परीक्षा में जीतना - Pass the Exam Bible


परीक्षा में जीतना

   जवानी की अभिलाषाओं से भाग, और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उनके साथ धर्म, विश्वास, प्रेम और मेल-मिलाप का पीछा कर। 2 तीमुथियुस 2:22

   तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको॥ 1 कुरिन्थियों 10:13

हर समस्या से निकलने का एक रास्ता है।

   हो सकता है कि, कभी-कभी आपको यह महसूस हो कि कोई संकट या परीक्षा आपके सहने से बाहर है, यह शैतान का एक झूठ है। परमेश्वर ने वादा किया है कि वह आप पर आपकी आन्तरिक शक्ति से अधिक कभी भी कोई ऐसा बोझ नहीं डालेंगे जिसे आप सम्भाल न सकें। वे आपको कभी भी कोई भी ऐसे संकट या परीक्षा में नहीं डालेंगे जिससे आप निकल न सकें। फिर भी, परीक्षा में जीतने के लिए आपको बाइबल में बताए गए चार तरीकों का प्रयोग कर स्वयं भी अपना कार्य करना है।

अपना ध्यान किसी और काम में केन्द्रित करें

   आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बाइबल में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि, “परीक्षा से लड़ो।" हमसे कहा गया है कि, “शैतान का सामना करो, मगर यह बहुत अलग बात है. इसकी व्याख्या मैं बाद में करूँगा। बजाय इसके, हमें अपना ध्यान दूसरी बातों पर केन्द्रित करने की सलाह दी गई है क्योंकि किसी विचार का विरोध करने से कोई फायदा नहीं होता। यह हमारे ध्यान को गलत बातों की ओर ले जाता है और उसके सम्मोहन को और मजबूत करता है। मैं इसे बताता हूँ:

   जितना आप किसी विचार को अपने मन में आने से रोकने की कोशिश करते हैं, उतना ही वह आपकी स्मृति में गहरा स्थान बनाता है। असल में आप उसका प्रतिरोध करके उसे और बढ़ाते हैं। विशेषकर परीक्षा के सम्बन्ध में ये एकदम सत्य है। आप परीक्षा की 
   भावना लड़कर उसको नहीं हरा सकते। जितना अधिक आप भावनाओं से संघर्ष करेंगे, उतना अधिक वह आपको नियंत्रित और नष्ट करेगी। जितना अधिक आप उसके बारे में सोचते हैं, उतना ही अधिक आप उसे दृढ़ करते हैं।
  

  पाप के विषय में युद्ध की जय या पराजय आपके मन में होती है। जो कुछ आपके ध्यान को आकर्षण करता है वही आपको पकड़ता है।

   
   चूंकि परीक्षा हमेशा एक विचार से शुरु होती है अतः उसे निष्क्रिय करने का सबसे आसान तरीका है अपना ध्यान किसी दूसरी बात में लगा दें। विचार के साथ न लड़ें, केवल अपने मन को इस विचार से हटाकर किसी और दूसरी बात में लगा दें। परीक्षा को हराने का यही पहला कदम है।

   पाप के युद्ध में जीत या हार आपके दिमाग में होती है। जो भी आपका ध्यान आकर्षित कर लेगा वही जीतेगा। इसलिए अय्यूब ने कहा, "अपनी आँखों के साथ वाचा बाँधी है, फिर मैं किसी कुँवारी पर कैसे आँख लगाऊँ?" और दाऊद ने प्रार्थना की, "मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला)"

   क्या कभी ऐसा हुआ है कि टेलीविजन पर किसी खाने की चीज का विज्ञापन देखकर एकाएक आपको भूख लग आई हो? क्या कभी ऐसा हुआ कि किसी को खाँसते हुए सुनकर आपको भी गला साफ करने की इच्छा हुई हो? क्या किसी को जम्हाई लेते देखकर आपका मन भी जम्हाई लेने का हुआ है? (हो सकता है कि, अभी इसे पढ़ते समय भी आप जम्हाई ले रहे हों) यही सुझाव की शक्ति है। जिस बात पर हमारा ध्यान केन्द्रित होता है. स्वाभाविक रूप से हम उसी की ओर आकर्षित होते हैं। जितना अधिक आप किसी विषय पर सोचते हैं, उतना अधिक वह आपको पकड़ता है।

   इसी कारण "मुझे ज्यादा खाना खाना छोड़ना होगा, या धूम्रपान छोड़ना होगा, या कुविचार त्यागने होंगे "दोहराते रहना आत्म-पराजय की नीति है। इस प्रकार आपका ध्यान उन बातों पर केन्द्रित रहता है, जिन्हें आप नहीं चाहते। यह कुछ इस प्रकार कहना है, "मैं वह सब कभी नहीं करने वाला जिसे मेरी माँ ने किया।" आप इन सब बातों को दोहराने के लिए "स्वयं को तैयार कर रहे हैं।

   अधिकतर नियंत्रित आहार काम नहीं करते क्योंकि हर समय वे आपको खाने की याद दिलाते रहते हैं, और आपको भूख लगेगी। इसी प्रकार, एक वक्ता जो बार-बार दोहराती रहती है "घबराना मत, घबराना मत" वो खुद घबराने लगती है। जबकि इसके बावजूद उसे अपनी भावनाओं से हटकर दूसरी जगह ध्यान लगाना चाहिए- परमेश्वर में, अपने भाषण की महत्वपूर्णता पर या फिर सुनने वालों की जरूरत में।

   किसी भी परीक्षा की शुरुआत उसकी ओर हमारे ध्यान आकर्षण से होती है। जो बात या जो वस्तु आपका ध्यान आकर्षित करती है वो ही आपकी भावनाओं को भड़काती है। तब आपकी भावनाएँ आपके व्यवहार को सक्रिय करती हैं और फिर आप अपनी अनुभूति के अनुसार कार्य करने लगते हैं। जितना अधिक आप किसी बात के लिये सोचेंगे कि. "मैं यह नहीं करना चाहता" उतना ही अधिक आप उसे करने लगेंगे।

   परीक्षा से लड़ाई करने से कहीं ज्यादा बेहतर है उसे अनदेखा करना। अतः भविष्य में जब भी कोई समस्या या परीक्षा आए तो उसे नजरअंदाज कर दें क्योंकि ऐसा करके आप उस समस्या को या परीक्षा को कमजोर करते हैं।

   कभी-कभी तो इसका अर्थ होता है कि किसी परीक्षा की परिस्थिति से सच में उठ कर चले जाना। या एक बार में ही भाग जाना उचित है। उठिए और अपना टेलीविजन सैट ऑफ कर दीजिए। गप्पे मारने वाले समूह के ग्रुप से दूर रहिये। फिल्म को बीच में ही छोड़कर थियेटर के बाहर आ जाइए। इससे पहले कि मधुमक्खी काटे उससे बचकर रहें। कहने का अर्थ यह है कि ध्यान कहीं और लगाने के लिए जो भी सम्भव हो करें।

   आत्मिक दृष्टिकोण से आपका मन सबसे अधिक नाजुक अंग है और इसे सबसे जल्दी चोट लगती है। बुरे विचारों से बचने के लिए अपना मन परमेश्वर के वचन और अन्य अच्छी बातों में लगाइए। आप गन्दे विचारों को अच्छे विचारों के द्वारा हरा सकते हैं। यह ही बदलाव का सिद्धान्त है। आप अच्छाई से बुराई को जीतें। जब आपका मन कहीं और व्यस्त होगा तो शैतान उसे अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता। इसीलिए अपने मन को केन्द्रित रखने के बारे में बाइबल हमें बार-बार बताती है, "महायाजक यीशु पर ध्यान करो।" "यीशु मसीह को स्मरण रख।"

   “इसलिए हे भाइयों, जो-जो बातें सत्य हैं, और जो-जो बातें आदरणीय हैं, और जो-जो बातें उचित हैं, और जो-जो बातें पवित्र हैं, और जो-जो बातें सुहावनी हैं, और जो-जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बाते हैं उन पर ध्यान लगाया करो।"

   यदि आप वास्तव में अपनी समस्याओं को हराना चाहते हैं, या अपनी परीक्षा में जीतना चाहते हैं तो अपने मन को सम्भालें एवं अपने देखने सुनने पर ध्यान दें। संसार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति ने चेतावनी देते हुए कहा, "सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।" अपने मन में व्यर्थ के विचारों को स्थान न दें। विचारों का चुनाव ध्यान पूर्वक कीजिए। पौलुस के आदर्श का पालन कीजिए: "हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।" इसको अभ्यास करने में पूरा जीवन लग जाता है परन्तु पवित्र आत्मा की सहायता से आप अपने सोचने के तरीके को बदल सकते हैं।

अपने संघर्ष को अपने आत्मिक मित्र या सहायक समूह को बतायें

   आपने अपनी परेशानी दुनिया को नहीं दिखानी है, परन्तु आपके पास एक ऐसा दोस्त जरूर होना चाहिए जिसके साथ आप अपनी समस्याओं को ईमानदारी से बांट सकें। बाइबल कहती है, “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है। क्योंकि यदि उनमें से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठाने वाला न हो।" 

   मैं इसे और स्पष्ट कर दूँ: यदि आप अपनी किसी बुरी आदत, व्यसन या प्रलोभन के साथ संघर्ष करने में निरन्तर पराजित होते हैं और असफल प्रयास की दोष-भावना से पीड़ित हैं, तो आप खुद इससे बाहर नहीं आ सकेंगे। आपको दूसरे की मदद की जरूरत है। कुछ परीक्षाएँ केवल उस एक साथी की मदद के द्वारा जीती जा सकती हैं जो आपके लिए प्रार्थना करता है, आपको प्रोत्साहित करता और आपको उत्तरदायी ठहराता है।

   आपके विकास और स्वतंत्रता के लिए परमेश्वर की योजना में दूसरे मसीही भी सम्मिलित हैं। विश्वसनीय ईमानदार संगति उन पापों के विरुद्ध, जो झुकने को तैयार नहीं हैं, आपके अकेले संघर्ष में विषनाशक का काम करती है। परमेश्वर कहते हैं कि आपकी समस्या का यही एक समाधान है, "इसलिए तुम आपस में एक-दूसरे के सामने अपने-अपने पापों को मान लो, और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ: जिसकी वजह से आप बार-बार हारते हैं बाहर आना चाहते हैं।"

   क्या आप सचमुच उस भारी समस्या से, जिसकी वजह से आप बार-बार हारते हैं बाहर आना चाहते हैं? परमेश्वर का समाधान अत्यन्त सरल है: उसे रोकें या दबाएँ नहीं! स्वीकार करें। उसे छिपाएँ नहीं; प्रकट करें। अपनी भावनाओं को प्रकट करना उससे बाहर आने का आरम्भ है।

   चोट छिपाने से केवल बढ़ती है। समस्याएँ अन्धकार में विकसित और बड़ी होती हैं, किन्तु सत्य के प्रकाश में आते ही वे सिकुड़ जाती हैं। आप केवल उतने ही बीमार हैं जितने आपके गुप्त रहस्य हैं। इसलिए अपना मुखौटा उतार कर, सम्पूर्ण होने का दिखावा छोड़ कर स्वतंत्रता में चलें।

Vishwasi Tv में आपका स्वागत है

   सत्य तो यह है कि जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, वह पहले ही आपके जीवन में नियंत्रण से बाहर है।


   सैडलबैक चर्च में हमने इस सिद्धांत की अद्भुत सामर्थ्य को अपने बनाए हुए एक प्रोग्राम सेलिब्रेट रिकवरी के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में निराश, नशे और जिद्दी समस्याओं की पकड़ को तोड़ते हुए देखा है। यह बाइबल पर आधारित आठ-चरणीय रिकवरी प्रक्रिया है, जो यीशु के स्वर्गीय परम आनन्द पर आधारित और छोटे सहायक समूह पर निर्मित की गई है। पिछले दस वर्षों में 5000 से अधिक जीवन सब प्रकार की बुरी आदतों, दुखों और नशों से मुक्त हो चुके हैं। आज अनेक कलीसियायें इस कार्यक्रम का उपयोग कर रही हैं। मैं तो कहूँगा कि आप अपनी कलीसिया में भी इस कार्यक्रम का उपयोग अवश्य करें।

   शैतान चाहता है कि आप अपने पाप और समस्या को गुप्त रखें और इसीलिए वो आपको यह अहसास कराता रहता है कि आपकी स्थिति सबसे अलग है। जबकि सत्य तो यह है कि हम सभी एक ही नाव में सवार हैं। हम सब एक ही प्रकार की समस्या के साथ संघर्ष कर रहे हैं और "सबने पाप किया है।" और लाखों लोग भी ऐसा ही महसूस कर चुके हैं जैसा आप महसूस कर रहे हैं और वे भी ठीक इसी प्रकार के संघर्ष से गुजरे हैं जिससे आप गुजर रहे हैं।

   हमारा अपनी गलतियों या कमियों को छुपाने का कारण होता है- अहंकार। हम चाहते हैं कि दूसरे लोग यह समझें कि हमारे जीवन में सब कुछ ठीक और नियंत्रित है। जबकि सत्य तो यह है कि वो बात जिसके बारे में आप बात ही नहीं कर सकते हैं, वे आपके नियंत्रण में नहीं है: आपकी आर्थिक स्थिति, वैवाहिक जीवन, बच्चे, विचार, मर्दानगी और गुप्त आदतें आदि समस्याएँ। यदि आप स्वयं ही इन्हें सुधार सकते तो अब तक सुधार चुके होते। परन्तु आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए हमारी इच्छा शक्ति और व्यक्तिगत संकल्प काफी नहीं है।

   कुछ समस्यायें इस तरह हमारी आदतों में समा जाती कि उन्हें स्वयं दूर करना हमारे लिए सम्भव नहीं होता। इसके लिए आपको एक छोटे समूह की या एक ऐसे सहयोगी की आवश्यकता होती है, जो आपको प्रोत्साहित करे, सहयोग दे, आपके लिए प्रार्थना करें, बिना शर्त आपसे प्रेम करें और आपको उत्तरदायी ठहरा सके। बाद में आप भी उनके लिए वैसे ही कर सकते हैं।

   जब कभी कोई मुझ पर भरोसा करते हुए मुझसे कहता है कि, “अब तक यह बात मैंने किसी से भी नहीं कही है" तो मैं उस व्यक्ति के विषय में यह जानते हुए उत्तेजित हो उठता हूँ कि उन्हें कितनी शान्ति और स्वतंत्रता का अनुभव होने वाला है। उनके दबाव का ढक्कन खुलने वाला है और वह पहली बार अपने भविष्य के लिए आशा की किरण देखेंगे। ऐसा तभी होता है जब हम अपने आत्मिक मित्र से अपने संघर्षो की चर्चा करते हुए परमेश्वर के आदेश का पालन करते हैं।

   मैं आपसे एक कठिन प्रश्न पूछना चाहता हूँ: आप जो दिखावा कर रहे हैं, क्या वह आपके जीवन की समस्या नहीं है? इसके बारे में बात करने से आप क्यों डरते हैं? इसे आप स्वयं हल नहीं कर पाएँगे। जी हाँ, दूसरों के सामने अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना ही नम्रता है। नम्रता की कमी ही आपके बेहतर बनने में बाधक है। बाइबल कहती हैं, “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। इसलिए परमेश्वर के अधीन हो जाओ।"

शैतान का सामना करें

   स्वयं को विनम्र करने के बाद और परमेश्वर को समर्पित होने के पश्चात हमसे शैतान को ललकारने के लिये कहा गया है। याकूब 4:7 के शेष भाग में कहा गया है, “शैतान का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।" हमें उसके आक्रमण के आगे झुकना नहीं है। हमें उससे लड़ना है।

   नए नियम में मसीही जीवन को बार-बार दुष्ट शक्तियों के विरुद्ध एक आत्मिक युद्ध के रूप में दिखाया गया है। मसीही विश्वासी की तुलना अक्सर शत्रु के क्षेत्र में तैनात सैनिक से की गई है।

   हम शैतान का सामना किस प्रकार कर सकते हैं? पौलुस हमें बताते हैं, “और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार, जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। " पहला कदम है कि परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करना। जब तक आप मसीह को हाँ नहीं कहेंगे, तब तक आप शैतान को न नहीं कह सकते। मसीह के बिना हम शैतान के सामने सुरक्षित नहीं हैं, परन्तु उद्धार के टोप के द्वारा परमेश्वर हमारा मन सुरक्षित रखते हैं। याद रखिए: यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो शैतान आपको कुछ करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। वह मात्र सुझाव दे सकता है।

   शैतान से वाद-विवाद करने का प्रयास कभी मत कीजिए। इस विषय में वह आपसे बेहतर है और उसके पास हजारों वर्ष का अनुभव है।

   दूसरा, आप परमेश्वर के वचन का उपयोग शैतान पर हथियार के रूप में करें। जंगल में जब शैतान उनकी परीक्षा ले रहा था तब यीशु ने इसका उदाहरण प्रस्तुत किया था। जितनी बार शैतान ने उन्हें परीक्षा में फँसाने का प्रयास किया, यीशु ने उसका सामना वचन का प्रयोग करके किया। 
   उन्होंने शैतान के साथ कोई वाद-विवाद नहीं किया। व्यक्तिगत आवश्यकता की पूर्ति के लिए जब उनसे अपनी सामर्थ का प्रयोग करने को उकसाया गया तो उन्होंने यह नहीं कहा, “मुझे भूख नहीं लगी है।” उन्होंने मात्र पवित्र वचन को दोहराया। हमें भी यही करना चाहिए। परमेश्वर के वचन में सामर्थ्य है और शैतान उससे डरता है।
   
   शैतान से वाद-विवाद करने का प्रयास कभी मत कीजिए। वह वाद-विवाद में आपसे बेहतर है और उसके पास हजारों वर्ष का अनुभव है। आप शैतान को तर्क या अपने विचार से धोखा नहीं दे सकते। परन्तु आप परमेश्वर के सत्य को हथियार रूप में प्रयोग कर उसे हिला सकते हैं। इसलिए परीक्षा के समय जय पाने के लिए परमेश्वर के वचन को याद करना अवश्य है। जब भी आप परीक्षा में पड़ें तुरन्त इसे दोहरायें। यीशु के समान, याद करने के लिए तैयार रहें आपके हृदय में भी सत्य का भण्डार है।

   यदि आपको बाइबल का कोई भी पद्य याद नहीं है तो आपकी बन्दूक में गोलियाँ नहीं है! मैं आपको चुनौती देता हूँ कि अपने शेष जीवन में कम से कम एक पद्य प्रति सप्ताह अवश्य याद करें। कल्पना कीजिए कि आप कितने अधिक सामर्थी हो जाएँगे।

अपने घाव पहुँचाने की क्षमता को समझें


   परमेश्वर हमें चेतावनी देते हैं कि कभी भी मुँहफट या अति साहसी न हो, यह ही विनाश का कारण है। यिर्मयाह ने कहा है, “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है।" इसका अर्थ यह है कि हम स्वयं को मूर्ख बनाने में माहिर हैं। अनुकूल परिस्थितियों में हममें से कोई भी कैसा भी पाप कर सकता है। हमें अपने सुरक्षा के साधनों को कभी भी अपने से दूर नहीं करना चाहिए और न ही यह सोचना चाहिए की कभी भी कोई भी समस्या या परीक्षा हमारे करीब नहीं आ सकती।

   अपने आपको कभी भी लापरवाही के कारण परीक्षा की स्थिति में न डालें। उनसे दूर रहने की चेष्टा करें याद रखें कि परीक्षा में से निकलने के बदले उससे दूर रहना अधिक सरल है। बाइबल कहती है, “इसलिए जो समझता है, मैं स्थिर हूँ', वह चौकस रहे कि कहीं गिर न पड़े।

अपने उद्देश्य के बारे में सोचना

विचार करने का अंशः हर समस्या का हल है।

याद करने का पद्यः “परमेश्वर सच्चा है और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको।" 1 कुरि. 10:13

सोचने का प्रश्न: मैं किसको मेरा आत्मिक साथी रहने के लिए पूछँ जो मुझे उस निरन्तर प्रलोभन से प्रार्थना द्वारा हराने में सहायता कर सकें?


( परीक्षा में जीतना ) प्रलोभन को पराजित करना

1. याकूब 4:7
2. अय्यूब 31:1
3. भजन संहिता 119:37
4. रोमियों 12:21
5. इब्रानियों 3:1 
6. 2 तीमुथियुस 2:8
7. फिलिप्पियों 4:8
8. नीतिवचन 4:23
9. 2 कुरिन्थियों 10:5
10. सभोपदेशक 4:9-10
11. याकूब 5:16
12. 1 कुरिन्थियों 10:13
13. रोमियों 3:23
14. याकूब 4:6-7
15. इफिसियों 6:17
16. यिर्मयाह 17:9
17. नीतिवचन 14:16
18. 1 कुरिन्थियों 10:12