प्रस्तावना
इस छोटी पुस्तक में, मैंने बहुत ही साधारण शब्दों में ईश्वर से संबंधित सत्य को समझाने की कोशिश की है और यह दिखाने का भी प्रयास किया है कि हम कैसे पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते हैं तथा आत्मा का मोक्ष (उद्धार) एवं परमेश्वर के साथ अनंत जीवन......कि मैं कौन हूं? मैं कहां हूं? तथा कौन है इस सृष्टि के पीछे ?
अनेक प्रश्न हैं जिन्हें हम प्रार्थना के साथ समझ सकते हैं। यदि आप अपने जीवन के प्रति गंभीर हैं, अथवा सच्चाई को जानना चाहते हैं तो इस पुस्तक में मैंने महत्वपूर्ण जानकारी दी हैं। जो आपके लिये लाभकारी हो सकती हैं।
प्रभु यीशु मसीह ने कहा: "मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूंढों, तो पाओगे, और खटखटाओगे, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा।" (मत्ती 7:7) शिष्य थॉमसन
विषय सूची
1. ब्रह्मांड
2. परमेश्वर अद्भुत सृष्टिकर्त्ता
3. परमेश्वर
4. यीशु मसीह
5. मनुष्य
6. पाप
7. उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं?
8. आपके जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय
3. परमेश्वर
4. यीशु मसीह
5. मनुष्य
6. पाप
7. उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं?
8. आपके जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय
1. ब्रह्माँड
हम एक नज़र इन करोड़ों भीमकाय सितारों पर डालें जो कि हमारी इस पृथ्वी से लाखों करोड़ों गुना आकार में बड़े हैं। ये सारे तारागण रोशनी, ऊर्जा व आग ऊगल रहे हैं। ये सब अपने अपने निर्धारित रास्ते व गति के नियम में चल रहे हैं और एक दूसरे से टकराते भी नही हैं।
ये देखने से हमारे ध्यान में एक सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता आ जाता है। कण कण में ईश्वर की छाप है।
इस महान ब्रह्मांड की कुछ प्रमुख बातों पर हम नज़र करें और खुद निर्णय करें क्या वो जो कहते हैं, कि ईश्वर नहीं है, वे अज्ञानी नहीं हैं? और क्या मनुष्य ईश्वर की रचना अपने हाँथों से कर सकता है?
गैलेक्सी
रात को यदि हम आकाश की तरफ आँख लगाये तो हमें हजारों तारे नजर आते हैं, ये सब तारे हमारी अपनी गैलेक्सी के हैं। जिसका नाम है "मिल्की वे'।
रात को यदि हम आकाश की तरफ आँख लगाये तो हमें हजारों तारे नजर आते हैं, ये सब तारे हमारी अपनी गैलेक्सी के हैं। जिसका नाम है "मिल्की वे'।
गैलेक्सी का मतलब है, अनगिनित तारों का बड़ा झुंड, जो एक बादल के टुकड़े की तरह समझा जा सकता है।
हमारा अपना सूर्य एक नक्षत्र है। इस जैसे हमारी अपनी गैलेक्सी "मिल्की वे" में करीब 20,000 करोड़ सितारे हैं। नयी तकनीकी से बनाये गये आज के टेलिस्कोप आँख की देखने की क्षमता 1,000,000 गुना बड़ा देते हैं।
अपने ब्रह्मांड की नाप करने के लिये हमें एक बड़े स्केल की जरूरत है और इसे हम "लाइट इयर" के नाम से जानते हैं लाइट अथवा प्रकाश की किरण एक सेकेन्ड में 300,000 किलो मीटर की दूरी तय करती है।
एस्ट्रोनॉमर (नक्षत्र वैज्ञानिक) दूरी नापने के लिये इसका इस्तेमाल करते हैं। प्रकाश की किरण चाँद से धरती तक पहुँचने में 1.3 सेकेन्ड लेती है। ये दूरी 354,000 किलो मीटर है। सूर्य से धरती तक पहुँचने के लिये प्रकाश की किरण 5.3 मिनट लेती हैं। लाइट इयर का एस्ट्रोनोमी में बहुत इस्तेमाल होता है जिसका मतलब यह है कि 300,000 किलो मीटर प्रति सेकेन्ड की तेजी से प्रकाश एक साल मे कितनी दूरी तय करता है। दूरी देखें तो यह 9,600,000,000,000 किलो मीटर या 96,000 करोड़ किलो मीटर होगा । /
पृथ्वी के सबसे नज़दीक का नक्षत्र है "अल्फा सेन्दूरी", इसकी दूरी 4.3 लाइट इयर है। वैज्ञानिकों को अनुमान है कि हमारी अपनी एक गैलेक्सी मे 200,000,000,000 या 20,000 करोड़ नक्षत्र है, बहुत से हमारे सूर्य के प्रकार के या उससे बड़े या छोटे हैं।\
पृथ्वी के सबसे नज़दीक का नक्षत्र है "अल्फा सेन्दूरी", इसकी दूरी 4.3 लाइट इयर है। वैज्ञानिकों को अनुमान है कि हमारी अपनी एक गैलेक्सी मे 200,000,000,000 या 20,000 करोड़ नक्षत्र है, बहुत से हमारे सूर्य के प्रकार के या उससे बड़े या छोटे हैं।\
हमारी एक अपनी गैलेक्सी की लम्बाई 100,000 लाइट इयर है। जिसका मतलब है कि अगर हम 300,000 किलो मीटर प्रति सेकेन्ड रफतार से चलेंगे तो हमें "मिल्की वे " गैलेक्सी के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने में 1,00,000 साल लगेंगे और सबसे नज़दीक की दूसरी गैलेक्सी, "ऐन्ड्रोमीडा" मे पहुंचने में 3,00,0000 साल लगेंगे। याद रखें कि “मिल्की वे' जैसी करोड़ो अरबो गैलेक्सीयाँ हैं, जो 20,000 किलो. मीटर प्रति सेकेन्ड से ज्यादा की रफतार से चल रही हैं। पर आपस में नहीं टकराती हैं। देखने में आने वाली कम से कम 10,000,000,000 गैलेक्सीयाँ हैं।
ब्रह्मांड का कहीं अंत नज़र नहीं आता है। हमारी अपनी गैलेक्सी "मिल्की वे' के आकार को समझने के लिये हम एक तुलना करें और सूर्य को एक सूई की नोक बराबर समझें तो हमारा सोलार सिस्टम याने पृथ्वी, शनि बृहस्पति इत्यादि जो हमारे सूर्य के चारो ओर घूमते हैं एक बड़े कमरे के आकार में आ जायेंगे और सबसे नज़दीक का नक्षत्र अल्फा सेन्टूरी हमसे 40 किलो मीटर दूर रहेगा और हमारी गैलेक्सी "मिल्की वे' की लम्बाई 960,000 किलो मीटर होगी और चौड़ाई 96,000 किलो मीटर होगी और इसके अन्दर 20,000 करोड़ सूई की नोक के समान चमकते हुए सितारे होंगे।
सूर्य और दूसरे नक्षत्र
पृथ्वी के चारो ओर का वातावरण हवा और ओजोन गैस की ऊपरी परत हमें आराम से जीने देती है और सूर्य की किरणों के साथ आने वाली खतरनाक किरणों को रोक देती है।
पृथ्वी के चारो ओर का वातावरण हवा और ओजोन गैस की ऊपरी परत हमें आराम से जीने देती है और सूर्य की किरणों के साथ आने वाली खतरनाक किरणों को रोक देती है।
सूर्य की सतह का तापमान 5,600 डिग्री सेन्टीग्रेड है और उसके अन्दर केन्द्र का तापमान 15,000,000 डिग्री सेन्टी ग्रेड है। सूर्य की अग्नि ज्वाला, 100,000 किलो मीटर की ऊंचाई तक उठ सकती है
यदि सूर्य को अन्दर से खोखला कर दें तो उसके अन्दर दस लाख (10,00,000) पृथ्वी समा सकती है और एन्टयरेस नाम के नक्षत्र के अन्दर हमारे 30,000,000 सूर्य समा सकते हैं। रीगल नाम का एक दूसरा नक्षत्र हमारे सूर्य से 15,000 गुना अधिक चमकदार या रोशन है।
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इन सब का कौन ज़िम्मेदार है?
किसी भी समझदार इन्सान के लिये यह संभव नहीं है कि वह नक्षत्रों से भरे आकाश को देखें और उसके दिलो दिमाग में सृष्टि और अनन्त जीवन के विचार न आये।
सृष्टि के प्रारम्भ व उसके अन्त संबंधित छिपी बातें हमारे जीवन से जुड़ी रहती हैं।
किसी भी समझदार इन्सान के लिये यह संभव नहीं है कि वह नक्षत्रों से भरे आकाश को देखें और उसके दिलो दिमाग में सृष्टि और अनन्त जीवन के विचार न आये।
सृष्टि के प्रारम्भ व उसके अन्त संबंधित छिपी बातें हमारे जीवन से जुड़ी रहती हैं।
सारे ब्रह्मांड के नक्षत्र एक गति से और अपनी दिशा के अनुसार सही मार्ग में चल रहे हैं। वो अपने रास्ते में एक सेकेन्ड भी नहीं खोते हैं।
बाइबल कहती है कि "परमेश्वर हर नक्षत्र को उसके नाम से जानता है और उनकी संख्या भी जानता है"। (भजन संहिता 147:4)
इस परमेश्वर को कितना महान व सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्त्ता होना पड़ेगा जिसने एक असीमित ब्रह्मांड की सृष्टि की है।
प्रश्न: आप क्या समझते हैं इन तारागणों के विषय में ?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि इन्हें परमेश्वर ने बनाया है?
उत्तर : ..........................................
बाइबल कहती है कि "परमेश्वर हर नक्षत्र को उसके नाम से जानता है और उनकी संख्या भी जानता है"। (भजन संहिता 147:4)
इस परमेश्वर को कितना महान व सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्त्ता होना पड़ेगा जिसने एक असीमित ब्रह्मांड की सृष्टि की है।
प्रश्न: आप क्या समझते हैं इन तारागणों के विषय में ?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि इन्हें परमेश्वर ने बनाया है?
उत्तर : ..........................................
3. परमेश्वर
सनातन परमेश्वर
बाइबल बताती है कि परमेश्वर सनातन है। जिसका न कोई प्रारम्भ है न कोई अन्त है। अनगिनत समय काल से परमेश्वर का अस्तित्व बना हुआ है। ये ही सृष्टिकर्त्ता है। सृष्टि के पूर्व सृष्टिकर्ता के रूप में वो जीवित है।
सृष्टि की यह असीमित रचना मनुष्यों को याद दिलाती है कि परमेश्वर की महानता को समय या सीमा में बांध सकना नामुमकिन है व असत्य है। बाइबल का सबसे पहला पद बताता है कि " आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की"।
पृथ्वी व उस पर की जीवित वस्तुओं की रचना के बारे में बाइबल में साफ साफ बताया गया है।
आश्चर्य चकित कर देने वाले विशाल ब्रह्माँड तथा इस जीवन का चमत्कार व मृत्यु के बाद के रहस्य के बारे में प्रत्येक मनुष्य कभी न कभी प्रश्न पूछता ही है।
सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर
कुछ लोग इस परमेश्वर को स्वयं व्यक्तिगत् रूप में जान गये हैं। कुछ लोग बोलते हैं कि हमें समझाकर व साबित कर के दिखाओं तब हम विश्वास करेंगे। मनुष्य जो परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है क्या वो परमेश्वर को बना सकता है। इस तरह तो हम अपने बनाने वाले से भी बड़े कहलायेंगे। परमेश्वर तो जीवन का स्त्रोत है, सोचिये यदि एक मनुष्य किसी ऐसी वस्तु की रचना करता है। जिसमें जीवन नही है तो क्या हम उस वस्तु को परमेश्वर कह सकते हैं।
बाइबल बताती है कि परमेश्वर सनातन है। जिसका न कोई प्रारम्भ है न कोई अन्त है। अनगिनत समय काल से परमेश्वर का अस्तित्व बना हुआ है। ये ही सृष्टिकर्त्ता है। सृष्टि के पूर्व सृष्टिकर्ता के रूप में वो जीवित है।
सृष्टि की यह असीमित रचना मनुष्यों को याद दिलाती है कि परमेश्वर की महानता को समय या सीमा में बांध सकना नामुमकिन है व असत्य है। बाइबल का सबसे पहला पद बताता है कि " आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की"।
पृथ्वी व उस पर की जीवित वस्तुओं की रचना के बारे में बाइबल में साफ साफ बताया गया है।
आश्चर्य चकित कर देने वाले विशाल ब्रह्माँड तथा इस जीवन का चमत्कार व मृत्यु के बाद के रहस्य के बारे में प्रत्येक मनुष्य कभी न कभी प्रश्न पूछता ही है।
सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर
कुछ लोग इस परमेश्वर को स्वयं व्यक्तिगत् रूप में जान गये हैं। कुछ लोग बोलते हैं कि हमें समझाकर व साबित कर के दिखाओं तब हम विश्वास करेंगे। मनुष्य जो परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है क्या वो परमेश्वर को बना सकता है। इस तरह तो हम अपने बनाने वाले से भी बड़े कहलायेंगे। परमेश्वर तो जीवन का स्त्रोत है, सोचिये यदि एक मनुष्य किसी ऐसी वस्तु की रचना करता है। जिसमें जीवन नही है तो क्या हम उस वस्तु को परमेश्वर कह सकते हैं।
परमेश्वर में सारे गुण सर्वसिद्ध हैं। मनुष्य के जो अच्छे चरित्र व गुण हैं पर पाप के कारण शत प्रतिशत् सिद्ध नहीं हैं। लेकिन परमेश्वर में संपूर्ण वर्तमान हैं उदाहरण के तौर पर
पवित्रता - परमेश्वर पूरी तरह पवित्र है
प्रेम - परमेश्वर का प्रेम अतुल्य है
न्याय - सच्चा है
धार्मिकता - संपूर्ण पवित्र है
यह सब कुछ परमेश्वर में शत प्रतिशत् पाया जाता है। परन्तु मनुष्य में यह सब कुछ अधूरा है। परमेश्वर ने अपने आप को दुनिया की सृष्टि के समय से अपने कर्मों के द्वारा प्रगट किया है। (रोमियों 1:19-20) ईश्वर ने बाइबल के द्वारा भी अपने आप को जगत में प्रगट किया है। जिससे हमारे दिल व मन में उस पर भरोसा होता है व शान्ती मिलती है अगर बाइबल को रोज सावधानीपूर्वक ध्यान से पढ़े जिस तरह हम अपनी मन पंसद किताबें पढ़ते हैं या रोज सुबह अखबार पढ़ते हैं तो हम परमेश्वर को उतनी ही अच्छी तरह से जान पायेंगे जितना परिवार के एक सदस्य को जानते हैं। जिस तरह हीरे के कई पहलू या कोण नजर आते हैं उसी तरह परमेश्वर भी अनगिनत परिस्थितियों में और वस्तुओं में अपने आप को हम पर प्रगट करता है।
पवित्रता - परमेश्वर पूरी तरह पवित्र है
प्रेम - परमेश्वर का प्रेम अतुल्य है
न्याय - सच्चा है
धार्मिकता - संपूर्ण पवित्र है
यह सब कुछ परमेश्वर में शत प्रतिशत् पाया जाता है। परन्तु मनुष्य में यह सब कुछ अधूरा है। परमेश्वर ने अपने आप को दुनिया की सृष्टि के समय से अपने कर्मों के द्वारा प्रगट किया है। (रोमियों 1:19-20) ईश्वर ने बाइबल के द्वारा भी अपने आप को जगत में प्रगट किया है। जिससे हमारे दिल व मन में उस पर भरोसा होता है व शान्ती मिलती है अगर बाइबल को रोज सावधानीपूर्वक ध्यान से पढ़े जिस तरह हम अपनी मन पंसद किताबें पढ़ते हैं या रोज सुबह अखबार पढ़ते हैं तो हम परमेश्वर को उतनी ही अच्छी तरह से जान पायेंगे जितना परिवार के एक सदस्य को जानते हैं। जिस तरह हीरे के कई पहलू या कोण नजर आते हैं उसी तरह परमेश्वर भी अनगिनत परिस्थितियों में और वस्तुओं में अपने आप को हम पर प्रगट करता है।
परमेश्वर का चरित्र
(1) परमेश्वर आत्मा है आत्मा का कोई शरीर नहीं होता। परन्तु फिर भी उसमें एक शक्ति होती है आत्मा की सामर्थ व महत्व को मनुष्य के सीमित दिमाग के समझना असम्भव है। हम अपने तरीके से उसको समझने की कोशिश करते हैं और ये उस तरह है जिस तरह एक कप में पानी भर कर किसी को विशाल समुद्र के बारे में समझाया जाये। आत्मा का न कोई रूप होता है न कोई आकार होता है। वह न शरीर की तरह सीमित या नष्ट की आ सकती है। हम अपनी शारीरिक आँखों से तो संसारिक वस्तुएँ देखते हैं, पर उससे हम परमेश्वर को नहीं देख सकते। यूहन्ना 4:24 में लिखा है "परमेश्वर आत्मा है"। बाइबल बताती है कि परमेश्वर के ऊपर कोई सीमा या बंधन नही है। वह इसलिये हर जगह एक साथ मौजूद रह सकता है, सब कुछ सुन सकता है, वह सब जानता है सर्वशक्तिमान है। हम तो सीमा के अन्दर रहने वाले हैं इसलिये हमें परमेश्वर को सीमा में बंधा हुआ नहीं मानना चाहिये। जैसे अगर हम किसी भाषा के दो अक्षर सीख जाते हैं, तो उसका यह मतलब नहीं कि हम उस भाषा के गुरु या शिक्षक बन गये, परमेश्वर तो आत्मा है। हम परमेश्वर की बुद्धि, पवित्रता, न्याय, समझ व सच्चाई को जानते हैं और जब दिल व मन से यह स्वीकार कर लेते हैं कि परमेश्वर असीमित सनातन व कभी न बदलने वाला है तब हम परमेश्वर को सीमित समझने की गलती नहीं करते हैं।
(2) परमेश्वर का व्यक्तित्व पूरी बाइबल में ऐसा बताया गया है कि परमेश्वर प्यार करता है, परमेश्वर बातें करता है, परमेश्वर रचना करता है इत्यादि एक मनुष्य के व्यक्तित्व में जो विशेषताऐं हैं वह ही परमेश्वर में ही हैं एक मनुष्य के व्यक्तित्व में सोचना, भावुक होना, इच्छा रखना व अन्य व्यक्तिगत गुण हैं वैसे ही परमेश्वर जो किसी शरीर में बन्धा हुआ नहीं है फिर भी वह एक मनुष्य की तरह सोचता है, समझता है, प्रेम करता है, सहानुभूति दिखाता है, माफ करता है।
(1) परमेश्वर आत्मा है आत्मा का कोई शरीर नहीं होता। परन्तु फिर भी उसमें एक शक्ति होती है आत्मा की सामर्थ व महत्व को मनुष्य के सीमित दिमाग के समझना असम्भव है। हम अपने तरीके से उसको समझने की कोशिश करते हैं और ये उस तरह है जिस तरह एक कप में पानी भर कर किसी को विशाल समुद्र के बारे में समझाया जाये। आत्मा का न कोई रूप होता है न कोई आकार होता है। वह न शरीर की तरह सीमित या नष्ट की आ सकती है। हम अपनी शारीरिक आँखों से तो संसारिक वस्तुएँ देखते हैं, पर उससे हम परमेश्वर को नहीं देख सकते। यूहन्ना 4:24 में लिखा है "परमेश्वर आत्मा है"। बाइबल बताती है कि परमेश्वर के ऊपर कोई सीमा या बंधन नही है। वह इसलिये हर जगह एक साथ मौजूद रह सकता है, सब कुछ सुन सकता है, वह सब जानता है सर्वशक्तिमान है। हम तो सीमा के अन्दर रहने वाले हैं इसलिये हमें परमेश्वर को सीमा में बंधा हुआ नहीं मानना चाहिये। जैसे अगर हम किसी भाषा के दो अक्षर सीख जाते हैं, तो उसका यह मतलब नहीं कि हम उस भाषा के गुरु या शिक्षक बन गये, परमेश्वर तो आत्मा है। हम परमेश्वर की बुद्धि, पवित्रता, न्याय, समझ व सच्चाई को जानते हैं और जब दिल व मन से यह स्वीकार कर लेते हैं कि परमेश्वर असीमित सनातन व कभी न बदलने वाला है तब हम परमेश्वर को सीमित समझने की गलती नहीं करते हैं।
(2) परमेश्वर का व्यक्तित्व पूरी बाइबल में ऐसा बताया गया है कि परमेश्वर प्यार करता है, परमेश्वर बातें करता है, परमेश्वर रचना करता है इत्यादि एक मनुष्य के व्यक्तित्व में जो विशेषताऐं हैं वह ही परमेश्वर में ही हैं एक मनुष्य के व्यक्तित्व में सोचना, भावुक होना, इच्छा रखना व अन्य व्यक्तिगत गुण हैं वैसे ही परमेश्वर जो किसी शरीर में बन्धा हुआ नहीं है फिर भी वह एक मनुष्य की तरह सोचता है, समझता है, प्रेम करता है, सहानुभूति दिखाता है, माफ करता है।
(3) परमेश्वर पवित्र न्यायी व प्रेम है वह पूर्णतः धर्मी है, इसलिये पवित्र है। इसलिये पापी मनुष्य व पापमय जीवन वह कबूल नहीं कर सकता । बाइबल बताती है कि हमारे अपराधों के कारण हम परमेश्वर से दूर हैं सिर्फ प्रभु यीशु मसीह की मध्यस्थता के द्वारा ही हम परमेश्वर से सम्बन्ध दुबारा स्थापित कर सकते हैं।
परमेश्वर प्रेम है इसका यह मतलब नहीं की वह अपने प्रेम के कारण किसी भी मनुष्य को उसके पापों की सजा नही देगा। परमेश्वर की पवित्रता के स्तर से गिरने के कारण मनुष्य को पाप की सजा मिलनी ही चाहिये लेकिन परमेश्वर ने अपने प्रेम के कारण अपनी अपार दया दिखा कर संसार के सारे पापों और पापियों की सजा अपने पुत्र यीशु मसीह को दे दी। उसके ऊपर विश्वास करने वाले को अपने पापों से मुक्ति मिलती है यह परमेश्वर का न्याय है हमारे पाप चाहे जितने भी घृणित क्यों न हों, फिर भी परमेश्वर हमारे ऊपर दया व प्रेम दिखाता है। परमेश्वर का प्यार इस ब्रह्मांड की तरह है जिसकी सीमा कोई नहीं जानता । एक साधारण मनुष्य का दिमाग यह जानने में असमर्थ रहता है कि कम्प्यूटर कैसे काम करता है, रेडियो में आवाज़ कैसे आती है, हवाई जहाज़ कैसे उड़ता है। एक छोटा सा बीज बो देने पर वह बड़ा पेड़ कैसे बन जाता है और फिर भी यह सब सच है। सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर तो सनातन है। हमारा सीमित दिमाग उसे पूरी तरह नहीं समझ सकता।
हमें विश्वास के द्वारा ही परमेश्वर को स्वीकार करना होगा। विश्वास की परिभाषा है, बिना देखे या बिना समझे अगर हम सत्य को स्वीकार करते हैं। यही सच्चा विश्वास होता है।
हम परमेश्वर को समझने के बजाय उस पर विश्वास करें। क्योंकि वह सच्चा परमेश्वर है। वह हमारा पिता है। वह चाहता है कि हम उससे व्यक्तिगत सम्बन्ध रखें।
प्रश्न: क्या आप सोचते हैं कि परमेश्वर असीमित व महान है कि आपका छोटा सा दिमाग उसके बारे में थोड़ा ही जानता है परन्तु पूरी तरह से समझ नही पाता?
उत्तर: ..........................................
प्रश्न: क्या आप समझते हैं कि परमेश्वर ने जो कुछ आपके सामने प्रगट किया वह सब आपके मोक्ष प्राप्त करने के लिये काफी है?
उत्तर: ..........................................
प्रश्न: क्या आप सोचते हैं कि परमेश्वर असीमित व महान है कि आपका छोटा सा दिमाग उसके बारे में थोड़ा ही जानता है परन्तु पूरी तरह से समझ नही पाता?
उत्तर: ..........................................
प्रश्न: क्या आप समझते हैं कि परमेश्वर ने जो कुछ आपके सामने प्रगट किया वह सब आपके मोक्ष प्राप्त करने के लिये काफी है?
उत्तर: ..........................................
4. यीशु मसीह
यीशु मसीह
ऐसा कौन सा मनुष्य हैं जो संपूर्ण सिद्ध और बिल्कुल पवित्र था ?
यीशु मसीह
ऐसा कौन सा मनुष्य हैं जो संपूर्ण सिद्ध और बिल्कुल पवित्र था ?
दुनिया के इतिहास को मोड़ने वाला मार्ग दर्शक नेता था ?
सबसे महान गुरु या शिक्षक था ?
सम्पूर्ण मानव जाति को समाजिक न्याय व मानवीय उदारता से काम करना किसने सिखाया?, चाहे वह काम अस्पताल, स्कूल या गरीबो के लिये घर बनाने जैसा ही क्यों न हो।
सम्पूर्ण मानव जाति को समाजिक न्याय व मानवीय उदारता से काम करना किसने सिखाया?, चाहे वह काम अस्पताल, स्कूल या गरीबो के लिये घर बनाने जैसा ही क्यों न हो।
प्रभु यीशु मसीह आज से दो हज़ार साल पहले इस संसार में आये थे। वह परमेश्वर के अवतार थे । सर्वशक्तिमान और मानव जाति के पिता ने अपने पुत्र रूप यीशु मसीह को एक कुंवारी के द्वारा बच्चे के रूप में इस संसार में भेजा। जो पवित्र आत्मा के द्वारा दो हजार वर्ष पहले पैदा हुआ।
प्रभु यीशु मसीह ने संसार के इतिहास को बदल दिया। अगर आप कैलेण्डर पर नज़र डालें तो मालूम पड़ेगा, कि प्रभु यीशु के पैदा होने के बाद अभी कितने वर्ष बीत चुके हैं।
बी. सी. का अर्थ है बिफोर क्राइस्ट मतलब ईसा पूर्व ए. डी. का अर्थ है ऐनो डोमिनी (यह लेटिन भाषा) का शब्द है, मतलब परमेश्वर के समय में।
उसके जन्म के सैकड़ों वर्षों पहले ही पवित्र बाइबल के वचनों में बताया जा चुका था, कि मनुष्य का मोक्ष दाता मसीह पैदा होगा उसके बारे में करीब तीन सौ भविष्य वाणियाँ की गई थीं। जैसे वो कहाँ पैदा होगा, उसका पाप रहित जीवन कैसा होगा। वह किस तरह के अदभुत् काम दिखायेगा। उसकी मृत्यु कैसे होगी, व पुन: वह जीवित हो जायेगा इत्यादि सब बातें उसके जीवन से सम्बन्धित थीं जो सही साबित हुई।
प्रभु यीशु मसीह के कहे हुऐ वचन, व शिक्षाऐं, महान कार्य व उनकी क्रूस पर की मृत्यु, व पुनः जी उठना व चालीस दिनों के बाद स्वर्ग पर चले जाना साफ बताता है कि वह कोई साधारण मनुष्य नहीं थे। और जो परिचय उन्होंने लोगो को अपना दिया वह सही था अर्थात् वह ‘परमेश्वर के पुत्र' थे। उन्होंने कहा “जिसने मुझे देखा है उसने पिता (ईश्वर) को देखा है (यूहन्ना 14:9)।
मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता (यूहन्ना 14:6)
एक बार यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से पूछा कि लोग मेरे बारे में क्या बोलते हैं। जवाब में उन्होंने कहा कितने तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं। और कितने एलिय्याह और कितने यिर्मयाह या नबियों में से एक कहते हैं। तब उसके शिष्य पतरस ने जवाब दिया कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है (मत्ती 16:14-16)।
सच्चा मसीही जीवन प्रभु यीशु मसीह का जीवन पा लेने में है।
प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर मार डाला गया, बाद में कब्र में रख दिया गया और तीसरे दिन वह जीवित उठे। और चालीस दिन के पश्चात् करीब पांच सौ लोगों की मौजूदगी में वे यरुशलेम के बाहर सब की नज़रों के सामने स्वर्ग को चले गये।
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि यीशु मसीह आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व अद्भुत् तरीके से पैदा हुऐ थे?
प्रभु यीशु मसीह ने संसार के इतिहास को बदल दिया। अगर आप कैलेण्डर पर नज़र डालें तो मालूम पड़ेगा, कि प्रभु यीशु के पैदा होने के बाद अभी कितने वर्ष बीत चुके हैं।
बी. सी. का अर्थ है बिफोर क्राइस्ट मतलब ईसा पूर्व ए. डी. का अर्थ है ऐनो डोमिनी (यह लेटिन भाषा) का शब्द है, मतलब परमेश्वर के समय में।
उसके जन्म के सैकड़ों वर्षों पहले ही पवित्र बाइबल के वचनों में बताया जा चुका था, कि मनुष्य का मोक्ष दाता मसीह पैदा होगा उसके बारे में करीब तीन सौ भविष्य वाणियाँ की गई थीं। जैसे वो कहाँ पैदा होगा, उसका पाप रहित जीवन कैसा होगा। वह किस तरह के अदभुत् काम दिखायेगा। उसकी मृत्यु कैसे होगी, व पुन: वह जीवित हो जायेगा इत्यादि सब बातें उसके जीवन से सम्बन्धित थीं जो सही साबित हुई।
प्रभु यीशु मसीह के कहे हुऐ वचन, व शिक्षाऐं, महान कार्य व उनकी क्रूस पर की मृत्यु, व पुनः जी उठना व चालीस दिनों के बाद स्वर्ग पर चले जाना साफ बताता है कि वह कोई साधारण मनुष्य नहीं थे। और जो परिचय उन्होंने लोगो को अपना दिया वह सही था अर्थात् वह ‘परमेश्वर के पुत्र' थे। उन्होंने कहा “जिसने मुझे देखा है उसने पिता (ईश्वर) को देखा है (यूहन्ना 14:9)।
मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता (यूहन्ना 14:6)
एक बार यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से पूछा कि लोग मेरे बारे में क्या बोलते हैं। जवाब में उन्होंने कहा कितने तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं। और कितने एलिय्याह और कितने यिर्मयाह या नबियों में से एक कहते हैं। तब उसके शिष्य पतरस ने जवाब दिया कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है (मत्ती 16:14-16)।
सच्चा मसीही जीवन प्रभु यीशु मसीह का जीवन पा लेने में है।
प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर मार डाला गया, बाद में कब्र में रख दिया गया और तीसरे दिन वह जीवित उठे। और चालीस दिन के पश्चात् करीब पांच सौ लोगों की मौजूदगी में वे यरुशलेम के बाहर सब की नज़रों के सामने स्वर्ग को चले गये।
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि यीशु मसीह आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व अद्भुत् तरीके से पैदा हुऐ थे?
उत्तर: ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि वह परमेश्वर के पुत्र थे?
उत्तर: ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि वह परमेश्वर के पुत्र थे?
उत्तर: ..........................................
5. मनुष्य
मनुष्य
आधुनिकिकरण और तेज रफ्तार से चलता हमारा जीवन, और इस शैली की व्यस्तता के कारण, मनुष्य जीवन की कई सच्चाईयों के बारे में सोच भी नहीं पाता है। कि मैं कौन हूँ? मै यहाँ क्यों आया हूँ? और मैं कहाँ जा रहा हूँ?
मनुष्य
आधुनिकिकरण और तेज रफ्तार से चलता हमारा जीवन, और इस शैली की व्यस्तता के कारण, मनुष्य जीवन की कई सच्चाईयों के बारे में सोच भी नहीं पाता है। कि मैं कौन हूँ? मै यहाँ क्यों आया हूँ? और मैं कहाँ जा रहा हूँ?
इस तरह के सवालों के अलग अलग जवाब हमारे दिमाग में रहते हैं। हम जिस बात को सही मानते हैं उसे ही अपना जवाब मान लेते हैं। कुछ लोग समझते हैं कि सृष्टि में कोई सच्चाई नहीं है सब कुछ एक स्वप्न है।
कुछ लोग समझते हैं कि किसी बड़ी घटना के कारण, इन सब चीजों की उत्पत्ति हुई है। सृष्टि व मानव देह वाले अध्याय में हमने देखा है कि जो मनुष्य समझता है कि मनुष्य की उत्पत्ति अपने आप हुई है वह सच्चाई से दूर है। मनुष्य, जानवर, पेड़, पौधे, व तारे एवं संपूर्ण सृष्टि किसी रसायनिक प्रक्रिया की वजह से उत्पन्न नहीं हुई हैं। इन का जवाब एकदम साफ है कि यह सब कुछ परमेश्वर के द्वारा है। और इस संसार में जीवन का स्त्रोत परमेश्वर है हमारे अन्तः करण में एक आवाज़ आती रहती है। कि कोई है जिसने सब कुछ बनाया है। और वह परमेश्वर है।
धर्म
इस संसार के धर्मों को मनुष्य के विचारों का परिणाम कहा जा है। पुराने में मनुष्य जब यह नहीं जानते थे, कि किसी तत्व या पदार्थ की रचना में एटम और 'मालीक्यूल का योगदान होता है। तब इसकी रचना के बारे में तरह तरह के विचार बनाये जाते थे, पर मनुष्य का ज्ञान बड़ जाने पर वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा किसी तत्व के सूक्ष्म से सूक्ष्म एटम व मालीक्यूल की जानकारी हो सकी।
धर्म
इस संसार के धर्मों को मनुष्य के विचारों का परिणाम कहा जा है। पुराने में मनुष्य जब यह नहीं जानते थे, कि किसी तत्व या पदार्थ की रचना में एटम और 'मालीक्यूल का योगदान होता है। तब इसकी रचना के बारे में तरह तरह के विचार बनाये जाते थे, पर मनुष्य का ज्ञान बड़ जाने पर वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा किसी तत्व के सूक्ष्म से सूक्ष्म एटम व मालीक्यूल की जानकारी हो सकी।
इसी तरह बहुत से बुद्धिमान व महान साधु, महात्मा, दार्शनिक, ऋषि-मुनियों व साधु सन्तों ने परमेश्वर के बारे में खोज करके अपने विचार लिख कर दिये। और लोग उनमें से किसी एक की शिक्षाओं को अपना लेते हैं और उस मनुष्य के पीछे चलने लगते हैं ऐसे लोगों का एक समूह या मत बन जाता है। और उस गुरु की लिखी हुई किताब को अपनी पवित्र पुस्तक या धार्मिक किताब मानने लगते हैं। और हमारा सोचना होता है, कि हमें वास्तविक सच्चाई मिल गई, और इस तरह एक नया धर्म पैदा हो जाता है। और लोग सदियों तक इसे निभाते चले जाते हैं। परन्तु सच्चाई ठीक इसके विपरीत है, यह उस कहानी की तरह है कि कोई मनुष्य सच्चाई की खोज में था पर सच्चाई को पा न सका परन्तु लोगों की सलाहों को सच्चाई समझने लगा।
बाइबल की सच्चाई का सबूत
बाइबल किसी एक धर्म की धर्म पुस्तक नहीं है। जी , यह क्रिश्चियन या ईसाई धर्म मानने वालों की ही पुस्तक नहीं है। बाइबल की अधिकांश किताब ईसाई या मसीही धर्म प्रारम्भ होने के पहले लिखी जा चुकी थी। (याने प्रभु यीशु मसीह के पैदा होने के 1500 साल पूर्व) पूरी बाइबल में सैकड़ों साल पहले बताया जा चुका था कि परमेश्वर मनुष्य का अवतार लेकर आयेगें एवं इसके बारे में प्रत्येक जानकारी दी गई थी। कि उनका नाम क्या होगा? वे कहा पैदा होगें? किस तरह मनुष्य के पापों के लिये अपने जीवन का बलिदान करके मृत्यु पश्चात् तीसरे दिन जी उठेंगे। अभी बाइबल एक पुस्तक के रूप में नज़र आती है परन्तु यह एक पुस्तक नही हैं। यह 66 पुस्तकों को मिला कर बनाया गया एक ग्रन्थ है। इसको करीब 40 से अधिक भविष्यवक्ताओं या नबियों ने लिखा है जो करीब 1500 वर्षों के समय के दौरान इस संसार में रहे, वे सब साधारण मनुष्य थे। उनमें कोई तो राजा थे और कोई गुलाम, और कोई मछली पकड़ने वाले मछुवे और कोई चरवाहे कोई पढ़ा लिखा या कोई अनपढ़, अधिकांश गरीब ही थे। जब जब परमेश्वर का पवित्र आत्मा उनके ऊपर उतर आता था, तब वे परमेश्वर के वचन को लिख देते थे। यहाँ तक की कई बार लिखी हुई बातों का मतलब वे स्वयं भी नही जान पाते थे, परन्तु कई वर्षों के बाद वे बातें सच साबित होती थीं। इसलिये बाइबल भरोसा कर सकने लायक ईश्वर का ग्रन्थ है। इसमें मनुष्यों के विचार नहीं लिखे हुऐ हैं। यह मानव जीवन के करीब 20 वंशो के समय काल में लिखी गई है। विभिन्न परिस्थितियों में व विभिन्न देशों की सीमा के अन्दर लिखे जाने के बाद भी इसमे कोई बदलाव नहीं लाया जा सका है। इसका लिखने वाला वही परमेश्वर है जिसने सृष्टि की रचना की है।
बाइबल की सच्चाई का सबूत
बाइबल किसी एक धर्म की धर्म पुस्तक नहीं है। जी , यह क्रिश्चियन या ईसाई धर्म मानने वालों की ही पुस्तक नहीं है। बाइबल की अधिकांश किताब ईसाई या मसीही धर्म प्रारम्भ होने के पहले लिखी जा चुकी थी। (याने प्रभु यीशु मसीह के पैदा होने के 1500 साल पूर्व) पूरी बाइबल में सैकड़ों साल पहले बताया जा चुका था कि परमेश्वर मनुष्य का अवतार लेकर आयेगें एवं इसके बारे में प्रत्येक जानकारी दी गई थी। कि उनका नाम क्या होगा? वे कहा पैदा होगें? किस तरह मनुष्य के पापों के लिये अपने जीवन का बलिदान करके मृत्यु पश्चात् तीसरे दिन जी उठेंगे। अभी बाइबल एक पुस्तक के रूप में नज़र आती है परन्तु यह एक पुस्तक नही हैं। यह 66 पुस्तकों को मिला कर बनाया गया एक ग्रन्थ है। इसको करीब 40 से अधिक भविष्यवक्ताओं या नबियों ने लिखा है जो करीब 1500 वर्षों के समय के दौरान इस संसार में रहे, वे सब साधारण मनुष्य थे। उनमें कोई तो राजा थे और कोई गुलाम, और कोई मछली पकड़ने वाले मछुवे और कोई चरवाहे कोई पढ़ा लिखा या कोई अनपढ़, अधिकांश गरीब ही थे। जब जब परमेश्वर का पवित्र आत्मा उनके ऊपर उतर आता था, तब वे परमेश्वर के वचन को लिख देते थे। यहाँ तक की कई बार लिखी हुई बातों का मतलब वे स्वयं भी नही जान पाते थे, परन्तु कई वर्षों के बाद वे बातें सच साबित होती थीं। इसलिये बाइबल भरोसा कर सकने लायक ईश्वर का ग्रन्थ है। इसमें मनुष्यों के विचार नहीं लिखे हुऐ हैं। यह मानव जीवन के करीब 20 वंशो के समय काल में लिखी गई है। विभिन्न परिस्थितियों में व विभिन्न देशों की सीमा के अन्दर लिखे जाने के बाद भी इसमे कोई बदलाव नहीं लाया जा सका है। इसका लिखने वाला वही परमेश्वर है जिसने सृष्टि की रचना की है।
धर्म ग्रंथ
बहुत से धर्मों की किताबों को अलग अलग मनुष्यों ने लिखा है। उनमें पाप के बारे में अलग तरह के विचार हैं। परन्तु पापों की क्षमा के बारे मे ठोस रास्ता या सच्चाई नहीं है। और उनमें किसी मसीहा, मोक्ष दाता, या उद्धारकर्ता जो जीवन को बचा सके उसका कोई ज़िक्र नहीं है। न कोई जानकारी है। वे समझते हैं, कि मनुष्य उसी प्रारम्भिक दशा या हालत मे है जिसमें वह अपनी उत्पत्ति या रचना के समय था। परन्तु बाइबल बताती है कि मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर के सामने पाप करने के कारण गिर गया है। और इस गिरने अर्थात् नैतिक पतन के कारण ही वह पापों के बुरे परिणाम से भयंकर रूप से पीड़ित है।
बहुत से धर्मों की किताबों को अलग अलग मनुष्यों ने लिखा है। उनमें पाप के बारे में अलग तरह के विचार हैं। परन्तु पापों की क्षमा के बारे मे ठोस रास्ता या सच्चाई नहीं है। और उनमें किसी मसीहा, मोक्ष दाता, या उद्धारकर्ता जो जीवन को बचा सके उसका कोई ज़िक्र नहीं है। न कोई जानकारी है। वे समझते हैं, कि मनुष्य उसी प्रारम्भिक दशा या हालत मे है जिसमें वह अपनी उत्पत्ति या रचना के समय था। परन्तु बाइबल बताती है कि मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर के सामने पाप करने के कारण गिर गया है। और इस गिरने अर्थात् नैतिक पतन के कारण ही वह पापों के बुरे परिणाम से भयंकर रूप से पीड़ित है।
इसलिये बाइबल सिर्फ क्रिश्चियन लोगों के लिये ही नहीं है। परन्तु सम्पूर्ण मनुष्य जाति के लिये यह ईश्वर का एक उपहार है। सच्चे ज्ञान का ग्रंथ है। बाइबल बताती है कि आरम्भ में परमेश्वर ने स्वर्ग व पृथ्वी को बनाया। परमेश्वर स्वयं स्वर्ग में रहता है। स्वर्गदूत या फरिश्ते जिन्हें परमेश्वर ने बनाया वे भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ रहते हैं। जब परमेश्वर ने चाहा कि वह और भी जीवित प्राणियों को बनाए तो उसने मनुष्य को अपने स्वरूप व समानता में बनाया। वह ऐसे मनुष्य को बनाना चाहता था, जो उसके अद्भुत गुणों से भरपूर हो व उसकी संतान बनकर व प्रेम से रह कर उसके मार्ग दर्शन मे चल सके।
परमेश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी की मिट्टी से अपने हाथों से बनाया, व पृथ्वी उसके रहने के लिये दे दी। मिट्टी से बनाऐ हुऐ शरीर में परमेश्वर ने जान डाल दी, और मनुष्य को जीवन मिला और वह एक पवित्र आत्मिक प्राणी बन गया।
परमेश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी की मिट्टी से अपने हाथों से बनाया, व पृथ्वी उसके रहने के लिये दे दी। मिट्टी से बनाऐ हुऐ शरीर में परमेश्वर ने जान डाल दी, और मनुष्य को जीवन मिला और वह एक पवित्र आत्मिक प्राणी बन गया।
मनुष्य की योग्यताऐं
मनुष्य जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया, परमेश्वर के शक्ति स्वरूप में नहीं पर नैतिक गुणों में बनाया गया था। वह अपने चरित्र के कारण अच्छी व भली बातों का अपने जीवन में चुनाव कर सकता था। उसे जानवरों की तरह व्यवहार करने की ज़रूरत नहीं है जो की सिर्फ शारीरिक हैं, और जिन की ज़रूरत भोजन, नींद व सेक्स ही है।
मनुष्य जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया, परमेश्वर के शक्ति स्वरूप में नहीं पर नैतिक गुणों में बनाया गया था। वह अपने चरित्र के कारण अच्छी व भली बातों का अपने जीवन में चुनाव कर सकता था। उसे जानवरों की तरह व्यवहार करने की ज़रूरत नहीं है जो की सिर्फ शारीरिक हैं, और जिन की ज़रूरत भोजन, नींद व सेक्स ही है।
हमारे पास एक भौतिक शरीर है जिसमें जीवन है। और आत्मा भी है। और इसी आत्मा के द्वारा हमारी पहुँच परमेश्वर तक हो पाती है। मनुष्य में नीचे लिखी बातें पाई जाती हैं-
(1) दिमाग इसके द्वारा हम सोच विचार करते हैं।
(2) भाव- इसके द्वारा हमें अहसास होता है
(1) दिमाग इसके द्वारा हम सोच विचार करते हैं।
(2) भाव- इसके द्वारा हमें अहसास होता है
( 3 ) इच्छा शक्ति इसके द्वारा हम अपने फैसलों का चुनाव करते हैं।
हमारे पास जो बुद्धि व समझ है उसी के द्वारा हम उसके स्वरूप व समानता में पाये जाते हैं। इसी कारण ही हम लिखना पढ़ना, शोध करना व आगे की योजना बनाने जैसे काम कर सकते हैं।
मनुष्य के पास जो आत्मा है, वह ईश्वर का एक महान उपहार है। आत्मा अमर है। यह देन उसे परमेश्वर की तरफ़ से मिली है। इस संसार में मनुष्य की शारीरिक मृत्यु होने के पश्चात् आत्मा नष्ट नही होती हैं, परन्तु वह अपने रचने वाले के पास लौट जाती है। इस संसार में भी यह नियम हमेशा देखने में आता है, कि प्रत्येक वस्तु अपनी उत्पत्ति के स्त्रोत के पास लौट जाती है। इसलिये अपनी आत्मा भी जो कि हमसे अदृश्य है, परमेश्वर के पास लौट जाती है। और उसके सामने उपस्थित होती है, ताकि परमेश्वर न्याय करके उसके भविष्य का निर्णय कर सके।
विवेक
विवेक एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा हम अच्छाई या बुराई में अन्तर कर पाते हैं। यह परमेश्वर की तरफ से मनुष्य को दिया गया एक महान उपहार है। इसको आत्मा की आवाज़ भी कहते हैं। फर्ज़ करें की एक अनपढ़ मनुष्य जो आधुनिक सभ्यता से दूर जंगलों में रहता है, वह भी यह जानता है कि चोरी करना, झूठ बोलना व हत्या करना गलत बात है। उसको यह बात किसने बताई? वह अपने अन्तः करण की आत्मा के द्वारा यह जान पाया जो उसे विवेक के द्वारा प्राप्त होता है।
पशु-पक्षी अपनी स्वयं की इच्छा से कुछ कर सकते हैं। किन्तु वो व्यवहारिक या नैतिक प्राणी नहीं हैं। उनमें आत्मा नहीं है। क्योंकि उनके पास विवेक नहीं है। अच्छाई या बुराई में फर्क न कर पाने के कारण वह पवित्र अथवा पाप रहित जीवन नहीं जी सकते। इसलिये वे परमेश्वर की सन्तान नहीं बन सकते। परन्तु मनुष्य परमेश्वर के बच्चे बन सकते हैं क्योंकि परमेश्वर पूर्णत पवित्र व सच्चा है। इसलिये मनुष्य व जानवरो में बहुत बड़ा फर्क है कोई भी बंदर या कुत्ता धार्मिक नहीं होता। जो काम वह पहले करता था वही आज भी करता है। परन्तु परमेश्वर ने मनुष्यों को अपनी समानता में बनाया है इसलिये हम उसकी संतान होने के लिये ही बनाऐ गये थे
अनजाने परमेश्वर की खोज
हम अपने अन्तःकरण में साफ तौर पर जानते हैं, कि एक सर्वोच्च ताकत है। वह ही सृष्टिकर्त्ता है। और बिना शक के वो पवित्र परमेश्वर है। बाइबल साफ बताती है कि हमारे पापों के कारण परमेश्वर हमसे अलग है। इसलिये वह हमारी आँखो से ओझल है। इसका यह मतलब नहीं की उसका अस्तित्व नहीं है। हम हवा को देख नहीं सकते पर जानते हैं कि हवा है। प्रकाश की किरण को भी किसी ने नहीं देखा क्योंकि वह उर्जा है, परन्तु उसके परिणाम से सब परिचित हैं।
मनुष्य के सामने आई हुई समस्याऐं जैसे दुःख तकलीफ व बीमारी पाप के परिणाम हैं। और ये शैतान की तरफ से हमारे जीवन में आती हैं। परमेश्वर को इस परिस्थिति का ज्ञान रहता है। और वह इस स्थिति में भी अपने आप को मनुष्यों पर प्रकट कर सकता है, ताकि मनुष्य मदद पाये। यही वह क्षण होता है जब परमेश्वर मनुष्य को बचाने की अपनी ताकत प्रकट करता है।
मनुष्य निर्मित ईश्वर
हम अपने जीवन में परमेश्वर की खोज करते करते निराशा की हालत में असफल होने पर स्वयं परमेश्वर की रचना करने लगते हैं। ऐसा परमेश्वर जिसके पास कोई अधिकार नहीं होता है। और वह हमारे बताए रास्तों का पालन करना है। वह हमारे पापमय जीवन को बदलने की शक्ति नहीं रखता है। क्योंकि जैसे हम हैं वैसे ही हमारा स्वयं निर्मित परमेश्वर होता है। वह हमें गलत काम करने से नही रोकता है। उसका अस्तित्व हमारे हाथ से लेकर हमारे विचारों तक ही रहता है। यह हमारी जरूरतों व इच्छाओं के अनुसार बनाया हुआ होता है। जिस तरह हम अपने कपड़े अपने नाप के बनवाते हैं । अर्थात् अगर हमारा चरित्र अनैतिक व भ्रष्ट है, तो हमारे पास अनैतिक व भ्रष्ट परमेश्वर होगा, अगर हमारे चरित्र में व स्वभाव में हिंसा व मार धाड़ भरी हुई है, तो हमारा परमेश्वर हिंसात्मक होगा जो तलवार से खून बहाता होगा। इस तरह मानव इतिहास में कई परमेश्वर व कई धर्म न बनते चले आये हैं।
परमेश्वरों का गायब हो जाना
आज से हजारों वर्ष पूर्व के बेबीलोनियन साम्राज्य, यूनान साम्राज्य व रोम साम्राज्य के ईश्वर कहां चले गये, वे इस जाति, साम्राज्य व सभ्यता के समाप्ति पर लुप्त हो गये।
विवेक एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा हम अच्छाई या बुराई में अन्तर कर पाते हैं। यह परमेश्वर की तरफ से मनुष्य को दिया गया एक महान उपहार है। इसको आत्मा की आवाज़ भी कहते हैं। फर्ज़ करें की एक अनपढ़ मनुष्य जो आधुनिक सभ्यता से दूर जंगलों में रहता है, वह भी यह जानता है कि चोरी करना, झूठ बोलना व हत्या करना गलत बात है। उसको यह बात किसने बताई? वह अपने अन्तः करण की आत्मा के द्वारा यह जान पाया जो उसे विवेक के द्वारा प्राप्त होता है।
पशु-पक्षी अपनी स्वयं की इच्छा से कुछ कर सकते हैं। किन्तु वो व्यवहारिक या नैतिक प्राणी नहीं हैं। उनमें आत्मा नहीं है। क्योंकि उनके पास विवेक नहीं है। अच्छाई या बुराई में फर्क न कर पाने के कारण वह पवित्र अथवा पाप रहित जीवन नहीं जी सकते। इसलिये वे परमेश्वर की सन्तान नहीं बन सकते। परन्तु मनुष्य परमेश्वर के बच्चे बन सकते हैं क्योंकि परमेश्वर पूर्णत पवित्र व सच्चा है। इसलिये मनुष्य व जानवरो में बहुत बड़ा फर्क है कोई भी बंदर या कुत्ता धार्मिक नहीं होता। जो काम वह पहले करता था वही आज भी करता है। परन्तु परमेश्वर ने मनुष्यों को अपनी समानता में बनाया है इसलिये हम उसकी संतान होने के लिये ही बनाऐ गये थे
अनजाने परमेश्वर की खोज
हम अपने अन्तःकरण में साफ तौर पर जानते हैं, कि एक सर्वोच्च ताकत है। वह ही सृष्टिकर्त्ता है। और बिना शक के वो पवित्र परमेश्वर है। बाइबल साफ बताती है कि हमारे पापों के कारण परमेश्वर हमसे अलग है। इसलिये वह हमारी आँखो से ओझल है। इसका यह मतलब नहीं की उसका अस्तित्व नहीं है। हम हवा को देख नहीं सकते पर जानते हैं कि हवा है। प्रकाश की किरण को भी किसी ने नहीं देखा क्योंकि वह उर्जा है, परन्तु उसके परिणाम से सब परिचित हैं।
मनुष्य के सामने आई हुई समस्याऐं जैसे दुःख तकलीफ व बीमारी पाप के परिणाम हैं। और ये शैतान की तरफ से हमारे जीवन में आती हैं। परमेश्वर को इस परिस्थिति का ज्ञान रहता है। और वह इस स्थिति में भी अपने आप को मनुष्यों पर प्रकट कर सकता है, ताकि मनुष्य मदद पाये। यही वह क्षण होता है जब परमेश्वर मनुष्य को बचाने की अपनी ताकत प्रकट करता है।
मनुष्य निर्मित ईश्वर
हम अपने जीवन में परमेश्वर की खोज करते करते निराशा की हालत में असफल होने पर स्वयं परमेश्वर की रचना करने लगते हैं। ऐसा परमेश्वर जिसके पास कोई अधिकार नहीं होता है। और वह हमारे बताए रास्तों का पालन करना है। वह हमारे पापमय जीवन को बदलने की शक्ति नहीं रखता है। क्योंकि जैसे हम हैं वैसे ही हमारा स्वयं निर्मित परमेश्वर होता है। वह हमें गलत काम करने से नही रोकता है। उसका अस्तित्व हमारे हाथ से लेकर हमारे विचारों तक ही रहता है। यह हमारी जरूरतों व इच्छाओं के अनुसार बनाया हुआ होता है। जिस तरह हम अपने कपड़े अपने नाप के बनवाते हैं । अर्थात् अगर हमारा चरित्र अनैतिक व भ्रष्ट है, तो हमारे पास अनैतिक व भ्रष्ट परमेश्वर होगा, अगर हमारे चरित्र में व स्वभाव में हिंसा व मार धाड़ भरी हुई है, तो हमारा परमेश्वर हिंसात्मक होगा जो तलवार से खून बहाता होगा। इस तरह मानव इतिहास में कई परमेश्वर व कई धर्म न बनते चले आये हैं।
परमेश्वरों का गायब हो जाना
आज से हजारों वर्ष पूर्व के बेबीलोनियन साम्राज्य, यूनान साम्राज्य व रोम साम्राज्य के ईश्वर कहां चले गये, वे इस जाति, साम्राज्य व सभ्यता के समाप्ति पर लुप्त हो गये।
मनुष्य अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये, और स्वार्थ सिद्धि के लिये किसी विशेष ईश्वर की रचना कर लेता है। चाहे इससे हत्या, लालच या सेक्स ही को बढ़ावा क्यो न मिलता हो।
पशु-पक्षी जानवर तो ईश्वर का रूप नहीं होते, उनके पास आत्मा नही होती है। वह सोच समझ नहीं सकते, वह पढ़ाई लिखाई करके जीवन में आगे नहीं बड़ सकते, उनके पास विवेक नहीं होता। इसलिये आपने कभी भी धार्मिक बन्दर या धार्मिक कुत्ता या चूहा नहीं देखा होगा। परन्तु फिर भी मनुष्य पशु पक्षी व जानवरों की पूजा करते रहते हैं। मनुष्य तो एक ऐसा प्राणी है जिसे अन्तिम दिन न्याय के समय परमेश्वर के सामने जवाब देना पड़ेगा ।
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि मनुष्य पाप के कारण जिस गिरे जीवन को जी रहा है। वह इसके लिये नहीं पर और किसी विशेष उद्देश्य के लिये बनाया गया था?
पशु-पक्षी जानवर तो ईश्वर का रूप नहीं होते, उनके पास आत्मा नही होती है। वह सोच समझ नहीं सकते, वह पढ़ाई लिखाई करके जीवन में आगे नहीं बड़ सकते, उनके पास विवेक नहीं होता। इसलिये आपने कभी भी धार्मिक बन्दर या धार्मिक कुत्ता या चूहा नहीं देखा होगा। परन्तु फिर भी मनुष्य पशु पक्षी व जानवरों की पूजा करते रहते हैं। मनुष्य तो एक ऐसा प्राणी है जिसे अन्तिम दिन न्याय के समय परमेश्वर के सामने जवाब देना पड़ेगा ।
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि मनुष्य पाप के कारण जिस गिरे जीवन को जी रहा है। वह इसके लिये नहीं पर और किसी विशेष उद्देश्य के लिये बनाया गया था?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि मनुष्य के पास आत्मा है जो उसे ईश्वर की समानता में ले आती है व स्वरूप देती है? :
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि मनुष्य के पास आत्मा है जो उसे ईश्वर की समानता में ले आती है व स्वरूप देती है? :
उत्तर : ..........................................
6.पाप
पाप का अर्थ
हर एक जीवित प्राणी इस दुनिया में पाप के शब्द से परिचित है। हमारा विवेक खामोशी से इसके बारे में बताता है, व चेतावनी देता है।
हर एक जीवित प्राणी इस दुनिया में पाप के शब्द से परिचित है। हमारा विवेक खामोशी से इसके बारे में बताता है, व चेतावनी देता है।
(1) नैतिक आज़ादी का गलत उपयोग करना ही पाप है। उदाहरण के तौर पर आग के द्वारा मकान जल जाते हैं व मनुष्य मारे जाते हैं पर उसी आग का उपयोग हम खाना पकाने के लिये भी कर सकते हैं।
(2) उन कामों को करना जो गलत हैं व नुकसान देह हैं, उदाहरण के तौर पर आपरेशन करने वाले डाक्टर के हाथ में चाकू रहना कोई खतरनाक बात नहीं है। क्योंकि उससे वह जान बचाता है। यही चाकू एक हत्यारे के हाथ में किसी की मृत्यु का कारण बन जाता है।
मसीह ने बताया पेट में जो जाता है, उससे हम अशुद्ध नहीं होते परन्तु मन से जो बाहर आता है वह हमें अशुद्ध करता है।
कुछ लोग काँटो के बिस्तर पर सोते हैं। कुछ तो अपनी जीभ तक कटवा लेते हैं, ताकि बुरी भाषा का उपयोग न कर सकें और अन्दर से कोई बुरी बात न निकल सके यह तरीका वैसा ही है, जैसे गन्दे पानी के नल को बन्द रखा गया हो, और अन्दर पानी वैसा ही हो।
कुछ लोग समझते हैं कि हमारे आस पास के लोग व सुख विलास के साधनों के कारण हम पापमय जीवन जीते हैं। इन सब चीजों से बचने के लिये वह दूर दराज़ जंगलों व पहाड़ों पर चले जाते हैं, और वहाँ की हर कठिन हालत को सहने लगते हैं। और उनका जीवन समाज या संसार के लिये बेकार हो जाता है, परमेश्वर की योजना मनुष्य के लिये कभी भी ऐसी नहीं थी, कि मनुष्य इस तरह जीवन बिताये। इस संसार से दूर भाग जाने पर भी पाप से भरे गन्दे विचार पीछा कभी नहीं छोड़ते हैं।
पाप का स्त्रोत मनुष्य के अन्दर है। इसलिये उसे अन्दर से बदलाव लाना पड़ेगा। शरीर को बाहर से कितना भी धोने की कोशिश करें या कीमत चुकायें परन्तु वह अन्दर से नया स्वभाव नहीं पा सकता। यह उस चर्म रोग की तरह है, जो बाहरी तौर पर दवाई लगाने से ठीक तो हो जाना है, परन्तु फिर शरीर के किसी भी हिस्से में आ जाता है जब तक की इसका इलाज अन्दर से न किया जाये। चाहे हम किसी भी धर्म को मानते हो, याद रखें हम सब पापी हैं। हमने परमेश्वर के पवित्र नियमों का विरोध अपने विचारों, कामों, उद्देश्यों व दृष्टि कोणों में किया है।
हमें किस तरह पाप से मोक्ष मिल सकता है, यह सिर्फ तब संभव है जब प्रभु यीशु मसीह हमारे जीवन में काम करने लगेंगे। हमें अपने पापों से पश्चाताप करना होगा। तब हम प्रभु यीशु मसीह द्वारा परमेश्वर की पवित्र आत्मा के हकदार हो सकेंगे। और हमारा पापी स्वभाव का अन्त हो जायेगा सिर्फ प्रभु यीशु मसीह के वरदान के द्वारा ही परमेश्वर हमें पापों से मुक्ति दिला सकता है।
प्रश्न: क्या आप पाप से उत्पन्न भयानक स्थिति और उसके परिणाम व परमेश्वर की इच्छा को गंभीरता से समझ गये हैं?
(2) उन कामों को करना जो गलत हैं व नुकसान देह हैं, उदाहरण के तौर पर आपरेशन करने वाले डाक्टर के हाथ में चाकू रहना कोई खतरनाक बात नहीं है। क्योंकि उससे वह जान बचाता है। यही चाकू एक हत्यारे के हाथ में किसी की मृत्यु का कारण बन जाता है।
मसीह ने बताया पेट में जो जाता है, उससे हम अशुद्ध नहीं होते परन्तु मन से जो बाहर आता है वह हमें अशुद्ध करता है।
कुछ लोग काँटो के बिस्तर पर सोते हैं। कुछ तो अपनी जीभ तक कटवा लेते हैं, ताकि बुरी भाषा का उपयोग न कर सकें और अन्दर से कोई बुरी बात न निकल सके यह तरीका वैसा ही है, जैसे गन्दे पानी के नल को बन्द रखा गया हो, और अन्दर पानी वैसा ही हो।
कुछ लोग समझते हैं कि हमारे आस पास के लोग व सुख विलास के साधनों के कारण हम पापमय जीवन जीते हैं। इन सब चीजों से बचने के लिये वह दूर दराज़ जंगलों व पहाड़ों पर चले जाते हैं, और वहाँ की हर कठिन हालत को सहने लगते हैं। और उनका जीवन समाज या संसार के लिये बेकार हो जाता है, परमेश्वर की योजना मनुष्य के लिये कभी भी ऐसी नहीं थी, कि मनुष्य इस तरह जीवन बिताये। इस संसार से दूर भाग जाने पर भी पाप से भरे गन्दे विचार पीछा कभी नहीं छोड़ते हैं।
पाप का स्त्रोत मनुष्य के अन्दर है। इसलिये उसे अन्दर से बदलाव लाना पड़ेगा। शरीर को बाहर से कितना भी धोने की कोशिश करें या कीमत चुकायें परन्तु वह अन्दर से नया स्वभाव नहीं पा सकता। यह उस चर्म रोग की तरह है, जो बाहरी तौर पर दवाई लगाने से ठीक तो हो जाना है, परन्तु फिर शरीर के किसी भी हिस्से में आ जाता है जब तक की इसका इलाज अन्दर से न किया जाये। चाहे हम किसी भी धर्म को मानते हो, याद रखें हम सब पापी हैं। हमने परमेश्वर के पवित्र नियमों का विरोध अपने विचारों, कामों, उद्देश्यों व दृष्टि कोणों में किया है।
हमें किस तरह पाप से मोक्ष मिल सकता है, यह सिर्फ तब संभव है जब प्रभु यीशु मसीह हमारे जीवन में काम करने लगेंगे। हमें अपने पापों से पश्चाताप करना होगा। तब हम प्रभु यीशु मसीह द्वारा परमेश्वर की पवित्र आत्मा के हकदार हो सकेंगे। और हमारा पापी स्वभाव का अन्त हो जायेगा सिर्फ प्रभु यीशु मसीह के वरदान के द्वारा ही परमेश्वर हमें पापों से मुक्ति दिला सकता है।
प्रश्न: क्या आप पाप से उत्पन्न भयानक स्थिति और उसके परिणाम व परमेश्वर की इच्छा को गंभीरता से समझ गये हैं?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप चाहते हैं कि आपके पाप माफ हो सकें और आप पाप की गुलामी से हट सकें?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप चाहते हैं कि आपके पाप माफ हो सकें और आप पाप की गुलामी से हट सकें?
उत्तर : ..........................................
7. मैं उद्धार पाने के लिये क्या करूं?
कर्म से मोक्ष नहीं
बाइबल बताती है कि प्रत्येक मनुष्य पापी है। (रोमियों 3:23) पापों की श्रेणी में हमारे बाहरी कर्म, मन के विचार व दृष्टि कोण आते हैं और हम सभी को पाप ने गुलाम बना लिया है। इसलिये केवल कर्म सुधारने से मोक्ष नहीं मिल सकता है।
कर्म से मोक्ष नहीं
बाइबल बताती है कि प्रत्येक मनुष्य पापी है। (रोमियों 3:23) पापों की श्रेणी में हमारे बाहरी कर्म, मन के विचार व दृष्टि कोण आते हैं और हम सभी को पाप ने गुलाम बना लिया है। इसलिये केवल कर्म सुधारने से मोक्ष नहीं मिल सकता है।
प्रभु यीशु मसीह हमारे पापों को माफ करने व उनकी कीमत चुकाने के लिये इस संसार में आये।
नये धर्म का प्रारम्भ नहीं
प्रभु यीशु मसीह किसी नये धर्म की शुरुआत करने नहीं आये। लोग धर्म (अधर्म) में अंधे होकर अन्धकार में भटक रहे थे, उनको वो सत्य की ज्योति दिखाने आये थे।
नये धर्म का प्रारम्भ नहीं
प्रभु यीशु मसीह किसी नये धर्म की शुरुआत करने नहीं आये। लोग धर्म (अधर्म) में अंधे होकर अन्धकार में भटक रहे थे, उनको वो सत्य की ज्योति दिखाने आये थे।
कई धर्मों में बताया जाता है कि ईश्वर पापियों का सत्यनाश करता है। परन्तु इसके विपरीत यीशु मसीह पापियों का विनाश करने नहीं परन्तु उन्हें बचाने आये थे। प्रभु यीशु ने कहा “भले चंगो को डाक्टर की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु बीमारों को होती है। (मत्ती 9:12) इसी तरह पापी मनुष्य को अपने पाप व बुरे कामों से मुक्ति पाने के लिये परमेश्वर की ज़रूरत होती है।
हमारे अच्छे काम व्यर्थ हैं
पापों की सज़ा, हमारा दुःखी रहना, बीमार होना, गरीबी या पुर्नजन्म इत्यादि नहीं है। परन्तु अनन्त मृत्यु व आत्मा का विनाश है।
शारीरिक मृत्यु द्वारा हम अपनी शारीरिक देह से अलग हो जाते हैं। इसी प्रकार आत्मिक मृत्यु होने पर हम जीवन दाता परमेश्वर से हमेशा हमेशा के लिये अलग हो जाते हैं।
अभी तक की ज़िन्दगी में किये गये बुरे कामों की कीमत हम बाकी जीवन में अच्छे काम करके नहीं चुका सकते हैं।
अगर हम अपने देश की सरकार के कानूनों का पालन न करें, जैसे की टेक्स देने में बेईमानी करना। और यदि हम वादा करें कि भविष्य में टेक्स देते रहेंगे तो क्या सरकार हमें माफ करेगी, कभी नही, जब तक की हम पिछला व अगला हिसाब पूरा न करेंगे।
हमने अभी तक के जीवन में जो किया, उसका हिसाब तो चुकाना ही पड़ेगा। पाप के साथ इसी तरह है चाहे हम भविष्य में कितने ही अच्छे काम करें, हमारे बिताये हुऐ जीवन के पापों की कीमत चुकानी ही पड़ेगी।
न्यायालय (कचहरी) में भी किसी चोर को इसलिये माफ नहीं किया जाता कि उसने पिछले जीवन में गरीबों की पैसे से बहुत मदद की थी। इन्सान होने के नाते भी कोर्ट के जज अच्छे या बुरे को तराजू में तौल कर न्याय नहीं करते, तो फिर परमेश्वर जो पूर्णत: पवित्र व सच्चा न्यायी है क्या वह इन्सान के अच्छे व बुरे कामों को तराजू में तौल कर न्याय करेगा। हमारे काम चाहे कितने भी धार्मिक हो, या उन्हें हम कितना भी महत्व देते हों हमें नहीं बचा सकते।
अगर हम अपने देश की सरकार के कानूनों का पालन न करें, जैसे की टेक्स देने में बेईमानी करना। और यदि हम वादा करें कि भविष्य में टेक्स देते रहेंगे तो क्या सरकार हमें माफ करेगी, कभी नही, जब तक की हम पिछला व अगला हिसाब पूरा न करेंगे।
हमने अभी तक के जीवन में जो किया, उसका हिसाब तो चुकाना ही पड़ेगा। पाप के साथ इसी तरह है चाहे हम भविष्य में कितने ही अच्छे काम करें, हमारे बिताये हुऐ जीवन के पापों की कीमत चुकानी ही पड़ेगी।
न्यायालय (कचहरी) में भी किसी चोर को इसलिये माफ नहीं किया जाता कि उसने पिछले जीवन में गरीबों की पैसे से बहुत मदद की थी। इन्सान होने के नाते भी कोर्ट के जज अच्छे या बुरे को तराजू में तौल कर न्याय नहीं करते, तो फिर परमेश्वर जो पूर्णत: पवित्र व सच्चा न्यायी है क्या वह इन्सान के अच्छे व बुरे कामों को तराजू में तौल कर न्याय करेगा। हमारे काम चाहे कितने भी धार्मिक हो, या उन्हें हम कितना भी महत्व देते हों हमें नहीं बचा सकते।
किसी भी तरह का धार्मिक रीति रिवाज हमारे पापों को शुद्ध नहीं कर सकता।
प्रभु यीशु मसीह उद्धारकर्त्ता के रूप में
परमेश्वर पाप से नफरत करता है परन्तु पापी को प्यार करता है। और उसे बचाना चाहता है। एक पापी दूसरे पापी को नहीं बचा सकता। इसलिये संपूर्ण मानव जाति को पाप से बचाने का अवसर, व रास्ता देने के लिये प्रभु यीशु मसीह आये। वे निर्दोष व निष्कलंक थे, वे पूर्णत पवित्र थे, स्वयं परमेश्वर थे। वे हमारे बदले स्वयं की जान देने को तैयार थे बाइबल कहती है- पापों की सज़ा तो मृत्यु है (शारीरिक व आत्मिक) रोमियों 6:23
प्रभु यीशु मसीह उद्धारकर्त्ता के रूप में
परमेश्वर पाप से नफरत करता है परन्तु पापी को प्यार करता है। और उसे बचाना चाहता है। एक पापी दूसरे पापी को नहीं बचा सकता। इसलिये संपूर्ण मानव जाति को पाप से बचाने का अवसर, व रास्ता देने के लिये प्रभु यीशु मसीह आये। वे निर्दोष व निष्कलंक थे, वे पूर्णत पवित्र थे, स्वयं परमेश्वर थे। वे हमारे बदले स्वयं की जान देने को तैयार थे बाइबल कहती है- पापों की सज़ा तो मृत्यु है (शारीरिक व आत्मिक) रोमियों 6:23
वह पूरी तरह प्रेम से भरे हुऐ थे। इसलिये मानवता को बचाने के लिये धारण किये हुऐ थे। मनुष्य रूप
बाइबल यूहन्ना 3:16 में बताती है कि " क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्यार किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास लाये, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाये"
परमेश्वर एक ही है। और वह एक ही बार मनुष्यों का अवतार लेकर इस संसार में आया इस बात का सबूत दो बातों से मिलता है।
(1) केवल प्रभु यीशु मसीह ही हर मनुष्य के पापों के लिये मरे।
परमेश्वर एक ही है। और वह एक ही बार मनुष्यों का अवतार लेकर इस संसार में आया इस बात का सबूत दो बातों से मिलता है।
(1) केवल प्रभु यीशु मसीह ही हर मनुष्य के पापों के लिये मरे।
(2) केवल प्रभु यीशु मसीह ही मृत्यु के पश्चात् जीवित हो उठे और फिर कभी नहीं मरे और बहुत लोगो के देखते देखते वे स्वर्ग पर चले गये। यह घटना दर्शाती है कि उन्होंने मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु "मृत्यु" पर विजय प्राप्त कर ली और मनुष्यों के प्रति किये गये इस बलिदान को परमेश्वर ने भी स्वीकार किया।
इस संसार में अलग अलग जाति धर्म, देश, रंग, व भाषा भले ही क्यों न हो परन्तु परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु मसीह ने सब के पापों के लिये एक ही बार खून बहाकर अपने प्राणों का बलिदान किया।
मोक्ष कैसे प्राप्त करें?
अगर आप चाहते हैं, कि मोक्ष के इस दान को प्राप्त करें तो आपको सबसे पहले पापों से मन फिराना होगा। अर्थात् पश्चाताप या पापी जीवन छोड़ने का सारे दिल से निर्णय करना होगा, और प्रभु यीशु मसीह के ऊपर इस तरह से विश्वास करना होगा:
(1) कि उसने मेरे व्यक्तिगत पापों की सजा के लिये अपना लहू बहाकर बलिदान किया।
(2) कि वे परमेश्वर के पुत्र हैं। अवतार हैं। और पूर्णत: पवित्र हैं
(3) कि यीशु मसीह को पापों को माफ करने का व अनन्त जीवन देने का अधिकार है।
इस संसार में अलग अलग जाति धर्म, देश, रंग, व भाषा भले ही क्यों न हो परन्तु परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु मसीह ने सब के पापों के लिये एक ही बार खून बहाकर अपने प्राणों का बलिदान किया।
मोक्ष कैसे प्राप्त करें?
अगर आप चाहते हैं, कि मोक्ष के इस दान को प्राप्त करें तो आपको सबसे पहले पापों से मन फिराना होगा। अर्थात् पश्चाताप या पापी जीवन छोड़ने का सारे दिल से निर्णय करना होगा, और प्रभु यीशु मसीह के ऊपर इस तरह से विश्वास करना होगा:
(1) कि उसने मेरे व्यक्तिगत पापों की सजा के लिये अपना लहू बहाकर बलिदान किया।
(2) कि वे परमेश्वर के पुत्र हैं। अवतार हैं। और पूर्णत: पवित्र हैं
(3) कि यीशु मसीह को पापों को माफ करने का व अनन्त जीवन देने का अधिकार है।
मूर्त्ति पूजा क्या है?
सृष्टिकर्ता परमेश्वर की जगह मनुष्य द्वारा बनाई हुई वस्तु मूर्त्ति अथवा किसी जीव जन्तु को परमेश्वर मानकर पूजा करना एवं परमेश्वर से अधिक इन चीज़ों को सम्मान व प्यार देना।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर से अधिक सम्मान व प्रेम को जाने वाली वस्तुओं में हमारा पैसा, मकान, व्यापार, परिवार व हमारा अपना घमंड है। कई ईसाई गिरजाघरो में भी यीशु मसीह की मूर्ति पूजा होती है यह भी पाप है। बाइबल में परमेश्वर ने इसकी सख्त मना की है। हर एक पाप की जड़ मनुष्य के अन्दर है बाइबल में यूहन्ना 1:18 में लिखा है "परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया। बाइबल बताती है परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में एक ही बिचवई है जिसका नाम प्रभु यीशु मसीह है।
प्रभु यीशु मसीह न सिर्फ हमारे पापों को धोकर साफ कर देते हैं। बल्कि हमको पापों पर विजय प्राप्त करने की ताकत भी देते हैं।
क्या आप किसी कमरे में बहते हुऐ पानी को बिना बन्द किये, सिर्फ कपड़े व बाल्टी से उस कमरे के फर्श को सूखा सकते हैं? जब तक हम पानी बन्द नहीं करेंगे फर्श कभी सूखा नहीं हो पायेगा हम कपड़े व बाल्टी से कितना ही पानी निकालने की कोशिश करें। कभी सफल नहीं होंगे।
यही हमारे जीवन की समस्या है हमारे अन्दर भी एक ऐसा नल है जो लगातार पाप उगलता रहता है प्रभु यीशु मसीह न सिर्फ हमारे पापों को धोकर माफ करते हैं। परन्तु इस नल को बन्द कर देने की ताकत भी देते हैं।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर की जगह मनुष्य द्वारा बनाई हुई वस्तु मूर्त्ति अथवा किसी जीव जन्तु को परमेश्वर मानकर पूजा करना एवं परमेश्वर से अधिक इन चीज़ों को सम्मान व प्यार देना।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर से अधिक सम्मान व प्रेम को जाने वाली वस्तुओं में हमारा पैसा, मकान, व्यापार, परिवार व हमारा अपना घमंड है। कई ईसाई गिरजाघरो में भी यीशु मसीह की मूर्ति पूजा होती है यह भी पाप है। बाइबल में परमेश्वर ने इसकी सख्त मना की है। हर एक पाप की जड़ मनुष्य के अन्दर है बाइबल में यूहन्ना 1:18 में लिखा है "परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया। बाइबल बताती है परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में एक ही बिचवई है जिसका नाम प्रभु यीशु मसीह है।
प्रभु यीशु मसीह न सिर्फ हमारे पापों को धोकर साफ कर देते हैं। बल्कि हमको पापों पर विजय प्राप्त करने की ताकत भी देते हैं।
क्या आप किसी कमरे में बहते हुऐ पानी को बिना बन्द किये, सिर्फ कपड़े व बाल्टी से उस कमरे के फर्श को सूखा सकते हैं? जब तक हम पानी बन्द नहीं करेंगे फर्श कभी सूखा नहीं हो पायेगा हम कपड़े व बाल्टी से कितना ही पानी निकालने की कोशिश करें। कभी सफल नहीं होंगे।
यही हमारे जीवन की समस्या है हमारे अन्दर भी एक ऐसा नल है जो लगातार पाप उगलता रहता है प्रभु यीशु मसीह न सिर्फ हमारे पापों को धोकर माफ करते हैं। परन्तु इस नल को बन्द कर देने की ताकत भी देते हैं।
प्रभु यीशु मसीह का नाम लेकर उस पर विश्वास कर लेने के बाद निम्नलिखित तरीकों से हमें पापों पर विजय प्राप्त करने की ताकत मिलती है।
(1) परमेश्वर की पवित्र आत्मा का दान हमें मिलता है, जो हमारे अन्दर रहता है।
(1) परमेश्वर की पवित्र आत्मा का दान हमें मिलता है, जो हमारे अन्दर रहता है।
(2) हम परमेश्वर के वचन बाइबल को समझना शुरु कर देते हैं।
(3) पुराने पापी, भ्रष्ट, विवेक व दिमाग एवं मन बदल जाते हैं व नया शुद्ध विवेक व मन हमारे अन्तः करण में जन्म ले लेता है।
(4) जब हम उससे प्रार्थना करते है तो वह हमसे बात करता है और मार्ग दर्शन करता है।
( 5 ) वह धार्मिक मनुष्यों के द्वारा हमसे बात करता है जो उसके मार्ग पर चलने का अनुभव कर चुके हैं।
बहुत से लोग हैं जो बस नाम के मसीही या ईसाई हैं। वे अपने आपको क्रिश्चयन मानते है क्योंकि वे क्रिश्चियन परिवार में पैदा हुए हैं। यह परमेश्वर को स्वीकार नहीं है, हर मनुष्य उसकी नज़र में समान है और उन्हें भी प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्त्ता स्वीकार करना चाहिये, व बदला हुआ नया जीवन जीकर अच्छे काम करना चाहिये।
प्रभु यीशु का दुबारा आगमन
प्रभु यीशु मसीह अपनी मृत्यु के पश्चात् जब तीसरे दिन जीवित हो उठे तो वे चालीस दिन तक अपने शिष्यों को दिखाई दिये। और उन्हे शिक्षा देते रहे, और 500 लोगों के देखते देखते ही वह स्वर्ग पर चले गये। यह घटना आज से 2000 साल पहले हुई थी। उन्होंने अपने शिष्यों से वादा किया था, कि वह इस संसार में लौट कर दुबारा आयेंगे। यह इस संसार में आने वाली सबसे बड़ी और अद्भुत घटना होगी।
जिन लोगों ने अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करके मोक्ष (उद्धार) प्राप्त किया है उनको वह अपने साथ रखेगा, यह बात पूरी तरह सत्य है। और जिन लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया है उनका वह न्याय करेगा। व दोषी पाये गये लोग अनन्त काल के लिये नरक की आग में डाल दिये जायेंगे। इस दंड की आज्ञा का कारण यह है कि सत्य मनुष्य को दिया गया पर उन्होंने विश्वास नहीं किया।
आप अपने जीवन में आज क्या चुनना पसंद करेंगे। एक छोटा सा बच्चा एक किलो ग्राम सोने की जगह एक प्लास्टिक के खिलौने को ज्यादा पसंद करता है। क्योंकि वह सोने का मूल्य नहीं जानता है। परन्तु आप आज इतनी समझ के हो गये हैं कि आप यह फैसला कर सकते हैं कि आप उस रास्ते पर चलना चाहते हैं जो आपको अनन्त जीवन देता है या उस रास्ते पर जो भले ही इस संसार में कुछ समय के लिये शारीरिक खुशी देता है । परन्तु अन्त में वह आपकी आत्मा को नरक में अनन्त विनाश के लिये ले जायेगा
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि प्रभु यीशु मसीह ही सच्चा व पवित्र मध्यस्थ है जो आपको परमेश्वर से मिला सकता है?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप यह फैसला करना चाहते हैं कि आप को आत्मा का मोक्ष प्राप्त हो।
उत्तर : ..........................................
प्रश्न : क्या आप ऊपर दिये गये उत्तरों से सन्तुष्ट हैं, अगर सन्तुष्ट है तो आखिरी पृष्ठ आपके लिये है?
प्रभु यीशु का दुबारा आगमन
प्रभु यीशु मसीह अपनी मृत्यु के पश्चात् जब तीसरे दिन जीवित हो उठे तो वे चालीस दिन तक अपने शिष्यों को दिखाई दिये। और उन्हे शिक्षा देते रहे, और 500 लोगों के देखते देखते ही वह स्वर्ग पर चले गये। यह घटना आज से 2000 साल पहले हुई थी। उन्होंने अपने शिष्यों से वादा किया था, कि वह इस संसार में लौट कर दुबारा आयेंगे। यह इस संसार में आने वाली सबसे बड़ी और अद्भुत घटना होगी।
जिन लोगों ने अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करके मोक्ष (उद्धार) प्राप्त किया है उनको वह अपने साथ रखेगा, यह बात पूरी तरह सत्य है। और जिन लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया है उनका वह न्याय करेगा। व दोषी पाये गये लोग अनन्त काल के लिये नरक की आग में डाल दिये जायेंगे। इस दंड की आज्ञा का कारण यह है कि सत्य मनुष्य को दिया गया पर उन्होंने विश्वास नहीं किया।
आप अपने जीवन में आज क्या चुनना पसंद करेंगे। एक छोटा सा बच्चा एक किलो ग्राम सोने की जगह एक प्लास्टिक के खिलौने को ज्यादा पसंद करता है। क्योंकि वह सोने का मूल्य नहीं जानता है। परन्तु आप आज इतनी समझ के हो गये हैं कि आप यह फैसला कर सकते हैं कि आप उस रास्ते पर चलना चाहते हैं जो आपको अनन्त जीवन देता है या उस रास्ते पर जो भले ही इस संसार में कुछ समय के लिये शारीरिक खुशी देता है । परन्तु अन्त में वह आपकी आत्मा को नरक में अनन्त विनाश के लिये ले जायेगा
प्रश्न: क्या आप विश्वास करते हैं कि प्रभु यीशु मसीह ही सच्चा व पवित्र मध्यस्थ है जो आपको परमेश्वर से मिला सकता है?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या आप यह फैसला करना चाहते हैं कि आप को आत्मा का मोक्ष प्राप्त हो।
उत्तर : ..........................................
प्रश्न : क्या आप ऊपर दिये गये उत्तरों से सन्तुष्ट हैं, अगर सन्तुष्ट है तो आखिरी पृष्ठ आपके लिये है?
8. आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय
अगर आप सारे दिल और मन से विश्वास करके सच्चाई व ईमानदारी के साथ नीचे लिखी प्रार्थना करेंगे तो आपको इसी समय बाइबल के लिखे अनुसार यीशु मसीह के द्वारा आत्मा का मोक्ष प्राप्त हो जायेगा।
"हे प्रभु यीशु मसीह मैं अपने सारे मन से व दिल से विश्वास करता हूँ कि आप परमेश्वर के पवित्र पुत्र है जो मनुष्य के रूप में जन्म लेकर इस संसार में आये थे।
मैं विश्वास करता/करती हूँ कि पापमय जीवन के कारण ही शारीरिक व आत्मिक मौत आती है जिसके परिणाम से आत्मा का विनाश अनन्त काल के लिये होता है।
मैं अपने पापमय जीवन से बहुत दुखी हूँ अभी इसी वक्त मैं अपने पापी कार्यों से मन के विचारों व अपने दृष्टिकोणों से मन फिरा कर पश्चाताप करता/करती हूँ । मैं पूरी तरह से विश्वास करता/करती हूँ, कि मेरे पापों की सजा के लिये आपने क्रूस पर अपना खून बहाया और अपनी जान दे दी और तीसरे दिन मरे हुओं में से आप जी उठे, प्रभु यीशु मसीह आप मेरे पाप इसी वक्त माफ करिऐ।
हे प्रभु यीशु मसीह अपने पवित्र आत्मा के दान के द्वारा मुझे ऐसी मदद करें कि मैं नये जीवन का अनुभव कर सकूं। मुझे परमेश्वर पिता के साथ आने वाला अनन्त जीवन दें। आमीन"
प्रश्न: क्या आपने ये प्रार्थना दिल और मन से सारी ईमानदारी के साथ की है?
उत्तर : ..........................................
प्रश्न: क्या ऊपर दिया गया उत्तर सच है?
उत्तर : ..........................................
शिष्य थॉमसेन का परिचय
शिष्य थॉमसेन का अधिकांश जीवन उत्तर भारत में बीता। स्वतंत्र रूप से सत्य की खोज करते हुऐ उन्होंने पाया कि सभी धर्म मनुष्य को मात्र एक नैतिक जीवन जीने तक ही प्रेरित करते हैं
लेकिन इसके विपरीत की वास्तविक जरूरत कुछ नैतिक मूल्यों को जान लेना, और उनमें से कुछ पर अमल करना ही नहीं है। सत्य तो ये है की यह जीवन हमारी आत्मा के लिये एक सनातन या अनंत आत्मिक जीवन का प्रारंभ है। ईसाई धर्म का दिखावटी स्वरूपः सत्य की खोज ने उन्हें प्रभु यीशु मसीह के समक्ष ला खड़ा किया।
लेकिन शीघ्र ही उन्होंने वह पहचाना कि जो जीवन अधिकांश मसीहियों (ईसाईयो) का है, वो प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं पर न तो वास्तव में आधारित है और ना ही उनका जीवन मसीह के जीवन से मेल खाता है।
इसके समाधान के रूप में क्या किया जाये ? क्या यह कि जीवित परमेश्वर के सत्य, अर्थात् उसके पुत्र प्रभु यीशु मसीह का तिरस्कार कर दिया जाये, उसके रास्ते को विदेशी धर्म समझा जाये. ..? कदापि नहीं। शिष्य थॉमसेन ने इसे चुनौती के रूप में लिया, व ईसाई वर्ग की नकली भक्ति और कपट का पर्दाफाश करना चालू लिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान मसीही विश्वास या धर्म का वह स्वरूप दिखाई नही दे रहा है, जो प्रभु यीशु मसीह के अनुयायियों का होना चाहिये । प्रभु यीशु मसीह पिता परमेश्वर के स्वर्गीय स्थान से मानव रूप धारण करके हमारे बीच आये थे उन्होंने ईश्वरीय इच्छा से मानव जीवन बिताया, स्वर्गीय पिता परमेश्वर की इच्छा पूर्ण की, उन्होंने परमेश्वर, मनुष्य, जीवन, पाप व मोक्ष से संबंधित सत्य को हम पर प्रकट किया।
मनुष्य को ज्ञान हुआ कि किस तरह पाप मनुष्य के कर्म में नहीं पर हृदय में, विचारों में व उद्देश्यों बीज के समान बसा रहता है। पाप के फलों को खत्म करने से लाभ नहीं होता, लेकिन जड़ को व बीज को निकालना जरूरी होता है। नया धर्म नहींः प्रभु यीशु मसीह नया धर्म चलाने नहीं, नया जीवन देने आये थे। उन्होंने बताया कि वे स्वयं ही जीवन, सत्य व मोक्ष के एकमात्र मार्ग हैं। क्योंकि केवल वे ही मनुष्य के पापों की कीमत अपने बलिदान से पूरा करते हैं। बाइबल कहती है, "मनुष्य के लिये पाप की मज़दूरी आत्मिक मृत्यु सर्वनाश है।'
इसके समाधान के रूप में क्या किया जाये ? क्या यह कि जीवित परमेश्वर के सत्य, अर्थात् उसके पुत्र प्रभु यीशु मसीह का तिरस्कार कर दिया जाये, उसके रास्ते को विदेशी धर्म समझा जाये. ..? कदापि नहीं। शिष्य थॉमसेन ने इसे चुनौती के रूप में लिया, व ईसाई वर्ग की नकली भक्ति और कपट का पर्दाफाश करना चालू लिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान मसीही विश्वास या धर्म का वह स्वरूप दिखाई नही दे रहा है, जो प्रभु यीशु मसीह के अनुयायियों का होना चाहिये । प्रभु यीशु मसीह पिता परमेश्वर के स्वर्गीय स्थान से मानव रूप धारण करके हमारे बीच आये थे उन्होंने ईश्वरीय इच्छा से मानव जीवन बिताया, स्वर्गीय पिता परमेश्वर की इच्छा पूर्ण की, उन्होंने परमेश्वर, मनुष्य, जीवन, पाप व मोक्ष से संबंधित सत्य को हम पर प्रकट किया।
मनुष्य को ज्ञान हुआ कि किस तरह पाप मनुष्य के कर्म में नहीं पर हृदय में, विचारों में व उद्देश्यों बीज के समान बसा रहता है। पाप के फलों को खत्म करने से लाभ नहीं होता, लेकिन जड़ को व बीज को निकालना जरूरी होता है। नया धर्म नहींः प्रभु यीशु मसीह नया धर्म चलाने नहीं, नया जीवन देने आये थे। उन्होंने बताया कि वे स्वयं ही जीवन, सत्य व मोक्ष के एकमात्र मार्ग हैं। क्योंकि केवल वे ही मनुष्य के पापों की कीमत अपने बलिदान से पूरा करते हैं। बाइबल कहती है, "मनुष्य के लिये पाप की मज़दूरी आत्मिक मृत्यु सर्वनाश है।'
प्रभु यीशु मसीह मनुष्य को सनातन जीवन देने के लिये, स्वयं, क्रूस की मृत्यु सहते हैं और इसके चालिस दिन के पश्चात लोगों के देखते देखते उनका स्वर्गारोहण होता है।
धर्म परिवर्तन निरर्थक है: धर्म तो बाहरी दिखाया है, यदि अंतःकरण में अधर्म है तब पैसे या धनशक्ति से, या सामाजिक दबावों से प्रेरित धर्म परिवर्तन झूठा है। ये जीवित परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है, हाँ, यह को मानसिक संतोष दिलाने में समर्थ है, लेकिन आत्मा का मोक्ष व स्वर्गीय सनातन जीवन जो परमेश्वर के साथ सगंती का है उसे प्रदान करने में पूरी तरह असफल है।
हमें धर्म परिवर्तन नहीं जीवन परिवर्तन चाहिये, वह जीवन जो परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह को मुक्तिदाता स्वीकार करने से प्राप्त होता है, पापों से पश्चाताप करने से मिलता है। परमेश्वर प्रेरित नया जीवन मनुष्य अपनी सामर्थ से या अपने धर्म के नियमों का पालन करके या रीति-रिवाजों और त्यौहारों को मेना कर नहीं प्राप्त कर सकता।
सांसारिक शारीरिक जीवन पाप का संकेत है, इसलिये बाइबल बताती है कि जब प्रभु यीशु मसीह की आत्मा हमारे अंदर निवास करती है, और जीवन जीती है, तभी हम प्रभु यीशु मसीह के नये जीवन को संसार में प्रगट कर सकते हैं। दिखावे के मसीही (ईसाई) जीवन को चुनौती देते हुऐ, आज हम सच्चा मसीही जीवन जीने का आहवान करते हैं। प्रभु यीशु मसीह आपको आशीष दे, आमीन
For more details : SHISHYASHRAM, 305 D/A Sheeshmahal, Shalimar Bagh, New Delhi-110088. e-mail:jawabjawab@yahoo.com
धर्म परिवर्तन निरर्थक है: धर्म तो बाहरी दिखाया है, यदि अंतःकरण में अधर्म है तब पैसे या धनशक्ति से, या सामाजिक दबावों से प्रेरित धर्म परिवर्तन झूठा है। ये जीवित परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है, हाँ, यह को मानसिक संतोष दिलाने में समर्थ है, लेकिन आत्मा का मोक्ष व स्वर्गीय सनातन जीवन जो परमेश्वर के साथ सगंती का है उसे प्रदान करने में पूरी तरह असफल है।
हमें धर्म परिवर्तन नहीं जीवन परिवर्तन चाहिये, वह जीवन जो परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह को मुक्तिदाता स्वीकार करने से प्राप्त होता है, पापों से पश्चाताप करने से मिलता है। परमेश्वर प्रेरित नया जीवन मनुष्य अपनी सामर्थ से या अपने धर्म के नियमों का पालन करके या रीति-रिवाजों और त्यौहारों को मेना कर नहीं प्राप्त कर सकता।
सांसारिक शारीरिक जीवन पाप का संकेत है, इसलिये बाइबल बताती है कि जब प्रभु यीशु मसीह की आत्मा हमारे अंदर निवास करती है, और जीवन जीती है, तभी हम प्रभु यीशु मसीह के नये जीवन को संसार में प्रगट कर सकते हैं। दिखावे के मसीही (ईसाई) जीवन को चुनौती देते हुऐ, आज हम सच्चा मसीही जीवन जीने का आहवान करते हैं। प्रभु यीशु मसीह आपको आशीष दे, आमीन
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परमेश्वर के बेटे और मनुष्य की बेटियां कौन हैं
आशा की किरण
विषय-सूची : लेख 1
भूमिका
परमेश्वर पिता के विषय में अध्ययन
परमेश्वर का अस्तित्वपरमेश्वर का व्यक्तित्व
परमेश्वर एक सन्तुलित हस्ती है
त्रिएकत्व, पिता पुत्र पवित्र आत्मा क्या है
परमेश्वर के नाम , पितृत्व और मौन
प्रभु परमेश्वर का भय
परमेश्वर पुत्र के विषय में अध्ययन
भविष्यद्वाणियाँ और यीशु मसीह का जीवनयीशु मसीह का कुंवारी से जन्म
यीशु मसीह का ईश्वरत्व
यीशु मसीह का ईश्वरत्व
( क ) (इस विषय के विरुद्ध तर्क)
पुत्र का पिता से सम्बन्ध
यीशु मसीह की मानवता
यीशु मसीह की पापहीनता
यीशु मसीह का चरित्र
यीशु मसीह की शिक्षाएँ
यीशु मसीह की आज्ञाएँ
यीशु मसीह के आश्चर्यकर्म
यीशु मसीह की मृत्यु
पवित्र आत्मा के विरुद्ध पाप
स्वर्गदूत
शैतान
दुष्टात्माओं
मसीहियों के विरुद्ध शैतान के आक्रमण
जब कोई प्रभु यीशु पर विश्वास करता है, तो क्या होता है ?
स्वर्गदूत
शैतान
दुष्टात्माओं
मसीहियों के विरुद्ध शैतान के आक्रमण
जब कोई प्रभु यीशु पर विश्वास करता है, तो क्या होता है ?
पानी का बपतिस्मा (जलसंस्कार ) 1
पानी का बपतिस्मा (जलसंस्कार ) 2
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 1
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 2
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 3
पानी का बपतिस्मा (जलसंस्कार ) 2
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 1
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 2
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा 3










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