पश्चात्ताप के बारे में बाइबल क्या कहती है ?
Pashchataap Ke Bare Mein Bible Kya Kahati Hai
प्रस्तावना
पुराने नियम की व्यवस्था और बलिदानों के अन्तर्गत लोग अपने पापों का अंगीकार करते थे, उसके लिए बलिदान चढ़ाते थे, और वापिस लौटने के बाद बहुधा फिर वही पाप करते थे। सुसमाचार का पश्चात्ताप पाप की ओर से फिर कर परमेश्वर की ओर फिरना है। प्रेरितों के काम 20:21, "वरन यहूदियों और यूनानियों के सामने गवाही देता रहा, कि परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह का विश्वास करना चाहिए।"
इसको "जीवन के लिए पश्चात्ताप" कहा जाता है, क्योंकि नया मन केवल बुराई का त्याग करना ही नहीं है, परन्तु वह जीवन प्राप्त करना है जो मसीह में पाया जाता है। प्रेरितों के काम 11:18, "तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिए मन फिराव का दान दिया है"।
इसको उद्धार के लिए पश्चात्ताप भी कहा जाता है, क्योंकि इसका उद्देश्य यही है। 2कुरिन्थियों 7:10, "क्योंकि परमेश्वर भक्ति का शोक ऐसा पश्चात्ताप उत्पन्न करता है जिसका परिणाम उद्धार है और फिर उससे पछताना नहीं पड़ता। "चूकि इसके लिए फिर पश्चात्ताप नहीं करना पड़ता, अर्थात् वह व्यक्ति फिर से उसी पाप की ओर नहीं जाता; यह पाप के प्रति एक परिवर्तित मनोवृत्ति को दर्शाता है; उस अपराध की ओर फिर वापिस लौटने के लिए नहीं।
1. पश्चात्ताप की परिभाषा
1) नकारात्मक - पश्चात्ताप पाप के लिए केवल शोक करना ही नहीं है; पाप के लिए बहुत से लोग रोते हैं, परन्तु पश्चात्ताप किए बिना तुरन्त ही उसी पाप की ओर लौट जाते हैं (शराबी )। तपस्या करना, पश्चात्ताप करना नहीं है, क्योंकि यह पापी को उद्धार अर्जित करने के लिए पुण्य प्रदान करता है अतः बहुधा यह सच्चे पश्चात्ताप के लिए एक बाधा होती है।
यहूदा इस्करियोती और एसाव ने पाप के प्रति शोक व्यक्त किया उन्होंने पश्चात्ताप नहीं किया। इब्रानियों 12:17, "और आँसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे ( एसाव को) न मिला"। पछतावा और आँसू बहुधा पश्चात्ताप के संगी होते हैं, परन्तु वे स्वयं में पश्चात्ताप नहीं हैं।
2 ) सकारात्मकः यह मन का परिवर्तन है जो आचरण को बदलने की ओर अग्रसर करता है। मत्ती 21:28-32, लड़के ने पहले अंगूर के बाग में जाकर काम करने से इनकार कर दिया, परन्तु बाद में उसने पश्चात्ताप किया, अपना मन परिवर्तित किया और तब बाग में जाकर वास्तव में काम किया।
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2. पश्चात्ताप की आवश्यकता
1) सभी को पश्चात्ताप करने की आवश्यकता है क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में सभी दोषी हैं। बपतिस्मा और जंगल में परीक्षा पूरी होने के पश्चात् यीशु का प्रथम उपदेश पश्चात्ताप पर था।
मत्ती 4:17, “उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, कि मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।" लूका 13:3, यीशु ने प्रचार करते हुए कहा, "परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होगे।"
2) पश्चात्ताप विश्वास करने से पहले आता है। मरकुस 1:15, "मन फिराओ, और सुसमाचार पर विश्वास करो।"
3) पश्चात्ताप क्षमा से पहले आता है, लूका 24:47, "और सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा।"
4) पश्चात्ताप हृदय परिवर्तन से पहले आता है। प्रेरितों के काम 3:19, "इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ।"
परमेश्वर पश्चात्ताप करने की आज्ञा देता है। प्रेरितों के काम 17:30, "इसलिए परमेश्वर अज्ञानता के समयों से आनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता हैं"।
3. पश्चात्ताप का महत्व
बाइबल में पश्चात्ताप एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है, इसे बाइबल में सौ से भी अधिक बार व्यक्त किया गया है। पश्चात्ताप यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का मुख्य विषय था। मत्ती 3:12, "उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला आकर यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा; कि मन फिराओ; क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।"
जब यीशु ने अपने शिष्यों को प्रचार करने के लिए भेजा, तो उसने उनको पश्चात्ताप का प्रचार करने की आज्ञा दी। मरकुस 6:12, "और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ।" पिन्तेकुस्त के बाद चेलों ने पश्चात्ताप का प्रचार किया। प्रेरितों के काम 2:38, "पतरस ने उनसे कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिये बपतिस्मा ले।" यह पौलुस का भी सन्देश था। प्रेरितों के काम 20:21 (प्रस्तावना में उद्धृत किया जा चुका है )।
परमेश्वर के हृदय पर यह एक भार है कि सभी को पश्चात्ताप करना चाहिए। 2 पतरस 3:9, "(परमेश्वर) नहीं चाहता कि कोई नाश हो; वरन यह कि सबको मन फिराव का अवसर मिले।” परमेश्वर की आज्ञा पालन करने में असफल रहने से मनुष्य अनन्त दण्ड की ओर अग्रसर होते हैं। लूका 13:3, "परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होगे।"
4. पश्चात्ताप का स्वभाव
1) जब यह बुद्धि (Intellect) को स्पर्श करता है । मत्ती 21:29, “उसने उत्तर दिया, मैं नहीं जाऊँगा, परन्तु पीछे पछता कर गया।" उस युवक ने अपना मन, विचार और दृष्टिकोण बदल दिए। पश्चात्ताप एक क्रान्ति है, जो पाप और धार्मिकता के प्रति हमारी मनोवृत्ति और दृष्टिकोण को बदल देती है।
पश्चात्ताप हमें पाप से घृणा करना, और पवित्रता और शुद्धता से प्रेम रखना सिखाता है। उड़ाऊ पुत्र ने पश्चात्ताप किया; उसने दूर देश में रहने के विषय में अपना मन बदल दिया, और अपने पिता के घर लौटकर एक सेवक के समान रहने का निश्चय किया।
जब पतरस ने पिन्तेकुस्त पर यहूदियों से पश्चात्ताप करने को कहा, उसका आशय यह था कि वे व्यक्ति यीशु मसीह के प्रति अपने विचारों को बदल दें। वे यीशु को मात्र एक मनुष्य, एक ईश्वर-निन्दक या जालसाज न मानकर उसे परमेश्वर के पुत्र, मसीह और संसार के उद्धारकर्ता के रूप में मान्यता दें।
2) जब यह भावनाओं (Emotions) को स्पर्श करता है। 2कुरिन्थियों 7:9, "अब मैं आनन्दित हूँ पर इसलिये नहीं कि तुम को शोक पहुँचा वरन इसलिये कि तुमने उस शोक के कारण मन फिराया।" बहुधा भावनाएं पश्चात्ताप में एक प्रमुख भूमिका अदा करती है; पश्चात्ताप एक कठिन युद्ध है। लूका 10:13, "तो टाट ओढ़ कर और राख में बैठकर वे (सूर और सैदा) कब के मन फिराते।"
लूका 7:44, "पर इसने मेरे पाँव आँसूओं से भिगाए" (पश्चात्ताप का व्यावहारिक प्रदर्शन)। लूका 18:13 में महसूल लेने वाले ने अपनी छाती पीटी, यह हार्दिक दुख का सूचक था।
पश्चात्ताप के लिए जो यूनानी शब्द है, उसका अर्थ एक भारी चिन्ता करना होता है। पश्चात्ताप के लिए जो इब्रानी शब्द है, उसका अर्थ दीर्घ उछ्वास लेना, आह भरकर दुख प्रकट करना, या विलाप या सिसकना है। (ये सभी शोक व्यक्त करते हैं)। भजन संहिता 38:18, "इसलिए कि मैं तो अपने अधर्म को प्रगट करूँगा, और अपने पाप के कारण खेदित रहूँगा।"
3) जब यह इच्छा (Will) को स्पर्श करता है। इब्रानी शब्द जो पश्चात्ताप के लिए प्रयोग किया जाता है उसका अर्थ "वापस मुडना" भी है। लूका 15:18,20, उड़ाऊ पुत्र ने कहा, "मैं अब उठकर अपने पिता के पास आऊँगा तब वह उठकर अपने पिता के पास चला।" पश्चात्ताप एक परिवर्तन है; दृष्टिकोण में परिवर्तित अनुभव के साथ परिवर्तन।
पौलुस ने पश्चात्ताप के विषय में शिक्षा दी कि यह अनुभव अधिक है और एकाकी कार्य कम है, ( उठना और चल देना)। पश्चात्ताप एक दोहरा कार्य है (1) पाप से फिरना और (2) परमेश्वर की ओर फिरना। परमेश्वर की ओर फिरे बिना, पाप से फिर जाना एक सुधार है, इसमें पुनर्जीवन नहीं है।
1 थिस्सलुनीकियों 1:9, "तुम क्योंकर मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे ताकि जीवते और सच्चे परमेश्वर की सेवा करो।" प्रेरितों के काम 26:18, "शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें।"
5. पश्चात्ताप कैसे उत्पन्न होता है ?
मूलतः यह परमेश्वर का दान है। प्रेरितों के काम 11:18, "परमेश्वर की बढ़ाई करके कहने लगे, तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिए मन फिराव का दान दिया है। " 2 तीमुथियुस 2:25, "क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहचाने। " पश्चात्ताप एक विशेषाधिकार है जो परमेश्वर पिता ने हमें दिया है।
जब लोग सुसमाचार का सन्देश सुनते हैं तो पवित्र आत्मा उनको अपने पापों के प्रति कायल करता है और इसके फलस्वरूप व्यक्ति के हृदय में पश्चात्ताप करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न होती है। योना ने नीनवे नगर में पश्चात्ताप का प्रचार किया। उन्होंने सन्देश पर विश्वास किया और वे परमेश्वर की ओर फिरे।
रोमियों 2:4, "क्या यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है?" प्रकाशितवाक्य 3:19, "मैं जिन-जिन से प्रीति रखता हूँ, उन सबको उलाहना और ताड़ना देता हूँ, इसलिए सरगर्म हो, और मन फिरा।" परमेश्वर बहुधा पापों से पश्चात्ताप करने लिए हमें उलाहना देता और हमारी ताड़ना करता है।
6. पश्चात्ताप के परिणाम
1) समस्त स्वर्ग में आनन्द होता है। लूका 15:7,10, "मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा।"
2) यह माफी और पापों की क्षमा लाता है। यशायाह 55:7, "दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा (परमेश्वर) ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।” प्रेरितों के काम 3:19, "इसलिए मन फिराओं और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं जिससे प्रभु के सन्मुख से विश्रान्ति के दिन आएं।"
पश्चात्ताप किसी को क्षमा का अधिकारी नहीं बनाता; पश्चात्ताप मात्र एक शर्त है। पश्चात्ताप मनुष्य को क्षमा के लिए तैयार करता है; परन्तु उसे क्षमा का अधिकारी नहीं बनाता। (पश्चात्ताप करने के बाद भी हम प्रभु के प्रेम और क्षमा के अयोग्य होते हैं। )
पश्चात्ताप करने वाले पर पवित्र आत्मा उंडेला जाता है। प्रेरितों के काम 2:38, "मन फिराओ तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।"
सारांश
अध्याय 49 की सभी आशिषें सच्चे विश्वासी को परमेश्वर से प्रारम्भिक पश्चात्ताप करने के बाद ही प्राप्त होती है। एक छुटकारा प्राप्त पापी को पश्चात्ताप करते रहने से कभी नहीं रुकना चाहिए।

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