलिप्पियों 4:2-3 में, कई अन्य "सहकर्मियों" को अभिवादन किया है, जो महिलाएँ थीं। प्रिसकिल्ला और उसके पति अक्विला का हमेशा एक साथ उल्लेख किया जाता है, जिन्होंने शिक्षा देने की सेवकाई की (प्रेरितों के काम 18:18, 26)। इसके साथ ही कई धर्मशास्त्री मानते हैं कि पौलुस रोमियों 16:7 में "यूनियास" एक महिला का उल्लेख कर रहा है न कि एक पुरुष "यूनियस" का (यूनानी शब्द पुलिंग या स्त्रीलिंग में हो सकता है)। अगर यह शब्द एक महिला का उल्लेख करता है तो पौलुस ने एक महिला को "प्रेरित" कहा है। नया नियम मूलतः यूनानी भाषा में लिखा गया था।

अगुवा महिलाएँ

   अगर महिलाएँ सेविका बन सकती हैं, तो यह प्रश्न शेष रहता है कि क्या महिलाएँ कलीसिया की अगुवाई करने के लिये पास्टर बन सकती हैं या नहीं? बाइबल में इस प्रश्न का पूर्णतः स्पष्ट उत्तर नहीं दिया गया है। इसी कारण आज विभिन्न कलीसियाएँ भिन्न-भिन्न रीति रिवाजों को मानती हैं। कई मसीही 1कुरिंथियों 14:33-35 और 1तीमुथियुस 2:11-15 की ओर संकेत करते हैं; जहां बताया गया है कि महिलाओं को चुप रहना चाहिये, उन्हें दूसरों को शिक्षा नहीं देना चाहिये और पुरुष पर अधिकार प्रदर्शित नहीं करना चाहिये। इन पदों में उपरोक्त बात स्पष्ट रूप से बतायी गयी है। कई कलीसियाओं में महिलाओं को बच्चों और दूसरी महिलाओं को शिक्षा देने की अनुमति दी गयी है; परंतु वे पुरुषों को शिक्षा नहीं दे सकती हैं। इनमें से अधिकांश कलीसियाओं में महिलाएँ कलीसिया की सभाओं में प्रार्थना करती और गवाही देती हैं। ये कलीसियाएँ महिला मिशनरियों को नयी कलीसियाओं में पुरुषों को शिक्षा देने और उनमें प्रचार करने की अनुमति देती हैं। के

   अन्य मसीही बाइबल के इन्हीं पदों की अलग व्याख्या करते हैं। इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पौलुस ने कुरिंथियों को लिखे गये अपने पहले पत्र में ही एक ही समय में दोनों बातें कही हैं: महिलाओं को चुप रहना चाहिये और आराधना में प्रार्थना व भविष्यद्वाणी करते समय अपने सिर ढंकना चाहिये (1कुरिंथियों 14:34-35 और 1कुरिंधियों 11:5)। अतः ये मसीही मानते हैं कि 1कुरिंथियों 14:34-35 का तात्पर्य "पूर्णतया चुप रहना नहीं हो सकता है; वरन् इसका तात्पर्य कलीसियाई आराधना के दौरान "विघ्न उत्पन्न करना" या "ऊँची आवाज में बोलना" होना चाहिये।
   संभवतया पौलुस के दिनों में आराधना के बीच महिलाएँ प्रश्न पूछती थीं अथवा अपने पति के अधिकार के लिये आवाज उठाती थीं।

   इसी प्रकार दूसरे समूह के मसीही विश्वास करते हैं कि पौलुस ने 1तीमुथियुस 2:11-15 में तीमुथियुस को बताया कि अशिक्षित महिलाओं को पुरुषों से अधिकार नहीं छीनना चाहिये वरन् उनके अधीन रहकर सीखना चाहिये। ये मानते हैं कि कलीसिया एक ऐसी महिला को अधिकार देने का निर्णय ले सकती है जो स्वयं शिक्षित और उत्तम शिक्षिका हो। पुराने नियम में न्यायियों की पुस्तक में दबोरा भविष्यद्वक्तिन एक उदाहरण है, जिसने परमेश्वर की इच्छानुसार यहूदियों की अगुवाई की (न्यायियों 4:4) |

   तीसरे समूह के मसीही मानते हैं कि पौलुस के ये वचन सिर्फ तीमुथियुस और पहली सदी के कुरिंथियों व इफिसियों की कलीसियाओं के लिये थे। इन मसीहियों का विश्वास है कि पौलुस ने यह कभी नहीं चाहा कि उसके नियम आज की सभी बिल्कुल भिन्न सभ्यता व संस्कृति की कलीसियाओं में प्रयुक्त किये जायें। ये पौलुस का उदाहरण देकर कहते हैं कि उसने एक दास को उसके मालिक के पास वापस भेजा। लेकिन उसने निश्चित् रुप से दासत्व को स्वीकृति नहीं दी। इसलिये उसने फिलेमोन को सूचित किया कि उसे अपने दास को आजाद कर देना चाहिये (फिलेमोन 1:17-21)। पौलुस ने आज्ञा दी है कि "मसीह के भय से एक-दूसरे के अधीन रहो": ऐसा केवल महिलाओं को ही नहीं, वरन् पुरुषों को भी करना चाहिये (इफिसियों 5:21)। ये मसीही इस बात की ओर संकेत करते हैं कि यीशु ने सभ्यताओं की दीवार को तोड़कर सबको आज़ाद कर दिया है। अगर संस्था विशेष ने अपनी महिलाओं को आज़ादी दे रखी है, तो अविश्वासियों को महिलाओं के नेतृत्व करने पर परेशानी या अड़चन नहीं होगी। इसलिये ये मसीही मानते हैं कि कलीसिया को अपनी महिलाओं के लिये नेतृत्वकारी पद प्रदान करने चाहिये।

   यह विषय केवल दो या तीन पदों पर ध्यान केंद्रित करने से पर्याप्त स्पष्ट नहीं होता है। हमारा निर्णय चाहे जो भी हो, हमारा अपने रीति-रिवाज के अनुसार चलना, हमें हमारे उन भाई-बहनों से अलग नहीं करना चाहिये; जो भिन्न रीति-रिवाजों को मानते हैं। "अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो" (गलतियों 3:28)।


टिप्पणियाँ

1. नया नियम मौलिक तौर पर यूनानी भाषा में लिखा गया था।
2. 1 कुरिंथियों 14:34-35 की विकल्प व्यारव्या है कि यह खुद कुरिंथियों ने उद्धरित किया है। पौलुस ने कुरिंथियों को लिखी अपनी पहली पत्री में कई स्थलों पर कुरिंथियों के ही विचारों को उद्धारित किया है और तब उनका खंडन किया है ([1कुरिंथियों 1:12:34; 6:12-13:7:18:1:10:23)। इस व्याख्या के अनुसार 
3. 1 कुरिंथियों 14:34- 35 कुरिंथियों का ही एक वक्तव्य होगा जो यहूदी कलीसिया में पाये जाने वाले सामान्य नियमों का उल्लेख