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बुद्धिमान और मूर्ख मनुष्य - The Wise And The Foolish Man

24 “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।

   25 और बारिश और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी।

26 परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस मूर्ख मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया।
   27 और बारिश, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” मत्ती 7:24-27


   ये दोनों व्यक्ति एक ही तरह के घर बनाते हैं। उनके घर बिल्कुल एक-दूसरे के समान थे। उनमें सिर्फ एक अंतर थाः एक में नींव थी और दूसरे में नींव नहीं थी। लूका 6:48-49 के अनुसार, पहले व्यक्ति ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान पर नींव डाली। दूसरे व्यक्ति ने मिट्टी पर बिना नींव का घर बनाया।

   इस दृष्टांत से हम एक महत्वपूर्ण सच्चाई सीख सकते हैं: सच्चे मसीही और झूठे मसीही के बीच की भिन्नता को आसानी से नहीं देखा जा सकता है। झूठे मसीही, उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं के समान हैं (पद 15), जो भेड़ की खाल ओढ़ते हैं, किंतु वास्तव में फ़ाड़नेवाले भेड़िये होते हैं। उन्हें देखने पर, वे भेड़ अर्थात् सच्चे मसीही की तरह दिखाई में देते हैं।

   घर के संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात कौन सी है? उसकी नींव या आधारशिला कोई घर देखने में कितना भी अधिक सुंदर क्यों न हो, यदि उसकी नींव है, तो उस घर का निर्माण व्यर्थ होता है। लोगों को भी नींव की ज़रुरत होती है। उनके लिये सिर्फ एक निश्चित् नींव है: यीशु मसीह (ठ कुरिंथियों 3:11)। उसके अतिरिक्त सब कुछ रेत की तरह हैं।

   रेत पर घर बनानेवाला झूठा मसीही समझता हैः 'मैं सुरक्षित हूं। मैं एक मसीही हूं। मेरा घर नहीं गिरेगा'। शैतान, लोगों को इसी तरह से झूठी सुरक्षा देना चाहता है। मसीह को पकड़वाने वाले शिष्य यहूदा इस्कारयोती ने पहले निश्चित् रीति से यही समझा था कि वह मसीह का एक सच्चा शिष्य था । परंतु वह शुरु से ही शैतान का सेवक था।

   आइये, हम अपने आपको जांचे। हम किस प्रकार का घर बना रहे हैं? यदि हमारी सबसे बड़ी इच्छा यह है कि हम सुरक्षा, आराम और शांति प्राप्त करें, तो हम अपना घर रेत पर बना रहे हैं। अगर हमारी सबसे बड़ी इच्छा मसीह को जानने और उसके समान बनने की है, तो हम अपना घर चट्टान पर बना रहे हैं।

   झूठा मसीही, सबसे पहले अपने भले या लाभ की तलाश करता है। वह परमेश्वर के राज्य और धर्म की खोज पहले नहीं करता है (मत्ती 6:33)। वह अपने आपको सुखी या शुख करने के लिये जीवित रहता है। वह परमेश्वर की आशीषों को दूढ़ता है, लेकिन परमेश्वर को नहीं दूढ़ता है। वह परमेश्वर की आशीषों से प्रेम करता है, परंतु परमेश्वर से प्रेम नहीं करता है। चूंकि वह मसीह को प्राथमिकता नहीं देता है, उसे अपने जीवन का प्रभु या मालिक नहीं बनाता है तथा उसे अपने जीवन की आधारशिला नहीं बनाता है, इसलिय वह एक सच्चा मसीही कभी नहीं बनता है। उसका घर रेत पर बनाया जाता है।

   सच्चा मसीही, मसीह को जानता है और उसकी आज्ञाओं को मानता है। वह मसीह के वचन सुनता है और उनके अनुसार कार्य करता है (पद 124)। यीशु को जानना, यीशु से प्रेम करना है। यीशु से प्रेम करना, यीशु की आज्ञा मानना है। यीशु ने कहाः जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है' (यूहन्ना 14:21) ऐसा व्यक्ति अपना घर चट्टान पर बनाता है (देखें लूका 11:28; यूहन्ना 13:17)।

   हम, इन दो घर के बीच अंतर कैसे कर सकते हैं। सामान्यतः इन पर बारिश, बाढ़ और तूफान आने तक ह इनमें अंतर मालूम नहीं कर सकते हैं। इनके आने पर, रेत पर बना घर गिर जायेगा।

   लोगों के साथ भी यही होता है। दुख तकलीफ़ अथवा परीक्षा आने पर ही, हम बता सकते हैं कि सच्चे मसीही कौन हैं। परमेश्वर दुख और परीक्षाओं को हम पर आने की अनुमति देता है; ताकि हमारे विश्वास अर्थात् हमारी नींव की जांच या परख हो सके (पतरस 1:6-7)। यीशु हम में से प्रत्येक व्यक्ति से पूछता है: "क्या दुख और परीक्षा आ पर तुम्हारा विश्वास दृढ़ बना रहेगा" ?

   तीन प्रकार की परीक्षाएँ होती हैं: वर्षा, बाढ़ और तूफ़ान (पद 27)। वर्षा विभिन्न तरह की तकलीफ़ जैसे:- सताव, संपात्ति की हानि, स्वास्थ्य की हानि तथा अंततः मृत्यु को दर्शाती है। ये सभी तकलीफ़ हम पर बाहर से आती हैं। बाढ़ सांसारिक अभिलाषाओं एवं अहंकार को दर्शाती है (देखें। यूहन्ना 2:15)। ये परीक्षाएँ हमारे भीतर उत्पन्न होती हैं। शैतान, इन बाहरी और आंतरिक दो तरह की परीक्षाओं के माध्यम से हम पर विजयी होने का प्रयास करता है। सबसे पहले शैतान यह कोशिश करता है कि हम संसार से प्रेम करें। तत्पश्चात्, हमारे द्वारा इंकार करने पर, वह हमें सताता है। तूफ़ान, शैतान को दर्शाता है। अगर पहली दो तरह की परीक्षाएँ असफ़ल हो जाती हैं, तो शैतान शक, डर और निराशा के माध्यम से हम पर प्रत्यक्ष आक्रमण करता है। ये जलते हुए तीर हैं। पौलुस ने इफ़िसियों 6:16 में इसका उल्लेख किया है। शैतान एक क्रूर या दुष्ट तूफ़ान है। 12

   यीशु ने बीज बोने वाले के दृष्टांत में इनतीन तरह की परीक्षाओं के बारे में बताया है (मरकुस 4:3-8)। कुछ बीज (परमेश्वर का वचन ) चिड़ियों ने उठा लिये (चुग लिये)। इसका मतलब है कि शैतान ने परमेश्वर के वचन को लोगों से दूर कर दिया (मरकुस 4:15)। उनमें से कुछ बीज से अंकुर फूटे, लेकिन धूप ने उन्हें जला दिया। यहां सूर्य की किरणों का तात्पर्य बाहरी तकलीफ़ और सताव है ( मरकुस 4:16-17)। कुछ बीज से पौधे निकले और बढ़े, परंतु झाड़ियों (कांटेदार झाड़ियों) ने उन्हें दबा दिया। यहां कांटों का मतलब आंतरिक चिंता और अभिलाषाएँ हैं ( मरकुस 4:18-19)

 परमेश्वर प्रत्येक मसीही की नींव को परखेगा। क्या वर्षा, बाढ़ और तूफ़ान आने पर, हमारा घर स्थिर रहेगा?।
 
नीचे Comment करें, परमेश्वर आपको आशीष दे जय मसीह की


PASTOR. BABLU KUMAR