पास्टर-धर्म गुरु-पादरी-पुरोहित को कैसा होना चाहिए ? - How Should A Pastor-Religion Guru-Pastor-Pirohit Be ?
प्रस्तावना
यह प्रस्तावना “Christian Guardian" से लिया गया है जो कि जनवरी 1947 में Gospel Herald में पुन: प्रकाशित हुआ था।
एक सिद्ध प्रचारक का उपदेश या प्रार्थना कभी भी बहुत अधिक लम्बी नहीं होती है। वह कभी भी उस बात को नहीं भूलता जो कि उसे याद रखनी चाहिए थी, और वह उस बात को कभी याद नहीं रखता जो उसे भुला देनी चाहिए थी।
वह ठीक ठीक जानता है कि कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए। उसकी हंसी सदा ही उपयुक्त समय पर होती है और उसके आँसू सदा ही मनोवैज्ञानिक सुधार के उपयुक्त क्षणों में बहते हैं। उसके उपदेश सदा ही अच्छी तरह से तैयार किए गए होते हैं, उनको भली-भाँति प्रस्तुत किया जाता है और वे समुचित होते हैं।
वह इतना शिक्षित होता है कि किसी कॉलेज का अध्यक्ष बन सकता है और एक नम्र सीखनेवाले के लिए पर्याप्त निरभिमानी होता है। उसे कभी आर्थिक व्याकुलताएं नहीं सतातीं, क्योंकि वह सदा ही कम से कम वेतन पर भी अपना गुजारा कर लेता है। वह कभी झगड़ा नहीं करता, फिर भी वह स्पष्टवादी और साहसी होता है। वह एक ही समय एक आदर्श आगन्तुक और एक आदर्श विद्यार्थी होता है।
वह इस्राएली सेनाओं का वास्तविक अगुवा होता है तौभी उसके शत्रु उसकी प्रशंसा करते हैं। उसकी पत्नी में कोई दोष नहीं पाया जाता और उसके बालक भी अपनी माता के ही समान होते हैं।
उसके सिद्धान्त इतने पुराने फैशन के हैं कि उनमें अतिरूढ़िवादी व्यक्ति भी प्रसन्न हो उठते हैं और ऐसे नए भी हैं जो अति-आधुनिकवादियों को भी सन्तुष्ट कर देते हैं। उसे कार्य स्थल पर नियुक्ति में कोई कठिनाई नहीं होती क्योंकि कोई भी नियुक्ति उसे सहर्ष स्वीकार्य होती है, और वह सब की भलाई के लिए सदा ही अपने को बलिदान करने के लिए तैयार रहता है।
सम्भवतः ऐसा मनुष्य अभी पैदा नहीं हुआ है, फिर भी मंडलियों ने एक बहुत उच्च स्तर निर्धारित किया है और यह भावी पास्टर के लिए उचित ही है कि वह अपना लक्ष्य उच्च रखे। किसी मंडली का पास्टर होना परमेश्वर की ओर से एक उच्च पुकार है।
1. व्यक्तिगत जीवन
पास्टर के व्यक्तिगत जीवन का प्रमुख महत्व होता है क्योंकि लोग इतवार को उसके उपदेश को सुनते हैं और देखते रहते हैं कि पूरे सप्ताह ये किस प्रकार पूरे किए जाते हैं। पास्टर को धर्मपरायण-धर्मी, पवित्र जन होना चाहिए जो प्रभु यीशु ख्रीष्ट को अपने जीवन द्वारा प्रकट करता हो।
अविश्वासी सदा ही एक सेवक या पास्टर से लगभग सिद्ध होने की अपेक्षा रखता है। पास्टर प्रार्थना का जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य होना चाहिए। कलीसिया उससे प्रतिदिन प्रार्थना में पर्याप्त समय, यहाँ तक कि कई घंटों का समय व्यतीत करने की अपेक्षा रखती है।
पास्टर को अपने लिए पवित्रता प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता होती है। उसे प्रभु की उपस्थिति में लम्बे समय तक रहना चाहिए जब तक उसका मैल प्रकट किया जा कर हटा नहीं दिया जाता। 1 शमूएल 12:23, “यह मुझसे दूर हो कि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करना छोड़ कर यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरू; तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूँगा।" शमूएल पर झुण्ड के लिए प्रार्थना करने का भार था। यदि यह सम्भव हो तो प्रत्येक पास्टर को झुण्ड के लिए, नाम व नाम एक एक व्यक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
कुलुस्सियों 1:9 “इसलिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिए यह प्रार्थना करने और विनती करने से नहीं चूकते।" पौलुस का प्रार्थना का जीवन ऐसा ही था । यशायाह 52:11, "हे यहोवा (परमेश्वर) के पात्रों के ढोने वालो अपने को शुद्ध करो। "
पास्टर को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिनके हृदय में भटके और मरते हुए लोगों के प्रति करुणा हो। प्रेरितों के काम 20:31, "इसलिए जागते रहो; और स्मरण करो; कि मैंने तीन वर्ष तक रात-दिन आंसू बहा - बहा कर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा।" मत्ती 9:36, "जब उस (यीशु) ने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया।"
2. निजी सेवकाई
पास्टर को लोगों से व्यक्तिगत रूप से उद्धार के विषय में बातचीत करने और व्यक्तिगत समस्याओं को समझने के योग्य होना चाहिए तथा उनकी साक्षियों में कमी-घटी को इंगित करने योग्य होना चाहिए; मत्ती 18:15-17
पास्टर को दुःखी और शोकित लोगों को सान्त्वना देना सीखना चाहिए। उसको इस योग्य होना चाहिए कि उनके व्यक्तिगत जीवनों में प्रविष्ट होकर उनके परिवार का एक भाग बन जाए रोमियों 12:15, "आनन्द करने वालों के साथ आनन्द करो; और रोने वालों के साथ रोओ।" पास्टर को याद रखना चाहिए कि वह विशेष रूप से एक चरवाहा है और हर समय पृथ्वी पर प्रभु यीशु का प्रतिनिधित्व करता है।
3. सार्वजनिक सेवकाई
पास्टर होने के नाते उसकी सबसे बड़ी सेवकाई खड़े हो कर सुसमाचार प्रचार करना है। इसमें शिक्षा और अनुभव सम्मिलित होगा और प्रभावशाली बनने के लिए परमेश्वर की आशिष की आवश्यकता होगी। जिससे पापियों का हृदय परिवर्तन हो सके और विश्वासियों को बल मिल सके।
उसे परमेश्वर का समस्त परामर्श देना याद रखना चाहिए, इसमें सुसमाचार प्रचार, बाइबल के सिद्धान्त, शिक्षाएं, ताड़नाएं, उपदेश और चेतावनियाँ सम्मिलित होंगी। प्रेरितों के काम 20:27, "क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझका।
उसे सार्वजनिक रूप में प्रार्थना करना भी सीखना चाहिए, जो कि केवल गुप्त स्थानों पर बहुत अधिक निजी प्रार्थना करने के द्वारा ही सीखी जा सकती है। अपनी प्रार्थना में वह मण्डली को ऊपर उठा कर परमेश्वर की उपस्थिति और आराधना के भव्य वातावरण में पहुँचा देता है।
उसे पवित्रशास्त्र को स्पष्ट रूप में आदरपूर्वक और विशिष्ट रूप पढ़ना सीखना चाहिए जिससे सभी लोग समझ सकें। नहेम्याह 8:8, “और उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक से पढ़ कर अर्थ समझा दिया; और लोगों ने पाठ को समझ लिया।" उसे झुण्ड की रखवाली करने का आदेश दिया गया है, प्रेरितों के काम 20:28, उपदेशों और बाइबल के अध्ययन द्वारा, जो कि उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुकूल हो।
बपतिस्में के लिए प्रत्याशी तैयार करना भी उसकी जिम्मेवारी है। वह -भोज और बपतिस्मा दोनों संस्कारों के प्रति भी जिम्मेवार है। प्रभु- आराधना-सभा की समाप्ति पर उसकी जिम्मेवारी है कि वह लोगों को परमेश्वर की ओर से आशिष दे। गिनती 6:23-26; प्रकाशितवाक्य 1:45; लूका 1:21 (लोग जकरयाह की बाट जोहते रहे कि वह बाहर आकर उनको आशिष दे)।
उसे अपने झुण्ड को झूठी शिक्षाओं और झूठे शिक्षकों से बचाना है; प्रेरितों के काम 20:29-30। अपने झुण्ड के गरीबों के प्रति उसकी विशेष जिम्मेवारी है, प्रेरितों के काम 11:2630। उसे अपने सदस्यों को उन क्षेत्रों में पहुँचने की शिक्षा देने का विशेषाधिकार प्राप्त है जहाँ अभी तक सुसमाचार नहीं पहुँचा है। इसको वह अपना उदाहरण प्रस्तुत करके उत्तम रीति से कर सकता है-वह उनको ऐसी यात्राओं में अपने साथ ले जाकर उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है। सभी बातों में वह लोगों के लिए प्रभु यीशु और धार्मिकता का एक आदर्श है।
4. उद्देश्य
प्रचारक का उद्देश्य सही होना चाहिए प्रभु के नाम की महिमा। पौलुस का उद्देश्य धन और ख्याति नहीं था, परन्तु मनुष्य और उनका उद्धार और स्थिरता था।
1 कुरिन्थियों 1:15-18 अत्यावश्यकता और दया पौलुस में विद्यमान थी और वह आगे बढ़ने के लिए बाध्य हो जाता था। पास्टर को सदा ही प्रार्थनापूर्ण, निष्ठावान, परिश्रमी और विश्वासयोग्य होना चाहिए। आश्चर्यजनक संदेश संसार के अन्त की निकटता, मृत्यु की निकटता, मसीह का द्वितीय आगमन - उसका उद्देश्य प्रभु की महिमा होना चाहिए, कुलुस्सियों 3:17; 1 कुरिन्थियों 10:31
5. अनुकूलनीयता
1 कुरिन्थियों 9:4, पौलुस लोगों के विश्वास करने की खातिर अपना खाना-पीना तक छोड़ने के लिए तैयार रहता था। पौलुस ने अधिक आत्माएं जीतने और सन्देह को दूर करने के उद्देश्य से कुरिन्धुस में वेतन लेने से भी इन्कार कर दिया था। पौलुस आत्माएं जीतने की खातिर खाने-पीने की आदतों को बदलने और अपनी स्वतन्त्रता को बलिदान करने के लिए तैयार रहता था।
पौलुस ने अपने को विभिन्न वर्ग के लोगों के अनुकूल बना लिया था: यहूदियों के लिए वह यहूदी था; व्यवस्था के अधीन लोगों के लिए वह व्यवस्था के अधीन जैसा बना; वह व्यवस्थाहीनों के लिए व्यवस्थाहीन बना; दुर्बलों के लिए वह दुर्बल बना; 1 कुरिन्थियों 9:19-23। पौलुस विवाह, घर और बाल बच्चों से बचे रहने के लिए तैयार था, यदि इससे अधिक लोग बच सकें। पौलुस अपने सामाजिक जीवन और प्रथाओं (परन्तु मसीही सिद्धान्तों को नहीं) को नियंत्रित करने के लिए सदा तैयार रहता था, जिससे वह आत्माओं को जीत सके और अनावश्यक आक्रमण से भी सुरक्षित रहे।
6. जिम्मेवारी
पास्टर अपने झुण्ड की आत्माओं के लिए परमेश्वर के सन्मुख जिम्मेवार है, इब्रानियों 13:17, “क्योंकि वे उनकी नाई तुम्हारे प्राणों के लिए जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर।"
सफल पास्टर संयमी और निरन्तर आत्मा द्वारा नियंत्रित होना चाहिए। जो पास्टर आरम्भ अच्छी रीति से करता है, परन्तु फिर प्रभु को एक ओर रख देता है, वह अपने को हटा दिए जाने के खतरे में डाल देता है। 1 कुरिन्थियों 9:27, यहाँ तक कि महान प्रेरित पौलुस तक इस बात से डरता प्रतीत होता है।
सारांश
2 कुरिन्थियों 2:16, "इन बातों के योग्य कौन है?" 2 कुरिन्थियों 3:5, "हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।" लूका 9:62, "जो कोई अपना हाथ हल पर रख कर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।"
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. वे दस स्तर बताइए जो मण्डली ने अपने पास्टर के लिए निर्धारित किए हैं।
2. पास्टर के व्यक्तिगत जीवन के विषय में पाँच बातें बताइए ।
3. आपकी राय में पास्टर के कार्य का कौन सा भाग सबसे अधिक महत्वपूर्ण है? क्यों प्रचार ? निजी सुझाव देना? भेंट करना ? सार्वजनिक सम्बन्ध ?
4. पास्टर की निजी सेवकाई के चार पहलू बताइए।
5. सेवकाई की तैयारी के लिए जो पाँच बातें आवश्यक हैं, उनको बताइए।
6. वे छः भिन्न बातें बताइए जिनको एक पास्टर को अपने प्रचार में कम से कम प्रति तीन महीने में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए।
7. पास्टर की जिम्मेवारी का कार्य क्षेत्र बताइए।
8. प्रचार के दो झूठे तथा एक सच्चा उद्देश्य बताइए।
9. क्या पास्टर में अनुकूलनीयता होनी चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
10. पास्टर की प्रथम जिम्मेवारी किस के प्रति है? मण्डली के? चर्च के एल्डरों या चर्च बोर्ड के प्रति ?

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