प्रभु यीशु मसीह का दिन, Day Of Lord Jesus Christ
भूमिका
चीन का एक अपवित्र इतवार देखने के बाद एक मसीही इतवार देखना कितना अच्छा लगता है! अमेरिका में इतवार एक "तमाशे का दिन" बन गया। है, पवित्र दिन के स्थान पर वह मनोरंजन का दिन बन गया है।
हमारा अनुभव है कि जो लोग प्रभु के दिन का आदर करते हैं, परमेश्वर उनका आदर करता है। पश्चिमी चीन में हमने देखा कि जिस कलीसिया ने इतवार का पालन किया और अपने स्टोर इत्यादि बन्द रखे वह आत्मिक रूप से समृद्ध हुई। जो विद्यार्थी प्रभु का आदर करते हैं और इतवार को सांसारिक विषयों का अध्ययन नहीं करते, वे परमेश्वर से आशिष प्राप्त करते हैं।
परन्तु आज हमारे सामने जो समस्या है वह यह है कि क्या हम मसीहियों को उसी रूप में प्रभु यीशु मसीह का दिन Day Of Lord Jesus Christ का पालन करने के लिए बाध्य कर सकते हैं जिस रूप में व्यवस्था के अधीन सब्त के दिन का पालन किया जाता था? फिलीपिन्स के जनतंत्र ने कुछ कानून बनाए हैं जिनके अन्तर्गत कुछ किस्म के व्यापार इतवार को बन्द रखने आवश्यक हैं, परन्तु दुर्भाग्यवश सार्वजनिक बाजार, मुर्गे लड़ाने के स्थान और मनोरंजन के स्थान खुले रहते हैं।
1. प्रभु के दिन का मूल
प्रभु यीशु मसीह का दिन (इतवार) नए नियम की एक वास्तविकता है, परन्तु इसकी जड़ें पुराने नियम के सब्त में पाई जाती है।
उत्पत्ति 2:23, 'और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था, सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशिष दी और पवित्र ठहराया।" परन्तु 2500 वर्षों बाद तक मनुष्य को सब्त नहीं दिया गया, निर्गमन 20:8-10। फिर भी निर्गमन 16:23 से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय भी किसी प्रकार के सब्त का पालन किया जाता था। निर्गमन 20 में व्यवस्था दिए जाने के बाद सब्त का पालन दस आज्ञाओं का एक अंग बन गया।
पुराने नियम का सब्त एक विश्राम का दिन होता था, उस दिन न तो बलिदान चढ़ाए जाते थे और न आराधना होती थी। यह एक ऐसा दिन था जिसमें भार उठाने वाले पशु, गुलाम और सभी मनुष्य विश्राम करते थे, यह मन्दिर में उपस्थिति या अन्य किसी धार्मिक अनुष्ठान से सम्बद्ध नहीं था।
सब्त इस्राएल को वाचा के एक चिह्न के रूप में दिया गया था। निर्गमन 31:13, “तू इस्राएलियों से यह भी कहना कि निश्चय तुम मेरे विश्राम दिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिह्न ठहरा है।" निर्गमन 31:17, "वह (सब्त) मेरे ( प्रभु परमेश्वर) और इस्राएलियों के बीच सदा एक चिह्न रहेगा।"
यीशु के युग में फरीसी एक विकृत सब्त का पालन करते थे, क्योंकि उन्होंने सब्त को एक कठोर, कटु, रीति-रिवाजों का दिन बना दिया था और इसको कठोर नियमों से घेर कर सीमा बद्ध कर दिया था। प्रेरितों के काम की पुस्तक में हम कलीसिया को सातवें दिन के स्थान पर सप्ताह के प्रथम दिन को आराधना और भले कार्यों के दिन के रूप में मानते हुए पाते हैं।
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Read More: ज्यादा बाइबल अध्ययन के लिए क्लिक करें:2. व्यवस्था के अधीन सब्त का पालन
1) यहाँ तक कि पशुओं और सेवकों तक को विश्राम करने के लिए बाध्य किया जाता था; निर्गमन 20:10 1
2) सब्त के दिन किसी भी प्रकार का कार्य नहीं किया जा सकता था, निर्गमन 20:10। भोजन शुक्रवार को पका लिया जाता था।
3) सब्त के दिन कोई खरीददारी नहीं की जा सकती थी; नहेम्याह 10:31; नहेम्याह 13:15-17।
4) सब्त के दिन कोई बोझ नहीं उठाया जा सकता था, नहेम्याह 13:19; यिर्मयाह 17:21 ।
5) सब्त के दिन खेती का काम नहीं किया जा सकता था; निर्गमन 34:21
6) जो लोग सब्त का नियम तोड़ते थे, उनके लिए परमेश्वर ने मृत्यु दण्ड निर्धारित कर रखा था। गिनती 15:32-36 के अनुसार एक व्यक्ति सब्त के दिन लकड़ी बीनता पाया गया था, उसे पत्थरवाह करके मार डाला गया था।
3. सब्त के दिन के प्रति मसीह की मनोवृत्ति
उद्धारकर्ता ने चंगाई के अनेक आश्चर्यकर्म सब्त के दिन सम्पन्न किए. जिसके कारण यहूदी क्रोधित हो उठे और उन्होंने यीशु को सब्त के दिन की विधि को तोड़ने वाला कहा।
1) यीशु ने शिक्षा दी कि वह सब्त का भी प्रभु है। मत्ती 12:8, "मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।" सब्त के दिन का स्वामी होने के नाते वह इस बात के लिए स्वतन्त्र था कि सातवें दिन को अलग करके उसके स्थान पर सप्ताह के पहले दिन को संस्थापित कर दे।
2) यीशु ने शिक्षा दी कि सब्त मनुष्य के लिए बनाया गया है। मरकुस 2:27, " और उसने उनसे कहा, सब्त का दिन मनुष्य के लिए बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिए। "
3) यीशु ने शिक्षा दी कि सब्त के दिन भलाई करनी उचित है, मत्ती 12:11 जो भेड़ सब्त के दिन गढ़ में गिर जाती है, उसे निकाला जाना चाहिए। मत्ती 12:12, "इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।" और यीशु ने सूखे हाथ वाले मनुष्य को चंगा कर दिया पद 13
4. सब्त के दिन का पालन करने की सही विधि - यशायाह 58:13, 14
1) प्रभु में आनन्दित रहना: इस दिन को आराधना, प्रार्थना और स्तुति का एक विशेष दिन बनाइए।
2) अपने से दूर रहना यह मनोरंजन, खेल-कूद और शिक्षा का दिन नहीं है, वरन यह प्रभु को आनन्दित करने का दिन है। प्रभु के लिए रोगियों से भेंट करने.....।
3) इसे ऐसा दिन बनाइए जिससे प्रभु को आदर प्राप्त होः छः दिन हम काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं, परन्तु हमारे समय का सातवा दिन परमेश्वर का है और केवल उसी के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।
5. प्रेरितों की कलीसिया सप्ताह के प्रथम दिन का पालन करती थी
प्रेरितों के काम 20:7, "सप्ताह के पहले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने उनसे बातें कीं, और आधी रात तक बातें करता रहा।" (कलीसिया की नियमित प्रार्थना सभा )
1 कुरिन्थियों 16:2, "सप्ताह के पहिले दिन तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करें," (इतवार का चन्दा)।
प्रकाशितवाक्य 1:10. "मैं प्रभु के दिन आत्मा में आ गया।" अर्थात् इतवार को जो सप्ताह का पहला दिन है। सप्ताह का पहला दिन, इतवार इसलिए चुना गया था क्योंकि यीशु प्रथम ईस्टर इतवार की प्रातः मृतकों में से जी उठा था।
"मत्ती 28:1, "सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहिले दिन पौ फटते ही" वे कब्र पर पहुँची और देखा कि मसीह जी उठा है। यीशु काफी समय तक यहूदी सब्त को पूरा करने के लिए कब्र में रहा।
6. यीशु ने प्रथम मसीही प्रभु के दिन का कैसे पालन किया।
1) यीशु ने रोती हुई मरियम को सान्त्वना दी; यूहन्ना 20:13
2) यीशु सात मील तक दो शिष्यों के साथ चला; लूका 24:13
3) यीशु ने इन दो शिष्यों को बाइबल की शिक्षा दी; लूका 24:25-311
4) यीशु ने दूसरे शिष्यों के पास संदेश भेजा; मत्ती 28:10
5) यीशु ने पतरस के साथ निजी साक्षात्कार किया; लूका 24:34
6) यीशु ने दस शिष्यों से भेंट की और उनके साथ भोजन किया; लूका 24:36-45
ये विश्वासियों के पालन करने के लिए उत्तम उदाहरण है। क्या ये बातें यशायाह 58:13, 14 को अति सुन्दर रूप से पूरा नहीं करतीं? 1 पतरस 2:21, यीशु हमारे लिए एक आदर्श छोड़ गया है ताकि हम उसके पद चिन्हों पर अवश्य चलें।
7. सब्त और प्रभु के दिन के बीच विरोध
1) सब्त सातवां दिन है और प्रभु का दिन सप्ताह का पहला दिन है।
2) सब्त परमेश्वर द्वारा सृष्टि की रचना से विश्राम का स्मरण दिलाता है, जब कि प्रभु का दिन उसके पुनरुत्थान को स्मरण कराता है।
3) सातवें दिन परमेश्वर ने विश्राम किया। प्रथम दिन यीशु बहुत व्यस्त रहा।
4) सब्त पूरी की गई सृष्टि का स्मरण कराता है। प्रभु का दिन उद्धार के पूरे किए गए कार्य का स्मरण कराता है।
5) सब्त एक वैधानिक व्यवस्था थी: प्रभु का दिन स्वेच्छा से अराधना करने का दिन है।
6) सब्त यहूदियों के लिए था, और प्रभु का दिन यीशु मसीही की कलीसिया के लिए है।
सारांश
क्या मसीही इन दोनों विशेष दिनों या इसमें से किसी एक को मानने के लिए बाध्य है?
सब्त का दिन दस आज्ञाओं का एक अंग है और व्यवस्था के अधीन रहने वालों को इसका पालन करना आवश्यक है। परन्तु मसीही अब व्यवस्था के अधीन नहीं है। रोमियों 6:15, "तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हैं? कदापि नहीं।” परमेश्वर न करे। फिर भी यद्यपि हम व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, सप्ताह में एक दिन को प्रभु के लिए पवित्र मानने का सिद्धान्त परिवर्तित नहीं हुआ है।
दान देने में हम व्यवस्था के अधीन दशमांश देने को बाध्य नहीं हैं, परन्तु अनुग्रह के अधीन हमें इससे भी अधिक देना चाहिए। हम दशमांश और प्रेम की भेंट देते हैं। यहीं सिद्धान्त यहाँ भी लागू होता है। यह वास्तविकता कि हम दिन को पवित्र मानने के लिए बाध्य नहीं हैं, परन्तु हमें हृदय में आनन्द के साथ इस दिन परमेश्वर की आराधना और उसका कार्य करना चाहिए। इब्रानियों 4:1-11, विश्राम की आशिष के विषय में बताते हैं। हमारे शरीर को एक दिन के विश्राम की आवश्यकता होती है।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. प्रथम सब्त के दिन का पालन करने वाला कौन था?
2. सब्त के दिन की बुनियादी आवश्यकताएं क्या हैं?
3. सब्त को तोड़ने के लिए क्या दण्ड निर्धारित था ?
4. सब्त के दिन के लिए यीशु की तिहरी मनोवृत्ति क्या थी?
5. यशायाह 58:13, 14 के अनुसार हमें सब्त के दिन का पालन किस प्रकार करना चाहिए?
6. हमारे पास इस बात का क्या प्रमाण है कि प्रारम्भिक कलीसिया शनिवार के स्थान पर इतवार का पालन करती थी?
7. वे छः बातें बताइए जो यीशु ने प्रथम प्रभु के दिन की थी।
8. सब्त और प्रभु के दिन के बीच छः विरोध व्यक्त कीजिए।
9. रोमियों 6:15 से हम सब्त के विषय में क्या सीखते हैं?
10. इब्रानियों 4:1-11 में उद्धृत पाँच प्रकार के विश्राम का वर्णन कीजिए।

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