बाइबल के अनुसार उपवास - Fasting According To The Bible Hindi


बाइबल के अनुसार उपवास - Fasting According To The Bible Hindi

भूमिका

   इस अध्याय के लिए सामग्री "Studies in the Sermon on the Mount Vol. 2. लेखक डॉ॰ डी॰ मर्टिन लॉयड जोन्स; जेम्स हेस्टिंग्स की, “Dictionary of the Bible"; टिलौटसन और अंगर से ली गई है।

   समय समय पर गहरे जीवन सम्बन्धी जो सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं उनमें ये प्रश्न बहुधा उठाए जाते हैं: "क्या हमें अधिक समय उपवास रखना चाहिए? "क्या नए नियम की कलीसिया में उपवास एक भला दिया गया अनुग्रह है?"; "क्या आप उपवास रखते हैं?"; "कितने अन्तर से ?" "क्यों?"

   यह अध्याय उन मूलभूत प्रश्नों में से कुछ का उत्तर देने का प्रयास है। उपवास का उल्लेख पंच-ग्रंथ (Pentateuch) में नहीं पाया जाता है, परन्तु ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका उल्लेख मिलता है। सम्भवतः उपवास का प्रथम उल्लेख ( न्यायियों 20:26 तब सब इस्राएली, वरन् सब लोग बेतेल को गए; और रोते हुए यहोवा के सामने बैठे रहे, और उस दिन साँझ तक उपवास किया, और यहोवा को होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। ) में पाया जाता है जो 1400 ई० पू० की घटना है।

   रोमन कैथोलिक और मुसलमान बहुधा उपवास रखते हैं; वहीं प्रोटैस्टैन्ट्स इसकी विपरीत चरम सीमा तक पहुँच गए हैं, वे कभी-कई भार या कभी भी उपवास नहीं रखते।

   ( लैव्यव्यवस्था 16:29-31; 
   29  “तुम लोगों के लिये यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम उपवास करना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश का हो चाहे तुम्हारे बीच रहनेवाला कोई परदेशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम-काज न करे;
   30 क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिये तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित किया जाएगा; और तुम अपने सब पापों से यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे।
   31 यह तुम्हारे लिये परमविश्राम का दिन ठहरे, और तुम उस दिन उपवास करना और किसी प्रकार का काम-काज न करना; यह सदा की विधि है। )
  
( लैव्यव्यवस्था 23:27-32
   27 उसी सातवें महीने का दसवाँ दिन प्रायश्चित का दिन माना जाए; वह तुम्हारी पवित्र सभा का दिन होगा, और उसमें तुम उपवास करना और यहोवा का हव्य चढ़ाना।
   28 उस दिन तुम किसी प्रकार का काम-काज न करना; क्योंकि वह प्रायश्चित का दिन नियुक्त किया गया है जिसमें तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के सामने तुम्हारे लिये प्रायश्चित किया जाएगा।
   29 इसलिए जो मनुष्य उस दिन उपवास न करे वह अपने लोगों में से नाश किया जाएगा।
   30 और जो मनुष्य उस दिन किसी प्रकार का काम-काज करे उस मनुष्य को मैं उसके लोगों के बीच में से नाश कर डालूँगा।
   31 तुम किसी प्रकार का काम-काज न करना; यह तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में तुम्हारे घराने में सदा की विधि ठहरे।
   32 वह दिन तुम्हारे लिये परमविश्राम का हो, उसमें तुम उपवास करना; और उस महीने के नवें दिन की साँझ से अगली साँझ तक अपना विश्रामदिन माना करना।”)

   जैसे अनुच्छेदों में "अपने जीव को दुख देना" बताया गया है और ( भजन संहिता 35:13 जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहने रहा, और उपवास कर करके दुःख उठाता रहा;
मुझे मेरी प्रार्थना का उत्तर नहीं मिला। )

जैसे अनुच्छेदों के प्रकाश में इसकी व्याख्या उपवास के रूप में की गई है। ( भजन संहिता 35:13, "उपवास करके दुख उठाता रहा।"

नहेम्याह की पुस्तक ( 7:73; इस प्रकार याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैये, प्रजा के कुछ लोग और नतीन और सब इस्राएली अपने-अपने नगर में बस गए। ; नहेम्याह 9:38 इस सब के कारण, हम सच्चाई के साथ वाचा बाँधते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं। ) सार्वजनिक उपवास का विवरण प्रस्तुत करती है।

   अपनी बन्धुआई के काल में इस्राएलियों ने पश्चात्ताप दिवस के अतिरिक्त चार और उपवास निर्धारित कर दिए थे
  
( जकर्याह 7:3-5 और सेनाओं के यहोवा के भवन के याजकों से और भविष्यद्वक्ताओं से भी यह पूछें, “क्या हमें उपवास करके रोना चाहिये जैसे कि कितने वर्षों से हम पाँचवें महीने में करते आए हैं?”
   4 तब सेनाओं के यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा;
   5 “सब साधारण लोगों से और याजकों से कह, कि जब तुम इन सत्तर वर्षों के बीच पाँचवें और सातवें महीनों में उपवास और विलाप करते थेa, तब क्या तुम सचमुच मेरे ही लिये उपवास करते थे? ;
   जकर्याह 8:19 “सेनाओं का यहोवा यह कहता है: चौथे, पाँचवें, सातवें और दसवें महीने में जो-जो उपवास के दिन होते हैं, वे यहूदा के घराने के लिये हर्ष और आनन्द और उत्सव के पर्वों के दिन हो जाएँगे; इसलिए अब तुम सच्चाई और मेल मिलाप से प्रीति रखो। )
  
1 ) यरूशलेम को अधिकार में कर लिए जाने की स्मृति में उपवास - चौथे मास के सत्रहवें दिन।

2 ) मन्दिर के जलाए जाने की स्मृति में उपवास पांचवें महीने के नौवे दिन।

3) गिल्विय्याह की हत्या की स्मृति में उपवास - सातवें महीने के दसवें दिन।
   यरूशलेम की शत्रु द्वारा घेराबन्दी की स्मृति में उपवास- दसवें मास में।

   नए नियम में फरीसी सप्ताह में दो दिन उपवास रखते थे (सोमवार और बृहस्पतिवार। वर्तमान यहूदी कलैन्डर 22 उपवासों की अनुमति देता है, इसके अतिरिक्त पश्चात्ताप के दिन का उपवास अलग है।


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1. उपवास का पुराने नियम का स्तर

टिलौटसन के अनुसार इसमें छः बातें सम्मिलित थीं:

1) कठोर निराहार (कुछ कहते हैं कि मूंग-मसूर की दाल खाई जा सकती थी)।

2) दीनतापूर्वक परमेश्वर के सम्मूख अपने पापों का अंगीकार करना।

3) परमेश्वर का दर्शन पाने की तीव्र इच्छा इसमें राख में बैठना और टाट ओढ़ना भी सम्मिलित था; दानिय्येल 9:3

4) अपने और दूसरों के लिए सच्ची मध्यस्थता।

5) गरीबों को भिक्षा देना।

6) जैसी प्रार्थना की गई है और प्रतिज्ञा की गई है, उसी के अनुसार जीवन व्यतीत करना।

2. पुराने नियम के अनुसार उपवास के कारण

1) गहरा शोक व्यक्त करने के लिए- ( 1 शमूएल 31:13 तब उन्होंने उनकी हड्डियाँ लेकर याबेश के झाऊ के पेड़ के नीचे गाड़ दीं, और सात दिन तक उपवास किया।  ) शाऊल के लिए सात दिनों तक उपवास करना।

2 ) ईश्वरीय प्रकोप को टाल देने के लिए
   2 शमूएल 12:16,17, अतः दाऊद उस लड़के के लिये परमेश्वर से विनती करने लगा; और उपवास किया, और भीतर जाकर रात भर भूमि पर पड़ा रहा।
   17 तब उसके घराने के पुरनिये उठकर उसे भूमि पर से उठाने के लिये उसके पास गए; परन्तु उसने न चाहा, और उनके संग रोटी न खाई।
   बालक को जीवित रहने देने के लिए उपवास करना।

3) पाप के लिए शोक और पश्चात्ताप प्रकट करना - योना 3:7, राजा ने अपने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया, “क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या और पशु, कोई कुछ भी न खाएँ; वे न खाएँ और न पानी पीएँ।  नीनवे नगर।

3. अनुचित ढंग का उपवास

   किसी भी अच्छी वस्तु को लेकर उसका दुरुपयोग करना नितान्त सम्भव है, सच्चे हार्दिक इरादे के बिना वस्तु का मात्र बाहरी स्वरूप के लिए अपव्यय करना सम्भव है।

   यशायाह 58:3-5 में परमेश्वर उपवास के बाहरी रूप के पाप को प्रकट करता है:

  यशायाह 58:3-5
  3 वे कहते हैं, ‘क्या कारण है कि हमने तो उपवास रखा, परन्तु तूने इसकी सुधि नहीं ली? हमने दुःख उठाया, परन्तु तूने कुछ ध्यान नहीं दिया?’ सुनो, उपवास के दिन तुम अपनी ही इच्छा पूरी करते हो और अपने सेवकों से कठिन कामों को कराते हो।
  4 सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और झगड़ते और दुष्टता से घूँसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकल रखते हो, उससे तुम्हारी प्रार्थना ऊपर नहीं सुनाई देगी।
  5 जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ अर्थात् जिसमें मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को झाऊ के समान झुकाना, अपने नीचे टाट बिछाना, और राख फैलाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?

1) एक प्रदर्शन के रूप में जिसे परमेश्वर देखे - पद 3 ।

2 ) मात्र अपने प्राणों को दुख देने के लिए पद 3 निराहार रहना ।

3) व्यक्तिगत आनन्द के लिए पद 3, ताकि शेखी बधारी जा सके; लूका 18:12

4) बलपूर्वक पूरा परिश्रम लेने के लिए ( कर्मचारियों का दमन जिससे वे पूरे दिन पूरा काम करें) पद 3

5 ) संघर्ष या वाद-विवाद के लिए पद 4 ।

6) दुष्टता से घूंसे मारने के लिए पद 4 ।

7) परमेश्वर को अपनी प्रार्थना सुनाने के लिए पद 4, परमेश्वर को अपनी प्रार्थना सुनने के लिए बाध्य करना ।

8 ) सिर को झाऊ की नाई झुकाना - पद 5

9) टाट पहन कर राख में बैठना, पद 5, उपवास का बाहरी प्रदर्शन।

4. उचित उपवास - यशायाह 58:6-9

   यशायाह 58:6-9
   6 जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?
7 क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?
8 तब तेरा प्रकाश पौ फटने की नाईं चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरा धर्म तेरे आगे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा।
9 तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं। यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे,

   उचित उपवास प्रतिदिन के पवित्र व्यावहारिक जीवन द्वारा अपना प्रदर्शन कर देगा।

1) दुष्टता के बन्धनों को तोड़ देना, पद 6 ।

2) अन्धेर सहने वालों का जूआ तोड़ देना, पद 6 ।

3) पीड़ित व्यक्ति को स्वतन्त्र कर देना, पद 6 ।

4) प्रत्येक जुए को तोड़ डालना, पद 6 ।

5) भूखों को रोटी खिलाना, पद 7 ।

6) अनाथों और मारे मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, पद 7 ।

7) नंगों को वस्त्र पहिनाना, पद 7 ।

8 ) अपने जाति भाइयों से अपने को न छिपाना, पद 7।
इन आठ बातों को याकूब 1:27 में संक्षिप्त किया जा सकता

5. यीशु और उपवास

   वह उपवासों के प्रति कर्मकांडी नहीं था, परन्तु ऐसी सम्भावना है कि वह मुख्य यहूदी उपवासों का पालन करता था।

   उसने महान परीक्षा से पहले चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया,
   ( मत्ती 4:2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, अन्त में उसे भूख लगी।)
  
उसने उपवास के दुरुपयोग के विरुद्ध चेतावनी दी,
  
( मत्ती, 6:16 जब तुम उपवास करो, तो कपटियों की नाईं तुम्हारे मुंह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुंह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें; मैं तुम से सच कहता हूं, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। )

   उसने शिक्षा दी कि उसके स्वर्गारोहण के बाद उसके चेले उपवास रखेंगे,
   मरकुस 2:20 परन्तु वे दिन आएंगे, कि दूल्हा उन से अलग किया जाएगा; उस समय वे उपवास करेंगे।
    उसने उचित उपवास सम्बद्ध कुछ निर्देश दिए,
    मत्ती 6:17,18  परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुंह धो।
   18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने; इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा॥

उसने उपवास के साथ प्रार्थना को सम्बन्ध किया,

   मरकुस 9:29 उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती॥ (KJV)। उसने कहा कि कुछ दुष्टात्माएं उपवास सहित प्रार्थना के बिना नहीं निकाली जा सकतीं,

6. नया नियम की कलीसिया में उपवास

   पौलुस प्रेरित उपवास रखता था, 2 कुरिन्थियों 6:5; कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ों से, परिश्रम से, जागते रहने से, उपवास करने से।
   2 कुरिन्थियों 11:27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
  
   कलीसिया ने प्रार्थना से पहले ( प्ररितों के काम 13:3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना कर के और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया॥ ) के अनुसार उपवास रखा, और उसके बाद पौलुस और बरनबास को मिशनरियों के रूप में सेवकाई के लिए दूर देशों में भेजा।
   ( प्रेरितों के काम 14:23 और उन्होंने हर एक कलीसिया में उन के लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना कर के, उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था। ) के अनुसार एल्डरों का अभिषेक करने से पहले कलीसिया ने उपवास रखा।
   ( प्रेरितों के काम 10:30 कुरनेलियुस ने कहा; कि इस घड़ी पूरे चार दिन हुए, कि मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि देखो, एक पुरूष चमकीला वस्त्र पहिने हुए, मेरे साम्हने आ खड़ा हुआ।) के अनुसार कुरनेलियस ने चार दिन तक उपवास रखा।
   ( 1 कुरिन्थियों 7:5 तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। ) के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि उपवास में केवल भोजन से ही वंचित रहना नहीं है, वरन पति पत्नी में परस्पर सहमति द्वारा वैध, सामान्य प्रेम से भी पृथक रहना है।

7. आज उपवास का महत्व

   मैडिकल और शारीरिक दृष्टिकोण से उपवास शरीर के लिए उत्तम है, हम में से अधिकांश बहुत अधिक खा जाते हैं, इसलिए पाचन प्रणाली को समय समय पर विश्राम देना बहुत अच्छा है। जिन लोगों का भार आवश्यकता से अधिक या जिनकी तोंद निकली हुई है, उनको अपना भार कम करने के लिए उपवास का परामर्श दिया जाता है। एक अमेरिकन डॉक्टर ने लिखा है, "आपको दावत के बाद उपवास रखना चाहिए।'

   जिन विद्यार्थियों को कठिन परीक्षाएं देनी पड़ती है उनके लिए यह अत्यन्त उत्तम परामर्श है कि वे उपवास रखें क्योंकि इससे मस्तिष्क के क्षेत्र में रक्त का अधिक संचार होता है और विचारों की स्पष्टता प्राप्त होती है। जो लोग लम्बे समय तक उपवास रखते हैं उनका कहना है कि प्रथम तीन चार दिन अधिक कठिन होते हैं परन्तु उसके पश्चात मस्तिष्क असाधारण रूप में स्वच्छ हो जाता है।

   जो मसीही परमेश्वर की इच्छा को जानना चाहते हैं वे उपयोगी रूप से उपवास और प्रार्थना में अपना समय व्यतीत कर सकते हैं। मस्तिष्क स्वच्छ हो जाने पर वे अधिक तर्कसंगत रूप में सोच विचार कर सकते हैं, और विभिन्न परिस्थितियों में और परस्पर प्रभावित करने वाले तत्वों का मूल्यांकन कर सकते हैं। इससे भी अधिक, उपवास प्रभु के सम्मुख हमारी निष्ठा की गहराई का प्रदर्शन है कि हम आग्रहपूर्वक खटखटाने
   ( लूका 11:8 मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। )
   और खटखटाते रहने पर सहमत हैं, जब तक कि प्रकाश नहीं आ जाता।

   भारत का हाइड नामक व्यक्ति प्रार्थना और उपवास का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। उसका बिस्तर बिछा रहता था और भोजन अछूता ही रह जाता था क्योंकि अनजाने ही प्रार्थना में इतना लीन हो जाता था कि उसे खाने और सोने की सुधि ही नहीं रहती थी ।

   मत्ती 6:17,18 परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुंह धो।
18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने; इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा॥
   (प्रभु यीशु का पर्वतीय उपदेश) हमें प्रेरित करता है कि हम गुप्त रूप से उपवास रखें, हमारा उपवास लुका-छिपा हो और हमारे चेहरे उपवास की कहानी न बताएं। उपवास का मूलभूत अर्थ आत्मिक अभिप्रायों हेतु भोजन त्याग करना है। डॉ० जोन्स ने अत्यन्त स्पष्टता से बताया कि उपवास और अनुशासन में बहुत अन्तर है; अनुशासन एक ऐसी चीज है जिसे हम प्रतिदिन करते हैं, और पूरे दिन करते रहते हैं, जब कि उपवास असाधारण परिस्थितियों में एक विशेष चीज होती है।

   उपवास एक ऐसी चीज है जिसको हम प्रार्थना, मनन या परमेश्वर की इच्छा जानने के एक उच्च आत्मिक क्षेत्र में पहुँचने के लिए करते हैं।
  

सारांश

   परमेश्वर को बाध्य करने के विचार से कभी उपवास न कीजिए; चूंकि मैं उपवास रखता हूँ इसलिए परमेश्वर मुझे आशिष देने के लिए या मुझे एक बड़ी आशिष का कारण बनाने के लिए बाध्य है। केवल इसलिए कि हम उपवास रखते हैं, प्रार्थना करते या दशमांश देते हैं, हम परमेश्वर को बाध्य करके अपना दास नहीं बना सकते।

   हमें सीधी आशिष प्राप्ति के लिए उपवास को कभी भी उसका साधन नहीं बनाना चाहिए। उपवास का महत्व अप्रत्यक्ष है, प्रत्यक्ष नहीं। फिर एक मसीही को उपवास क्यों रखना चाहिए? क्योंकि वह किसी आत्मिक कारण या कारणों से इसके लिए स्वयं को प्रेरित किया गया अनुभव करता है। उपवास को कभी भी एक नित्यकर्म नहीं बनाना चाहिए न ही उसे मशीनी बनाना चाहिए। पवित्र आत्मा द्वारा इसके लिए हमें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इस बीच में हमें उसके प्रति आज्ञाकारी रहना चाहिए और उसके निर्देशन में चलना चाहिए।