व्यभिचार - नई नैतिकता - अनैतिकता - Adultery - New Morality - Immorality

व्यभिचार, नई नैतिकता, अनैतिकता और नैतिकता Adultery, New Moralit, Immorality, Morality

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प्रस्तावना

    हम अन्तिम दिनों में रह रहे हैं; जब कि मनुष्य उन नैतिक नियमों और उनके स्तर को बदलने का प्रयास कर रहे हैं, जिनको परमेश्वर द्वारा शताब्दियों पहले स्थापित किया गया था।

    परमेश्वर पवित्र और न्यायी है, वह बदलता नहीं; न ही उसके स्तर बीसवीं शताब्दी की काल्पनिक प्रगति के अनुकूल ढल सकते है।

    यह तथाकथित "नई नैतिकता" जो कि आधुनिक ज्ञान और विज्ञान के प्रकाश में सदाचार के नियमों को पुनः स्थापित करने का दावा करती है, परन्तु वास्तव में यह प्रगति के स्थान पर रोमियों 1:18, 24, 28 में व्यक्त "नैतिकता " पर वापिस लौट रही है। यह अधोगति है।

1. नई नैतिकता

नई नैतिकता की विषय वस्तु दोहरी है:

1) अविवाहित स्त्री-पुरुषों के लिए "विवाह के परीक्षण" के आधार पर पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहना; ताकि वे सुखी जीवन जीने के लिए एक-दूसरे की योग्यता की जांच कर सकें।

2 ) विवाहित लोगों के लिए विवाह के बन्धन से बाहर जाकर दूसरों से अपनी अपूर्ण वासना की तृप्ति के लिए सम्बन्ध स्थापित करना। यह शिक्षा बताती है कि यदि कोई इन यौन अनुभवों में लिप्त हो जाता है (विवाह में या बाहर) तो आपको इससे यह अनुभव प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त होगी कि आप सृष्टि तथा परमेश्वर के साथ एक है! कैसी चरम निन्दनीय मूर्खता है।

    उनका कथन है कि उचित और अनुचित दोनों ही शब्द मनुष्य की अभिलाषा (आवश्यकता) से सम्बन्धित शब्द है न कि कठोर आचार संहिता से सम्बन्धित । उनका मत है कि यौन प्रेम की अभिव्यक्ति है उसको निषेध नहीं किया जाना और न ही इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। 

       समलिंग कामुकता (या स्त्री- समलिंग कामुकता ) परस्पर एक ही लिंग के लोगों में प्रेम की अभिव्यक्ति है, इसलिए लोगों पर कानून द्वारा अपने को दूसरे पर इस प्रकार अभिव्यक्ति करने की अनुमति दी जानी चाहिए जो उनके सर्वाधिक स्वाभाविक लगता है।

   यह नई नैतिकता करुणा के नाम पर व्यभिचार और परस्त्रीगमन को अनदेखी करता है। "व्यापक और स्वच्छन्द सहवास भयावह संक्रामक यौन रोग उत्पन्न कर सकता है" (जैसे एड्स) - डॉ० अर्नेस्ट क्लैक्सटन ने "Christian Reader" पत्रिका में लिखा था, जो दिसम्बर 1965 और जनवरी 1966 में प्रकाशित हुआ था।

    बाइबल कहती है, “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा," गलातियों 6:7 परमेश्वर की आज्ञाएं आज भी वही है-निर्गमन 20:14, “तू व्यभिचार न करना" और मरकुस 10:19, "तू आज्ञाओं को तो जानता है....व्यभिचार न करना।"


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2. अनैतिकता

    कभी-कभी हमसे पूछा जाता है अनैतिकता किस प्रकार राष्ट्र का विनाश कर सकती है? इसका उत्तर यह है कि अनैतिकता पाप है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन है। नीतिवचन 14:34, “जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है, परन्तु पाप से देश के लोगों का अपमान होता है।

    "अनैतिकता" शब्द बाइबल में नहीं पाया जाता, परन्तु वर्तमान आधुनिक शब्दावली में इसके दो मूल अर्थ है: 

(1) यौन अशुद्धता और 

(2) धोखेबाजी और झूठ।

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1) यौन सम्बन्धी अशुद्ध

क) व्यभिचार (Adultery): निर्गमन 20:14 में निषेध है, जब कि कम से कम एक साझेदार विवाहित है।

ख) व्यभिचार ( Fornication): प्रेरितों के काम 15:20 में निषेध है, यह विवाहित लोगों के बीच यौन सम्बन्ध है।

ग) जनाना ( Effeminate ): 1 कुरिन्थियों 6:9 में निषेध है; एक पुरुष के लिए स्त्री के समान कोमल और सुकुमार बनना।

घ) हस्तमैथुन (Masturbation) : 1 कुरिन्थियों 6:9 में वर्जित हैं, अपने पुरुषत्व का दुरुपयोग करने वाले।

च) वेश्यागामी (Whoremonger): 1 कुरिन्थियों 6:9 में वर्जित है, वेश्या के साथ यौन सम्बन्ध रखना।

छ) अत्यधिक अनुराग ( Inordinate affection): कुलुस्सियों 3:5 में निषेध है; लट्टू हो जाने वाला प्रेम जो निर्लज्ज, अत्यधिक, असंयमी और अव्यवस्थित है।

ज) समलिंग कामुकता (Homosexual): रोमियों 1:27; यह सदोम का पाप था, उत्पत्ति 19:5; पुरुषों का पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध 

झ) स्त्री समलिंग कामुकता ( Lesbian): रोमियों 1:27; स्त्रियों का दूसरी स्त्रियों से यौन सम्बन्ध।

ट) लीला-क्रीड़ा (Lewdness) : न्यायियों 20:6 में इसको दण्डनीय कहा गया है, दुष्ट विचार और युक्तियां कामुकता।

ठ) नग्नता (Nakedness) : निर्गमन 32:25; नग्नता की स्थिति अनैतिकता और मूर्तिपूजा को प्रोत्साहित करती है। ऊंचे स्कर्ट, नीचे गले के ब्लाउज़ और अत्यधिक चुस्त कपड़ों से सावधान रहिए ।

ड) तलाक (Divorce): यूहन्ना 4:17, 18 में बताई गई स्त्री व्यभिचार में जीवन व्यतीत कर रही थी क्योंकि वह पाँच पति कर चुकी थी 'और जिसके साथ वह उस समय थी वह भी उसका पति नहीं था।

ढ) दुष्ट कामवासना ( Evil Concupiscence): इसको कुलुस्सियों 3:5, 1 थिस्सलुनीकियों 4:5 में दण्डनीय ठहराया गया है; वासना और कामुकतापूर्ण इच्छा।

2 ) धोखेबाजी और झूठ:

क) धोखेबाजी करना: इसको आमोस 8:5 में दोषी ठहराया गया है- निकम्मी वस्तुएं अधिक मूल्य पर बेचना, कम तौलना आदि। 

ख) बेईमानी: इसको 2 कुरिन्थियों 4:2 में वर्जित ठहराया गया है, कलंक पक्षपात, छल, लम्पटता।

ग) घूस: घूसखोरी को नष्ट किया जाना चाहिए, अय्यूब 15:34; आमोस 5:12; घूस लेने से इन्कार करो, यशायाह 33:15।

घ) जुआ: उड़ाऊ पुत्र ने विलासिता में अपना समस्त धन उड़ा दिया, लूका 15:13

च) भ्रष्टाचार: 2 पतरस 2:19, झूठे शिक्षक स्वतन्त्रता की प्रतिज्ञा करते हैं परन्तु वे आप ही भ्रष्टाचार के दास होते हैं, इसलिए उस प्रतिज्ञा को पूरा नहीं कर सकते। परमेश्वर के बालक को भ्रष्टाचार के बन्धनों से मुक्त होना है, रोमियों 8:211

छ) अन्धेर करना: 1 कुरिन्थियों 6:10 कहता है कि अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे। फरीसियों और शास्त्रियों को प्रभु यीशु ने अन्धेर करने वाले कहकर फटकारा था (मत्ती 23:25 ) (अन्धेर करने का अर्थ है गैर-कानूनी ढंग से लूटना-खसोटना)

ज) धोखेबाजी: इसको याकूब 5:4; भजन संहिता 10:7 में दण्डनीय ठहराया गया है; यह छल द्वारा दूसरों की मजदूरी को अपने पास रखना है।

झ) आलस्यः इसको नीतिवचन 15:19; 24; 21:25; 22:13; 24:30; 26:13-16 में दोषपूर्ण घोषित किया गया है। रोमियों 12:11, "प्रयत्न करने में आलसी न हो। " स्वामी के समय, सम्पत्ति और कार्य को नष्ट करना।

(3) नैतिकता और अनैतिकता में अन्तरः

    कभी-कभी इस गुत्थी को सुलझाना कठिन प्रतीत होता है, परन्तु परमेश्वर आमोस 7:7,8 में अपने साहुल- सूत्र का प्रयोग करता है; और वही हृदय को जाँचता है, और सफेद और काले, अच्छाई और बुराई, अन्धेरे और उजियाले के भेद को समझने में समर्थ है। परमेश्वर के साहुल-सूत्र का आदर रखना सीखिए।

4) अनैतिकता किस प्रकार एक राष्ट्र को नष्ट करती है: 

क) केवल धार्मिकता ही किसी राष्ट्र को उन्नत बना सकती है, नीतिवचन 14:34 । जो लोग स्वच्छ, शुद्ध और धर्मी जीवन व्यतीत करते हुए परमेश्वर का आदर करते हैं, परमेश्वर उनका आदर करता है।

ख) पाप राष्ट्र को अपमानित करता है, नीतिवचन 14:34, “जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है, परन्तु पाप से देश के लोगों का अपमान होता है।"

ग) अनैतिकता राष्ट्र की अधोगति का कारण होती है, दानिय्येल 5:30,31, भ्रष्ट बेलशस्सर ने दारा के लिए मार्ग प्रशस्त किया; बाबुल ने मादी- फरीसियों के लिए मार्ग खोल दिया। महान रोमी साम्राज्य के पतन का कारण आन्तरिक नैतिक भ्रष्टाचार था । 

घ) परमेश्वर अनैतिकता को देख नहीं सकता - हबक्कूक 1:13, “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता।" 

च) परमेश्वर नैतिकता को आशिष देता है। (व्यवस्थाविवरण 28:1 - 14 ) और अनैतिकता को दण्ड देता है (व्यवस्थाविवरण 28:15-68)।

छ) अनैतिकता परमेश्वर की दृष्टि से कभी नहीं छिपाई जा सकती - गिनती 32:23, "जान रखो कि तुमको तुम्हारा पाप लगेगा।"

ज) नई नैतिकता का सम्भावित परिणाम यौन रोग का एक महामारी के रूप में फैल जाना, जैसे पश्चिमी देशों में आज कल एड्स की महामारी फैली हुई है। 

झ) नैतिकता स्वर्ग की ओर अग्रसर करती है - लूका 10:27,28, “यही करः तो तू जीवित रहेगा।" अनैतिकता नरक दण्ड की ओर ले जाती है- प्रकाशितवाक्य 21:8।

3. नैतिकता का परमेश्वर का स्तर 

    पौलुस प्रेरित अनैतिकता के लिए कुरिन्थुस की कलीसिया को डांटा था (1 कुरिन्थियों 5:1), इसका कारण यह था कि कलीसिया के एक सदस्य ने अपनी सौतेली मां को अपनी पत्नी बना लिया था । हमें इसलिए बुलाया गया है कि अपने शरीरों द्वारा हम परमेश्वर की महिमा करें (1 कुरिन्थियों 6:20), और यह तभी हो सकता है जब हम पवित्रता और धार्मिकता के उन स्तरों को बनाए रखें जो पवित्र बाइबल में हमारे लिए निर्धारित किए गए हैं; विशेष रूप से दस आज्ञाओं के स्तर को।

    रोमियों 1:18, नई नैतिकता और सभी प्रकार की अनैतिकता को इन शब्दों द्वारा दण्डनीय घोषित करता है, "परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं । "

    परमेश्वर की नैतिकता का स्तर 1 पतरस 1:15, 16 में प्रस्तुत किया गया है “ पर जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल-चलन में पवित्र बनो क्योंकि लिखा है, कि पवित्र बनो, क्योंकि मैं ( प्रभु परमेश्वर) पवित्र हूँ। "

    लैव्यव्यवस्था 11:44; 19:2; 20:7। यह स्तर पर्वतीय उपदेश में भी निर्धारित किया गया है, जो मत्ती 5:48 में पाया जाता है, "इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है। "

    हम मसीहियों को इसलिए बुलाया गया है कि हम शरीर के 17 कामों का त्याग करें जो गलातियों 5:19-21 में व्यक्त किए गए हैं और नौ प्रकार के फल उत्पन्न करें जो गलातियों 5:22,23 में दिए गए हैं। 1 यूहन्ना 2:17 यह शिक्षा देता है कि शरीर की लालसाएं जाती रहेंगी परन्तु जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है, वह सदा काल तक बना रहेगा। 1 तीमुथियुस 5:22, " और दूसरों के पापों में भागी न होना; अपने आप को पवित्र बनाए रख । "

    इसमें बाहरी शुद्धता (अनैतिकता के कार्य करना) और विचारों के क्षेत्र में आन्तरिक शुद्धता दोनों ही सम्मिलित हैं, मत्ती 5:28। इसलिए पौलुस प्रेरित 1 कुरिन्थियों 7:1 में कहता है, "यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छुए।" लड़कियों: जब तक तुम्हारा विवाह नहीं हो जाता किसी को अपने को स्पर्श न करने दो।

सारांश 

    यह तथाकथित नई नैतिकता स्त्रियों को फिर सैकड़ों पीढ़ी पहले की स्थिति में रख रही है, जहां दुष्ट पुरुषों की वासनाओं की खुली पूर्ति होती थी। स्वर्गीय डा० जे० डी० अनविन ने "Sex and Culture" में जो 1934 में प्रकाशित हुआ था, अपने लेख में वैज्ञानिक आधार पर इस ऐतिहासिक वास्तविकता की पुष्टि की है कि उत्पादनकारी सामाजिक शक्ति पूर्व की दो पीढ़ियों द्वारा यौन अनुशासन के अनुपात में होती है। उसने अपनी इस खोज में चालीस आदिवासियों की प्रथाओं तथा सोलह सभ्यताओं का जो चार हजार वर्ष पुरानी थी, अध्ययन किया। इसका कोई अपवाद नहीं है। डा० क्लैक्सटन, "Christian Reader", दिसम्बर 1965 जनवरी 1966 पृष्ठ 21

    रैव्हरैन्ड हैरल्ड जे० ओकैन्गा ने सन्डे स्कूल टाइम्स में कहा है, "नई नैतिकता का उत्तर केवल धर्म-विज्ञानी ही नहीं, वरन व्यक्तिगत भी है। यह एक शुद्ध हृदय में निहित है, जिसको मसीह के शुद्ध करने वाले लोहू ने शुद्ध किया है (1 यूहन्ना 17:9 ) और जो परमेश्वर की इच्छा के प्रति वचनबद्ध है कि वह व्यभिचार (अनैतिकता) का पूर्ण त्याग करेगा, 1 थिस्सुलुनीकियों 4:3।"

   आइए हम मसीह में अपनी स्वतन्त्रता को इस रूप में स्वीकार करें कि इस स्वतंत्रता के आधीन हम सभी प्रकार की अनैतिकता का विरोध करेंगे और शरीर की लालसाओं और कामनाओं को अपने हृदय में नहीं पनपने देंगे।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न

1. नई नैतिकता में कौन सी दो बातें सम्मिलित हैं?

2. नई नैतिकता का काल्पनिक उद्देश्य क्या है? 

3. क्या परमेश्वर आधुनिक युवा वर्ग के लिए निर्गमन 20:14 और मरकुस 10:19 की फिर से व्याख्या करेगा? क्यों?

4. बुनियादी रूप में अनैतिकता क्या है? 

5. अनैतिकता के दो आधुनिक अर्थ बताइए।

6. यौन अशुद्धता के दस प्रकटीकरणों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए

7. धोखेबाजी और झूठ के सात स्वरूपों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।

8. उलझी हुई कठिन घटनाओं में एक व्यक्ति नैतिकता और अनैतिकता में भेद को कैसे समझ सकता है?

9. अनैतिकता एक राष्ट्र को कैसे नष्ट कर सकती है?

10. नैतिकता का परमेश्वर का स्तर क्या है?