Hindi Bible Study

तुम्हारा जीवन क्या है? याकूब 4:14


हम वस्तुओं को वैसे नहीं देखते जैसे वह हैं, हम उन्हें वैसे ही देखते हैं जैसे हम हैं। अनायँस् निन

आपका अपने जीवन को देखने का तरीका ही आपके जीवन को आकार देता है।

   आप जीवन को जैसे परिभाषित करते हैं, वहीं आपके भाग्य को निर्धारित करता है। आपका नजरिया ही आपके समय बिताने, पैसे खर्च करने और आपके सम्बन्धों की अहमियत को प्रभावित करेगा।

   लोगों को समझने का एक सबसे बढ़िया तरीका है, उनसे यह प्रश्न करना, “अपने जीवन को आप कैसे देखते हैं?" आपको पता चलेगा कि इस प्रश्न के उत्तर उतने ही प्रकार के होंगे जितने प्रकार के लोग हैं। मुझे बताया गया है कि, जीवन एक सर्कस है, एक बारूदी सुरंग, एक रोलर कोस्टर, एक पहेली, एक सिम्फनी, एक यात्रा और एक नृत्य है। लोगों ने कहा कि, "जीवन एक हिन्डोले की तरह है: कभी आप ऊपर होते हैं तो कभी नीचे और कभी आप फिरकी के समान घूमते हैं" या "जीवन एक ऐसी साईकल है जिसमें दस स्पीड के गियर है जिनका उपयोग हम कभी नहीं करते।" या "जीवन ताश के पत्तों का एक खेल है: जहाँ हाथ का उपयोग ही सब कुछ है।"

   यदि मैं आपसे पूछें कि आप जीवन को कैसे देखते हैं, तो आपके मन में कौन सी छवि उभरती है? वहीं छवि आपके जीवन की उपमा है। यह ही वो जीवन का रूप है जो आपके दिमाग में जाने-अनजाने बसा हुआ है। आपके लिए यह ही जीवन है इसी प्रकार काम करता है और आप यही अपेक्षा भी करते हैं। कभी-कभी लोग अपने जीवन की उपमा अपने वस्त्रों, आभूषणों, घड़ी, बालों की सजावटों, बम्पर के स्टिकरों और टैटूओं के द्वारा प्रकट करते हैं।

   आपका अनकही छवि आपके जीवन को आपकी सोच से अधिक प्रभावित करती है। वह आपकी अपेक्षा, मूल्य, सम्बन्ध, लक्ष्य और प्राथमिकता को निर्धारित करती है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप सोचते हैं कि जीवन एक समारोह है तो जीवन में आपका प्राथमिक मूल्य आनन्द उठाना होगा। यदि आप समझते हैं कि जीवन एक दौड़ है तो आप गति को ज्यादा महत्व देंगे और हमेशा जल्दी ही दिखाई देंगे। यदि आप जीवन को एक मैराथॉन दौड़ के रूप में देखते हैं, तो आप स्थायित्व को अधिक महत्व देंगे। यदि जीवन को आप एक युद्ध या खेल के रूप में देखते हैं तो आपके लिए विजय प्राप्ति महत्वपूर्ण होगी।

   जीवन के बारे में आपका क्या विचार है? शायद आप अपने जीवन को गलत नजरिये से देख रहे हैं। परमेश्वर के उद्देश्य को जिसे पूरा करने के लिए ही उन्होंने आपको बनाया है, आपने अपने सांसारिक ज्ञान को हटा कर बाइबल में बताए गए दृष्टिकोण को अपनाना होगा। बाइबल हमें बताती है, "इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारे मन के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।"

   बाइबल हमें जीवन के तीन रूप बतलाती है, जो जीवन के बारे में परमेश्वर के विचारों को हमें सिखाते हैं: जीवन एक परीक्षा है, जीवन एक भरोसा है और जीवन एक अस्थाई कार्य है। ये विचार उद्देश्य-चालित जीवन के आधार है। इनमें से पहले दो विषयों पर हम इस अध्याय में और तीसरे पर अगले अध्याय में विचार करेंगे।

पृथ्वी पर जीवन एक परीक्षा है

   जीवन का यह रूप सम्पूर्ण बाइबल की कहानियों में दिखाई देता है। जहाँ परमेश्वर लोगों के चरित्र, विश्वास, आज्ञाकारिता, प्रेम, सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता की परीक्षा नियमित रूप से लेते रहते हैं। क्लेश, प्रलोभन, शुद्धिकरण और परीक्षा जैसे शब्द बाइबल में 200 से अधिक बार प्रयुक्त हुए हैं। परमेश्वर ने इसहाक की बलि माँगकर अब्राहम को परखा। उन्होंने राहेल को पत्नी के रूप में प्राप्त करने के लिए याकूब को समय से ज्यादा परिश्रम कराने के द्वारा परखा। 

   अदन की वाटिका में आदम और हव्वा अपनी परीक्षा में असफल रहे। परमेश्वर द्वारा परीक्षा में लिए जाने के बावजूद भी अनेक अवसरों में दाऊद असफल रहे परन्तु बाइबल में हमें कुछ ऐसे लोगों के उदाहरण भी मिलते हैं, जो परीक्षा में सफल हुए जैसे-जोसफ, रूथ, एस्तेर और दानिएल। 

   चरित्र का विकास और अभिव्यक्ति परीक्षा से ही होती है। इस प्रकार सम्पूर्ण जीवन ही एक परीक्षा है। आपका परीक्षण सदैव होता रहता है। समस्या, सफलता, संघर्ष, रोग, निराशा और यहाँ तक कि मौसम के प्रति आपकी प्रतिक्रियाओं की समीक्षा के द्वारा भी परमेश्वर लगातार आप पर नज़र बनाए रखते हैं। वे आपकी साधारण से साधारण प्रक्रिया की भी समीक्षा करते हैं। जैसे, दूसरों के लिए जब आप द्वार खोलते हैं, जब कचड़े को उठाते हैं या किसी कर्मचारी या वेटर के साथ आप व्यवहार करते हैं।

   हम यह नहीं जानते कि परमेश्वर आपको कितनी परीक्षाओं में डालेंगे, किन्तु बाइबल के आधार पर हम उनमें से कुछ के बारे में पहले से बता सकते हैं। प्रमुख परिवर्तनों, विलम्बित प्रतिज्ञाएँ, असम्भव समस्यायें, अनुत्तरित प्रार्थनाएं, अयोग्य आलोचनाएं और बल्कि बेमतलब के दुखों के द्वारा आप परखें जाएंगे। मैंने स्वयं अपने जीवन में देखा है कि परमेश्वर मेरे विश्वास का परीक्षण समस्याओं के माध्यम से करते हैं, सम्पत्ति के प्रबन्धन के माध्यम से वह मेरी आशा का परीक्षण करते हैं और लोगों के माध्यम से मेरे प्रेम का।

   एक अत्यन्त महत्वपूर्ण परीक्षण यह है कि उस समय आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है, जब आपको परमेश्वर की उपस्थिति का अहसास नहीं होता। कभी-कभी परमेश्वर जानबूझकर पीछे हट जाते हैं, और हमें उनकी उपस्थिति का आभास नहीं होता। राजा हिजक्कियाह को इसी प्रकार की परीक्षा का अनुभव हुआ था। इस सन्दर्भ में बाइबल कहती है, “तब परमेश्वर ने उसको इसलिए छोड़ दिया, कि उसको परखकर उसके मन का सारा भेद जान ले।"

   राजा हिजक्कियाह परमेश्वर की निकटतम संगति का आनन्द ले रहे थे, तभी उनके जीवन में यकायक ऐसा समय आया, जब परमेश्वर ने उनके चरित्र की परीक्षा लेने के लिए उन्हें अकेला छोड़ दिया ताकि, उसके दोष प्रकट किए जायें और उसे एक बड़े दायित्व के लिए तैयार किया जाए। जब आप यह समझ लेते हैं कि जीवन एक परीक्षा है, तब आपको यह अनुभव होता है कि आपके जीवन में कुछ भी निरर्थक नहीं है। यहाँ तक कि एक छोटी से छोटी घटना भी आपके चरित्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक दिन महत्वपूर्ण और प्रत्येक क्षण आपके चरित्र की गहराई, प्रेम-प्रदर्शन और परमेश्वर निर्भरता जैसे अनुभवों के लिए विकास का एक अवसर बन जाता है। कुछ परिक्षण तो रूचिकर लगते हैं मगर कुछ ऐसे होते हैं, जिन पर आप ध्यान तक नहीं देते। परन्तु इन सभी का अनन्तकालीन परिणाम होता है।

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   शुभ संदेश: यह है कि परमेश्वर चाहते हैं कि आप जीवन की सभी परीक्षाओं में सफल हों, इसलिए वह आपको किसी ऐसी परीक्षा में नहीं डालते जो उनके उस अनुग्रह से बड़ी हो जो उन्होंने आप पर किया है। बाइबल कहती है, “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्वर सच्चा है और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको।”

   जब भी आप किसी परीक्षा में सफल होते हैं, परमेश्वर आपको अनन्तकाल पुरस्कार देने की योजना बनाते हैं। याकूब ने कहा, “धन्य है वह मनुष्य में जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों से की है।"

पृथ्वी पर जीवन एक भरोसा है

   बाइबल में उपलब्ध यह जीवन का दूसरा दृष्टिकोण है। पृथ्वी पर हमारा समय और हमारी शक्ति, बुद्धि, अवसर, सम्बन्ध और साधन सभी परमेश्वर की ओर से वो वरदान हैं, उन्होंने हमारी देख-रेख और प्रबन्धन के लिए दिये हैं। परमेश्वर ने जो भी हमें प्रदान किया है, हम उसके प्रबन्धक हैं। प्रबन्धक पद के इस विचार की शुरुआत इस पहचान से होती है कि परमेश्वर इस पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के मालिक हैं। बाइबल कहती है, "पृथ्वी और जो कुछ उसमें है यहोवा ही का है, जगत और उसमें निवास करने वाले भी।"

   पृथ्वी पर हमारे अल्प निवास के मध्य वास्तव में कुछ भी हमारा अपना नहीं है। परमेश्वर ने उतने ही समय के लिए हमें पृथ्वी दी है, जितने समय तक हम इस पर हैं। आपके आगमन से पूर्व यह परमेश्वर की सम्पत्ति थी, एवं आपके प्रस्थान के पश्चात परमेश्वर इसे किसी और को दे देंगे। यह आपके पास सिर्फ कुछ ही समय के आनन्द के लिए है।

   जब परमेश्वर ने प्रथम मानव आदम और हव्वा को रचा था, तो उन्होंने अपनी सृष्टि की देख-रेख का दायित्व उन्हें सौंपा था और उन्हें अपनी सम्पत्ति का संरक्षक नियुक्त किया था। बाइबल कहती है, “और परमेश्वर ने उनको आशीष दी, और उनसे कहा, 'फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।"

   पृथ्वी पर मानव को परमेश्वर ने पहला कार्य अपनी "सम्पत्ति" का प्रबन्धन और उसकी देख-रेख करना दिया था। इस दायित्व को कभी निरस्त नहीं किया गया। यह आज भी हमारे उद्देश्य का एक भाग है। प्रत्येक वस्तु, जिसका हम आनन्द लेते हैं उसे परमेश्वर की धरोहर के रूप में रखने की आवश्यकता है। बाइबल कहती है, “और तेरे पास क्या है जो तूने (दूसरे से) नहीं पाया? और जब कि तूने (दूसरे से) पाया है तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है कि मानों नहीं पाया?"

   कुछ साल पहले एक दम्पत्ति ने हवाई द्वीप में अपना सुन्दर घर हमें छुट्टी बिताने के लिये दिया। हमारे लिए यह एक ऐसा अनुभव था, जो हमारी सामर्थ के बाहर था, और हमने उसका भरपूर आनन्द लिया। उस दम्पत्ति ने हमसे कहा था, "इस घर को अपना घर समझकर उपयोग करना" हमने वैसा ही किया। हम स्वीमिंग पूल में खूब तैरे, उनके रैफ्रीजरेटर में से खाना निकालकर खाया, उनके पात्रों, तौलिए और बिस्तरों आदि का खूब आनन्द उठाया। मगर साथ ही साथ हम यह जानते थे कि ये हमारा नहीं है। इसलिए हमने प्रत्येक वस्तु का ध्यान रखा। वह घर हमारा न होने पर भी हमने उसके उपयोग का आनन्द लिया।

   हमारी संस्कृति कहती है कि "यदि आप उनके मालिक नहीं है, तो आप उनकी देख-रेख नहीं करते हैं।" मगर मसीही उच्च स्तर के द्वारा जीते हैं: "क्योंकि यह परमेश्वर का है, अतः जितना सम्भव हो, मुझे इसकी देख-रेख उतनी ही भली प्रकार से करनी है।" बाइबल कहती है, "फिर यहाँ भण्डारी में यह बात देखी जाती है कि वह विश्वास-योग्य हो।” यीशु ने जीवन को एक भरोसे के रूप में प्रस्तुत किया और इस सन्दर्भ में अनेक दृष्टांतों के माध्यम से परमेश्वर के प्रति उत्तरदायित्व को बताया। तोड़ों के दृष्टान्त में एक व्यापारी ने यात्रा पर जाते समय अपना धन सेवकों की देख-रेख में सौंप दिया। लौटने पर उसने सभी सेवकों के उत्तरदायित्व का मूल्यांकन किया और उसके अनुसार उन्हें पुरस्कृत भी किया। मालिक ने सेवक से कहा, “धन्य, हे अच्छे और विश्वास-योग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।"

   जीवन के अन्त में पृथ्वी पर आपके दायित्व का मूल्यांकन होगा कि आपने परमेश्वर द्वारा सौंपे गये उत्तरदायित्व को कैसे सम्भाला। इसका अर्थ है कि सब कुछ जो आप करते हैं, यहाँ तक कि दैनिक गतिविधियाँ, उनका अनन्त परिणाम है। यदि आप प्रत्येक वस्तु का उपयोग एक भरोसे के साथ करते हैं तो, अनन्तकाल में परमेश्वर ने तीन पुरस्कारों की प्रतिज्ञा की है। पहला, आपको परमेश्वर की प्रतिज्ञा दी जाएगीः वे कहेंगे, "अच्छा काम किया, अति उत्तम!" दूसरा, आपकी पदोन्नति के साथ अनन्त जीवन में आपका दायित्व बढ़ा दिया जाएगा, “मैं तुम्हें अनेक दायित्व सौंपूँगा। "तीसरा, समारोह के साथ आपका सम्मान होगा, "अपने मालिक के आनन्द में सहभागी हो।"

   अधिकाँश लोग इस बात को नहीं समझ पाते हैं कि धन परमेश्वर की ओर से परीक्षा और भरोसा दोनों हैं। परमेश्वर धन का उपयोग हमें ये सिखाने के लिए करते हैं कि हम उन पर भरोसा करें, परन्तु अनेक लोग के लिए धन सबसे बड़ी परीक्षा है। परमेश्वर यह देखते हैं कि हम कैसे धन का उपयोग करते हैं और हम इस परीक्षा में कितने विश्वास- योग्य है। बाइबल कहती है, “इसलिए जब तुम अधर्म के धन में सच्चे न ठहरे, तो सच्चा धन तुम्हें कौन सौंपेगा?"

   यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सत्य है। परमेश्वर कहते हैं कि धन के उपयोग और आत्मिक जीवन में सीधा सम्बन्ध है। मैं कैसे धन ("संसारिक दौलत") को सम्भालता हूँ वह निर्धारित करता है कि परमेश्वर हम पर आत्मिक आशीष ("असली धन") को लेकर कितना विश्वास कर सकते हैं। मैं आपसे यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ: क्या आपके धन सम्भालने का तरीका परमेश्वर को आपके जीवन में और ज्यादा करने से रोकता है? क्या आप आत्मिक आशीष पर भरोसा करने के लायक है?

   यीशु ने कहा है, “परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा। इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा।" जीवन एक परीक्षा और एक भरोसा है। परमेश्वर जितना अधिक आपको देते हैं उतना ही अधिक वह आपसे उत्तरदायी होने की अपेक्षा भी करते हैं।

अपने उद्देश्य के बारे में सोचना

विचार करने का अंश: जीवन एक परीक्षा और एक भरोसा है।

याद करने योग्य पद्यः "जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।" लूका 16:10 अ

सोचने योग्य प्रश्न: हाल ही में मेरे साथ ऐसा क्या घटा, जिसे मैं परमेश्वर की ओर से मेरा परीक्षण कहूँ? वह महान कार्य क्या है जो परमेश्वर ने मुझे सौंपे हैं?


पाँचः परमेश्वर की दृष्टि से जीवन को देखना

1. रोमियों 12:2 (TEV)

2.‌ 2 इतिहास 32:31 (NLT)

3. 1 कुरिन्थियों 10:13 (TEV)

4. याकूब 1:12 (GWT)

5. भजन संहिता 24:1 (TEV)

6. उत्पत्ति 1:28 (TEV)

7. 1 कुरिन्थियों 4:7 ब (NLT) 

8. 1 कुरिन्थियों 4:2 (NCV)

9. मत्ती 25:14-29

10. मत्ती 25:21 (NIV)

11. लूका 16:11 (NET)

12. लूका 12:48 ब (NIV)