
यीशु मसीह की मानवता
प्रस्तावना
उद्धारकर्ता बनने के लिए यीशु को न केवल ईश्वरीय होना और कुंवारी से जन्म लेना आवश्यक था, परन्तु उसे वास्तविक मनुष्य होना भी आवश्यक था। पापी न होने के अलावा वह अन्य सभी बातों में हमारे समान था। 1 तीमुथियुस 2:5, "क्योंकि परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है। "
यीशु को हमारे समान बनना पड़ा ताकि, "वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती है, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने," (इब्रा. 2:17 )
“(यीशु) व्यवस्था के आधीन उत्पन्न हुआ, ताकि व्यवस्था के आधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, " गलतियों 4:4, 5
प्रथम मनुष्य आदम के द्वारा मृत्यु आई। दूसरा आदम, यीशु मसीह, पुनरुत्थान लेकर आया । 1 कुरिन्थियों 15:21
1. यीशु को मानवीय नाम दिए गए
मत्ती 1:21, "वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना।" यह मत्ती 1:25 में पूरा हुआ।
1 तीमुथियुस 2:5 में (यह पद ऊपर दिया जा चुका है) यीशु को स्पष्ट रूप से मनुष्य कहा गया है। यह वाक्यांश, "मनुष्य का पुत्र," जो कि उसकी मानवता पर बल देता है, 77 बार आया है। लूका 19:10 | स्तिफनुस ने अपनी मृत्यु से तुरन्त पहले यीशु को देखा और उसे "मनुष्य का पुत्र" कहा; प्रेरितों के काम 7:56
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2. यीशु की मानवीय वंशावली थी
बिल्ली का बच्चा प्राप्त करने के लिए बिल्ली जाति के माता-पिता होना आवश्यक है। यीशु के मानव होने के लिए मानवीय-जनक होना आवश्यक था। यह आवश्यकता उसने अपनी माता मरियम के व्यक्ति में पूरी की।
लूका 2:7, "और वह (मरियम) अपना पहलौठा पुत्र जनी । " गलतियों 4:4, " परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा और व्यवस्था के आधीन उत्पन्न हुआ।"
यीशु दाऊद के कुल और गोत्र में से जन्मा प्रेरितों के काम 13:23, "इसी (दाऊद) के वंश में से परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता अर्थात यीशु को भेजा।" मत्ती 1:1-16 में जो वंशावली दी गई है उसमें इब्राहिम से यीशु मसीह तक के वंशज बताए गए हैं। इब्रानियों 7:14, "प्रगट है कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। "
3. यीशु में एक भौतिक स्वभाव था
यूहन्ना 1:14, " और वचन देहधारी हुआ (मानव स्वभाव) और हमारे बीच में डेरा किया।" इब्रानियों 2:14, "इसलिए जबकि लड़के मांस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया। " ( अर्थात् मांस और लहू बन गया) । यीशु मसीह मनुष्य है इसको स्वीकार न करना मसीह-विरोधी होने का चिह्न है। 1 यूहन्ना 4:23 "जो कोई आत्मा मान लेती है कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है, वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है। "
4. यीशु मानव-विकास के नियमों के आधीन था
2) उसने प्रश्न पूछे: लूका 2:46, “और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उनकी सुनते और उनसे प्रश्न करते हुए पाया। "
3) वह बुद्धि में परिपूर्ण होता गया: लूका 2:52, "और यीशु बुद्धि और डील-डौल में बढ़ता गया। "
4) उसने आज्ञाकारिता सीखी: इब्रानियों 5:8, “और पुत्र होने पर भी उस (यीशु) से दुख उठा उठा कर आज्ञा माननी सीखी। "
5) उसने दुख उठायाः इब्रानियों 2:18, “क्योंकि जब उस (यीशु) ने परीक्षा की दशा में दुख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है।" इब्रानियों 2:10, "क्योंकि जिस (यीशु) के लिए सब कुछ है और जिसके द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुँचाए, तो उनके उद्धार के कर्त्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे। "
6) उसने तीस वर्ष की आयु तक बढ़ई का काम किया: मरकुस 6:3, 'क्या यह वही बढ़ई नहीं है?" यीशु की आयु लूका 3:23 " में दी गई है। यीशु इतना अधिक मानवीय था कि उसे भूलवश एक साधारण बढ़ई समझा गया।
7) उसकी परीक्षा ली गई: परीक्षाएँ मत्ती 4:1-11 में पाई जाती हैं।
5. यीशु सामान्य मानवीय प्रवृत्तियों से प्रभावित होता था
1) उसे भूख लगती थी: मत्ती 4:2, "वह चालीस दिन और चालीस रात निराहार रहा, अन्त में उसे भूख लगी। " मत्ती 21:18 भी देखिए।
2) उसे प्यास लगती थी: यूहन्ना 4:7, “इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आईः यीशु ने उससे कहा, मुझे पानी पिला।" क्रूस पर उसकी पांचवीं पुकार थी: "मैं प्यासा हूँ" यूहन्ना 19:28। 3) वह थक जाता था: यूहन्ना 4:6 "और याकूब का कुंआ भी वही था, सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएं पर यूं ही बैठ गया।"
4) वह सो जाता था: मत्ती 8:24 " और देखो, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढंकने लगी; और वह सो रहा था।"
5) वह प्रेम करता था: मरकुस 10:21 "यीशु ने उस पर दृष्टि करके उससे प्रेम किया"- वह एक धनवान युवक था। यूहन्ना 11:36 "तब यहूदी कहने लगे देखो वह उससे कैसी प्रीति रखता था।"
6) उसके हृदय में करुणा थी: मत्ती 9:36 " जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया क्योंकि वे व्याकुल और भटके हुए से थे।" मत्ती 23:37 "हे यरूशलेम हे यरूशलेम कितनी ही बार मैंने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुमने न चाहा।"
7) उसे क्रोध आता था और वह शोकित होता था: मरकुस 3:4, 5, और उसने उनसे कहा, क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना प्राण को बचाना या मारना? उसने उदास होकर उनको क्रोध से चारों ओर देखा।" यूहन्ना 2:15, 16 मन्दिर को शुद्ध करने में उसका धार्मिक क्रोध प्रकट किया गया है।
8) उसने श्रद्धापूर्ण आस्था प्रकट की: इब्रानियों 5:7, "उसने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार पुकार कर और आँसू बहा बहा कर, उससे जो उसको मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएँ और विनती की और भक्ति के कारण उसकी सुनी गई।"
9 ) वह बेचैन हुआ: यूहन्ना 11:33, “जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ और घबरा कर कहा, तुमने उसे कहाँ रखा है?"
10 ) वह रोया: यूहन्ना 11:35, "यीशु के आँसू बहने लगे।" सम्भवतः वह गतसमनी में भी रोया, मत्ती 26:38; लूका 19:41, यीशु यरूशलेम को देख कर रोया। इब्रानियों 5:7 में लिखा है, "उसने ऊँचे शब्द से पुकार पुकार कर और आँसू बहा बहा कर प्रार्थनाएँ और विनती की।"
11 ) उसने प्रार्थना की: मत्ती 14:23, "वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया।"
निःसन्देह उसमें यौन प्रवृत्ति भी विद्यमान थी, यद्यपि बाइबल में इसका उल्लेख नहीं पाया जाता है, अन्यथा, इब्रानियों 4:15 सत्य नहीं हो सकता (वह सब बातों में हमारी नाई परखा तो गया, परन्तु निष्पाप निकला) ।
6. यीशु में देह, प्राण और आत्मा थी
1) यीशु की एक देह थी: यूहन्ना 1:14; इब्रानियों 2:14; मत्ती 26:12; यीशु का शरीर गाड़ा गया; लूका 23:52-56
2) यीशु में प्राण था: मत्ती 26:38, “मेरा जी बहुत उदास है, यहाँ तक चाहते कि मेरा प्राण निकला जा रहा है। " मृत्यु होने पर यीशु की आत्मा स्वर्गलोक में गई; लूका 23:43
3) यीशु में आत्मा थी; जो कि मृत्यु के उपरान्त पिता के पास लौट गई। लूका 23: 46, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।"
7. यीशु की मृत्यु हुई
जीवन की जीव-विज्ञान सम्बन्धी पराकाष्ठा मृत्यु है। जन्म के बाद मनुष्य की मृत्यु निश्चित है।
इब्रानियों 9:27, "और मनुष्यों के लिए एक बार मरना नियुक्त है। "
यीशु को इस नियम का पालन करना आवश्यक था।
यीशु की मृत्यु युवावस्था में, कलवरी पर क्रूस पर चढ़ाए जाने के कारण हुई। लूका 23:33, "जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी, एक को दाहिनी ओर, और दूसरे को बायीं ओर क्रूसों पर चढ़ाया। '
इब्रानियों 2:9, "पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद चखे।" यीशु जगत में मरने के लिए आया और मृत्यु उसकी मानवता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
सारांश
अपने पुनरुत्थान के बाद भी यीशु शरीर धारण किए हुए है। लूका 24:39, "मेरे हाथ और मेरे पांव को देखो कि मैं वहीं हूँ मुझे छूकर देखो क्योंकि आत्मा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझमें देखते हो। " यूहन्ना 20:27, "अपनी उंगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल।"
प्रेरितों के काम 7:55-56 में स्तिफनुस ने शहीद होते समय यीशु को परमेश्वर के दाहिने हाथ खड़ा देखा। यीशु केवल दो बातों को छोड़ हम सब के समान मानव था: (1) उसके स्वभाव में पाप नहीं था, या पाप का मूल नहीं था। (2) वह निष्पाप था क्योंकि उसने कभी एक भी पाप नहीं किया।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. यीशु मसीह की मानवता के छः प्रमुख प्रमाण क्या है?
2. बाइबल का कौन सा वाक्यांश यीशु की मानवता पर बल देता है ?
3. कौन सी बात बालक को मानव बनाती है? क्या यीशु इस बात में खरा उतरता है?
4. फिलिप्पियों 2:7 की इस अभिव्यक्ति, "मनुष्य की समानता में" का क्या अर्थ है?
5. मानव विकास के उन सात नियमों को बताइए जिनको यीशु ने पूरा किया।
6. मानव की सात साधारण प्रवृत्तियाँ बताइए जो यीशु में थी।
7. यदि यीशु केवल परमेश्वर ही होता तो क्या उसकी मृत्यु हो सकती थी? क्यों?
8. क्या यीशु अब भी शरीर धारण किए हुए है? प्रमाण ?
9. हम में और यीशु मसीह में कौन से दो मुख्य अन्तर है?
10. यीशु मनुष्य क्यों बना? (3 कारण)
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