पवित्र आत्मा का सिद्धान्त
प्रे 5:3-4 पतरस ने कहा, "हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े ? जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी ? और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न थी ? तू ने यह बात अपने मन में क्यों विचारी? तू मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।
यह बात आवश्यक है कि विश्वासी परमेश्वर के छुटकारे के कार्य में पवित्र आत्मा के महत्व को पहचानें। बहुत सारे मसीह इस बात से अनजान है कि यदि पवित्र आत्मा इस जगत में न हो तो क्या फर्क पड़ेगा। बिना पवित्र आत्मा के न कोई सृष्टि, न विश्व और न ही मानव जाति होगी (उत 12 अय 33:4) बिना पवित्र आत्मा के बाइबल नहीं होगी (2पत 1:21), न ही नया नियम (यूह 14:26; 15:26-27; 1कुर 2:10-14), और न ही की घोषणा करने की सामर्थ्य होगी (प्रे 1:8)। पवित्र आत्मा के बिना न विश्वास होगा, न नया जन्म, न पवित्रता और न ही जगत में कोई मसीही होगा। यह लेख पवित्र आत्मा के विषय कुछ मौलिक शिक्षाओं की खोज करता है।
पवित्र आत्मा का व्यक्तित्व। पूरे धर्मशास्त्र में पवित्र आत्मा को एक व्यक्ति के रूप में प्रकट किया गया है जिसका अपना व्यक्तित्व है (2कुर 3:17-18; इब 9:14, 1पत 1:2)। वह सामर्थ्य के ऊपर अलौकिक प्रभाव है जैसे पिता और पुत्र । इसलिए हम यह कभी न सोचे कि पवित्र आत्मा मात्र केवल प्रभाव या सामर्थ्य है। उसका व्यक्तिगत चरित्र है, क्योंकि वह सोचता है (रो 8:27), महसूस करता है (रो 15:30), इच्छा करता है (1कुर 12:11) तथा प्रेम करने व संगति का आनन्द लेने की क्षमता रखता है। उसे पिता द्वारा यीशु के साथ विश्वासियों संगति व अन्तरंग उपस्थिति के लिये भेजा गया (यूह 14:16-18.26; देखें लेख यीशु व पवित्रात्मा, पृष्ठ 1566)। इन सच्चाईयों के प्रकाश में ही हमें एक व्यक्ति के समान उससे व्यवहार करना चाहिये तथा उसे हमारे हृदयों में अनन्तकालीन जीवित परमेश्वर मानना चाहिये जो हमारे प्रेम, आराधना तथा समर्पण के योग्य है (देखें मर 1:11, त्रिएकत्व पर टिप्पणी)।
Vishwasi Tv में आपका स्वागत है
Read More: ज्यादा बाइबल अध्ययन के लिए क्लिक करें:पवित्र आत्मा का कार्य (1) पुराने नियम में पवित्र आत्मा के बारे में प्रकाशन पवित्र आत्मा परमेश्वर के कार्य के विवरण के लिये देखें लेख पुराने नियम में पवित्र आत्मा, पृष्ठ 13201
(2) नये नियम में पवित्र आत्मा के बारे में प्रकाशन।
(a) पवित्र आत्मा हमें पापों से कायल कर उद्धार का माध्यम है (यूह 16:7 8), यीशु के सत्य को प्रकट करने वाला (यूह 14:16, 26), हमें नया जन्म देने वाला (यूह 3:3-6), तथा हमें मसीह देह में जोड़ने वाला है (1कुर 12:13)। हृदय परिवर्तन के समय हम आत्मा ग्रहण करते (यूह 3:3-6: 20-22 ) तथा ईश्वरीय स्वभाव के भागीदार बन जाते हैं (2पत 1:4 देखें लेख शिष्यों का नया जन्म, पृष्ठ 1653)।
(b) पवित्र आत्मा पवित्रीकरण का माध्यम परिवर्तन के समय विश्वासियों में पवित्र आत्मा निवास करने लगता है तथा उसके पवित्र करने के प्रभाव में आ जाते हैं (रो 8:9; 1कुर 6:19)। ध्यान दें उन बातों पर जो पवित्र आत्मा हमारे अन्दर रहते हुए करता है। वह हमें पवित्र करता है, अर्थात् शुद्ध करता, अगुवाई करता तथा पवित्र जीवन के लिये प्रेरणा देता है, हमें पाप के बंधन से छुड़ाता है। (रो 8:2-4; गल 5:16-17: 2थिस 2:13)। वह हमें बताता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं (रौ 8:16), परमेश्वर की आराधना करने में हमारी सहायता करता है (प्रे 10:46) हमारे प्रार्थना जीवन में सहायता करता है, और जब हम परमेश्वर को पुकारते हैं। हमारी ओर से मध्यस्थता करता है (रो 8:26-27)। वह मसीह के समान चरित्र के अनुग्रह उत्पन्न करता है जिससे मसीह की महिमा होती है (गल 5:22-23: 1पत 1:2)। वह हमारी देवीय शिक्षक है जो सारे सत्य में हमारी अगुवाई करता है (यूह 16:13 14:26: 1कुर 2:9-16), यीशु को हम पर प्रकट करता तथा उसके साथ संगति एवं एकता में हमारी अगुवाई करता है (यूह 14:16-18, 16:14)। वह निरन्तर परमेश्वर का प्रेम हम में भरता रहता है (रो 5:5) तथा हमें आनन्द, शांति व सहायता प्रदान करता है. (यूह 14:16 1थिस 1.6)
(c) पवित्र आत्मा सेवकाई का माध्यम है, जो विश्वासियों को सेवा व गवाही के लिये सामर्थ्य देता रहता है। पवित्र आत्मा का यह कार्य पवित्र आत्मा में बपतिस्में या आत्मा की भरपूरी से जुड़ा हुआ है (देखें लेख पवित्र आत्मा का बपतिस्मा, पृष्ठ 1668)|
जब आत्मा में हम बपतिस्मा प्राप्त करते हैं हम मसीह के गवाह होने के लिये सामर्थ्य प्राप्त करते हैं तथा कलीसिया के अन्दर तथा संसार में प्रभावशाली ढंग से कार्य करते हैं (प्रे 1:8)। हम वही दैवीय अभिषेक प्राप्त करते हैं जो मसीह के ऊपर (यूह 1:32-33) तथा चेलों पर (प्रे 2:4; 1:5) उतरा, जो हमें परमेश्वर के वचन की घोषणा के लिये योग्य बनाता (प्रे 1:8; 4:31) और चमत्कार करवाता (प्रे 2:43; 3:2-8; 5:15; 6:8; 10:38) है। यह परमेश्वर की इच्छा है कि सारे मसीही लोग इस पूरे युग में पवित्र आत्मा में बपतिस्में का अनुभव करें (प्रे 2:39)। सेवकाई के क्षेत्र में पवित्र आत्मा मसीहियों को कलीसिया की उन्नति अथवा बलवन्त करने के लिये वरदान देता है (1कुर 12-14)। ये वरदान विश्वासी के द्वारा आत्मा का प्रकटीकरण है जिसके द्वारा विश्वासियों की संगति व आम भलाई के लिये मसीह का प्रेम, उपस्थिति, सत्य व धार्मिकता के स्तर को वास्तविक बनाया जाता है (1कुर 12:7-11)
(d) पवित्र आत्मा वह माध्यम है जो विश्वासियों को मसीह की एक देह में जोड़ता (1कुर 12:13), कलीसिया में निवास करता (1कुर 3:16), कलीसिया को बनाता (इफ 2:22), आराधना को प्रेरित करता (फिलि 3:3), सेवा कार्य का निर्देशन करता (प्रे 13:2, 4), सेवकों की नियुक्ति करता (प्रे 20:28), कलीसिया को वरदान देता (1कुर 12:1-11), प्रचारकों का अभिषेक करता (प्रे 2:4, 1कुर 2:4), सुसमाचार की रक्षा करता (2तीम 1:14) तथा उसकी धार्मिकता का विकास करता है (यूह 16:8; 1कुर 3:16; 6:18-20)
(3) पवित्र आत्मा की विभिन्न गतिविधियों विरोधाभासी नहीं बल्कि पूरक हैं। उसी समय, पवित्र आत्मा के कार्य के रूप आपस में जुड़े हुये हैं जिन्हें पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता है। हम इन चारों बातों में जुड़े बिना यह अनुभव हासिल नहीं कर सकते अर्थात्
(a) मसीह में नये जीवन की भरपूरी,
(b) धार्मिकता जीवन के मार्ग के रूप में,
(c) प्रभु की गवाही देने के लिये सामर्थ्य, या
(d) उसकी देह में संगति बिना इन चारो को साम्मिलित किए बिना। अर्थात् हमारे अन्दर धार्मिकता उत्पन्न करने व हमारी ज्ञान में अगुवाई और बाइबल के सत्य के प्रति समर्पण के पवित्र आत्मा के कार्य को आत्मा में बपतिस्में द्वारा स्वतंत्र रूप से बनाये नहीं रखा जा सकता है।
0 टिप्पणियाँ