परिपक्व होने में समय लगता है - हम मसीह जैसे बनने के लिए सृजे गए हैं

Maturity Takes Time - We Were Created to Be Like Christ

परिपक्व होने में समय लगता है - हम मसीह जैसे बनने के लिए सृजे गए हैं - Maturity Takes Time - We Were Created to Be Like Christ

हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है। सभोपदेशक 3:1

मुझे इस बात का भरोसा है जिसने तुममें अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। फिलिप्पियों 1:6

परिपक्वता का कोई छोटा रास्ता नहीं है।

   वयस्क होने में हमें अनेकों वर्ष लग जाते हैं, और एक फल को पकने और बड़ा होने में भी पूरा एक वर्ष लगता है। पवित्र आत्मा के फल के विषय में भी यही सत्य है। मसीह जैसा चरित्र-निर्माण तुरन्त नहीं हो सकता है। शारीरिक विकास के समान ही आत्मिक विकास में भी समय लगता है।

   जब आप फल को जल्दी पकाने का प्रयास करते हैं, तो फल का वास्तविक स्वाद खो जाता है। दुनिया में टमाटरों को बिना पके ही तोड़ लिया जाता है, ताकि दुकानों पर पहुँचने तक वे खराब न हो जाएँ। फिर लोगों को बेचने से पहले इन हरे टमाटरों पर CO, गैस छिड़की जाती है। जिससे ये हरे टमाटर तुरन्त लाल हो जाते हैं। गैस से लाल किये टमाटर खाने लायक तो हो जाते हैं परन्तु इनका स्वाद खेतों में धीरे-धीरे पकने वाले टमाटरों के समान नहीं होता।

   हमारी चिन्ता हमारे विकास की तीव्रता पर होती है, जबकि परमेश्वर की दृष्टि हमारे विकास की दृढ़ता पर रहती है। परमेश्वर हमारा जीवन अनन्त काल के लिए और अनन्त कालीन दृष्टि से देखते हैं, इसलिए वे कभी भी जल्दी में नहीं होते।

   एक बार लेन ऐडम्स ने आत्मिक विकास के प्रक्रिया की तुलना सन्धि- देशों की उस नीति से की, जो उन्होंने दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र के द्वीपों को मुक्त कराने के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपनाई थी। सबसे पहले वे द्वीप पर शत्रु के ठिकानों पर समुद्र में तैनात जलयानों से बमबारी करके उसे "शक्तिहीन करके" कमजोर करते थे। उसके पश्चात सैनिकों की एक टुकड़ी द्वीप के एक छोटे भाग पर धावा बोल कर या आक्रमण कर वहाँ अपना बीचहेड स्थापित करते थे। एक बार जब बीचहेड सुरक्षित हो जाता था तब वे द्वीप के शेष भाग को मुक्त कराने के लम्बे प्रयास में लग जाते थे। अन्त में सम्पूर्ण द्वीप पर नियंत्रण हो जाता था, मगर कुछ महँगे युद्ध के बिना यह सम्भव नहीं होता था।

   ऐडम्स ने भी इसी के समान यह चित्र प्रस्तुत किया: इससे पूर्व की मसीह हमारे मन परिवर्तन के लिए हमारे जीवन पर आक्रमण करें, कभी-कभी वह उन समस्याओं को जिन्हें हम सहन नहीं कर सकते हैं, भेजकर “हमें शक्तिहीन करते" हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने जीवन को मसीह के लिए पहली दस्तक में ही खोल देते हैं। जबकि हम में से अधिकांश लोग प्रतिरोधी और रक्षात्मक प्रवृति के होते हैं। हमारे मन-परिवर्तन से पहले के अनुभव को यीशु कहते हैं, "देखो, मैं द्वार पर खड़ा हुआ बमबारी कर रहा हूँ। "

   जिस क्षण आप स्वयं को मसीह के लिये खोलते हैं उसी क्षण, परमेश्वर को आपके जीवन में एक "बीचहेड" मिल जाता है। हो सकता है कि आप ऐसा सोचते हो कि, आपने अपना सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित कर दिया है, परन्तु सत्य तो यह है कि, आपके जीवन में ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में आपको अभी तक पता ही नहीं है। परमेश्वर को आप उतना ही दे सकते हैं, जितना आप स्वयं को उस समय समझते हैं। ये ठीक है। एक बार मसीह को बीचहेड दे दिया तो वे आपके जीवन के अनेक भागों पर अपनी नियंत्रण प्रक्रिया उस समय तक जारी रखते हैं, जब तक आपका सम्पूर्ण जीवन उनका न हो जाए। इस प्रक्रिया में संघर्ष और युद्ध तो जरूर होंगे, परन्तु प्रतिफल अवश्य है। परमेश्वर की प्रतिज्ञा है, कि "जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वहीं उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।"

   शिष्य होना मसीह को प्रमाणित करने की प्रक्रिया है। बाइबल कहती है, "जब तक कि हम सब के सब विश्वास और परमेश्वर पुत्र की पहचान में एक न हो जाएँ, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ।" मसीह के समान होना ही आपका अन्तिम पड़ाव है परन्तु आपकी यात्रा जीवन भर चलती रहेगी।

   इस यात्रा में अब तक हमने देखा कि, विश्वासी होना (आराधना के द्वारा), सम्बन्धित होना (मण्डली के द्वारा) और अनुरूप होना (शिष्यता के द्वारा) सम्मिलित है। परमेश्वर चाहते हैं कि प्रतिदिन आप उनके समान होते चले जाएँ: “और नए मनुष्यत्व को पहन लिया है, जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए नया बनता जाता है।


   आज हम गति से प्रभावित हैं, हर चीज जल्दी से चाहते हैं, परन्तु परमेश्वर की रूचि हमारी जल्दबाजी में नहीं बल्कि हमारी दृढ़ता और स्थिरता में है। हम शीघ्र सरल और तात्कालिक समाधान चाहते हैं। हम ऐसे उपदेश, गोष्ठी और अनुभव की अपेक्षा करते हैं, जो हमारी समस्याओं का समाधान तुरन्त करें, सभी परीक्षाओं को दूर करें और बढ़ती हुई सभी पीड़ाओं से मुक्त करें। किन्तु सही मायने में परिपक्वता मात्र एक अनुभव का परिणाम नहीं हो सकती, चाहे वो कितनी भी प्रभावशाली और सामर्थी क्यों न हो। विकास धीरे-धीरे होता है। बाइबल कहती है, “प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश करके बदलते जाते हैं।"

इतना अधिक समय क्यों लगता है ?

   यद्यपि परमेश्वर हमें क्षण भर में परिवर्तित कर सकते हैं, किन्तु फिर भी उन्होंने हमें धीरे-धीरे विकसित करने का निर्णय लिया। यीशु ने अपने चेलों का विकास सोच-समझकर किया। जिस प्रकार परमेश्वर ने इस्राएलियों को प्रतिज्ञा के देश पर “थोड़ा-थोड़ा करके नियंत्रण करने की अनुमति दी थी, (ताकि वे घबरा न जायें), उसी प्रकार हमारे जीवनों में भी वे धीरे-धीरे फायदा देना पसन्द करते हैं। बदलने और बढ़ने में इतना अधिक समय क्यों लगता है? इसके कई कारण हैं।

हम धीरे-धीरे सीखते हैं

   कभी-कभी हमें एक पाठ को पूरी रीति से सीखने के लिए चालीस-पचास बार उसका अभ्यास करना पड़ता है। समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहती है और हम सोचते रहते हैं, "बस अब और नहीं! मैं तो यह सीख चुका हूँ।" - किन्तु परमेश्वर बेहतर जानते हैं। इस्राएल का इतिहास यह दिखाता है कि कितनी जल्दी हम परमेश्वर के द्वारा सिखाई गई बातों को भूल कर अपने पुराने चाल-चलन के तरीकों में लौट गये। हमें बार-बार सीखने की जरूरत है। 

हमारे पास बहुत कुछ न सीखने को है

   बहुत से लोग अपनी व्यक्तिगत और पारस्परिक समस्याओं को जिन्हें विकसित होने में वर्षों लगे होते हैं, लेकर परामर्शदाताओं के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं, "कृपया मेरी समस्या का समाधान अभी कर दीजिए। मेरे पास सिर्फ एक घण्टा है।" वे अपनी पुरानी अन्दर तक घुसी हुई समस्या का समाधान तुरन्त, सरलता-पूर्वक चाहते हैं। चूंकि हमारी अधिकाँश समस्याएँ और हमारी सभी बुरी आदतें एक रात में विकसित नहीं हुई होती हैं, अतः हमारी ये अपेक्षा कि वे तुरन्त दूर हो जाएगी अवास्तविक है। ऐसी न कोई दवा है, न प्रार्थना और न ही कोई सिद्धान्त, जो वर्षों की इस हानि का सुधार क्षण भर में कर सके। इस सुधार और परिवर्तन के लिए कठिन परिश्रम की आवश्यकता है। बाइबल इसे, “पुराने मनुष्यत्व को उतारना” और “नये मनुष्यत्व को धारण करना कहती है।" यद्यपि आपके मन परिवर्तन के समय आपको एक नया स्वभाव दिया गया। किन्तु फिर भी आपके अन्दर वो पुरानी आदतें और तौर-तरीके हैं जिन्हें अब तक निकल जाना चाहिए था और उनकी जगह नया स्वभाव आ जाना चाहिए था।

हम अपने बारे में विनम्रता से सच्चाई का सामना करने से डरते हैं

   मैं यह पहले बता चुका हूँ कि सत्य हमें स्वतंत्र करेगा, लेकिन स्वतन्त्र करने से पहले ये प्रायः हमें दुखी करता है। हमारे जीवन की कमियों के उजागर हो जाने का यह डर ही हमें अपने जीवन की इन कमियों का सच्चाई से सामना करने से हमेशा दूर रखता है। क्योंकि केवल परमेश्वर को ही हमारे दोषों पर, हमारी असफलताओं पर और निराशाओं पर अपने सत्य का प्रकाश डालने का अधिकार प्राप्त है, तो क्या हम इन पर काम करना शुरु कर सकते हैं। इसीलिये आपका विकास विनम्र और सीखने योग्य स्वभाव के बिना असम्भव है।

विकास अक्सर तकलीफ देह और डरावना होता है

   बिना बदले कोई बढ़ता नहीं, बिना डर या नुकसान के कोई बदलता नहीं और बिना तकलीफ के कोई नुकसान नहीं होता। नया अनुभव पाने के लिए आपको अपने पुराने तौर-तरीकों को बदलना जरूरी है। जबकि हमारे पुराने तौर-तरीके खुद को हराने वाले होते हैं फिर भी बदलाव में होने वाले नुकसान से हमें डर लगता है, और ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि ये पुराने तरीके हमारे उन फटे हुये जूतों के समान होते हैं जो हमारे जाने-पहचाने और आराम दायक होते हैं। 

   अक्सर लोग अपनी कमियों के चारों ओर अपनी पहचान बना लेते हैं। हम कहते हैं, “यह बिल्कुल मेरी तरह ही है" और "मैं तो ऐसा ही हूँ।" उनको एक अनजानी अचेत चिन्ता यह होती है कि यदि मैं अपनी आदत, अपनी चोट, या अपने डर को निकाल दूँ तो, मेरा वजूद समाप्त हो जायेगा। यह डर आपके विकास की गति अवश्य धीमी कर सकता है।

आदतों के विकास में समय लगता है

   याद रखिए कि आपका चरित्र आपकी आदतों का नतीजा है। यदि आप आदत से दयालु नहीं है तो आप दयालु होने का दावा नहीं कर सकते- आप इसके बारे में सोचे बिना ही दयालु होने का दिखावा करते हैं। यदि आपकी आदत में हमेशा ईमानदार रहना नहीं है तो आप सम्पूर्ण रूप से सच्चाई का दावा नहीं कर सकते। एक वफादार पति भी ज्यादातर समय पूरी रीति से अपनी पत्नी का वफादार नहीं होता। आपकी आदतें ही आपके चरित्र को बयाँ करती हैं।

   मसीह के चरित्र जैसी आदतों के निर्माण का केवल एक ही तरीका है। आपको अपने रोज के जीवन में उनका अभ्यास करना होगा और उसमें समय लगेगा। पौलुस ने तीमुथियुस से आग्रह किया था, “इन बातों को सोचते रह और इन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो।"

   यदि आप किसी बात का अभ्यास ज्यादा से ज्यादा समय तक करें तो, आप उसे अच्छे से सीख पाएंगे। बार-बार अभ्यास ही चाल-चलन और कुशलता की जननी है। चरित्र-निर्माण की यही आदतें अक्सर “आत्मिक अनुशासन" कहलाती हैं। इसके बारे में ऐसी दर्जनों किताबे हैं जो आपको यह सिखा सकती कि ये कैसे करें। आत्मिक विकास से सम्बन्धित पुस्तकों की सूची के लिए परिशिष्ट 2 देखें।

जल्दबाजी न करें

   जब आप आत्मिक परिपूर्णता में बढ़ते हैं, तो इस प्रक्रिया में परमेश्वर का सहयोग प्राप्त करने के कई तरीके हैं।

चाहे आपको ये महसूस न भी हो तब भी, विश्वास कीजिए कि परमेश्वर आपके जीवन में कार्य कर रहे हैं 

   आत्मिक विकास कभी-कभी बहुत थकाऊ, एक समय में एक ही छोटा कदम उठाने जैसा काम है। धीरे-धीरे सुधार की अपेक्षा करें। बाइबल कहती है, “हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है। " आपके आत्मिक जीवन का भी एक समय है। कभी-कभी आपका विकास तुरन्त जोरदार तरीके (वसन्त ऋतु) से होगा और फिर उसके बाद स्थिरता और परीक्षा का समय (पतझड़ एवं जाड़े का ) आयेगा।

   उन समस्याओं, आदतों और आघातों का क्या जिन्हें आप चाहते हैं। कि, चमत्कारिक रूप से हट जायें। चमत्कार के लिए प्रार्थना करना बुरा नहीं है, परन्तु यदि उसका उत्तर धीरे-धीरे बदलाव के साथ आये तो आप निराश न हों। लगातार धीमी गति से, स्थिर बहने वाली पानी की धारा कठोर चट्टान को भी काट देती और बढ़ी-बढ़ी शिलाओं को तोड़कर कंकड़ बना देती है। लगातार बढ़ने वाला, एक छोटा पौधा भी बढ़कर 350 फीट ऊँचा विशाल वृक्ष बन सकता है।

सीखे गये अध्यायों को एक नोटबुक में लिख कर रखें 

   यह कोई रोजमर्रा की घटनाओं की डायरी नहीं बल्कि वो रिकार्ड होगा जो आप सीख रहे हैं। उसमें वो ज्ञान और जीवन की शिक्षाओं को लिखें जो परमेश्वर अपने बारे में, आपके बारे में, जीवन के बारे में, आपसी सम्बन्धों के बारे में, एवं अन्य दूसरी बातों के बारे में आपको सिखाते हैं। पुनविचार करने, याद रखने और अगली पीढ़ी को देने के लिए इसका रिकार्ड अवश्य रखें। क्योंकि हम जल्दी भूल जाते हैं इसीलिये हमें इन्हें सीखते रहना चाहिए। अपने आत्मिक लेखों को बार-बार देखते रहने से आप कई प्रकार के अनावश्यक दुःख एवं हृदय की पीड़ा से बचे रह सकते हैं। बाइबल कहती है, “इस कारण चाहिए कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी हैं, और भी मन लगाएँ, ऐसा न हो कि बहककर उनसे दूर चले जाएँ।" 

परमेश्वर के साथ और अपने साथ धीरज रखें

   हमारे जीवन की निराशा का एक कारण है परमेश्वर का और हमारा टाइम-टेबल एक सा न होना। हम अक्सर जल्दी में ही रहते हैं, जबकि परमेश्वर नहीं। अपने जीवन में धीरे-धीरे होने वाली तरक्की से आप निराश हो सकते हैं। याद रखें कि परमेश्वर कभी जल्दी में नहीं होते परन्तु वे हमेशा समय पर होते हैं। अनन्त जीवन के लिए तैयार करने में वे आपके जीवन का सारा समय इस्तेमाल करेंगे।

    बाइबल ऐसे अनेक उदाहरणों से भरी पड़ी है जहाँ ये बताया गया है कि, परमेश्वर ने विशेष अगुवों का चरित्र निर्माण करने में एक लम्बे समय का इस्तेमाल किया। मूसा को तैयार करने में उन्हें जंगल के 40 वर्ष मिलाकर 80 वर्ष लगे। 14,600 दिन मूसा विस्मित हो प्रतीक्षा करते रहे, “क्या समय हो गया?" परन्तु परमेश्वर कहते रहे, “अभी नहीं।”

   प्रसिद्ध पुस्तकों के नामों के अनुसार परिपक्व या पूर्ण रूप से तैयार होने का कोई आसान तरीका नहीं है और न ही एक क्षण में सिद्ध या पवित्र बनने का कोई रहस्य है। जब परमेश्वर मशरूम को बनाना चाहते हैं तो वे उसे एक रात में ही बना देते हैं, परन्तु जब वे एक विशाल देवदार के वृक्ष को बनाना चाहते हैं उन्हें एक सौ वर्ष लगता है। महान आत्माएं संघर्षों, विपरीत परिस्थितियों एवं कठिनाईयों के दौर से गुजर के ही उन्नति करती हैं। पूरी प्रक्रिया के दौरान धैर्य रखें। याकूब का सुझाव है, "पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ, और तुम में किसी बात की घटी न रहे।"

हतोत्साहित न हों

   जब हबक्कूक यह सोचकर कि परमेश्वर तेजी से काम नहीं कर रहे हैं निराश हो गये तो परमेश्वर को उनसे ये कहना पड़ा, "क्योंकि इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होने वाली है, वरन् इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इसमें धोखा न होगा चाहे इसमें विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उसमें देर न होगी।" देरी का मतलब परमेश्वर की ओर से ना नहीं होता है।

   याद रखें कि आप कितने दूर आ गये हैं न कि आपको कितने दूर जाना है। आप न तो वहाँ हैं जहाँ आप जाना चाहते हैं और न ही वहाँ हैं जहाँ आप थे। वर्षों पूर्व लोग एक प्रचलित बटन पहना करते थे, जिस पर अँग्रेजी भाषा में PBPGINFWMY लिखा होता था। इसका मतलब था, "Please Be Patient, God Is Not Finished With Me Yet."अर्थात् “कृपया धीरज रखिए, परमेश्वर का कार्य मेरे साथ अभी समाप्त नहीं हुआ है।" परमेश्वर का कार्य आपके साथ भी समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए आगे बढ़ते रहें। घोंघा भी धैर्य से सरकता हुआ जलयान में पहुँच गया था!

अपने उद्देश्य के बारे में सोचना

विचार करने का अंशः परिपक्वता के लिए कोई संक्षिप्त रास्ता नहीं है।

याद रखने योग्य पद्यः "मुझे इस बात का भरोसा है कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। " फिलिप्पियों 1:6

सोचने योग्य प्रश्नः अपने आत्मिक विकास के किस क्षेत्र में मुझे धैर्य और दृढ़ता की आवश्यकता है?

समय लगता है

1. फिलिप्पियों 1:6

2. इफिसियों 4:13

3. कुलुस्सियों 3:10

4. 2 कुरिन्थियों 3:18

5. व्यवस्थाविवरण 7:22

6. रोमियों 13:12; इफिसियों 4:22-25; कुलुस्सियों 3:7-10, 14

7. 1 तिमुथियुस 4:15 

8. सभोपदेशक 3:1 

9. भजन संहिता 102:18; 2 तीमुथियुस 3:14

10. इब्रानियों 2:1

11. याकूब 1:4

12. हबक्कूक 2:3