दशमांश व भेंटे - TITHES of OFFERINGS - Pastor Bablu Kumar Ghaziabad


दशमांश व भेंटे - TITHES of OFFERINGS

 
मलाकी 3:10 
    "सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे, और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूँ कि नहीं।"

दशमांश व भेंटों की परिभाषा:

"दशमांश" का अर्थ "दसवाँ भाग" है।

(1) परमेश्वर की व्यवस्था में, इसाएलियों से अपेक्षा की जाती थी कि अपने पशुओं व भूमि की उपज व अपनी आय का दसवाँ भाग को दें यह जानकर कि परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी है: लैव्यवस्था 27:30 गिनती 18:21,26 व्यवस्थाविवरण 14:22-29 लैव्यवस्था 27:30
  
   दशमांश का प्रयोग प्राथमिक रूप से उनके आराधना प्रबन्ध व याजकों की सहायता के लिये था। परमेश्वर अपने लोगों को उत्तरदायी ठहराता है, उन स्रोतों के लिये जो उसने उन्हें वाचा की भूमि में दिये हैं। मत्ती 25:15 लूका 19:13

(2) दशमाश का केन्द्रिय विचार यह था कि सब कुछ परमेश्वर का है (निर्ग 19:5; भज 24:1, 50:10-12 द्वारा 2:8)। 

मनुष्यों की सृष्टि उसने की तथा उनका प्रत्येक श्वास परमेश्वर की ओर से है (उत 1:26-27 प्रे 17:28) 

इस प्रकार किसी के पास ऐसी कोई वस्तु नहीं जो उसने पहले प्रभु से प्राप्त न किया हो (अय 1:21: यूह 3:27: 1कुरि 4:7 ) 
 
दशमांश सम्बंधी नियमों में उनको सोधी सी आज्ञा थी कि जो उसने उन्हें दिया है उसमें से उसको वापस करें।

(3) दशमांश के अतिरिक्त, इस्राएलियों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे बहुत से भेंटे प्रभु के लिये लायेंगे, अधिकतर बलियों के रूप में। लैव्यव्यवस्था की पुस्तक ऐसी विभिन्न बलियों के विषय बताती है: 

🐑 होम बलि (लैव 1;6:8-13), 

🕊अन्न (लैव 2:6:14-23), 

🐏 मेल बलि (लैव 3:7:11-21), 

🐐 पाप बलि (लैव 4:15:13; 6:24-30)  

🐑 दोष बलि (लैव 5:14-6:7, 7:1-10)

(4) इन निर्धारित बलियों के अतिरिक्त, इस्राएली अपनी इच्छा से प्रभु को भेंट दे सकते थे। उनमें से कई को दोहराया जाता था (देखें लैव 22:18-23; गिन 15:3; व्य 12:6, 17) 

जब कि कुछ एक बार के अवसर थे। जैसे, जब सीनै पर्वत पर इस्राएलियों को मिलाप का तम्बू बनाना था, लोगों ने खुले दिल से इस तम्बू व उसके सामान के लिये दिया (देखें निर्ग 35:20-29)

वे इस काम के लिए बहुत उत्साहित थे लेकिन मूसा ने उनसे और भेंट लाने से रोक दिया (देखें निर्ग 36:3-7)। 

योआश के दिनों में महायाजक यहोयादा एक सन्दूक बनाई जिसमें लोग भेंट डाल सकते थे ताकि मन्दिर के रखरखाव के लिये वह काम आ सके, और उन्होंने खुले दिल से दिया (2रा 12:9-10)। 

इसी प्रकार, हिजकिय्याह के समय में लोगों ने खुले दिल से मन्दिर में पुनः निर्माण के आवश्यक कार्य के लिये दिया (2इत 31:5-19)

(5) पुराने नियम के इतिहास में असंख्य अवसर ऐसे थे कि लोगों ने स्वार्थी होकर प्रभु को देने के बजाय नियमित दशमांश व भेटों को नहीं दिया। दूसरे मंदिर निर्माण के समय यहूदी लोग अपने घरों को बनाने में अधिक रुचि रखते दिखते हैं जब कि मन्दिर उजाड़ पड़ा था। हाग्गै कहता है कि परिणामस्वरूप उनको आर्थिक कष्ट हुए (हागे 1:3-6)। 

ऐसी ही बात मलाकी भविष्यद्वक्ता के समय से हो रही थी तथा दशमांश न देने के कारण परमेश्वर उन्हें दण्ड दे रहा था (मल. 3:9-12)।

हमारे धन का भण्डारीपन:

   दशमांश व भेंटों के पुराने नियम के इन उदाहरणों में भण्डारीपन के महत्वपूर्ण सिद्धान्त है जो नए नियम के विश्वासियों पर भी लागू है।

(1) हमें याद रखना है जो कुछ भी हमारे पास है वह प्रभु का है, ताकि जो हमारे पास है वह हमारा अपना नहीं है बल्कि परमेश्वर ने हमारे भरोसे पर हमें दिया है; अपनी सम्पत्ति पर हमारा कोई अधिकारिक स्वामित्व नहीं है।

(2) हमें अपने हृदयों में फैसला करना है कि परमेश्वर की सेवा करें धन की नहीं (मत 6:19-24; तुलना करें 2कुरि 8:1-5)। 

बाइबिल इस बात को स्पष्ट करती है कि कोई भी लालच मूर्तिपूजा के समान है (कुल 3:5)।

(3) हमारा देना परमेश्वर के राज्य की बढ़ौतरी के लिये हो, विशेषकर स्थानीय मण्डली में तथा विश्व भर में सुसमाचार प्रचार के लिये (1कुर 9:4-14; फिल 4:15-18; 1तीम 5:17-18)

उनकी सहायता के लिये जो ज़रुरतमन्द है (नीत 19:17; गल 2:10; 2कुरि 8:14)

स्वर्ग में धन जमा करना (मत. 6:20) 
तथा परमेश्वर का भय मानना सीखें (व्य 14:22-23)।

(4) हमारा देना सदा आय के अनुपात में हो। पुराने नियम में दशमांश दसवाँ भाग था। उसे न देना परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन तथा परमेश्वर को लूटना था (मला. 3:8-10)। 

इसी प्रकार, नया नियम माँग करता है कि हमारा दान उसी अनुपात में हो जो परमेश्वर ने हमें दिया है (1कुरि 16:2; 2कुरि 8:3, 12; देखें 2कुरि 8:2, टिप्पणी)।

(5) हमारा देना स्वेच्छिक व खुले दिल से हो; यह शिक्षा दोनों नियम में दी गई है। (देखें निर्ग 25:1-2; 2इत 24:8-11) 

व नए नियम में (देखें 2कुरि 8:1-5,11-12) 

हमें बलिदान रूपी दान देने में झिझकना नहीं चाहिए (2कुरि. 13:13)

क्योंकि इसी भावना के साथ प्रभु यीशु ने स्वयं को हमारे लिये दे दिया (देखें 2कुरि 8:9, टिप्पणी)

परमेश्वर की दृष्टि में धन के मूल्य से अधिक बलिदान की भावना है जो उससे सम्बंधित है (देखें लूक 21:1-4, टिप्पणी)।

(6) हमारा देना आनन्दपूर्ण हो (2कुरि 9:7)। 

पुराने नियम में इस्राएलियों का उदाहरण (निर्ग 35:21-29; 2इत 24:10) 

तथा मकिदुनिया के मसीहियों द्वारा नए नियम के उदाहरण हमारे लिये आदर्श हैं। (2कुरि 8:1-5) 

(7) परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि जो हमने दिया उसके अनुसार वह हमें प्रतिफल देगा (देखें व्य 15:4; मला. 3:10-12; मत 19:21; 1 तीम 6:18-19; देखें 2कुरि 9:6, टिप्पणी)।