यीशु मसीह की आज्ञाएँ

प्रस्तावना

    इस अध्याय में प्रस्तुत विचारजुलाई 1961 में प्रकाशित एक पत्रिका से प्राप्त हुएजिसका नाम "Herald of His Coming" था।

    इस पत्रिका में कुल 147 आज्ञाएं लिखी गई थीं। जिनको 21 शीर्षकों के अन्तर्गत अर्थात् प्रत्येक शीर्षक के अन्तर्गत 7 आज्ञाओं के क्रम से प्रकाशित किया गया था।

    दी ग्रेट कमीशन प्रेयर लीग (The Great Commission Prayer League ) ( नम्बर 1 ) ने यीशु की 173 आज्ञाओं की सूची प्रस्तुत की है जो पत्रियों और प्रकाशितवाक्य से ली गई हैपरन्तु इस अध्याय को सुसमाचारों तक ही सीमित रखा गया है।

    ऐसे अनेक लोगों के लिए यह एक घोर अराजकता का समय हैजिनका यह मत है कि यीशु मसीह   ने व्यवस्था को समाप्त कर दिया है या उसे पूरा कर दिया हैऔर हमारे लिए एक अस्पष्ट सी आज्ञा छोड़ दी है - प्रेम ।

 

1. पश्चाताप

    पश्चाताप दोहरी क्रिया है: पाप से विमुख होना और परमेश्वर की ओर फिरना। मत्ती 4:17, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है । "

    लूका 13:24, “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करोक्योंकि बहुतेरे प्रवेश करना चाहेंगेऔर न कर सकेंगे।" मत्ती 6:33, परन्तु "पहले तुम उसके (परमेश्वर के) राज्य और धर्म की खोज करो । '

 

2. विश्वास ( Belief )

    हमें सुसमाचार पर विश्वास करना हैयीशु मसीह   में और पिता में विश्वास करना है।

    मरकुस 1:15, "मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।" यह यीशु ने कहायूहन्ना ने नहीं। यूहन्ना 14:1 "तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते होमुझ पर भी विश्वास रखो " यह एक निश्चित आज्ञा है। यूहन्ना 6:29, "परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर जिसे उसने भेजा हैविश्वास करो।"


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3. नया जन्म

    नया जन्म उस व्यक्ति के लिए जिसका हृदय - परिवर्तित होता हैआत्मा की एक रहस्यमय कार्यवाही है। यूहन्ना 3:7 अचम्भा न करकि मैंने तुझसे कहा कि तुम्हें नए सिरे से जन्म लेना अवश्य है।" लूका 10:20, " इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।" ,

    मत्ती 12:33, "यदि पेड़ को अच्छा कहोतो उसके फल को भी अच्छा कहोया पेड़ को निकम्मा कहोतो उसके फल को भी निकम्मा कहोक्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है, " हृदय परिवर्तन ही एकमात्र समाधान है। -

 

4. पवित्र आत्मा को ग्रहण करना

    प्रत्येक मसीही को पवित्र आत्मा का वास स्थान और उसके द्वारा सामर्थी होना है।

    यूहन्ना 20:22, "उसने उन पर फूंका और उनसे कहापवित्र आत्मा लो।” लूका 24:49, “जब तक स्वर्ग से सामर्थ्य न पाओतब तक तुम इसी (यरूशलेम) नगर में ठहरे रहो । "

 

5. यीशु के पीछे चलना

    विश्वासी के सन्मुख निर्विवाद रूप से यीशु का अनुसरण करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है।

    यूहन्ना 12:26, "यदि कोई मेरी सेवा करेतो मेरे पीछे हो ले।" लूका 9 : 23, "यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। " "

    यूहन्ना 21:22, "तू मेरे पीछे हो ले। " लूका 5:27, यीशु ने मत्ती से कहा, "मेरे पीछे हो ले।"

 

6. प्रार्थना

    प्रार्थना एक मसीही के जीवन की विशेषता होनी चाहिए ।

    लूका 21:36, “जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो।" लूका 22:40, " प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न पड़ो। " लूका 10:2, "इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।" लूका 6:28, “जो तुम्हारा अपमान करेंउनके लिए प्रार्थना करो।"

 

7. विश्वास (Faith )

    परमेश्वर का सन्त इसलिए महान बनता है क्योंकि उसका विश्वास एक महान परमेश्वर में होता है।

    मरकुस 11:22, "परमेश्वर पर विश्वास रखो। " यह नितान्त आवश्यक है। यूहन्ना 20:27, "अविश्वासी नहींपरन्तु विश्वासी हो । " अविश्वास से दूर। मत्ती 14:27, “ढाढ़स बांधोमैं हूँडरो मत।

 

8. बाइबल का अध्ययन करना

    यह प्रत्येक विश्वासी के दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

    यूहन्ना 5:39, “तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो" -यह प्रत्येक मसीही के लिए स्पष्ट आज्ञा है। यूहन्ना 15:20, "जो बात मैंने तुमसे कही थीउसको याद रखो," पढ़ोउसका अध्ययन करो और उसको याद रखो ।

 

9. अपना प्रकाश चमकने दीजिए

    प्रत्येक मसीही को प्रतिदिन अपना प्रकाश चमकने देना चाहिए ।

    मत्ती 5:16, “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर.... | " यूहन्ना 15:16 “ ताकि तुम जाकर फल लाओ और तुम्हारा फल बना रहे । "

    मरकुस 5:19, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए हैं। "

 

10. परमेश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम

    मसीहियों को परमेश्वर से प्रेम रख कर पूर्ण रूप से उसकी सेवा करनी चाहिए।

    मरकुस 12:30, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण सेऔर अपनी सारी बुद्धि से और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।" इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।

    मत्ती 4:10, “तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम करऔर केवल उसी की उपासना कर।"

 

11. अधिकारियों के प्रति हमारा कर्त्तव्य

        मसीहियों को ऐसे लोगों से प्रेम रखना और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।

    मरकुस 12:17, "जो कैसर का हैवह कैसर कोऔर जो परमेश्वर का है परमेश्वर को दो। "

 

12. अपने पड़ोसियों के प्रति हमारा कर्त्तव्य

     हमारा पड़ोसी वह है जो किसी परेशानी में पड़ा है।

    मत्ती 19:19, " और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।" लूका 6:31, " और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, " तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। " 

 

13. लोभ

    हमारे जीवन स्वर्ग- केन्द्रित होने चाहिएसंसार केन्द्रित नहीं।

    लूका 12:15, “चौकस रहो और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो।" यह मात्र सुझाव ही नहीं पर एक आज्ञा है।

    मत्ती 5:42, "जो कोई तुझसे मांगे उसे देऔर जो तुझसे उधार लेना चाहेउससे मुँह न मोड़। " यह तब कठिन है जब बहुत अधिक भिखारी उपस्थित हों। मत्ती 6:19, " पृथ्वी पर ( अपने लिए) धन इकट्ठा मत करो। " "

 

14. पाखण्ड

    धार्मिक पाखण्डी बनने से सावधान रहो ।

    लूका 12:1, “फरीसियों के कपट रूपी खमीर से चौकस रहना, "जो कि पाखण्ड है। मत्ती 23:2, 3, "उन (फरीसियों और शास्त्रियों) के से काम मत करना । "

 

15. दीनता

    आइए हम दीनता नम्रता और विनय में यीशु मसीह   के समान बनें। मत्ती 11:29, “मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लोऔर मुझसे सीखोक्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ। " मरकुस 10:44, “जो कोई तुम में प्रधान होना चाहेवह सब का दास बने। "

    लूका 17:10," तो कहो हम निकम्मे दास हैंकि जो हमें करना चाहिए था, (हमने) वही किया है। " '

 

16. भाइयों के प्रति हमारा प्रेम

    हमें प्रेम करना हैक्षमा करना है और दोषी ठहराने से अलग रहना है। यूहन्ना 15:12, “जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखावैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो" (अपने संगी मसीहियों से ) ।

    मत्ती 18:6, “जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैंएक को ठोकर खिलाए" (बच्चों को ) । मत्ती 5:24, "पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, " छोटे से छोटे विरोध के लिए भी।

    लूका 17:4, “यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे तो उसे क्षमा कर। " लूका 6:37, "दोष मत लगाओ दोषी न ठहराओ क्षमा करो तो तुम्हारी भी क्षमा की जाएगी। "

 

17. सिद्ध होना

    यीशु विश्वासियों के लिए निम्न स्तर निर्धारित नहीं कर सकता था।

    मत्ती 5:48, "इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनोजैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।

    लूका 6:36, "जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त हैवैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।"

 

18. बुद्धिमत्ता

    यह मानवीय बुद्धिमत्ता नहींपरन्तु परमेश्वर द्वारा दी गई बुद्धिमत्ता है।

    मत्ती 10:16, "सो सांपों की नाई बुद्धिमान और कबूतरों की नाई भोले बनो।"

    मत्ती 7:6, "पवित्र वस्तु कुत्तों को न दोऔर अपने मोती सुअरों के आगे मत डालो।" यह जानने के लिए कि कब बोलना चाहिएबुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है।

 

19. सुसमाचार प्रचार करना

    प्रत्येक विश्वासी जहाँ भी हैउसे सुसमाचार प्रचार करना है।

    मरकुस 16:15, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। "

    लूका 24:47, “ और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचारउसी के नाम से किया जाएगा। "

    यूहन्ना 21:15,16,17, “मेरे मेम्नों को चरा मेरी भेड़ों की रखवाली कर मेरी भेड़ों को चरा । "

 

20. यीशु मसीह का दूसरा आगमन

    हमें इसके लिए हर क्षण तैयार रहना है।

    लूका 12:40, "क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहींउस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा । " हमें किसी भी क्षण के लिए तैयार रहना है।

 

21. मृत्यु तक निष्ठावान रहना सच्ची महिमा एक यशस्वी अन्त है।

    मत्ती 24:13, " परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगाउसी का उद्धार होगा। "

 

सारांश

    यूहन्ना 14:23, "यदि कोई मुझसे प्रेम रखेतो वह मेरे वचन को मानेगा, " यही सच्चा उद्देश्य है।

    इन आज्ञाओं को एक तालिका के रूप में परमेश्वर के आगे अपने व्यक्तिगत जीवन की जांच के लिए प्रयोग कीजिए।

    यीशु सकरे मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शक के रूप में हमें ये आज्ञाएं देता है।

 

पुनर्विचार के लिए प्रश्न

1. यीशु ने सुसमाचारों में कितनी आज्ञाएं दी है पत्रियों और प्रकाशितवाक्य में कितनी आज्ञाएं हैं।

2. इन आज्ञाओं का अभिप्राय क्या है ?

 3. वे कौन सी तीन बातें हैं जिन पर यीशु हम विश्वासियों को विश्वास करने के लिए कहता है ?

4. वे पाँच रास्ते बताइए जिनके द्वारा हम यीशु का अनुसरण कर सकते

5. मत्ती 5:16 के अनुसार वे कौन से "भले काम " जो हमें संसार को दिखाने हैं?

6. मैं परमेश्वर से कैसे प्रेम कर सकता हूँ?

7. "सुनहरा नियम" उद्धृत कीजिए।

8. लूका 12:15 को स्पष्ट कीजिए, "किसी (मनुष्य) का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत से नहीं होता । "

9. यीशु ने हम अपूर्ण मनुष्यों को मत्ती 5:48 में सिद्ध बनने के लिए क्यों कहा?

10. हमें किनके सन्मुख सुसमाचार प्रचार करना है?