1कुर 12:7 "किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।"

सामान्य परिदृश्य । विश्वासियों को दिये गये अलग अलग आत्मिक वरदानों (1कुर 12:7) के द्वारा पवित्र आत्मा का प्रकटीकरण होता है। पवित्र आत्मा का यह प्रकटीकरण सामान्य दृष्टिकोण से कलीसिया के निर्माण एवं पवित्रीकरण के लिये दिया गया (1कुर 12:7; देखें 14:26, टिप्पणी)। यह आत्मिक वरदान से 12: 6-8 और इफ 4:11 में बताये गये वरदान और सेवकाइयों से भिन्न है। जिनसे एक विश्वासी को कलीसिया में स्थाई तौर से सेवकाई निभाने के लिये सामर्थ्य एवं क्षमता प्राप्त होती हैं। 1कुर 12:8-10 में दिए गये वरदानों की सूची सम्पूर्ण नहीं है और यह वरदान संघटित तौर से भी पाया जाता है।

(1) आत्मा का प्रकटीकरण आत्मा की इच्छा द्वारा दिया जाता है (1 कुर 12:11) विश्वासियों के उत्सुक इच्छा से उसकी ज़रूरतों को उदित करते है (12:31:14:1)

(2) कुछ वरदान विश्वासी के द्वारा नियमित ढंग से प्रगट होता है और किसी विशेष जरूरतों के सामने उसको सेवकाई निभाने के लिये एक से अधिक वरदान दिया जा सकता है। विश्वासी को चाहिए वो केवल एक वरदान का नहीं लेकिन "वरदानों" की लालसा करें (1कुर 12:31, 14:1)।

(3) यह सोच लेना कि किसी व्यक्ति के पास प्रभावशाली वरदान है, तो वह उस व्यक्ति से अधिक आत्मिक है, जिसके पास उससे कम वरदान हो जो वचन के विपरीत एवं मूर्खता पूर्ण बात है। इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति के पास वरदान होने का यह मतलब नहीं है कि परमेश्वर उस व्यक्ति की हर एक कार्य एवं शिक्षाओं को मान्यता देता है। आत्मिक वरदानों को और आत्मा के फलों को पहिचानना जरूरी है। आत्मा के फल मसीह चरित्र एवं पवित्रीकरण के साथ संबंधित है (गल 5:22-23)

(4) आत्मा के वरदानों की नकल शैतान या झूठे सेवक, मसीह के दास का नकाब पहन कर करते है (मत 7:21-23; 24:11,24; च 2कुर 11:13-15; 2 थिस 2:8-10)। यह जरूरी है कि विश्वासी हर एक आत्मिक प्रकटीकरण पर विश्वास न करें वरन् वहाँ “आत्माओं को परखे, कि वे परमेश्वर की ओर से है कि नहीं, बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुये है" (1 यूह 4:1; तुलना करें 1 थिस 5:20-21)

व्यक्तिगत वरदान। 1कुर 12:8-10 में पौलुस पवित्र आत्मा के द्वारा विश्वासियों को दिए गये वरदानों की सूची प्रस्तुत करता है। यद्यपि यहाँ पर वो इसकी विशेषता नहीं बताता, हम वचन के अन्य भागों से इसकी विशेषता सीख सकते हैं।

(1) बुद्धि का सन्देश। पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा बोली गई बुद्धि की वाणी है। यह किसी विशेष परिस्थिति या समस्या के लिये दिया गया प्रकाशन या पवित्र आत्मा का ज्ञान है (प्रे 6:10; 15:13-22)। यह एक दैनिक जीवन निभाने के लिये दिया गया परमेश्वर का ज्ञान नहीं है। दैनिक जीवन जीने के लिये बुद्धि परमेश्वर के वचनों मार्गों एवं प्रार्थना (याक 1:5-6 ) पर परिश्रमी अध्ययन करने पर प्राप्त होगा

(2) ज्ञान का सन्देश। यह पवित्र आत्मा के द्वारा व्यक्त किया गया ज्ञान की वाणी है जो इसका भविष्यद्वाणी के सत्य निकट सम्बन्ध है (प्रे 5:1-10, 10:47-48; 15:7-11, 1कुर 14:24-25)।

(3) विश्वास। यह उद्धार पाने वाला विश्वास नहीं है, लेकिन पवित्र आत्मा के द्वारा विश्वासी को परमेश्वर पर असाधारण और अद्भुत कार्यों की क्षमता है। यह ऐसा विश्वास हो कि जिससे हम पहाड़ों को हटा सकते है (1कुर 13:2) और यह चंगाई तथा अद्भुत कामों के साथ सम्मिलित है (देखे मत 17:20, सच्चा विश्वास पर टिप्पणी, मर 11:22-24; लुक 17:6)

(4) चंगाई के वरदान। यह वरदान कलीसिया को इसलिये दिया गया है कि अलौकिक तरीके से लोगों को शारीरिक तन्दुरुस्ती मिलें (मत 4:23-25; 10:1 प्रे3:6-8; 4:30)। बहुवचन ("वरदानों") का संकेत है कि नाना प्रकार की बीमारी से चंगाई और प्रत्येक चंगाई परमेश्वर का एक विशेष दान है। यद्यपि चंगाई का वरदान मसीह की देह के प्रत्येक सदस्य को नहीं दिया गया है। (तुलना करें 1कुर 12:11.30), सभी सदस्य बीमारों के लिये प्रार्थना कर सकते हैं। जब विश्वास है तो बीमार चंगे हो जाऐंगे (देखें लेख ईश्वरीय चंगाई, पृष्ठ 1436)। याक 5:14-16 के निर्देशों के पालन से चंगाई मिल सकती है देखें याक 5:15 टिप्पणियाँ

(5) चमत्कारात्मक सामर्थ्य। यह ऐसा अलौकिक चमत्कार के कार्य है, जो सामान्य प्राकृतिक बातों को बदल देते हैं। इसमें ऐसे ईश्वरीय कार्य है जिनके द्वारा शैतान एवं दुष्टात्माओं के विरुद्ध परमेश्वर का राज्य व्यक्त होता है (देखें यूह 6:2,

(6)" भविष्यद्वाणी। हमें इस बात का भेद पहिचानना जरूरी है कि भविष्यद्वाणी आत्मा का अस्थाई या अल्प कालिक प्रगटीकरण
(1कुर 12:10) और भविष्यद्वाणी कलीसिया के सेवकाई के दान के रूप में (इफ 4:11)। सेवकाई के वरदान के रूप में, भविष्यद्वाणी केवल कुछ विश्वासियों को दिया गया, जिनको कलीसिया में भविष्यद्वाक्ताओं का कार्य करना है (देखें लेख कलीसियाई सेवा के वरदान, पृष्ठ 1863)। एक आत्मिक प्रगटीकरण के रूप में भविष्यद्वाणी प्रत्येक आत्मा से परिपूर्ण मसीही के लिये उपलब्ध है। 2:17-18)

भविष्यद्वाणी आत्मिक भविष्यद्वाणी को जब हम आत्मिक प्रकटीकरण के रूप में देखते हैं:

(A) भविष्यद्वाणी विशेष दान या वरदान है कि जिसके द्वारा पवित्र आत्मा की प्रेरणा से विश्वासी परमेश्वर की ओर से कुछ शब्द का प्रकाशन कर सकता है (1कुर 14.24- 25, 29-31)। यह पहले से तैयार किये गये प्रचार को प्रस्तुत नहीं करता है।

(B) पुराना और नया नियम दोनों में भविष्यद्वाणी केवल भविष्य के बारे में बताना नहीं है, लेकिन परमेश्वर की इच्छा की घोषणा एवं उलाहना देना ताकि परमेश्वर की प्रजा धार्मिक निष्ठा के लिये प्रस्तुत है (14:3; देखे लेख पुराना नियम में भविष्यवक्ता, पृष्ठ 1018)

(C) संदेश किसी भी व्यक्ति की हृदय की अवस्था को व्यक्त कर सकती है (14:25) या बल, उत्साह, तसल्ली चेतावनी या न्याय प्रस्तुत कर सकती है (14:3; 25-26,31.)।

(D) कलीसिया सभी भविष्यद्वाणी अचूक संदेश के रूप में स्वीकार न करे क्योंकि अनेक झूठे भविष्यद्वक्ता गण कलीसिया में प्रवेश करेंगे (1 यूह 4:1)। इसलिये, सभी भविष्यवाणियों को उसकी निष्कपटता एवं सच्चाई के लिये परखा जाना चाहिये (1कुर 14:29. 32 1थिस 5:20-21) यह पूछने से कि क्या परमेश्वर का वचन आधारित है (1 यूह 4:1), क्या यह भक्ति के जीवन के लिये प्रेरणात्मक है (1 तीम 6.3), और क्या यह वाणी उस व्यक्ति से निकली जो ख्रीस्त के प्रभुता के अधीन है (1कुर 12:3)।

(E) भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं परमेश्वर की इच्छा के अनुसार क्रियाशील होनी चाहिये। नया नियम में कहीं भी संकेत नहीं दिया गया कि कलीसिया में उनसे प्रकाशन या निर्देशन पाने के लिये प्रयास किया जो अपने आपको भविष्यद्वक्ता करके दावा करते है। कलीसिया को भविष्यद्वाणी तभी दिया गया जब परमेश्वर की ओर से संदेश मिला (1कुर 12:11; 2पत 1:21

(7) आत्माओं को परखना। यह वरदान भविष्यद्वाणियों को परखने के लिये दिया गया आत्मा की क्षमता है कि जिसके द्वारा यह पहचान सकते हैं वाणी पवित्र आत्मा की ओर से है कि नहीं (देखें 1कुर 14:29, टिप्पणी, 1 यूह 4:-1)। इस युग के अन्त में जब झूठे शिक्षक (देखें मत 24:5, टिप्पणी) और बाइबल आधारित मसीहीयत विक्रति बहुत बढ़ेंगी (देखें 1तीम 4:1, टिप्पणी), यह वरदान कलीसिया के लिये अति महत्वपूर्ण होगा

(8) अलग अलग भाषाओं में बोलना। "भाषाएं" (यूनानी, ग्लोसा, जिसका मतलब है भाषा) जो आत्मा का अलौकिक प्रकटीकरण है, निम्न लिखित बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:

(A) भाषाओं का वरदान वर्तमान उच्चोरित भाषा हो सकती है (प्रे 2:4-6) या ऐसी भाषा हो सकती है जो पृथ्वी में अज्ञात है, अर्थात् "स्वर्ग दूतों की बोली” (1कुर 13:1; देखे अध्याय 14 टिप्पणी; देखें लेख अन्यभाषा में बोलना, पृष्ठ 1672)। ऐसी भाषा सीखी नहीं गयी है, दोनों वक्त एवं श्रोता के लिये अबोधगम्य है (14:14) और सुनने वालो के लिए (14:16)।

(B) अन्य भाषाओं में बोलने की प्रक्रिया में मनुष्य की आत्मा एवं परमेश्वर की आत्मा दोनो का मिलकर काम है कि जिससे विश्वासी परमेश्वर के साथ सीधा सम्पर्क रख सकता है (अर्थात् प्रार्थना, स्तुति, आशीष या धन्यवाद में), यह वाणी मन से नहीं आत्मा से प्रगट किया जाता है (1कुर 14:2,14) और अपने लिये या दूसरों के लिये मन की इच्छानुसार नहीं लेकिन पवित्र आत्मा की प्रेरणा से प्रार्थना करना (तुलना करें 1कुर 14:2,4,15, 28; यहूद 20)।

(C) मण्डली में अन्य भाषाओं के साथ आत्मा के द्वारा दिया गया अनुवाद भी होना चाहिये जिससे विश्वासियों को उस वाणी का विषय एवं अर्थ स्पष्ट हो (1कुर 14:3, 27-28)। यह एक प्रकाशन ज्ञान, भविष्यद्वाणी या सभा के लिये उपदेश हो सकता है (तुलना करें 1कुर 14:6)

(D) मण्डली के अंदर अन्यभाषाओं का बोलना व्यवस्थित होना चाहिये। वक्ता को कभी भी "हर्षोन्माद" या "नियंत्रण के बाहर नहीं होना (1कुर 14:27-28;

(9) अन्यभाषा काक अनुवाद। यह आत्मा द्वारा दिया गया सामर्थ है जिसके द्वारा अन्य भाषा के अर्थ को समझ सके और दूसरो को इसकी व्याख्या कर सके। जब आराधना में इसकी व्याख्या की जाती है, तो यह आराधना का नेतृत्व और प्रार्थना था भविष्यद्वाणी के रूप में प्रयोग किया जाता है। विश्वासी जन इस आत्मिक उत्तेजित प्रकाशन में भाग के सकते है। अन्य भाषा का अनुवाद का अर्थ है भाग ले सकते है। अन्य भाषा का अनुवाद का अर्थ है कि यह आराधना की उन्नति का कारण बने (तुलना करें 14:6,13) 1 यह वरदान उसको दिया जा सकता है जो अन्य भाषाओं में बोलता है या अन्य किसी को दी जा सकती है। इसलिये जो अन्य भाषाओं में ए बोले वे प्रार्थना करें कि उसका अनुवाद भी कर सके (1कुर 14:13)


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