प्रत्येक विषय का कारण - Hindi Bible Study
क्योंकि उसी की और से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिए सब कुछ है। उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे: आमीन। रोमियों 11:36
यहोवा ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिए बनाई हैं, नीतिवचन 16:4
यह सब कुछ परमेश्वर के लिए है।
सारी सृष्टि का परम उद्देश्य परमेश्वर की महिमा को प्रकट करना है। प्रत्येक वस्तु जो इस पृथ्वी पर है सबके होने का यही कारण है, आपका भी। परमेश्वर ने सब कुछ अपनी महिमा के लिए बनाया है। परमेश्वर की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता।
परमेश्वर की महिमा क्या है? वह ही परमेश्वर हैं। यह उनके स्वभाव का सत्य, उनके महत्व का भार, उनके वैभव की शोभा, उनके सामर्थ का प्रदर्शन और उनकी उपस्थिति का वातावरण है। परमेश्वर की महिमा, उनकी भलाई, और उनकी अन्य अन्तर्भूत अनन्त विशेषताओं की अभिव्यक्ति है।
परमेश्वर की महिमा कहाँ है? जरा अपने चारों ओर देखिए। परमेश्वर द्वारा सृष्टित प्रत्येक वस्तु किसी न किसी रूप में उनकी महिमा प्रकट करती है। उसे हम सब जगह में देखते हैं-जीवन के छोटे से छोटे पदार्थ से लेकर विशाल आकाश गंगा तक में, सूर्यास्त और तारागण से आँधी और ऋतुओं तक में। सृष्टि ही सृष्टिकर्ता की महिमा प्रकट करती है। प्रकृति में हम सीखते हैं कि परमेश्वर सामर्थी है, उन्हें विविधता पसन्द है, सुन्दरता पसन्द है, वे व्यवस्थित, बुद्धिमान और सृजनशील हैं। बाइबल कहती है, 'आकाश परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है।"
इतिहास में परमेश्वर ने अपनी महिमा लोगों पर विभिन्न रूप से प्रकट की है। परमेश्वर ने सबसे पहले, अदन की वाटिका में इसे प्रकट किया, फिर मूसा को, उसके पश्चात निवास स्थान और मंदिर में, उसके बाद यीशु के द्वारा और अब चर्च के द्वारा इसे प्रकट कर रहे हैं। परमेश्वर की महिमा को भस्म करने वाली आग, बादल, गर्जन, धुआँ एवं आलौकिक ज्योति के रूप में भी दर्शाया गया है। स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा ही ज्योति प्रदान करती है। बाइबल कहती है, “उस नगर में सूर्य और चाँद के उजियाले की आवश्यकता नहीं, क्योंकि परमेश्वर के तेज से उसमें उजियाला हो रहा है।"
परमेश्वर की महिमा सर्वोत्तम रूप से मसीह यीशु में दिखाई देती है। वे, जगत की ज्योति होने के कारण परमेश्वर के स्वभाव को प्रकाशित करते हैं। यीशु ही के कारण हम अन्धकार में नहीं हैं और परमेश्वर को भी यही पसन्द है। बाइबल कहती है, “वह उसकी महिमा का प्रकाश... है।” यीशु धरती पर आए ताकि हम परमेश्वर की महिमा को पूरी तरह से समझ सकें। “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।"
परमेश्वर में स्वाभाविक महिमा इसलिए है, क्योंकि वे परमेश्वर है। यह उनका स्वभाव है। जिस प्रकार हम सूर्य को और अधिक प्रकाशमय नहीं कर सकते, उसी प्रकार हम परमेश्वर की महिमा में भी कुछ नहीं जोड़ सकते हैं। हमें ये आदेश दिया गया है कि हम उनकी महिमा को पहचाने, उसका सम्मान करें, उसका वर्णन करें, उसकी स्तुति करें, उसे प्रदर्शित करें और उसी के लिए जीयें। क्यों? क्योंकि परमेश्वर महिमा के योग्य हैं! हम उसके अनुग्रह के एहसानमंद है इसलिए, हमारे द्वारा जितना सम्भव हो, हम उतना उन्हें आदर दें। चूंकि परमेश्वर ने सब कुछ बनाया है अतः वह सम्पूर्ण महिमा के योग्य हैं। बाइबल बताती है, “हे हमारे प्रभु और परमेश्वर, तू ही महिमा, आदर और सामर्थ्य के योग्य है क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएँ सृजी और वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गईं।"
सम्पूर्ण सृष्टि में केवल दो ही रचनाएँ उन्हें महिमा देने में असफल रही हैं: पतित स्वर्गदूत (शैतान के दूत) और हम ( मानव-जाति)। सारे पापों की जड़ यही है: परमेश्वर को महिमा देने में असफल होना। इसका स्पष्ट अर्थ है कि परमेश्वर से अधिक किसी दूसरे से प्रेम करना। परमेश्वर को महिमा न देने का अर्थ है- अहंकारपूर्ण विरोध, यह वही पाप है जो लूसीफर के पतन का कारण था और हमारा भी किसी न किसी रूप में हम सिर्फ अपनी महिमा के लिए ही जीते हैं, परमेश्वर की महिमा के लिए नहीं। बाइबल कहती है, “इसलिए कि सबने पाप किया हैं और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।"
हम में से किसी ने भी परमेश्वर को अपने जीवन से वो सम्पूर्ण महिमा नहीं दी जो उन्हें हमारे जीवन से मिलनी चाहिए। यह हमारी सबसे बड़ी गलती और सबसे बड़ा पाप है। दूसरी ओर, परमेश्वर की महिमा के लिए जीवन व्यतीत करना हमारे जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है जिसे हम अपने जीवन से प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्वर कहते हैं, "हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैंने अपनी महिमा के लिए सृजा, जिसको मैंने रचा और बनाया है।" 10 अतः यह अवश्य है कि परमेश्वर की महिमा करना हमारे जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।
मैं कैसे परमेश्वर को महिमा दे सकता हूँ?
यीशु ने परमेश्वर पिता से कहा था, “जो कार्य तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।" " यीशु ने पृथ्वी पर परमेश्वर के उद्देश्य की पूर्ति करके उन्हें सम्मानित किया। ठीक इसी रीति से हमें भी परमेश्वर को सम्मान देना है। सृष्टि में जब भी कोई तत्व अपने उद्देश्य की पूर्ति करता है तो उससे परमेश्वर की महिमा होती है। पक्षी अपने उड़ने, चहचहाने, घोंसला बनाने और पक्षियों के लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के द्वारा परमेश्वर को महिमा देते हैं। बल्कि एक नन्हीं सी चींटी भी अपनी सृष्टि के उद्देश्य की पूर्ति के द्वारा परमेश्वर को महिमा देती है। परमेश्वर ने चींटियों को चीटियाँ ही बने रहने के लिए बनाया है और आपको आप। सन्त इरान्युस ने कहा था, “मनुष्य पूरी तरह से जीवित है यही परमेश्वर की महिमा है!"
परमेश्वर की महिमा लाने के कई तरीके हैं। मगर उन्हें परमेश्वर के उन पाँच उद्देश्यों में संक्षिप्त किया जा सकता है जो आपके जीवन के लिए है। शेष पुस्तक में हम इन विषयों पर विस्तार-पूर्वक विचार करेंगे परन्तु पहले एक संक्षिप्त विवरण:
उनकी आराधना करने के द्वारा हम उन्हें महिमा देते हैं
आराधना परमेश्वर के प्रति हमारा प्रथम दायित्व है। हम परमेश्वर की आराधना उनका आनन्द लेने के द्वारा करते हैं, सी. एस. लुईस ने कहा है, "उनके महिमा के आदेश के द्वारा परमेश्वर हमें आमन्त्रित करते हैं। कि हम उनका आनन्द लें।" परमेश्वर चाहते हैं कि हमारी आराधना, प्रेम, धन्यवाद और आनन्द से प्रेरित हो, न कि कर्त्तव्य पालन से।
जॉन पाइपर ने कहा, "परमेश्वर हममें उस समय सबसे अधिक महिमान्वित होते हैं, जब हम उनमें पूर्ण रूप से संतुष्ट होते हैं।” आराधना प्रशंसा, गायन और प्रार्थना से कहीं अधिक है। आराधना, परमेश्वर का आनन्द लेने, उनसे प्रेम करने और स्वयं को उनके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपलब्ध कराने की एक जीवनशैली है। जब आप अपना जीवन परमेश्वर की महिमा के लिए उपयोग करते हैं, तो जो कुछ भी आप करते हैं, वह आराधना हो सकती है। बाइबल कहती है, “और अपने अंगों को धर्म के हथियार होने के लिए परमेश्वर को सौंपों।"
अन्य विश्वासियों को प्रेम करने के द्वारा हम परमेश्वर की महिमा करते हैं
नये जन्म के द्वारा आप परमेश्वर परिवार का भाग बन जाते हैं। मसीह के पीछे चलना सिर्फ उनमें विश्वास करना ही नहीं है; इसमें उनके साथ सम्बन्ध बनाए रखना और उनके परिवार से प्रेम करना भी सम्मिलित है। यूहन्ना ने लिखा है, “हम जानते हैं कि हम मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुँचे हैं; क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं।" पौलुस ने कहा “इसलिये, जैसा मसीह ने परमेश्वर की महिमा के लिए तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।"
यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप परमेश्वर के समान प्रेम करना सीखें, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है, और इससे उन्हें सम्मान प्राप्त होता है। यीशु ने कहा, “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ कि एक-दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक-दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।"
मसीह के समान बनने के द्वारा हम परमेश्वर की महिमा करते हैं।
एक बार जब हम परमेश्वर के परिवार में जन्म ले लेते हैं तो, वे चाहते हैं कि हमारा विकास आत्मिक परिपक्वता की ओर हो। इससे क्या तात्पर्य है? आत्मिक परिपक्वता का अर्थ है मसीह की तरह सोचना, मसीह की तरह अहसास करना और मसीह की तरह काम करना। जितना अधिक आप मसीह के सदृश होंगे उतना ही अधिक आप परमेश्वर की महिमा का कारण बनेंगे। बाइबल कहती है, "परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश करके बदलते जाते हैं।"
आपके मसीह को ग्रहण करते समय परमेश्वर ने आपको नया जीवन और नया स्वभाव प्रदान किया। अब परमेश्वर की अपेक्षा है कि पृथ्वी पर आपके शेष जीवन में आपके चरित्र को परिवर्तित करने की प्रक्रिया नियमित रूप से होती रहे। बाइबल कहती है, “और उस धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिससे परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।"
हम अपने वरदानों के द्वारा दूसरों की सेवा कर के परमेश्वर की महिमा करते हैं
परमेश्वर ने हम सभी को विशिष्ट रूप से अनेक प्रतिभा, गुण, दक्षता और योग्यता सहित बनाया है। जिस प्रकार से आपको बनाया गया है वो कोई आकस्मिक घटना नहीं है। परमेश्वर ने आपको ये प्रतिभायें आपके अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नहीं दी है।
परमेश्वर ने ये प्रतिभायें आपको दूसरे लोगों के हित के लिए उसी प्रकार प्रदान की है, जिस प्रकार अन्य लोगों को आपके हित के लिए प्रदान की है। बाइबल कहती है, “जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो, महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी का है। आमीन।"
हम अन्य लोगों को परमेश्वर के बारे में बताने के द्वारा उनको महिमा देते हैं
परमेश्वर अपने प्रेम और उद्देश्य को रहस्य नहीं रखना चाहते। वे चाहते हैं कि सत्य को जानकर हम उससे अन्य लोगों को भी परिचित करायें। यह हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि, हम अन्य लोगों का परिचय यीशु से करायें, उनके उद्देश्य को खोजने में उनकी सहायता करें और उनकी अनन्त नियति के लिए उन्हें तैयार करें। बाइबल कहती है, "क्योंकि हम जानते हैं कि जिसने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साथ अपने सामने उपस्थित करेगा।"
आप किसके लिये जियेंगे?
अपना शेष जीवन परमेश्वर की महिमा के लिये व्यतीत करने के लिए आवश्यक है कि आपकी प्राथमिकतायें, रोजमर्रा का जीवन, सम्बन्धों और शेष सभी में परिवर्तन हो। कभी-कभी सरल रास्ते के बदले में कठिन रास्ता चुनना पड़ता है। बल्कि यीशु ने भी ये संघर्ष किया था। ये जानने पर कि वे क्रूस पर चढ़ाये जाने वाले हैं वे रो पड़े। “अब मेरा जी व्याकुल है। इसलिये अब मैं क्या कहूँ? 'हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?' नहीं, क्योंकि मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ। हे पिता, अपने नाम की महिमा कर।"
यीशु एक दोराहे पर थे। क्या वे अपने उद्देश्य को पूरा करके परमेश्वर की महिमा लाएँ या लौटकर आराम देह और आत्म-केन्द्रित जीवन व्यतीत करें? यदि आपके सक्षम ऐसी स्थिति आ जाए तो आप क्या करेंगे, क्या आप अपने लक्ष्य, आराम व आनन्द की पूर्ति के लिए जियेंगे या अपना शेष जीवन परमेश्वर की महिमा के लिए ये जानते हुए जियेंगे कि उन्होंने अनन्त प्रतिफल की प्रतिज्ञा की है ? बाइबल कहती है, “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा। इस बारे में आपको अभी निर्णय करना होगा। आप किसके लिए जीवन व्यतीत करना चाहते हैं-अपने लिए या परमेश्वर के लिए? आप सोचते हुए शायद हिचकिचाए कि क्या परमेश्वर के लिए जीवन व्यतीत करने के लिए आपमें सामर्थ है। इसकी चिन्ता आप मत कीजिए। यदि आप परमेश्वर के लिए जीने का निर्णय लेते हैं तो वह आपकी जरूरतों को पूरा करेंगे। बाइबल कहती है "क्योंकि उसकी ईश्वरीय सामर्थ्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया गया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।"
परमेश्वर अभी इसी समय आपको उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आमन्त्रित कर रहे हैं, जो उन्होंने अपनी महिमा के लिए निर्धारित किया है। जीने का यही एक रास्ता है। बाकी सब कुछ वर्तमान है। वास्तविक जीवन का प्रारम्भ तो मसीह यीशु को अपना जीवन सम्पूर्ण रूप से समर्पित करने के बाद ही है। यदि आप सोचते हैं कि आपने अभी तक ऐसा नहीं किया है। तो आपने केवल मसीह यीशु को ग्रहण करना और उनमें विश्वास करना है। बाइबल वचन देती है, "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।" क्या आप परमेश्वर की इस भेंट को स्वीकार करेंगे?
पहला, विश्वास करें। विश्वास कीजिए कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं और उन्होंने आपको अपने उद्देश्य के लिए ही बनाया है। विश्वास कीजिए कि आप किसी आकस्मिक घटना का परिणाम नहीं है। विश्वास कीजिए कि आप अनन्त जीवन के लिए बनाए गए हैं। विश्वास कीजिए कि परमेश्वर ने मसीह यीशु के साथ सम्बन्ध रखने के लिए आपको चुना है, जिन्होंने क्रूस पर आपके लिए प्राण दिए। विश्वास कीजिए कि चाहे कैसी भी गलती आपने की है, परमेश्वर आपको क्षमा करना चाहते हैं।
दूसरा, ग्रहण करें। मसीह यीशु को अपने जीवन में प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करें। अपने पापों के लिए उनकी क्षमा को ग्रहण करें। परमेश्वर की आत्मा को ग्रहण करें जो आपके जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपको सामर्थ्य प्रदान करती है। बाइबल कहती है, "जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है।" आप जहाँ कहीं भी इसे पढ़ रहे हो, मैं आपको आमन्त्रित करता हूँ कि आप अपना सिर झुकाकर शांत भाव से प्रार्थना करें जो आपकी नित्यता को बदल देगी: "मसीह यीशु, मुझे आप पर विश्वास है और मैं आपको अपना प्रभु ग्रहण करता/करती हूँ।” आगे बढ़ें।
यदि आपने यह प्रार्थना पूरी लगन से, एकाग्रता से अर्थ पूर्ण रीति से की है तो: बधाई हो! परमेश्वर के परिवार में आपका स्वागत है! अब आप अपने जीवन के प्रति परमेश्वर के उद्देश्य की खोज करने एवं उसकी पूर्ति करने के लिए तैयार हैं। मेरा आग्रह है कि आप इस बात को किसी दूसरे को बतायें। आपको सहायता की आवश्यकता होगी। यदि आप सम्पर्क करना चाहे तो मुझे ई-मेल कीजिए (परिशिष्ट दो को देखिए) मैं आपको एक पुस्तिका युवर फॅस्ट स्टेप्स फार सिपिचुवल ग्रोथ (आत्मिक विकास के लिए आपका पहला कदम) भेजूँगा ।
सातवाँ दिन
अपने उद्देश्य के बारे में सोचना
विचार करने का अंशः सब कुछ उन्हीं के लिए है।
याद करने योग्य पद्यः "क्योंकि उसी की ओर से, और उसी के द्वारा, और उसकी के लिए सब कुछ है। उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे।” रोमियों 11:36
सोचने योग्य प्रश्न: मेरी दैनिक दिनचर्या में मैं परमेश्वर की महिमा के प्रति कैसे सचेत रहूँ?
दिन सातः हर बात का कारण
1. भजन संहिता 19:1
2. उत्पत्ति 3:8; निर्ग. 33:18-23; 40:33-38; 1 राजा 7:51; 8:10-13; यूहन्ना 1:14; इफिसियों 2:21-22; 2 कुरिन्थियों 4:6-7
3. निर्गमन 24:17; 40:34; भजन संहिता 29:1; यशायाह 6:3-4; 60:1; लूका 2:9
4. प्रकाशितवाक्य 21:23
5. इब्रानियों 1:3; 2 कुरिन्थियों 4:6
6. यूहन्ना 1:14
7. 1 इतिहास 16:24; भजन संहिता 29:1; 66:2; 96:7; 2 कुरिन्थियों 3:18
8. प्रकाशितवाक्य 4:11
9. रोमियों 3:23
10. यशायाह 43:7
11. यूहन्ना 17:4
12. रोमियों 6:13
13. 1 यूहन्ना 3:14
14. रोमियों 15:7
15. यूहन्ना 13:34-35
16. 2 कुरिन्थियों 3:18
17. फिलिप्पियों 1:11 साथ में यूहन्ना 15:8
18. 1 पतरस 4:10-11 साथ में 2 कुरिन्थियों 8:19
19. 2 कुरिन्थियों 4:15
20. यूहन्ना 12:27-28
21. यूहन्ना 12:25
22. 2 पतरस 1:3
23. यूहन्ना 1:12
24. यूहन्ना 3:36

0 टिप्पणियाँ