
यीशु मसीह का कुंवारी से जन्म
प्रस्तावना
पिछले अध्याय में हमने सीखा था कि यीशु मसीह ईश्वरीय था-वह परमेश्वर का पुत्र है। बड़े दिन (Christmas) की घटना द्वारा हम सीखते हैं कि यीशु एक मनुष्य बन गया उसने मनुष्य का स्वरूप और उसकी समानता को धारण किया, (फिलिप्पियों 2:5-8)।
हमारा विश्वास है कि चूंकि आदम ने पाप किया, इसलिए उसके पश्चात जन्में सभी मनुष्यों को पापी स्वभाव अपने माता-पिता से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होता है। ऐसी परिस्थिति में यीशु पाप के स्वभाव बिना कैसे उत्पन्न हुआ होगा?
भजन संहिता 51:5, "देख मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।"
भजन संहिता 58:3, "दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं; वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं। "
यदि यीशु मसीह को पापी स्वभाव पैतृक उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ तो फिर वह पापी था और अपने ही पापों के लिए मरा। यद्यपि यीशु मसीह ने एक पापहीन जीवन व्यतीत किया फिर भी वह एक आत्मा को बचाने में असमर्थ रहता। यदि यीशु मसीह पापी स्वभाव रहित अवस्था में उत्पन्न हुआ तो यह कार्य किस प्रकार सम्पन्न हुआ?
पिता परमेश्वर ने इस कठिन समस्या का समाधान किया जिसको "कुंवारी से जन्म " लेना कहा जाता है। कुंवारी से जन्म के रहस्य पर मसीहियों को विश्वास करना है, उसको स्वीकार करके उसकी स्तुति करनी है।
इस उलझन का एकमात्र तर्कसंगत उत्तर यही है कि पापी स्वभाव पिता से बालक तक पहुँचता है, माता से नहीं। यीशु का कोई मानवीय पिता नहीं था क्योंकि वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था मरियम उसकी माता थी परन्तु उसके द्वारा पापी स्वभाव, बालक यीशु तक नहीं पहुँचा। आहा! हमारे परमेश्वर ने कैसी आश्चर्यजनक रीति से इस कठिन समस्या का समाधान कर दिया ताकि हमें एक उद्धारकर्त्ता प्राप्त हो जो कि वास्तविक रूप में कलवरी के क्रूस पर हमें पापों से मुक्क्त कर सके।
1. कुंवारी से जन्म लेगा पुराने नियम में पहले ही बता दिया गया था।
उत्पत्ति 3:15, वह प्रथम प्रतिज्ञा है जो उद्धारकर्त्ता के सम्बन्ध में मनुष्य को उसके पतन के बाद दी गई थी। उत्पत्ति 12:1-3, परमेश्वर इब्राहिम को चुने हुए राष्ट्र इस्राएल का पिता होने के लिए बुलाता है।
उत्पत्ति 49:10 की आशिष यहूदा के गोत्र के द्वारा प्रदान की जाने वाली थी। 2 शमूएल 7:8-16, उद्धारकर्त्ता का जन्म दाऊद के कुल में होना था, उसे "दाऊद का पुत्र" होना था। यशायाह 7:14, वास्तविक भविष्यद्वाणी है- "सुनो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।" इसी को मत्ती 1:23 में दोहराया गया है। यशायाह 9:6, यह भविष्यद्वाणी स्पष्ट करती है कि मानव यीशु “जन्म लेगा " परन्तु परमेश्वर के रूप में यीशु "दिया जाएगा," क्योंकि वह अनन्त परमेश्वर था और उनका जन्म नहीं हो सकता।
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Read More: ज्यादा बाइबल अध्ययन के लिए क्लिक करें:2. इस भविष्यद्वाणी का ऐतिहासिक सम्पादन
मत्ती 1:18-25 इस कथा को लूका 2:4-7 के समान ही लिपिबद्ध करता है। मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हुई थी परन्तु अभी उनका विवाह नहीं हुआ था। यीशु मसीह का जन्म एक कुंवारी से हुआ परन्तु वह मंगनीशुदा कुंवारी थी ताकि उसे बदनामी से बचाने के लिए उसका विवाह किया जा सके। मरियम का गर्भधारण निश्चित रूप से अपने भीतर यूसुफ या अन्य किसी पुरुष से नहीं था, वरन पवित्र आत्मा के द्वारा था इस प्रकार परमेश्वर एक सिद्ध उद्धारकर्त्ता देने की गारन्टी देता है। प्रभु ने यूसुफ को प्रोत्साहित किया कि वह मरियम से विवाह करे और उसे अपनी संगिनी बना कर उसका पथ प्रदर्शन करे और उसे व्यवस्था के अभिशाप से सुरक्षित रखे (लैव्यव्यवस्था 20:10 )।
मत्ती 1:25 हमें बताता है कि यद्यपि यूसुफ और मरियम का विवाह हो गया था परन्तु वे उस समय तक पति-पत्नी के समान नहीं रहे जब तक कि उद्धारकर्त्ता का जन्म नहीं हुआ। परमेश्वर इस पद को पूर्ण विवरण सहित सम्मिलित करने की विशेष सावधानी बरतता है जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि अजन्मा बालक मानवीय पिता द्वारा दूषित नहीं किया जा सकता था।
3. कुंवारी से जन्म की शिक्षा बाइबल में दी गई है
कुछ लोग यह बताने का प्रयास करते हैं कि पौलुस ने यीशु मसीह का कुंवारी से जन्म की शिक्षा नहीं दी। यह सच है कि पौलुस सही-सही इस अभिव्यक्ति का प्रयोग नहीं करता, परन्तु पौलुस जी उठे मसीह को जानता था (1 कुरिन्थियों 15:8) और वह यीशु मसीह को यशायाह 7:14 का सम्पादन करने वाले के रूप में मान्यता देता था। पौलुस कुलुस्सियों 1:15-17 में प्रभु यीशु मसीह की महानता का चित्रण प्रस्तुत करता है। यशायाह ने उद्धारकर्त्ता के जन्म की वास्तविक घटना से 740 वर्ष पहले ही इसकी भविष्यद्वाणी कर दी थी।
मत्ती सुस्पष्ट रूप में व्यक्त करता है कि यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में पड़ा और उसका जन्म एक कुंवारी से हुआ (मत्ती 1:18,20,23
लूका जो कि एक मैडिकल डॉक्टर था, निश्चय ही उसकी मैडिकल की इस अद्भुत घटना में अत्यधिक रूचि रही होगी। प्रत्येक बालक का एक पिता होना ही चाहिए। बालक यीशु का पिता कौन था? यदि यह पिता, मानव था तो उसमें पापी स्वभाव था और हम अभी भी पापों में ही पड़े हैं। लूका सावधानीपूर्वक इस असाधारण गर्भधारण को लूका 1:27, 31, 34, 35 में स्पष्ट करता है। लूका 1:34 में मरियम स्वर्गदूत से यह संवेदनशील प्रश्न करती है कि मेरे पुत्र कैसे उत्पन्न हो सकता है, जबकि मैं विवाहित नहीं हूँ और पुरुष को नहीं जानती। वह एक पवित्र कुंवारी थी जो अनैतिकता से घृणा करती थी। लूका 1:35 में स्वर्गदूत ने सावधानी से स्पष्ट कर दिया कि बच्चे का गर्भधारण पवित्र आत्मा के द्वारा होगा। बालक का पिता होगा
4. कुंवारी से जन्म लेने का अभिप्राय
1) परमेश्वर को प्रकट करने के लिए यूहन्ना 1:18, यीशु पिता को मानवता पर घोषित और प्रकट करने के लिए आया।
2) मनुष्य और परमेश्वर के बीच की खाई पर एक सेतु बनने के लिए 1 तीमुथियुस 2:5, "क्योंकि परमेश्वर एक ही है और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है।"
3) मनुष्यों के उद्धार के लिए: इब्रानियों 2:14, यह आधारभूत अभिप्राय था, जो यीशु मसीह को इस संसार में लाया।
4) समस्त सृष्टि के बचाव के लिए: रोमियों 8:19-22, "क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिल कर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है,"- छुटकारे की बाट जोह रही है।
5. कुंवारी से जन्म के सिद्धान्त का महत्व
आधुनिकतावादी और स्वतन्त्रतावादी आज इस सिद्धान्त पर उसी प्रकार आक्षेप करते हैं, जिस प्रकार वे मानव के पूर्ण पतन, यीशु मसीह के ईश्वरत्व और बाइबल के ईश्वर प्रेरित होने का आक्षेप करते हैं।
यदि मनुष्य पूर्णतः पतित है तो उसे एक उद्धारकर्त्ता की आवश्यकता है जो उसका उद्धार कर सके। इस उद्धारकर्ता का शुद्ध और सक्षम होना नितान्त आवश्यक है। यीशु मसीह ही का संसार का एकमात्र उद्धारकर्त्ता होना सम्भव है।
एक ही उपाय था जिसके द्वारा यीशु पाप रहित स्वभाव में मनुष्य बन सकता था और वह था कुंवारी से जन्म लेने के द्वारा कुंवारी एक ऐसी महिला है जो विवाह में पुरुष को नहीं जानती। मरियम यीशु के जन्म तक कुंवारी रही, वह तब तक कुंवारी रही जब तक कि यूसुफ और वह पति-पत्नी के समान नहीं रहने लगे। उद्धार इस सिद्धान्त के साथ घनिष्ठता से सम्बंध है। यदि यीशु का जन्म कुंवारी से नहीं हुआ, तो मैं अभी भी एक भटका हुआ पापी हूँ और वैसे ही आप भी।
1) यह एक अखण्डनीय सत्य है: इस सिद्धान्त की शिक्षा बाइबल में निश्चित रूप में दी गई है। हम बाइबल की ईश्वरीय प्रेरणा को स्वीकार करते हैं और इस शिक्षा पर विश्वास करते हैं कि यह पूर्णतः सत्य है।
2) यह अपरिवर्तनशील सत्य है: यह सिद्धान्त बाइबल के अनुरूप है और युग परिवर्तन, मनुष्यों के विचारों और सिद्धान्तों के परिवर्तन के साथ नहीं बदलता। (इब्रानियों 13:8)
3) यह अत्यावश्यक सत्य है: यह सिद्धान्त उद्धार की योजना के लिए परमावश्यक है। बिना कुंवारी से जन्मे उद्धारकर्त्ता के हमारी आत्मा का उद्धार नितान्त असम्भव है।
(4) यह अज्ञेय (Undiscernible) सत्य है: यह एक रहस्य है जो परमेश्वर में छिपा हुआ है। एक चेतना है जिसमें सभी जीवन और जन्म एक रहस्य है। कैसे एक वृक्ष अपने बीज में जीवन रख देता है? 1 कुरिन्थियों 4:1, हम मसीहियों को "परमेश्वर के रहस्यों के" अच्छे भण्डारी होना है।
(5) यह बिना शर्त सत्य है: मेरी धारणा है कि इस सत्य को सर्वश्रेष्ठ मान कर स्वीकार किया जाना चाहिए। रोमियों 10:9, हमें यीशु को प्रभु जान कर अंगीकार करना है और यदि वह कुवारी से नहीं जन्मा तो वह उद्धारकर्त्ता नहीं हो सकता क्योंकि उसने बाइबल की भविष्यद्वाणियों का खण्डन किया है।
6 ) यह उपयोगी सत्य है क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अब मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर पदार्पण कर चुका है परन्तु वह एक निष्पाप मनुष्य है, एक पापी-स्वभाव रहित मनुष्य। वह एक ऐसा मनुष्य है जो दूसरों को बचा सकता है। "इम्मानुएल " का अर्थ है, "परमेश्वर हमारे संग।" अब यह सत्य है क्योंकि परमेश्वर पृथ्वी पर वास करने के लिए आ गया है।
7 ) यह अपरिहार्य (Unavoidable) सत्य है, क्योंकि हम प्रतिवर्ष बड़े दिन की कहानी सुनते हुए इसका सामना करते हैं। आइए हम संसार के समक्ष कुंवारी से जन्मे उद्धारकर्त्ता को अनवरत अपनी शिक्षा में प्रस्तुत करें।
6. कुंवारी से जन्म का विशेष महत्व यीशु मसीह माया (Phantom) नहीं था, वह एक वास्तविक मानव प्राणी था, वास्तविक मनुष्य था, हमारी हड्डियों की हड्डी और हमारे मांस का मांस था। फिलिप्पियों 2:7; इब्रानियों 2:10, 11, 17, वह हमारा "बड़ा भाई" बन गया।
यीशु मसीह परमेश्वर भी था और पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में पड़ने के कारण परमेश्वर बना रहा। यीशु मसीह निष्पाप था, क्योंकि उसका जन्म कुंवारी से हुआ था, उसे पतित और पापी मानव स्वभाव उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं हुआ था, वह मूल-पाप से रहित था।
7. इस सिद्धान्त पर आपत्तियाँ
1) यह बाइबल में कुछ ही स्थानों पर पाया जाता है। बाइबल का एक ही पद इसके लिए पर्याप्त है, परन्तु इसकी पुष्टि यशायाह मत्ती और लूका, तीन ईश्वर प्रेरित लेखकों द्वारा की गई है।
2) यीशु ने व्यक्तिगत रूप से कुंवारी से जन्म लेने का दावा नहीं किया। वह यूहन्ना 6:51 में इसका परिणाम दर्शाता है।
3) वैज्ञानिक इसको स्वीकार नहीं करते क्योंकि जीव-विज्ञान की दृष्टि से यह सही नहीं है। यीशु स्वाभाविक गर्भधारण द्वारा इस संसार में नहीं आया। परन्तु एक आश्चर्यकर्म के गर्भधारण द्वारा आया।
4) दूसरे इसको अस्वीकार करते हैं क्योंकि यह अद्भुत है। सभी प्रकार के जीवन आश्चर्यजनक अद्भुत और रहस्यमय है।
(5) आधुनिक धर्म-विज्ञानी इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते। इससे इस तथ्य की सत्यता पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता कि यह पूर्णत: सत्य है, क्योंकि इसकी शिक्षा बाइबल की भविष्यद्वाणी और इतिहास द्वारा दी गई है।
सारांश
बड़े दिन पर इस आश्चर्यजनक सत्य को बच्चों और विद्यार्थियों को सिखाने में पर्याप्त समय व्यतीत कीजिए। आइए हम परमेश्वर को धन्यवाद दें कि उसने ऐसे उद्धारकर्ता को इस संसार में भेजने का उपाय खोज निकाला जिसमें पाप का लेश-मात्र अंश भी न था।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. यीशु को पापी स्वभाव पैतृक उत्तराधिकार में क्यों प्राप्त नहीं हुआ?
2. बाइबल में उद्धारकर्ता की प्रथम प्रतिज्ञा क्या है?
3. कुंवारी से जन्म की पुराने नियम की भविष्यद्वाणी उद्धृत कीजिए।
4. यह भविष्यद्वाणी कैसे पूरी हुई?
5. कुंवारी से जन्म लेने के चार अभिप्राय प्रस्तुत कीजिए।
6. यीशु मसीह के ईश्वरत्व और कुंवारी से जन्म लेने के तथ्य के इनकार का क्या परिणम होता है?
7. कुंवारी से जन्म लेने का रहस्य पूर्णतः क्यों नहीं समझा जा सका है?
8. यीशु के ईश्वरत्व और उसके कुंवारी से जन्म लेने के बीच कौन सी महत्वपूर्ण कड़ी है?
9. हमारे लिए आज इस सिद्धान्त का व्यावहारिक पहलू क्या है?
10. इस सिद्धान्त को आधुनिकतावादी क्यों अस्वीकार करने का प्रयास करते हैं?
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