Bible Study Hindi



बाइबल के विषय में अध्ययन - Bible Study Hindi


बाइबल की प्रेरणा

(The Inspiration of the Bible)


परिचय

बाइबल का लेखक पवित्र आत्मा है, बाइबल के पृष्ठ परमेश्वर के स्वभाव और उद्देश्यों के लिखित रूप में प्रामाणिक प्रकटीकरण है। 

   बाइबल परमेश्वर के प्रति हमारे ज्ञान की श्रोत पुस्तक है, यह ईश्वरीय सत्य की पाठ्य-पुस्तक है; अनन्त जीवन के लिए मार्गदर्शक पुस्तक है। 

   "बाइबल" शब्द यूनानी शब्द "Biblos" से लिया गया है जिसका अर्थ " "एक पुस्तक" है।

   यह ग्रन्थ दूसरे नामों से भी पुकारा जाता है जैसे, “धर्मशास्त्र" (पुस्तक) "पवित्र शास्त्र", “परमेश्वर का वचन", लूका 4:17; 2 कुरिन्थियों 3:14; मरकुस 12:10; मत्ती 22:29; इब्रानियों 4:12

   बाइबल 66 पुस्तकों का एक पुस्तकालय है, जो दो प्रमुख भागों में विभक्त है, पुराना नियम जिसमें 39 पुस्तकें हैं और नया नियम जिसमें 27 पुस्तकें हैं।

   बाइबल को 36-40 लेखकों ने 1600 वर्षों की अवधि में लिखा, जो विभिन्न वर्गों के लोग और विश्व के विभिन्न भागों के निवासी थे।

   बाइबल का अद्वितीय स्वरूप, इसके ईश्वर प्रेरित होने के प्रमाणों में से उत्तम प्रमाण है। क्योंकि इतने अधिक व्यक्तियों द्वारा बिना विरोधाभास के एक पुस्तक का लिखा जाना एक आश्चर्यकर्म है, एक अधिपति लेखक के मार्गदर्शन का तथ्य ही इस आश्चर्यकर्म को स्पष्ट कर सकता है।

   बाइबल का मूलभूत विषय यीशु ख्रीष्ट है, जो इसको समझने की कुंजी बन जाता है। पुराना नियम मूलतः इब्रानी भाषा में लिखा गया था, इसके कुछ भाग, दानिय्येल और एज्रा अरामी भाषा में लिखे गए, और नया नियम यूनानी भाषा में।


1. प्रेरणा का अर्थ 

   "प्रेरणा से हमारा आशय है, पुराने और नए नियम की रचना पर परमेश्वर का अलौकिक नियन्त्रण।" रॉबर्ट ली।

   बाइबल "Theopneustos" (परमेश्वर-श्वासी: God-breathed) है, 2 तीमुथियुस 3:16, "हर एक पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और लाभदायक है।"

   "प्रेरणा मनुष्यों में परमेश्वर का दृढ चेतन अन्तः श्वसन है, जो उन्हें सत्य अभिव्यक्ति की योग्यता प्रदान करता है, यह मनुष्यों में से होकर परमेश्वर का कथन है।" - विलियम इवन्स।

   2 पतरस 1:21, "क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभरे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।"

   पवित्र आत्मा आश्चर्यजनक रूप से पवित्र शास्त्र की विशुद्धता को संरक्षित रखने में उपस्थित था। परमेश्वर के भक्त जनों ने पवित्र आत्मा की छाया में उसकी आज्ञा से लिखा, इस प्रकार जब उन्होंने उन बातों को, जो उन्हें ज्ञात थी या अज्ञात, लिखा तो उनको भूल करने से बचाकर रखा गया।


Vishwasi Tv में आपका स्वागत है

Rad More: ज्यादा बाइबल अध्ययन के लिए क्लिक करें:


2. प्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्त

   हम यह जानने के इच्छुक हैं कि कैसे परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पवित्र शास्त्र दिया। कुछ लेखकों ने इतिहास लिखा जिसके वे स्वयं साक्षी थे, दूसरों ने उन बातों को लिखा जो बहुत समय पहले हुई थी (मूसा तथा सृष्टि); दूसरों ने भविष्यद्वाणियां लिखीं।


क) प्रकाशः कुछ लोगों का विश्वास है कि लेखक समाधिस्थ थे और उन्होंने बाइबल देखी और उन्होंने एक-एक शब्द की नकल की, जैसे-जैसे परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया।

   हम यह स्वीकार करते हैं कि बहुत से लेखकों ने भविष्यद्वाणियां लिखीं; परन्तु हम इस सिद्धन्त को इसलिए अस्वीकार करते हैं क्योंकि इससे लेखक को शब्दों के चुनाव की बिल्कुल स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती थी।

   पौलुस की शिक्षा और तार्किक मस्तिष्क रोमियों और गलातियों में पूर्णत: स्पष्ट है।

ख) प्रदीप्ति (ILLUMINATION पवित्र आत्मा ने उन्हें घटनाओं को आत्मिक ढंग से देखने के लिए प्रदीप्त किया और तब उन्होंने अपने शब्दों और लेखन शैली में उन बातों को लिखा।

   हमारा विश्वास है कि न केवल विचार ही ईश्वर प्रेरित है, वरन शब्द भी है। परमेश्वर ने लेखक को अपने शब्द और शिक्षा का प्रयोग करने की अनुमति दी, जो लेखक का व्यक्तित्व प्रकट करते हैं।

   फिर भी हम इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते क्योंकि यह बाइबल की ईश्वरीय प्रेरणा के लिए पर्याप्त स्पष्ट नहीं है।

   बाइबल भक्त जनों द्वारा परमेश्वर पर मनन करने का परिणाम नहीं है, परन्तु स्वयं परमेश्वर ने अपने विचारों को मनुष्य के अन्दर फूंका ताकि वे इसे लिखें।


ग) शाब्दिक विवरण (VERBATIM REPORTING: प्रस्तुत कर देना। परमेश्वर ने वैसे ही पवित्रशास्त्र को सिखाया जैसे कोई प्रशासक अपने सेकेटरी से लिखवाता है। यह प्रेरणा को घटा कर मात्र एक यान्त्रिक प्रणाली बना देता है।

   हम इस सिद्धान्त को अस्वीकार करते हैं क्योंकि दाऊद, मूसा और पतरस जैसे मनुष्यों का व्यक्तित्व या विशेषता उनके लेखों से पूर्णतः स्पष्ट है। डॉक्टर लूका ने लूका 8:44 में एक मैडिकल शब्द - (StanChed) (लहू बहना थमना) प्रयोग किया है; दाऊद चरवाहे ने भेड़ें, गोफन, सोंटा आदि शब्दों का प्रयोग किया है (छड़ी और लाठी)।


घ) स्वाभाविक प्रेरणा: यह सिद्धान्त मानवीय प्रतिभा को बढावा देता है और अलौकिक, रहस्यमय या प्रेरणा में विलक्षणता का इनकार करता है। यह पवित्रशास्त्र के महत्व को घटा कर उसे शेक्सपीयर के मिल्टन, कन्फ्यूशस या जोस रिजाल के लेखों के समान विशेष लेख बना देगा। प्रेरणा इससे कहीं अधिक है; यह वास्तव में- "प्रभु यों कहता है" अर्थात् परमेश्वर बोल रहा है। हम इस सिद्धान्त को अस्वीकार करते हैं क्योंकि इससे यह सिद्धान्त बल पाता है कि " 'बाइबल में परमेश्वर का वचन है," जबकि स्वयं बाइबल परमेश्वर का वचन है।


च) विश्वव्यापी मसीही प्रेरणा: हम सब परमेश्वर के पुत्र हैं, और हम में से प्रत्येक को किसी न किसी अवसर पर एक पुस्तक या कविता लिखने की प्रेरणा मिलती है, या कोई कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। यदि यह सिद्धान्त सच होता तो हम किसी भी अवसर पर नई बाइबल पाने की अपेक्षा रख सकते थे। बाइबल की ईश्वरीय प्रेरणा इससे कहीं अधिक है, यह एक सुनिश्चित, विशेष प्रेरणा थी जो कि बाइबल लिखने के विशेष कार्य के लिए थी, परमेश्वर का मानव जाति के लिए सन्देश।


छ) मशीनी प्रेरणा: मनुष्य मशीन बन गए और उन्होंने अत्यधिक दबाव के अन्तर्गत ऐसी बातें लिखी जो सम्भवतः न तो वे समझते थे और न ही उसका उन्हें बोध था।

   हम इसे अस्वीकार करते हैं क्योंकि हम यूहन्ना का प्रेममय स्वभाव उसकी पत्रियों में देखते हैं; याकूब की पत्री में याकूब का दृढ स्वभाव दिखने में आता है, और पतरस का उग्र भावात्मक स्वभाव उसकी पत्रियों में दृष्टिगोचर होता है।


ज) विचारों की प्रेरणाः इस सिद्धान्त के अनुसार परमेश्वर ने लेखक को प्रमुख विचार दिया और वे उस विचार को अपने शब्दों में, जैसा उत्तम समझते थे व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र थे। हम इसको अस्वीकार करते हैं क्योंकि हमारा विश्वास है कि लेखक, पवित्र आत्मा ने प्रत्येक शब्द की छान-बीन की, समीक्षा की और उसे स्वीकार किया।


झ) मौखिक प्रेरणा: यह सिद्धान्त दावा करता है कि प्रत्येक शब्द ईश्वर प्रेरित है, कुछ लोग तो इससे भी आगे बढ़कर कहते हैं कि विराम-चिह्न तक ईश्वर प्रेरित है। वास्तविकता तो यह है कि मूल भाषाओं में बड़े-अक्षर (Capitals) या विराम चिह्न नहीं थे।


ट) आंशिक प्रेरणाः सम्पूर्ण बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है, जो यह सुझाव देते हैं कि बाइबल में परमेश्वर का वचन है; हम इस सिद्धान्त को अस्वीकार करते हैं क्योंकि 2 तीमुथियुस 3:16 कहता है, " हर एक पवित्र शास्त्र", यह सिद्धान्त प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव और निर्णय करने की छूट देता है कि कौन सा अंश “वास्तविक ईश्वर प्रेरित अंश" है।

   यह सिद्धान्त इसलिए अस्वीकार किया जाता है क्योंकि यह सन्देह, अनिश्चितता और बड़ी गड़बड़ी की ओर अग्रसर करता है।


3. प्रामाणिक स्पष्टीकरण समग्र या पूर्ण प्रेरणा 

   हमारा विश्वास है कि हर एक पवित्र शास्त्र समान रूप में ईश्वर प्रेरित है, यह 2 तीमुथियुस 3:16 पर आधारित है।

   अंग्रेजी भाषा की बाइबल के संशोधित संस्करण में 2 तीमुथियुस 3:16 में बताया गया है, "हर एक धार्मशास्त्र जो परमेश्वर की प्रेरणा से है लाभदायक है।" यह त्रुटिपूर्ण है क्योंकि यह आंशिक प्रेरणा की शिक्षा देता है।

   हम वास्तव में नहीं जानते हैं कि यह प्रेरणा, "कैसे" प्राप्त हुई, परन्तु हमारा विश्वास है कि प्रत्येक लेखक को अपने व्यक्तित्व, शिक्षा, और अनुभव को निश्चित सीमा तक प्रयोग करने की स्वतंत्रता थी। पवित्र आत्मा ने पवित्र शास्त्र की विशुद्धता को संरक्षित रखने के लिए, प्रत्येक विचार प्रत्येक वाक्यांश तथा प्रत्येक शब्द की सुरक्षा की।


4. बाइबल प्रेरणा का दावा करती है

1) लेखकों के लिए: 2 पतरस 1:21, "भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभरे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।"

2) लेखों के लिए: हम विश्वास करते हैं कि हर एक पवित्रशास्त्र समान व पूर्ण रूप से ईश्वर प्रेरित है। यह तथ्य 2 तीमुथियुस 3:16 पर आधारित है।

3) शब्दों के लिए: 1 कुरिन्थियों 2:13, “जिनको हम मनुष्यों की ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में 2 पतरस 3:2, "तुम उन बातों को जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने पहले से कही है, और प्रभु और उद्धारकर्ता की उस आज्ञा को स्मरण करो, जो तुम्हारे प्रेरितों के द्वारा दी गई थी।” यहूदा 17, “उन बातों को स्मरण रखोः जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहले कह चुके हैं।"


5. प्रेरणा से सम्बन्धित स्मरण रखने वाली बातें 

   अनुवाद ईश्वर-प्रेरित नहीं है: इनमें नकल करने सम्बन्धी भूलें हैं; आज एक भी मूल प्रति अस्तित्व में नहीं है; जो प्राचीन प्रतिलिपियां खोजी गई हैं वे लगभग समरूप है।

   बाइबल में तथ्यों का उसी रूप में वर्णन किया गया है जैसे वे हैं: हनन्याह ने झूठ बोला और झूठ लिखा गया है; शास्त्रियों ने कहा यीशु में दुष्टात्मा है और वह पागल है और यह झूठ भी वैसे ही लिख दिया गया है।


सारांश

हम पवित्र शास्त्र को परमेश्वर के अचूक वचन के रूप में स्वीकार करते हैं; 66 पुस्तकों की तालिका को पूर्ण मानते हैं। हम (अपाँत्रिक, अप्रामाणिक ग्रन्थ या अन्य किसी पुस्तक को ईश्वर प्रेरित होने की मान्यता नहीं देते हैं।

   मूल पवित्र शास्त्र ही अन्तिम दिन न्याय का स्तर होगा, यूहन्ना 12:48 आइए हम प्रतिदिन बाइबल पढ़ें और अपने प्रतिदिन के जीवन में उसके सन्देशों का पालन करें। परमेश्वर के लोगों को इस पुस्तक का सावधानी तथा पवित्रता के साथ प्रयोग करना चाहिए, यह हमारे लिए परमेश्वर की पुस्तक है।

  आइए आनन्दित हों कि परमेश्वर ने पवित्र आत्मा की सामर्थ्य द्वारा हमसे बातचीत की है और इसके प्रकाशन के प्रकाश में चलने के लिए हमें प्रेरित किया है।


पुनर्विचार के लिए प्रश्न

1. पवित्र बाइबल का अधिपति लेखक कौन है?

2. दो महत्वपूर्ण पद बताइए जो बाइबल की ईश्वरीय प्रेरणा से सम्बन्धित हो।

3. बाइबल के विषय में कुछ बातें बताइए 1) विभिन्न नाम 2) खण्ड 3) लेखक 4) इसके लिखे जाने का काल 5) प्रमुख विषय 6) भाषाएं।

4. प्रेरणा से क्या अर्थ है? 

5. प्रेरणा के आठ त्रुटिपूर्ण सिद्धान्त बताइए।

6. एक वाक्य में बताइए कि हम प्रश्न 5 में प्रस्तुत सिद्धान्तों को क्यों अस्वीकार करते हैं।

7. परिपूर्ण या पूर्ण प्रेरणा को स्पष्ट कीजिए।

8. पवित्र शास्त्र का एक पद बताइए जो बाइबल के प्रेरणा के इन दावों को दर्शा सके, 1) इसके लेखकों 2) लेखों और इसके 3) शब्दों के लिए।

9. क्या अंग्रेजी की "किंग जेम्स" बाइबल ईश्वर-प्रेरित है? क्यों? 

10. हम अप्रामाणिक ग्रन्थ अपॉक्रिफ (Apocrypha) को क्यों अस्वीकार करते हैं? एक पद उद्धृत कीजिए।