"यीशु ने उसे देखकर कहा, "धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है। परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से, ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है। लूका 18:24-25
प्रभु के सबसे चौकाने वालों कथनों में से एक यह है कि धनी व्यक्ति का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना लगभग असम्भव है। यह कथन उन बहुत से कथनों में से एक है जो उसने धन और निर्धनता के विषय में कहे, और इसी दृष्टिकोण को प्रेरितों ने नए नियम में अपने कई पत्रियों में दोहराया है।
धन। (1) नए नियम के यहूदी लोगों को इस दृष्टिकोण के अनुसार मत था कि धनी होना परमेश्वर के विशेष अनुग्रह का एक चिन्ह है और दरिद्र होना परमेश्वर की अप्रसन्नता और विश्वास के अभाव का एक चिन्ह है (देखें नीत 10:15, टिप्पणी)। उदाहरण के लिये, फरीसी, इसी तरह सोचते और यीशु की ग़रीबी का उपहास करते (लूक 16:14)। जबकि यह झूठा विचार मसीह कलीसिया के इतिहास में समय-समय पर दोहराया गया, परन्तु यीशु ने इसे पूर्णतः रद्द किया है (देखें लूक 6:20: 16:13: 18:24-25)
(2) बाइबल में लालच और धन का पीछा करना मूर्ति पूजा के समान है, जो दुष्टात्मा से प्रेरित है ( तुलना करें 1कुर 10:19-20, कुल 3:5); (देखें लेख मूर्तिपूजा का स्वरूप, पृष्ठ 432)। क्योंकि सम्पत्ति के साथ शैतानी शक्ति जुड़ी है, धन की अभिलाषा और उसका पीछा करना अधिकतर दासता को लाता है (तुलना करें मत 6:24)।
(3) यीशु के दृष्टिकोण में धन, उद्धार पाने और शिष्य बनने दोनों के लिये रुकावट का कारण है (मत 19:24; 13:22 ) । यह हमें झूठी सुरक्षा की समझ देता है (लूक 12:15), यह धोखा देते (मत 13:22) और हृदय की पूर्ण निष्ठा की अपेक्षा करता है है (मत 6:21)। अधिकतर धनी इस तरह का जीवन व्यतीत करते हैं जैसे उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता नहीं। धन की खोज में वे अपना आत्मिक जीवन नष्ट करते (लूक 814), और वे परीक्षा और हानिकारक इच्छाओं में पड़ते (1 तीम 6:9 ), जिससे वे उद्धारकारी विश्वास को खो देते हैं (1 तीम 6:10)। ज्यादातर जो धनी है वह गरीबों का लाभ उठाते हैं (याक 2.5-6)1 इसलिये किसी मसीही को धन की चाह नहीं करनी चाहिए (1तीम 6:9-11)।
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(4) स्वार्थपूर्ण तरीके से धन इकट्ठा करना यह दर्शाता है कि जीवन को अनन्तकाल के दृष्टिकोण से अब नहीं देखा जाता (कुल 3:1)। लालची व्यक्ति अपने उद्देश्यों और उनकी पूर्ति को परमेश्वर में केन्द्रित नहीं पाते परन्तु इसके विपरीत अपने धन और अपने में पाते हैं। लूत की पत्नी की त्रासदी अर्थात् उसने अपने मन को एक सांसारिक नगर पर लगाया स्वर्गीक नगर पर लगाने की बजाए (उत 19:16, 26; लूक 17:28-33, इब 11:8-10)। दूसरे शब्दों में, धन के लिये प्रयत्न करने में परमेश्वर से पूर्ण रूप से अलग होने के बीज हैं (1 तीम 6:10)
(5) मसीह के लिये सच्चा धन विश्वास और प्रेम है जो अपने आप को परमेश्वर के अनुसरण और स्वयं का ईकार के द्वारा व्यक्त करता है (1कुर 13:4-7, फिलि 2:3-5) | सच्चा धन संसार की चीज़ों से स्वतंत्र होना है इस बात पर विश्वास करते हुए की परमेश्वर उनका पिता है और वह उन्हें न छोड़ेगा (2कुर 9:8, फिलि 4:19; इब्र 13:5-6)।।
(6) हमारे धन और उसके प्रयोग के प्रति सही दृष्टिकोण के संदर्भ में, धर्मियों को चाहिए कि वे विश्वासयोग्य बने रहें (लूक 16:11) । मसीही लोगों को चाहिए कि वे धन को व्यक्तिगत संपत्ति या सुरक्षा के रूप में कड़ाई से न थामें रहें और इन संपत्ति को परमेश्वर के हाथ में उसके राज्य के विस्तार के लिये, और पृथ्वी पर मसीह के कार्यों के विस्तार के लिये, और दूसरों की आवश्यकता और उद्धार के लिये (देखें लेख दशमांश व भेंटें, पृष्ठ 1410) प्रयोग करें। इसलिये विश्वासी जिनके पास संपत्ति और भौतिक पदार्थ हैं अपने आप को धनी के रूप में न देखें परन्तु मात्र परमेश्वर के दिए हुए के भण्डारी (लूक 12:31-48), वे उदार हों, दूसरों को देने के लिये तैयार और अच्छे कार्यों में धनी हों (इफ 4:28, 1तीम 6:17-19)
(7) प्रत्येक मसीही को चाहिए कि वह अपने हृदय और इच्छाओं को जाँचें क्या मैं लालची व्यक्ति हूँ? क्या मैं स्वार्थी व्यक्ति हूँ? क्या मैं बहुतायत के लिये कामना करता क्या मैं सम्मान, आदर और अधिकार पाने की तीव्र अभिलाषा रखता हूँ जो अधिकतर बड़े पाने को प्राप्ति से आता है?
निर्धनता। कार्यों में से एक जिसे यीशु ने अपने आत्मा निर्देशित मिशन के रूप में देखा वह “कंगालों को सुसमाचार का प्रचार करना" FIR था (लूक 4:18; करें यशा 61:1)। दूसरे शब्दों में, यीशु का सुसमाचार ग़रीबों के सुसमाचार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है (मत 5:3; 11:5; लूक 7:22; याक 2:5)।
(1) “निर्धन” (यूनानी में टोचोज़) संसार में के दीन और सताए है जो बड़ी आवश्यकता से परमेश्वर की ओर मुड़ते और उसकी सहायता खोजते हैं। और साथ-साथ वे परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं इस संसार में पाप, दुःख, भूख और घृणा से उसके लोगों का परमेश्वर द्वारा छुटकारे की बाट जोह रहे हैं। वे अपने धन और जीवन को सांसारिक बातों में नहीं खोजते (देखें भज 18:27; 22:26; 25:9; 37:11; 72:2,12-13; 74:19, 147:6; यश 11:4, 29:19; लूक 6:20; 16:25; यूह 14:3 टिप्पणी)
(2) निश्चय ही परमेश्वर के निर्धनों का दुःखों, सताव, अन्याय और निर्धनता से छुटकारा होगा (लूक 6:20-23; 18:1-8)। उनकी राहत का कुछ अंश परमेश्वर के लोगों की दी हुई परोपकारी भेटों आना चाहिए जो भौतिक संपत्ति द्वारा आशीषित (देखें लेख गरीबों व ज़रूरतमन्दों की देखभाल, पृष्ठ 1332 )
(3) परमेश्वर अपने लोगों को निर्धनता में देखता है और घोषणा करता है कि वे “धनी हैं” (प्रक 2:9 )। वे किसी भी तरह से आत्मिक और नैतिक रूप से कम नहीं है (देखें प्रक 2:9, टिप्पणी)।


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