अब्राहम की बुलाहट
“यहोवा ने अब्राम से कहा, "अपने देश, और अपने कुटुम्बियों, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा। और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊँगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम महान् करूँगा, और तू आशीष का मूल होगा। जो तुझे आशीर्वाद दे, उन्हें मैं आशीष दूँगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूँगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएँगे। उत 12:1-3
अब्राम (जिसका नाम बाद में अब्राहम पड़ा देखें उत 17:5) बुलाहट जैसा कि अध्याय 12 में वर्णित है, यहाँ से पुराना नियम में, मनुष्य के उद्धार के उपाय के रूप में परमेश्वर के उद्देश्य के लिये एक नया अध्याय प्रारंभ होता है। परमेश्वर को एक पुरुष चाहिए था जो समर्पित विश्वास के साथ उसकी सेवा करेगा व उसे पहचानेगा। इस व्यक्ति के द्वारा एक कुल आएगा जो प्रभु को जानेगा, सिखाएगा तथा उसके नियमों को मानेगा (देखें उत 18:19, टिप्पणी)। इस परिवार से एक चुनी हुई जाति निकलेगी जो अन्य जातियों के अभक्तिपूर्ण तौर तरीकों से परे होंगे। इस जाति से प्रभु यीशु का आगमन होगा, जो संसार का उद्धारकर्ता तथा स्त्री का प्रतिज्ञा वंश होगा (देखें उत 3:15, टिप्पणी, गल 3:8, 16,18)। कई महत्वपूर्ण सिद्धान्त अब्राम के इस बुलाहट से निकल सकते हैं।
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(1) अब्राहम को बुलाहट में, देश अपने लोग, और अपने पिता के घर से अलगाव दिखाई देता है (उत 12:1) ताकि वह पृथ्वी पर बाहरी व परदेसी (इब 11:13) बन सके। परमेश्वर, अब्राहम में एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त को स्थापित कर रहा था कि उसके लोग, अपने जीवन के द्वारा उसके उद्देश्य को पूरा करने में समस्त बाधाओं से अपने को अलग करें (देखें लेख विश्वासियों का आत्मिक अलगाव, पृष्ठ 1825, तथा मसीही का संसार से सम्बंध, पृष्ठ 2014)।
(2) परमेश्वर ने अब्राहम से, एक देश, उसके वंशज के द्वारा एक बड़ी जाति तथा पृथ्वी के समस्त जातियों को प्रभावित करने वाली एक आशीष की प्रतिज्ञा की (उत 12:2-3)। नए नियम के द्वारा ज्ञान होता है कि इस प्रतिज्ञा का अंतिम तत्व मसीह के सुसमाचार की मिश्नरी घोषणा में पूरी होती जा रही है (प्रे 3:25; गल 3:8)
(3) इससे भी बड़ी बात यह कि अब्राहम की बुलाहट में न सिर्फ धरती रूपी देश है, परन्तु यह स्वर्गीय भी है। उसके दर्शन में प्रदत्त अंतिम घर था जो पृथ्वी का न होकर स्वर्ग का था एक ऐसा नगर जिसका रचने व बनाने वाला स्वयं परमेश्वर था। अब से अब्राहम उसी स्वर्गीय देश की खोज में था जहाँ पर वह अपने परमेश्वर के साथ सदाकाल के लिये धार्मिकता, आनन्द तथा शांति के साथ निवास कर सकेगा (देखें इब्र 11:9-10, 14-16; तुलना करें प्रक 21 1-42 22:1-5)। उसके पहले तक वह पृथ्वी पर बाहरी क परदेसी है (इब्र 11:9,13)।
(4) अब्राहम की बुलाहट में सिर्फ परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ ही नहीं थी बल्कि कुछ कर्त्तव्य बंधन भी थे। परमेश्वर, अब्राहम से चाहता था कि वे उसके प्रति प्रभु की तरह आज्ञाकारी व समर्पित बना रहे ताकि जो कुछ उसे प्रतिज्ञा की गई है उसे वह प्राप्त कर संके। आज्ञाकारिता व समर्पण के साथ (a) परमेश्वर के वचन पर भरोसा, यहाँ तक कि जब मानवीय रीति से प्रतिज्ञाओं का पूरा होना असम्भव जान पड़े (उत 15:1-6, 18:10-14), (b) परमेश्वर के आदेश का आज्ञापालन करता है कि अपने घर को छोड़ दे (उत 12:4; इब्र 11:8), तथा (c) धार्मिकता का जीवन व्यतीत करने को ईमानदारी से प्रयास करते रहना चाहिए (उत 17:1-2)
(5) अब्राहम को दी गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा व आशीष न सिर्फ उसके शारीरिक वशज (अर्थात् विश्वासी यहूदियों) के लिये है, परन्तु उन सबके लिये भी जो सच्चे विश्वास से (उत 12:3) यीशु मसीह को जो अब्राहम का सच्चा वंशज था, देखें गल 3:14.16 प्रत्येक जो अब्राहम के समान विश्वास करते हैं वे "अब्राहम की संतान (गल 337) और उसके साथ आशीषित भी है (गल 3:9)। वह लोग अब्राहम के वंशज एवं वाचा के अनुसार उसके उत्तराधिकारी बन जाते है (गल 3:29) जिसमें विश्वास के द्वारा आत्मा की प्रतिज्ञा यीशु मसीह में जुड़ा हुआ है (देखें गल 3:14, टिप्पणी)।
(6) चूंकि अब्राहम परमेश्वर पर एक ऐसा विश्वास रखता था जो उसकी आज्ञाकारिता में दर्शाया जाता है, उसे बचाए जाने वाले विश्वास का सच्चा और अग्रणी उदाहरण बन गया (तुलना करें उत् 15:61 से 4:1-5, 16-24 गल 3:6-9 इब-11:8-19; याक 2:21-23 देखें उत] 15:6, टिप्पणी) । बाइबल के अनुसार कोई भी विश्वास घोषणा जो यीशु मसीह को प्रभु और उद्धारकर्त्ता मानती है और उसका प्रभु के रूप में आज्ञा न माने तो यह अब्राहम के द्वारा माने गए विश्वास नहीं है (देखें यूह 3:36 टिप्पणी, देखें लेख विश्वास व अनुग्रह, पृष्ठ 1748)।
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