दान देने की आशिष
प्रस्तावना
यह अध्ययन 1958 के बड़े दिन के सप्ताह के लिए तैयार किया गया था।
2 कुरिन्थियों 8:7 " सो जैसे हर बात में अर्थात् विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में, जो हमसे रखते हो, बढ़ते जाते हो, वैसे ही इस दान के काम में भी बढ़ते जाओ। " संदर्भ से स्पष्ट है कि वह दान के विषय में बोल रहा है।
बड़े दिन का अवसर अपने साथ आनन्द और बड़े दिन के काडों और उपहारों की समस्या लेकर आता है। बड़ा दिन सही रूप में देने का अवसर है। व्यापारीकरण ने सामानों और विज्ञापन उपहारों. इत्यादि द्वारा बड़े दिन को लगभग नष्ट कर दिया है। बहुत से बच्चों के लिए बड़े दिन का अभिप्राय लुप्त हो गया है क्योंकि मनोवृत्ति उपहार प्राप्त करने की हो गई है, और उद्धारकर्ता के प्रति उसके जन्मदिन पर आदर प्रकट करना भुला दिया गया है।
प्रथम बड़ा दिन दान देने के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था। परमेश्वर पिता ने अपने एकलौते पुत्र को संसार को दान के रूप में दे दिया था। इसके समारोह और स्मरणोत्सव में हमारे लिए यह अच्छा है कि हम उपहार दें, परन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिए " कि लेने से देना धन्य है, " प्रेरितों के काम 20:35| बड़े दिन की कहानी में हम देखते हैं कि ज्योतिषियों ने यीशु को मूल्यवान भेंटे दी।
1. ज्योतिषियों ने क्या दिया - मत्ती 2:1-12
ज्योतिषियों के वृत्तांत में हम विश्वास का सुन्दर अनुक्रम देखते हैं:
1. खोजनाः उन्होंने आकाश में सितारा देखा और उसके पीछे - पीछे चल पड़े।
2. पानाः वे पूछते हुए यरूशलेम पहुँच गए और उन्होंने हेरोदेस से पूछा कि बालक कहाँ है।
3. आराधना करनाः उन्होंने घुटने टेक कर उद्धारकर्ता के सन्मुख दण्डवत् किया।
4. देनाः आराधना करने के बाद , या आराधना के एक भाग के रूप में उन्होंने अपनी भेंटे चढ़ाई।
जो भेंटे ज्योतिषियों ने चढ़ाई, वे बड़ी दिलचस्प हैं :
1. सोनाः एक राजा के लिए एक योग्य उपहार और श्रद्धा का प्रतीक। यीशु राजाओं का राजा था।
2. लोबानः एक पीला सा पदार्थ जिनका धूप और सुगन्ध में प्रयोग होता है। यह उसके ईश्वरत्व की स्वीकृति के रूप में दिया गया।
3. गन्धरसः यह एक कडुवे पौधे का रस होता है जिसको सुगन्ध के लिए द्रव्यों में प्रयोग किया जाता है। यह उद्धारकर्ता के दुख भोग के चिह्न के रूप में दिया गया था। देखिए मरकुस 15:23 , " उसे मुर्र मिला हुआ दाखरस देने लगे। " हम सोना, लोबान और गन्धरस भेंट नहीं कर सकते परन्तु हम क्या दे सकते हैं ?
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2. हमें क्या देना है
1.अपने शरीरः रोमियों 12:1, " इसलिए हे भाइयो, मैं तुमसे परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ। " मकिदुनिया के लोगों ने अपने को प्रभु को दे दिया, 2 कुरिन्थियों 8:5, "उन्होंने प्रभु को "अपने तई दे दिया।
2. स्वयं को पूर्णतः परमेश्वर की बातों के लिए :
1 तीमुथियुस 4:15, " उन बातों को सोचता रह, और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह।"
3. परमेश्वर के वचन को पढ़ने पर ध्यान देनाः 1 तीमुथियुस 4:13 " जब तक मैं न जाऊँ , तब तक पढ़ने और उपदेश ( देने ) और सिखाने " में लौलीन रहा।
4. जो कुछ हमने सुना है , उस पर मन लगाए रहें : इब्रानियों 2:1 "इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी है, और भी मन लगाएं
5. अपने आपको निरन्तर प्रार्थना के लिए देते रहें : प्रेरितों के काम 6:4 " परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।
6. हर बात के लिए धन्यवाद दें : 1 थिस्सलुनीकियों 5:18 " हर बात में धन्यवाद करोः क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।"
7. प्रभु को धन दीजिए : 2 कुरिन्थियों 8 2-4 मकिदुनिया की कलीसिया ने अपने भारी कंगालपन में भी प्रभु के लिए अधिकाई से दिया, और पौलुस ने संगति के उपहार के रूप में इसको स्वीकार किया।
3. हमें प्रभु को किस प्रकार देना है ?
1. विधिवतः 1 कुरिन्थियों 16 : 2 " सप्ताह के पहले दिन तुममें से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चंदा न करना पड़े। " बड़े दिन के अवसर पर ही नहीं, वरन हमें वर्ष के प्रत्येक सप्ताह में देना है। दान देने में उदार बन जाइए और परमेश्वर आपकी ईमानदारी और उदारता का प्रतिफल देगा।
2. व्यक्तिगत रूप से : 1 कुरिन्थियों 16 : 2, तुम में से हर एक अपने पास कुछ रख छोड़ा करे। परिवार का प्रमुख ही नहीं, परन्तु माता और बच्चे भी। दान देना केवल धनवान के लिए ही नहीं है, यह गरीब के लिए भी है। इसमें केवल राशि और मात्रा का ही अन्तर रहेगा। चीन में श्रीमती हसी एक निर्धन किसान थी, वह प्रभु को कुछ दे पाने के अभिप्राय से कम खाती थी और परमेश्वर ने आत्मिक रूप में उसे अधिकाई के साथ आशिष दी।
3. अपनी आमदनी के अनुसारः 1 कुरिन्थियों 16 : 2 पुराने नियम में व्यवस्था के अधीन, वे दशमांश दिया करते थे - अपनी आय का दसवां भाग। दशमांश, लैव्यव्यवस्था 27:30 प्रभु के लिए पवित्र था, और यह व्यक्ति का अपना कुछ भी नहीं होता था। आज हम व्यवस्था के अधीन नहीं है। हम जो कमाते हैं उसका दसवा भाग देने के लिए बाध्य नहीं हैं। परन्तु हम अनुग्रह के अधीन हैं, जो कि प्रेम की वाचा है। कौन अधिक मजबूत है, व्यवस्था की शक्ति या प्रेम की शक्ति? मुझे ऐसा लगता है कि प्रेम महान है, और तब हमें दशमांश के अतिरिक्त भेंट भी देनी चाहिए। व्यक्तिगत रूप से हम अपनी साक्षी देते हैं कि 1940 से ( 18 वर्षों से ) हमने ईमानदारी के साथ दशमांश दिया और परमेश्वर से हमें आत्मिक और भौतिक रूप में आशिर्षे प्रदान की। आर . जी . लिटॉरनों ने दस प्रतिशत दिया, और जब परमेश्वर ने उसे समृद्ध किया तो उसने बीस प्रतिशत देना आरम्भ कर दिया और बाद में इसको और बढ़ा दिया। जो लोग परमेश्वर को देते हैं, परमेश्वर भी उनको अधिकाई से देता है, परमेश्वर को इस विषय में प्रतिदिन परख कर देखिये।
4. प्रसन्नता - पूर्वकः 2 कुरिन्थियों 9 : 7 " क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देने वाले से प्रेम रखता है। " चन्दे की थैली फिर आ गई ! क्या मुझे दुबारा चन्दा देना पड़ेगा? " यह अनुचित मनोवृत्ति है। हमें इसे अपना विशेषाधिकार और आनन्द का विषय मानना चाहिए कि हम उस परमेश्वर को थोड़ा सा भाग लौटा सकते हैं, जिसने हमें इतना अधिक दिया है। परमेश्वर उससे प्रेम रखता है जो उत्सुकता और प्रसन्नता -पूर्वक देता है। हमें वहीं उपहार लेने अच्छे लगते हैं जो प्रसन्नतापूर्वक दिए जाते हैं - कुढ़कर दिये जाने वाले उपहार नहीं।
5. वैसे ही दीजिए जैसे मसीह ने दियाः उसने अपना सब कुछ दे दिया यहाँ तक कि अपना जीवन भी दे दिया। आइए दान के अनुग्रह को समझते हुए इसमें अधिकाई से बढ़ते जाएं।
6. बलिदान के रूप में दीजिए : 2 कुरिन्थियों 8 : 2, उन्होंने अपने भारी कंगालपन में भी दिया। विधवा ने दो दमड़ियाँ डाल दी जो कि उसकी समस्त आजीविका थी। परमेश्वर का दान के प्रति मापदण्ड यह है, कि वह यह देखता है कि कितना रख लिया गया है, नहीं कि कितना दिया गया है। परमेश्वर दाता के हृदय को देखता है, वह दान की मात्रा को नहीं देखता । आइए हम प्रेमपूर्वक आनन्दित हृदय से उद्धारकर्ता को अपनी भेंट चढ़ाएं।
4. देने के प्रतिफल
फिलिप्पियों 4:18, " जो वस्तुएं तुमने भेजी थी वह तो सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है।"
हमारे दान यद्यपि छोटे होते हैं, फिर भी वे हमारे स्वर्गीय पिता के हृदय को आनन्दित कर देते हैं।
उदारतापूर्वक प्रभु को देने से आशिर्षे प्राप्त होती है। पिता उनके बदले में हमें देता है। आशिष आवश्यक रूप में भौतिक पदार्थों को अधिकाई नहीं है, यद्यपि बहुधा यह भौतिक पदार्थों की अधिकाई ही होती है।
प्रेरितों के काम 20:35, " लेने से देना धन्य है। " मत्ती 6:20, " परन्तु अपने लिए स्वर्ग में धन इकट्ठा करो। " यह एक आज्ञा है। मलाकी 3:10, " सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजन वस्तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिए खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशिष की वर्षा करता हूँ कि नहीं। " यह परमेश्वर की महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा है।
हमने विश्वासयोग्यता से दशमांश दिया और जब भी हमें आवश्यकता पड़ी, प्रभु ने हमें अधिकाई से दिया। उदाहरण के लिए जब मिसेज डगलस अगस्त 1958 में बीमार थीं।
5. हमें किसे देना चाहिए
गरीबों, अभावग्रस्तों, अनाथों, और विधवाओं को दीजिए, याकूब 1:27 ; मत्ती 5:42 आराधना और कलीसिया की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए दीजिए। सुसमाचार फैलाने के लिए दीजिए।
सारांश
अपर्याप्त मात्रा में देना, अपर्याप्त शिक्षा या अपर्याप्त आत्मिक जीवन का प्रमाण है।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. ज्योतिषियों के वृत्तांत में विश्वास की चौहरी प्रगति को स्पष्ट कीजिए।
2. ज्योतिषियों ने कौन से तीन उपहार यीशु को दिए ?
3. अपना धन प्रभु को देने से पहले हमें उसको क्या देना चाहिए ? बाइबल के दो पद प्रस्तुत कीजिए।
4. सच है या झूठ: " प्रभु धनवानों से यह अपेक्षा रखता है कि वे उसे धन दें और गरीबों से यह कि वे स्वयं को दे। " अपने उत्तर के स्पष्टीकरण के कारण भी बताइए।
5. पाँच विधियाँ बताइए जिनके द्वारा हमें देना है।
6. यदि यह सच है कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, तो क्या यह उपयुक्त नहीं है कि हम तभी दें जब कि आवश्यकताएं प्रस्तुत की जाती है ? स्पष्ट कीजिए।
7. कुछ मसीही दूसरों की अपेक्षा अधिक उदार प्रतीत होते हैं। क्या इसका अर्थ यह है कि उनको दान देने का वरदान प्राप्त है ? स्पष्ट कीजिए।
8. फिलिप्पियों 4:18 में दान के जो तीन प्रतिफल दिये गए हैं, उनको व्यक्त कीजिए।
9. प्रमाणित कीजिए कि देना ऐच्छिक नहीं है।
10. नए नियम का भण्डार क्या है ? ( मलाकी 3:10 )।

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