प्रभु भोज - Holy Communion


प्रभु-भोज Holy Communion

प्रस्तावना

प्रभु भोज एक ऐसा संस्कार है जिसको स्वयं यीशु मसीह ने स्थापित किया; मत्ती 26:26-29 यीशु मसीह ने अपने शिष्यों के साथ केवल एक बार इसका आयोजन किया गतसमनी से पूर्व की सन्ध्या को। इस प्रथम भोज की कथा सुसमाचारों में पाई जाती है और इन विवरणों को एक साथ मिलाकर अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि निम्नलिखित क्रम सही क्रम है।


1) शिष्य मेज पर इकट्ठे होते हैं, परन्तु उनकी यह संगति इस विवाद के कारण धूमिल पड़ जाती है कि उनमें सबसे बड़ा कौन है; लूका 22:24-30

2) एक फटकार के रूप में यीशु ने उनके पांव धोए; यूहन्ना 13:1-20

3) यीशु यह घोषणा करता है कि उनमें से एक उसके साथ विश्वासघात करेगा; मत्ती 26:21-25।

4) इससे उनमें भारी उत्तेजना फैल जाती है और उनमें से प्रत्येक पूछने लगता है, "प्रभु क्या वह मैं हूँ?" मत्ती 26:21-23।

5) यीशु कहता है कि विश्वासघाती उनके साथ भोजन कर रहा है; मरकुस 14:18।

6) पतरस यूहन्ना को संकेत द्वारा प्रश्न पूछने के लिए कहता है; यूहन्ना 13:24

7 ) यीशु संकेत दे देता है, जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही है; मत्ती 26:23।

8) यहूदा, सभी को आश्चर्य में डाल कर अकस्मात ही बाहर निकल जाता है; यूहन्ना 13:26-30।

9) यीशु ने रोटी ली, उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया, रोटी तोड़ी और उनमें बांट दी; लूका 22:19

10) यीशु ने प्याला लिया, उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उनको दे दिया; लूका 22:20।

11 ) वे गीत गाकर बाहर निकले और गतसमनी के बाग की ओर गए; मत्ती 26:30,36

1. क्या आज भी ठीक वैसा ही प्रभु भोज आयोजित करना सम्भव है। जैसा कि पहला प्रभु-भोज था?

यदि हम प्रथम प्रभु भोज के आदर्श का पालन करना चाहते हैं तो निम्न बातें आवश्यक होगी:
1) यह सन्ध्या का समय था, मत्ती 26:20, " जब सांझ हुई, तो वह बारहों के साथ भोजन करने के लिए बैठा।"

2) इसका आयोजन ऊपर वाले कमरे में किया गया, लूका 22:12, "वह तुम्हें एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा।"

3) उन्होंने अखमीरी रोटी खाई, मत्ती 26:17, “अखमीरी रोटी के पब्ब।"

4) रोटी का तोड़ा जाना आवश्यक है, लूका 22:19, "फिर उसने रोटी ली और धन्यवाद करके तोड़ी।"

5) उन्होंने केवल एक ही रोटी और एक ही प्याला का प्रयोग किया; मत्ती 26:26, 27 सामान्य प्राचीन प्रथा।

6) वे लेटी हुई अवस्था में थे, यूहन्ना 13:23-26, यूहन्ना यीशु की छाती का सहारा लिए हुए था।

7 ) भोजन के बाद इसका आयोजन किया गया था, मत्ती 26:26, जब वे खा रहे थे।"

8) कोई स्त्री वहाँ उपस्थित नहीं थी, केवल प्रभु यीशु और उसके चेले वहाँ थे।


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2. प्रभु भोज की रीति का अभिप्राय:

हम अपने पापों की क्षमा के लिए प्रभु भोज में सम्मिलित नहीं होते। इस संस्कार में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो कि सहभागी होने वाले को क्षमा प्रदान कर सके।

हम प्रभु भोज में मसीह की आज्ञा का पालन करने के लिए सम्मिलित होते हैं; 1 कुरिन्थियों 11:24।

हम उसके शीघ्र आगमन की प्रत्याशा में प्रभु - भोज लेते हैं; 1 कुरिन्थियों 11:26।

हम प्रभु की मृत्यु को प्रदर्शित करने के लिए प्रभु भोज लेते हैं; 1 कुरिन्थियों 11:26।

कोई व्यक्ति इस भोज में इसलिए सम्मिलित नहीं होता कि वह इसके योग्य है। यह उसका अनुग्रह है कि हम उसके परिवार में उत्पन्न हुए हैं। इस मेज पर कोई भी अभिमान के साथ नहीं बैठता।

हमारे इस मेज पर आने में दो बातें सम्मिलित है, हमारी अयोग्यता और हमारा उस पर भरोसा। यदि हम वास्तव में परमेश्वर की सन्तान हैं तो हम हियाव के साथ उसके साथ संगति रखने और उससे शक्ति पाने के लिए आते हैं। हमें प्रेमी स्वर्गीय पिता की मेज से भय के साथ पीछे नहीं लौटना चाहिए। वह हमें बुलाता है और हमें इस संगति के आनन्द से इन्कार नहीं करना चाहिए। प्रभु भोज में वह हमारे साथ बातचीत करने के लिए निकट आ जाएगा, जैसे कि इम्माऊस के मार्ग पर आया था।

3. प्रभु भोज में कौन सहभागिता रख सकता है?

केवल वे लोग जो परमेश्वर के परिवार में उत्पन्न हुए हैं और जिनको प्रभु की संगति में उसके साथ मेज पर बैठने का अधिकार है। अविश्वासी और स्वाभाविक मनुष्य "दुष्टात्माओं की मेज" के साझी हैं; 1 कुरिन्थियों 10:21

कुछ कलीसियाओं ने ऐसा नियम बनाया है कि केवल बपतिस्मा प्राप्त सदस्य ही प्रभु-भोज में सम्मिलित हो सकते हैं। अधिकांश सुसमाचारी कलीसियाएं, दूसरी सुसमाचारी कलीसियाओं के प्रमुख व्यक्तियों को अपने यहाँ प्रभु-भोज में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित करती है।

कुछ कठोर कलीसियाएं अपनी ही कलीसिया के सदस्यों को प्रभु भोज देती है। जिन सदस्यों को प्रभु भोज से वंचित रखकर अनुशासित किया जा रहा है, उनको अपनी या दूसरी कलीसियाओं में उपयुक्त समय आने तक प्रभु भोज नहीं लेना चाहिए।

4. प्रभु भोज में सहभागी होने से पहले आत्म-निरीक्षण परमावश्यक है।

1कुरिन्थियों 11:28, "इसलिए मनुष्य अपने आप को जांच ले और इस रीति से इस रोटी में से खाए और इस कटोरे में से पीए।"

2 कुरिन्थियों 13:5, "अपने आपको परखो कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आपको जांचो।"

भजन संहिता 26:2, "हे यहोवा, मुझको जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख।"

भजन संहिता 139:23, “हे ईश्वर मुझे जांच कर जान ले! मुझे परख कर मेरी चिन्ताओं को जान ले!"

प्रत्याशी को प्रार्थना करनी चाहिए, "प्रभु अपने वचन की खोज निकालने वाली ज्योति मुझ पर चमका दे।" अपने को परखने का अर्थ है, जांचना, सावधानीपूर्वक जांच-पड़ताल करना, खोज करना और अपनी परीक्षा करना।

1) मुझे किसकी जांच करनी है? प्रचारक की? अपनी पत्नी की? प्राचीनों की? पड़ोसियों की? नहीं। स्वयं की।

2) हमें अपनी जांच करना आवश्यक क्यों है? क) क्योंकि यह पवित्रशास्त्र की प्रत्यक्ष आज्ञा ख) अनुचित रीति से खाना, दण्ड, दुर्बलता, रोग और सांसारिक मृत्यु लाता है।

यह परीक्षण ही होता है जो पाप को खोज निकालता है और फिर पश्चात्ताप की ओर अग्रसर करके उसे दूर करने की प्रेरणा देता है।

3) मैं किस प्रकार अपनी जांच कर सकता हूँ? स्वयं से कुछ सम्बन्धित प्रश्न पूछकर।

क) क्या मैं वास्तव में और सच्चाई के साथ प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास रखता हूँ? प्रेरितों के काम 16:31

ख) क्या मैंने वास्तव में परमेश्वर के परिवार में नया जन्म पाया है? यूहन्ना 3:3-7

ग) क्या मेरे जीवन में ऐसा कोई पाप है जिसका मैंने अंगीकार नहीं किया है? आत्म-करुणा ? अभिमान? लोभ ? आलस्य? अनाज्ञाकारिता? पाप से प्रेम ? संसार के प्रति प्रेम ? क्या मेरे विचारों का जीवन शुद्ध है? क्या मैं निरन्तर यीशु की साक्षी देता रहता हूँ? क्या मैं बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने में विश्वस्त रहा हूँ? क्या मैंने व्यक्तियों के लिए प्रार्थना करने की जो प्रतिज्ञा की थी उसको मैं पूरा कर रहा हूँ?

घ) क्या मैं हृदय से अपने पापों के लिए पश्चात्ताप करता हूँ। अंगीकार बिना पश्चात्ताप एक मजाक या दिखावा है।

च) क्या मैं अपने हृदय में अधिक पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा करता हूँ ?

छ) क्या मैं परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम रखता हूँ? लूका 10:27

ज) क्या मैं अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखता हूँ? लूका 10:27

झ) क्या मैंने उन लोगों को क्षमा कर दिया है जिन्होंने मेरे विरुद्ध पाप किया ? मत्ती 6:14, 15; मत्ती 5:23, 24

ट) क्या मैं हृदय से मसीह की आज्ञाओं के प्रति व्यक्तिगत रूप से आज्ञाकारी हूँ? प्रचार करने? गीत गाने? निर्धनों को दान देने? सन्डे स्कूल में सिखाने? साक्षी देने? दशमांश देने?

ठ) क्या मैं इस प्रभु भोज की तैयारी के लिए आज्ञाकारी रहा हूँ?

5. प्रभु भोज के लिए आवश्यक वस्तुएं

रोटी और दाखरस दो पदार्थ है जिनका शरीर और लोहू के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है। न हम तत्व परिवर्तन की शिक्षा देते हैं और न ही संतत्वीकरणवाद सिखाते हैं, परन्तु विश्वास करते हैं तत्व केवल तत्व, प्रतीक या चित्र ही बने रहते हैं।

हम इन तत्वों में किसी रहस्यमय शक्ति या तत्वों में परिवर्तन का स्पष्ट रूप से इन्कार करते हैं। रोटी अखमीरी है जो इस बात का चिह्न है कि पाप दूर कर दिया गया है। इससे हम प्रकट करते हैं कि प्रभु भोज के बाद हमें शुद्ध और पवित्र जीवन व्यतीत करना ही चाहिये।

6. परिणाम

जब विश्वासी ने अपनी जांच कर ली है और यह दावा किया है कि लोहू ने न केवल उसके पाप वरन पाप की अभिलाषा भी हटा दी है तो वह स्वच्छ और शुद्ध हो गया है।

विश्वासी को प्रभु और संगी विश्वासी की संगति से बल मिला है।

जब विश्वासी ने मसीह की मृत्यु और उसके द्वितीय आगमन पर मनन किया तो वह उन्नत बन गया है।

सारांश

हम प्रभु भोज की मेज से कहाँ जाते हैं ?
कुछ बाजार जाते हैं, कुछ अखाड़े या जुए की मेज पर जाते हैं। यह पूर्णत: गलत है, प्रथम प्रभु भोज के बाद ही शिष्य बाहर गए और उन्होंने उद्धारकर्ता का इनकार किया और उसे भूल गए।

हमें प्रभु भोज की मेज से प्रार्थना के स्थान पर जाना चाहिए। इस आशिष को अधिक गहन होने दीजिए; हमें अपने मसीही जीवन में प्रगति करते हुए, मसीह में प्रतिदिन विजय के स्थान पर पहुँचना चाहिए। प्रत्येक विश्वासी को हियाव के साथ परन्तु दीनतापूर्वक बहुधा प्रभु भोज की मेज पर आते रहना चाहिए। हमें प्रभु भोज में प्रत्याशा के साथ सम्मिलित होना चाहिए।, "जब तक वह फिर नहीं आ जाता।"

यीशु के शब्दों को याद रखिए, “मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।" जब हम इसमें सम्मिलित होते हैं, तो हमें उसके देहधारण, जन्म, बपतिस्मा, सेवकाई रूपान्तरण, परीक्षाओं, आश्चर्यकर्मों, शिक्षाओं, कठिनाइयों गतसमनी, मुकद्दमे, उपहास, कोड़ों मृत्यु, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण और द्वितीय आगमन पर विचार करना चाहिए। प्रभु भोज की मेज पर अपने मस्तिष्क को उससे भर लीजिए।