मनुष्य एक त्रिभागी प्राणी
Man Is A Tripartite Creature
प्रस्तावना
अध्याय चार में त्रिएकत्व के सारांश में हमने बताया था कि मनुष्य एक त्रिभागी प्राणी है; मनुष्य में तीन घटक है: शरीर, प्राण और आत्मा। बाइबल में दो अनुच्छेद ऐसे हैं जो यह शिक्षा देते हैं कि मनुष्य त्रिभागी है।
1 थिस्सलुनीकियों 5:23, "शान्ति का परमेश्वर आप ही तुम्हें पूरी रीति से पवित्र करे; और तुम्हारी आत्मा और प्राण और देह हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूरे पूरे और निर्दोष सुरक्षित रहें।"
यह पद स्पष्ट रूप से बताता है कि मनुष्य में तीन अलग और सुस्पष्ट भाग है, यह भिन्नता थोड़ी सी ही हो सकती है, परन्तु फिर भी इनका अस्तित्व है।
इब्रानियों 4:12, "क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव और आत्मा को, और गांठ-गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, आर-पार छेदता है।"
कुछ लोग यह शिक्षा देते हैं कि प्राण और आत्मा दो शब्द है, परन्तु उनका अर्थ एक ही है; यह पद निश्चित रूप से हमें बताता है कि वे भाज्य हैं। यह सच है कि पवित्रशास्त्र के अनेक पदों में ऐसा प्रतीत होता है कि शब्द आत्मा और प्राण का आपस में अदल-बदल कर प्रयोग किया गया है, परन्तु दूसरे अन्य अनुच्छेद हैं जहाँ यह असम्भव है।
आइए इसके उत्तर के लिए पवित्रशास्त्र को देखें और उसका अध्ययन करें।
संक्षेप में यह भिन्नता इस प्रकार है:
1) आत्मा मनुष्य को प्रदान करती है, “परमेश्वर के प्रति चेतना" (God- Consciousness): परमेश्वर से सम्पर्क रखने की योग्याता।
2) प्राण मनुष्य को प्रदान करता है, आत्म-चेतना (Self-Conscious- ness): एक व्यक्ति, व्यक्तित्व होने की योग्यता।
3) शरीर मनुष्य को प्रदान करता है, "संसार के प्रति चेतना" (World Consciousness): चेतनाओं के माध्यम से समझने की योग्यता।
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1. मनुष्य की उत्पत्ति
उत्पत्ति 1:1 हमें बताता है कि परमेश्वर का अस्तित्व आदि से है, वह सदा से रहा है, वह अनन्त है। उत्पत्ति 1:26, 27 इस तथ्य का कालक्रमानुसार उल्लेख करता है कि मनुष्य की रचना छठे दिन की गई।
उत्पत्ति 2:7 इसका विवरण देता है कि यह रचना किस प्रकार की गई,
“और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास पूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।"
मनुष्य के तीनों भागों का विवरण इस पद में निहित है:
1) मनुष्य का शरीर हमारा मांस, हड्डियां, रक्त भूमि की मिट्टी से बनाए गए।
2) आत्मा मनुष्य के नथनों में प्रभु परमेश्वर द्वारा फूंकी गई।
3) "और (मनुष्य) जीवता प्राणी बन गया" यह अन्य दो का संगठन है। यह मनुष्य का वह भाग है जो उसके शरीर से ऊपर परन्तु आत्मा के नीचे है, और इन दोनों के बीच एक माध्यम के रूप में कार्य करता है। (बैक्सन)
2. मनुष्य का शरीर
यह मनुष्य का वह भाग है जिससे हम सबसे अधिक परिचित है। भजन संहिता 139:14, “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिए कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ।"
बाइबल हमें बताती है कि मनुष्य का शरीर भूमि की मिट्टी से रचा गया। मिट्टी का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि इसमें 96 तत्व विद्यमान है, और मनुष्य में भी 96 तत्व है और वे परस्पर समान हैं, सृष्टि का यह एक आश्चर्यजनक प्रमाण है।
इन तत्वों में से कुछ ये हैं:
कैलशियम, कार्बन, क्लोरीन, फ्लोरीन, हाइड्रोजन, आयोडिन, लोहा, मैग्नीशियम, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, पॉस्फोरस, पोटासियम, सिलिकॉन और सोडियम।
उत्पत्ति 3:19, परमेश्वर ने पतन के बाद शाप की घोषणा करते हुए कहा, "तू अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा, क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।"
मनुष्य के शरीर में पाँच इंद्रिय ज्ञान हैं: देखना, सुनना, चखना, छूना और सूंघना। सभी हर्षोन्माद, पीड़ा, संवेदना या योग्यता की अभिव्यक्ति देह में देह के द्वारा ही की जाती है।
पतन के पश्चात् शरीर एक मरनहार, मृत्यु के आधीन, शरीर बन गया। - शेफर
इब्रानियों 9:27, "और जैसे मनुष्यों के लिए एक बार मरना।" जब से अदन की वाटिका में मनुष्य का पतन हुआ, “तभी से मृत्यु की नियुक्ति के साथ ही मनुष्य का जन्म होता है।
3. मनुष्य की आत्मा
आत्मा, मनुष्य को परमेश्वर के प्रति चेतना और परमेश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करने की योग्यता प्रदान करती है। परमेश्वर ने आदम के नथनों में सांस फूंकी, इस प्रकार उसे आत्मा प्रदान की। (वायु सांस) किसी ने कहा है कि मनुष्य, "मिट्टी में परमेश्वर द्वारा फूँकी गई साँस है।" मिस आर पैक्सन
"आत्मा बाहरी और भौतिक वस्तुओं का प्रभाव प्राण और शरीर द्वारा" प्राप्त करती है, परन्तु यह एक उच्च स्तर की होती है और यह अपनी उच्च चेतना और आन्तरिक शक्ति के द्वारा परमेश्वर का सीधा ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होती है। आत्मा मानव व्यक्तित्व की राजधानी होती है।" ए. टी. पियरसन
परमेश्वर आत्मा है, यहूना 4:24; और मनुष्य की आत्मा वह भाग है जो सबसे अधिक परमेश्वर के सदृश होता है। यह हमारे उद्धार की निश्चयता में प्रकट है। रोमियों 8:16, 'आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।"
सभोपदेशक 12:7 यह सिखाता है कि मृत्यु होने पर शरीर मिट्टी में मिल जाता है और आत्मा परमेश्वर के पास लौट जाती है: "तब मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिसने उसे दिया लौट जाएगी।"
सभोपदेशक 3:21, "क्या मनुष्यों का प्राण ऊपर की ओर चढ़ता है। और पशुओं का प्राण नीचे की ओर जाकर मिट्टी में मिल जाता है? यह कौन जानता है?
मृत्यु पर मनुष्य का प्राण ऊपर की ओर परमेश्वर के पास चला जाता है, और पशु का प्राण नीचे जाता है।
लूका 12:20, “परमेश्वर ने उससे कहा; हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझसे ले लिया जाएगा।" कंगाल का प्राण इब्राहिम की गोद में गया, लूका: धनवान का प्राण नरक में पहुँचाया गया, लूका 16:23 अतः मृत्यु पर मनुष्य तीन भिन्न स्थानों पर जाता है इससे प्रमाणित होता है कि वह त्रिभागी है।
4. मनुष्य का प्राण
प्राण आत्मा-चेतना है, यह व्यक्ति, व्यक्तिगत जीवन के लिए है।
बाइबल एक भूखे प्राण, एक थकित प्राण के विषय में बताती है, यिर्मयाह 31:25 एक प्यासा प्राण, भजन संहिता 42:2 एक शोकित प्राण, अय्यूब 30:25; एक प्रेम करने वाला प्राण, श्रेष्ठगीत 1:7
ऐसा प्रतीत होता है कि प्राण मनुष्य का एक ऐसा भाग है जो आत्मा और शरीर के मध्य में है, फिर भी यह दोनों का मिश्रण नहीं है; यद्यपि कभी-कभी यह इनमें से किसी एक या दूसरे की विशिष्टता लेता प्रतीत होता है।
प्राण दो संसारों को जोड़ देता है, शारीरिक और अत्मिक।
प्राण का कार्य दो विपरीत भागों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना है। प्राण द्वारा शरीर को, जो कि सबसे निम्न होता है, आत्मा के आधीन रखना होता है जो सबसे उच्च होती है।
"परमेश्वर की योजना है कि मानवीय आत्मा में पवित्र आत्मा वास करे और शासन करे ताकि वह मनुष्य को निरन्तर अपने सम्पर्क में बनाए रखे, और सभी बातों में इसकी उपयुक्त श्रेष्ठता को बनाए रखे और मनुष्य के प्राण और शरीर पर उसका शासन हो।" ए० टी० पियरसन
मनुष्य के प्राण का उद्धार करने के लिए मसीह सलीब पर मरा। इब्रानियों 10:39, "पर विश्वास करने वाले हैं, कि प्राणों को बचाए।"
याकूब 1:21, "जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।" भजन संहिता 49:8, "क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भरी है।" लूका 16:23 हमें बताता है कि दण्ड के स्थान पर प्राण भटक सकता है। प्रकाशितवाक्य 18:12, 13 उन उपयोगी वस्तुओं की सूची प्रस्तुत करते हैं जिनका व्यापारी व्यापार करते हैं-सोना, चांदी, रत्न, मोती, हाथी दाँत बहुमोल काठ, सुगन्धित द्रव्य, मंदिरा, तेल, पशु, मनुष्य के प्राण।
मनुष्य क्षणिक आनन्द के लिए अपने प्राणों को दाव पर लगा देते हैं।
सारांश
परमेश्वर ने एक त्रिभागी प्राणी के रूप में मनुष्य की रचना की ताकि वह प्रभु से प्रेम रखे और जीवन और प्रकृति का आनन्द ले। मनुष्य की रचना सोचने, प्रेम करने और निर्णय करने की योग्यता के साथ की गई; यशायाह 1:18
मनुष्य परमेश्वर के लिए सृजा गया था, मनुष्य की आत्मा को परमेश्वर से सम्पर्क रखने के लिए बनाया गया।
"तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था उसका शब्द उनको सुनाई दिया," उत्पत्ति 3:8, परमेश्वर की संगति का एक सुन्दर चित्रण है।
आपको पुनरुत्थान के दिन के लिए तैयार रहना चाहिए जब कि आपके विभिन्न भाग फिर से मिल कर एक हो जाएंगे और आप समस्त संसार के न्यायी के सन्मुख खड़े होंगे। यीशु नरक की भयावह पीड़ा से हमारे प्राणों को बचाने के लिए क्रूस पर मरा।

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