यीशु मसीह की शिक्षाएँ, Yeeshu Masih ke Shikshaen, Teachings of Jesus Christ

यीशु मसीह की शिक्षाएँ

 प्रस्तावना

    इस अध्याय में हम यीशु मसीह की प्रमुख शिक्षाओं का सार प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैंजो उसने इस पृथ्वी पर रहते हुए दी।

    यीशु मसीह ने इस पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के काल में तीन लम्बे प्रवचन दिए (1) पहाड़ी उपदेशमत्ती अध्याय 5 से 7 तक (2) जैतून पर्वत के प्रवचनमत्ती 24 और 25 अध्यायऔर (3) ऊपर वाले कमरे में दिया गया प्रवचनयूहन्ना अध्याय 13 से 16 तक और सम्भवतः 17 अध्याय भी। इनके अलावा उसने अनेक संक्षिप्त संदेश भी दिए।

    किसी ने कहा है कि यीशु ने पहाड़ी उपदेश में 18 विषयों का उल्लेख किया है।

    मत्ती 7:28,29, “ भीड़ उसके उपदेश से चकित हुईक्योंकि वह उनके शास्त्रियों के समान नहींपरन्तु अधिकारी की नाई उन्हें उपदेश देता था। "

    लूका 4:32, "वे उसके उपदेश से चकित हो गएक्योंकि उसका वचन अधिकार सहित था  " लूका 4:22, “ और सबने उसे सराहाऔर  जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीउनसे अचम्भा किया।कुछ बातों में उसकी शिक्षाएँ नई थींक्रान्तिकारी और मानवीय तर्क के विपरीत थीं।

 

1. उद्धार के विषय में यीशु की शिक्षाएँ

    नीकुदेमुस के साथ अपनी बातचीत में यीशु ने उसे बताया कि उसके लिए नया जन्म लेना आवश्यक हैयूहन्ना 3:1-15

    सामरी स्त्री के साथ अपनी बातचीत में यीशु ने उसके हृदय में स्वयं के अर्थात् जीवन के जल के प्रति प्यास उत्पन्न कर दीयूहन्ना 4:1-42

    यूहन्ना अध्याय 6 में उसने स्वयं को जीवन की रोटी के रूप में प्रकट किया। जो सच्ची आत्मिक-भूख को तृप्त करती है।

    लूका 7:47,48 मेंयीशु ने यह शिक्षा दी कि उसे पश्चाताप करने वालों के पापों को क्षमा करने का अधिकार है।

    यूहन्ना अध्याय 10 में अच्छे चरवाहे के प्रवचन में यीशु ने प्रकट कर दिया कि उद्धार का एकमात्र द्वार वही है और मनुष्य केवल उसी के द्वारा उद्धार प्राप्त कर सकता हैअन्य कोई उपाय नहीं है।

    मत्ती 11:28-30 में यीशु ने बोझ से दबे और थके लोगों को उद्धार और आत्मिक शान्ति के लिए अपने पास आने के लिए आमंत्रित किया।

    इसी आश्चर्यजनक उद्धार के निमंत्रण को लूका 14:16-24 में अधिक विस्तृत किया गया और उसमें गलियों और सड़कों पर आवारा घूमने वालों को भी सम्मिलित कर दिया गयाइनमें गरीबकंगालटुण्डेलंगड़े और अन्धे सभी हैं।

    उद्धार की सभी कथाओं में सर्वाधिक प्रिय उड़ाऊ पुत्र के लौट आने की कथा है जो लूका अध्याय 15 में पाई जाती है।


Vishwasi Tv में आपका स्वागत है

Read More: ज्यादा बाइबल अध्ययन के लिए क्लिक करें:

 

2. दैनिक मसीही जीवन के विषय में यीशु की शिक्षाएँ

    मत्ती 5:33-48 में हमें शिक्षा दी गई है (1) शपथ  खाना ( 2 ) अपना दूसरा गाल फेर देना (3) शत्रुओं से प्रेम रखना। मत्ती 6: 1-4, 19-21 दान के विषय में (1) दान गुप्त होना चाहिए (2) अपनी पूंजी को अनन्त काल के लिए लगाना चाहिए।

    यीशु ने प्रार्थना के विषय में महत्वपूर्ण शिक्षाएं दींमत्ती 6:5-13; लूका 11:1 - 13; यूहन्ना 14:13,14; यूहन्ना 16:23, 24 इसके लिए चाहिए कि (1) प्रार्थना गुप्त में की जाए (2) निरन्तर की जाए ( 3 ) प्रार्थना का क्षेत्र और शक्ति असीमित है।

    यीशु ने यह शिक्षा दी कि इससे पहले कि परमेश्वर हमें क्षमा करेहमें दूसरों को क्षमा करना आवश्यक हैमत्ती 6:14, 15; मत्ती 5:23, 24 यीशु ने परीक्षा से पहले उपवास रखा और उसकी शिक्षा दीमत्ती 6:16-18; लूका 4:2

    यीशु ने जीवन की आवश्यकताओं के प्रति अपना झुकाव रखने के विरुद्ध चेतावनी दी और यह सिखाया कि यदि हम सबसे पहले परमेश्वर के राज्य की खोज करते हैं तो ये वस्तुएँ ( प्रतिदिन का भोजनआश्रय तथा वस्त्र की आवश्यकताप्रभु द्वारा हमें अवश्य प्रदान की जाएगीमत्ती 6:25-34

    उसने शिक्षा दी कि यीशु मसीह   को खुले रूप में प्रभु अंगीकार करना परमावश्यक हैमत्ती 10:32, 33; यूहन्ना 9:38

    यीशु ने मनपरिवर्तन करने वालों को निर्देश दिया कि वे अपने घर लौटकर सबसे पहले अपने सम्बन्धियों के सम्मुख साक्षी देंमरकुस 5:19 |

    यीशु की शिक्षाओं में उद्धार पाने वालों के लिए उद्धार के निश्चय की गूंज सुनाई देती हैयूहन्ना 3:16, 18, 36; यूहन्ना 5:24 |

    ऊपर वाले कमरे के महत्वपूर्ण प्रवचन में जीवन में वास करने वाले पवित्र आत्मा की सेवकाई के विषय में बहुत कुछ बताया गया हैजो मार्गदर्शन करता हैसंचालन करता है और विश्वासी को बल तथा शक्ति प्रदान करता हैयूहन्ना 14:16-26

    यीशु ने अपने विश्वासियों और चेलों से आराम का जीवन देने की प्रतिज्ञा नहीं कीपरन्तु सताव का खुल कर उल्लेख किया और प्रत्येक परीक्षा में सहायता और अनुग्रह प्रदान करने की प्रतिज्ञा कीयूहन्ना 16:1-6; लूका 12:11, 12 

 

3. फरीसियों और झूठे शिक्षकों के विषय में यीशु की शिक्षा

    यीशु ने झूठे शिक्षकों और पाखण्डियों की जोरदार शब्दों में भर्त्सना की।

  मत्ती 23:13-36 मेंवह आठ बार कहता है, "हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों," पद 13, ( 14 KJV), 15, 16, 23, 25, 27 और 29, में वह उनको मूर्ख और अंधे अगुए भी कहता है 

     यूहन्ना 8:44 में यीशु ने उनसे कहावे " अपने पिता शैतानसे हैंयह कठोर भाषा है।

    मत्ती 16:6 में यीशु ने अपने चेलों को "फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकसरहने की चेतावनी दीजो झूठे सिद्धान्तों की शिक्षा देते थेये लोग पुनरुत्थान इत्यादि का इनकार करते थे।

    यीशु ने अपनी शिक्षा में कहा कि कलीसिया के ये झूठे अगुए अपने चेले बनाने के लिए अथक प्रयास करते थे परन्तु ऐसा करके उनको पहले से " दूना नारकीयबना देते थेमत्ती 23:15

    मत्ती 7:15-20 उद्धारकर्ता की उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहने के लिए एक चेतावनी है कि वे भेड़ के भेष में फाड़ने वाले भेड़िए होते हैं।

    लूका 20:45-47 चेलों के लिए शास्त्रियों से चौकस रहने की एक स्पष्ट चेतावनी है।

 

4. भण्डारीपन के विषय में यीशु की शिक्षा

 यीशु ने लूका 12:16-34 में धन-सम्पत्ति का उचित उपयोग करने की शिक्षा दी। धन-सम्पत्ति धनवान की व्यक्तिगत संतुष्टि के लिए नहीं थीक्योंकि वह 'मूर्खथावास्तविक धन-सम्पत्ति ( पद 33, 34 ) वह थी जो समय से पहले ही प्रभु के पास भेज दी गई थी।

    जब उस स्त्री ने मरकुस 12:41-44 के अनुसार दो दमड़ियाँ भण्डार डाली तो यीशु ने इसकी उच्च प्रशंसा की क्योंकि उसने अपनी बढ़ती में से नहींपरन्तु अपनी गरीबी में सब कुछ दे दिया था।

   मत्ती 25:14-30 में यीशु ने हमें शिक्षा दी है कि हम अपनी परमेश्वर प्रदत्त गुणों को उसकी महिमा के लिए प्रयोग करें।

    लूका 19:11-27 मेंयीशु ने अपने चेलों को आदेश दिया कि वे उसके, "लौट आने तक लेन-देन, " करें अर्थात् उन गुणों का उसकी महिमा और उसके राज्य के विस्तार के लिए प्रयोग करेंजो उसने हमें दिया है।

    मसीही अपने धनसमयगुणों वरदानों और अवसरों के भण्डारी हैं।

 

5. स्वर्ग और नर्क के विषय में यीशु की शिक्षाएं

    हमारे प्रभु ने सुसमाचारों में नर्क और अनन्त दण्ड का वर्णन कम से कम सत्तर बार किया है।

    मत्ती 25:41, "हे श्रापित लोगोंमेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओजो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है। "

    यह यीशु था जिसने लूका 16:19-31 में हमारे सन्मुख नर्क में पीड़ा का स्पष्टतम चित्र प्रस्तुत किया।

    मरकुस 9:42-48 नर्क से बचने के लिए महत्वपूर्ण चेतावनी हैजहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझतीपद 44,46, 48

    ऊपर वाले कमरे के प्रवचन में यीशु ने आश्वस्त करने वाले वचन कहे कि वह थोड़े समय के लिए इसलिए जा रहा है कि हमारे लिए जगह तैयार करेऔर वह हमें लेने फिर वापिस आएगायूहन्ना 14:1-3

    मरते हुए पश्चाताप करने वाले डाकू से यीशु ने कहा, “तू आज ही मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा। " लूका 23:43 |

    यीशु ने स्वर्ग को पिता परमेश्वर के साथ एक घर के रूप में प्रस्तुत कियामत्ती 6:9; लूका 11:2 

यीशु स्वर्ग से मरने के लिए और बहुत से पुत्रों को स्वर्ग में ले जाने के लिए आयाइब्रानियों 2:10 

 

6. फलवन्त होने के विषय में यीशु की शिक्षा

    यूहन्ना 15:1-17 के ऊपर वाले कमरे के प्रवचन का केन्द्रदाखलता और उसकी डालियाँ हैंइससे यीशु की इच्छा है कि हम में "फलउत्पन्न हों, “अधिक फल, " "बहुत अधिक फल। "

    बांझ अंजीर के वृक्ष के दृष्टान्तलूका 13:6-9 में वृक्ष (मसीही ) जो कि फल नहीं लाता उसे काट दिया जाना थानष्ट करके आग में डाल दिया जाना था।

    मत्ती 7:16-20 में यीशु यह शिक्षा देता है, "उनके फलों से तुम उनको पहचान लोगे।"

    बीज बोने वाले के दृष्टान्तमत्ती 13:1-23 में यीशु अपनी यह इच्छा व्यक्त करता है कि प्रत्येक मसीही को फलप्रद होना चाहिएकुछ को तीस गुनाकुछ को साठ गुना और कुछ को सौ गुना। -

    मसीही होने के नाते हमें छांटा जाना चाहिए जिससे हम अधिक फल ला सकेंयूहन्ना 15:2

    "खोदा जाना और खाद डाला जाना " छांटे जाने का एक कटु अनुभव है, (लूका 13:8) परन्तु यह अत्यावश्यक है।

    लूका 6:43-46 के अनुसार मसीही होने के नाते हमें स्वयं में आत्मा के फल उत्पन्न करने हैं और उसके (प्रभुलिए आत्माओं को जीतना है।

 

7. भविष्यद्वाणी के विषय में यीशु की शिक्षा

     मत्ती 24, 25 अध्याय में जैतून के पर्वत का प्रवचनभविष्यद्वाणी सम्बन्धी विषयों पर है। अधिकांश

    मत्ती 24:1, 2 में यरूशलेम के नष्ट किए जाने की भविष्यद्वाणी हैजो ईस्वी सन् 70 में पूरी हुई। मत्ती 24:4-14 इस युग के भ्रष्ट होते हुए जीवन से सम्बन्धित हैजिसमें हम रहते हैं।

    मत्ती 24:15-26 उस महा-क्लेश से सम्बन्धित हैयाकूब का संकट-काल 

    मत्ती 24:27-31, ये पद महिमा में प्रभु के वापस आने के विषय में बताते हैंइससे अधिक विवरण अंजीर के वृक्ष के दृष्टान्त ( पद 32-51 ), और दस कुंवारियों के दृष्टान्त (मत्ती 25:1-13) द्वारा जोड़े गये हैं।

   मत्ती 25:31-46, ये पद देश - देश के लोगों के न्याय के बारे में बताते हैंजिसमें बकरियां और भेड़ें अलग-अलग की जाएगी।

    मत्ती 13:1-52 में जो सात रहस्य पाए जाते हैंवे स्वर्ग के राज्य के विभिन्न दृष्टिकोण हैं।


सारांश

    मेरे विचार में यीशु मसीह   की शिक्षाओं का सार एक शब्दप्रेम में निहित है।

    उसने 6000 आज्ञाओं का सारांश जिसके अन्तर्गत कट्टर यहूदी अपना जीवन व्यतीत करते थेदो आज्ञाओं के आधीन कर दिया (1) परमेश्वर से प्रेम रख और (2) अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखमत्ती 22:37-39

    प्रेम मसीही का एक सर्वोच्च चिन्ह बन गया हैयूहन्ना 13:35 “यदि (तुमआपस में प्रेम रखोगेतो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो। "

    यूहन्ना 15:13 मेंयीशु हमारे बदले क्रूस पर अपनी मृत्यु के विषय में कहता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए जो सबसे बड़े प्रेम का प्रदर्शन सम्भव हो सकता है वह उसी प्रेम को प्रदर्शित कर रहा था।

    यूहन्ना 17 अध्याय में यीशु की मध्यस्थता की प्रार्थना एकता के लिए की गई विनती है। देखिए पद 11, 21, 22 और 23, यह आवश्यक रूप में मार्मिक एकता नहीं हैवरन आत्माओं को जीतने में अभिप्राय की एकता है। यीशु ने कलीसिया अर्थात् अपनी देह को संसार में रख छोड़ा है ताकि वह उनकी अनुपस्थिति में साक्षी देमत्ती 28:19; मरकुस् 16:15

    यीशु का सिद्धान्त हमें यह शिक्षा देता है कि हम केवल प्रेम रखने वालों से ही प्रेम  करेंपरन्तु हर एक से प्रेम करेंयहाँ तक कि अपने शत्रुओं से भीक्योंकि उसने पहले से ही उनसे प्रेम रखामत्ती 5:44; 1 यूहन्ना 4:19; रोमियों 5:8 

 

पुनर्विचार के लिए प्रश्न

1. यीशु मसीह   की सेवकाई के तीन प्रमुख प्रवचन कौन से हैं?

2. उद्धार के विषय में यीशु की शिक्षा के सार को तीन अंशों में बताइए 

3. कौन सी ऐसी बातें हैं जिनके कारण आप यह सोचते हैं कियीशु मसीह   की शिक्षाएं नई और क्रान्तिकारी हैं?

4. ऊपर वाले कमरे के प्रवचन में यीशु ने अधिकांश रूप से किस विषय पर बातचीत की?

5. बाइबल के किन अनुच्छेदों में फरीसियों और पाखण्डियों की आठ बार भर्त्सना की गई है?

6. क्या मसीही केवल धन के ही भण्डारी हैस्पष्ट कीजिए

7. क्या यह सच है कि यीशु ने प्रेम की शिक्षा दी और नर्क को अलग कर दियास्पष्ट कीजिए।

8. बाइबल के उन तीन अंशों को बताइए जो फल लाने से सम्बन्धित हैं।'

9. यीशु मसीह   का कौन सा उपदेश भविष्यद्वाणी से सम्बन्धित है?

10. आज्ञाओं का सारांश, "प्रेमशब्द के माध्यम से कैसे स्पष्ट किया जा सकता है?