यीशु मसीह के आश्चर्यकर्म -  Yeeshu Maseeh Ke Aashcharyakarm - Miracles of Jesus Christ

यीशु मसीह के आश्चर्यकर्म 

प्रस्तावना

    यह विषय शताब्दियों से ऐसी युद्धभूमि रहा है जिस पर मनुष्य लड़ते रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक विचारों ने इस विवाद का समाधान खोजने का प्रयास किया है। वर्तमानयुग में इसके प्रति दो मत प्रतीत होते हैं। कुछ इनको स्वीकार करते हैं और दूसरे इनको अस्वीकार करते हैं। वैज्ञानिक इनको अस्वीकार कर देता है क्योंकि न तो वह इनको समझ सकता है और न प्रमाणित कर सकता है। सुसमाचार सम्मत इनको स्वीकार करता है क्योंकि वह आश्चर्यकर्म करने वाले परमेश्वर पर विश्वास रखता है।

    आजकल शब्दआश्चर्यकर्म का प्रयोग स्वच्छन्द रूप से किया जाता है। कोई व्यक्ति मोटर दुर्घटना में मृत्यु से बच जाने पर सुनिश्चित रूप से कहता है, "यह केवल एक आश्चर्यकर्म ही था । " वास्तव में यह ईश्वरीय पूर्व- प्रबन्ध का कार्य था- यह संरक्षक स्वर्गदूतों द्वारा सुरक्षा थी।

    दूसरे अवसरों पर हमारी भेंट किसी वांछित व्यक्ति से अकस्मात ही अप्रत्याशित रूप से हो जाती है तो कुछ लोग कहते हैं कि यह एक आश्चर्यकर्म हैवास्तव में यह ईश्वरीय पूर्व प्रबन्ध था। इसलिए आइए अब आश्चर्यकर्म की स्वीकार्य परिभाषा से अध्ययन आरम्भ करें।

 

1. शब्द “ आश्चर्यकर्म" की परिभाषा

    आश्चर्यकर्म की एक साधारण परिभाषा एक उच्च नियम द्वारा एक निम्न नियम को अलग कर देना है। उच्च नियम परमेश्वर का नियम है जो पृथ्वी के नियम के स्थान पर कार्य करने लगता है।

    एक सेब के लिए नीचे गिरने के स्थान पर "ऊपर" जाना एक आश्चर्यकर्म होगा। यह परमेश्वर की शक्ति होगी जो गुरुत्व के नियम और अपकेन्द्र की शक्ति पर प्रबल हो करके उसे बदल देगी।

    यहाँ अधिक विद्वत्तापूर्ण परिभाषा दी गई है: " प्रकृति में एक ऐसा प्रभाव जो न तो प्रकृति की किसी भी ज्ञात प्रक्रिया में आरोप्य हैऔर न ही मनुष्य की क्रिया मेंपरन्तु यह अतिमानवीय शक्ति का सूचक और उसका एक चिह्न या साक्षी है। " (लिण्डसैल एण्ड बुडब्रिज)

    प्रेरितों के काम 4:16, 22 में यहूदियों की महासभा और पवित्र आत्मा दोनों ही प्रेरितों के काम 3:1-11 में की गई चंगाई को आश्चर्यकर्म बताते हैं। साधारणतः एक चालीस वर्ष का मनुष्य जो जीवन में कभी न चला होनहीं चल सकता।


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2. यीशु के "आश्चर्यकर्मों" की अद्वितीयता

    प्रभु के आश्चर्यकर्म उसके ईश्वरत्व को प्रमाणित करने और उसके सन्देश को सत्य सिद्ध करने के लिए सम्पन्न हुए।

    यूहन्ना 2:11, "यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिन्ह दिखा कर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। "

    नाबियों (मूसाहारूनएलिय्याहपतरस और पौलुस) ने सौंपी गई शक्ति द्वारा आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए (यह शक्ति परमेश्वर द्वारा उनको विशेष रूप से कार्य करने के लिए दी गई थी। ) परन्तु यीशु ने अपनी ही शक्ति द्वारा आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए जिससे उसका ईश्वरत्व प्रदर्शित हो।

    यीशु ने कुल मिला कर 35 से 40 तक आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए (ये सुसमाचारों में दिए गए हैं)ये विभिन्न प्रकार के थेक्योंकि उसे 'समस्त अधिकार" (मत्ती 28:18) प्राप्त था और उसने अपनी इच्छा से इसका प्रयोग किया।

    यीशु ने परीक्षा में (लूका 4:3, 4) चालीस दिन और चालीस रात निराहार रहने पर भी शैतान की आज्ञा मानने या अपनी भूख को शान्त करने के अभिप्राय से आश्चर्यकर्म सम्पन्न करने से इनकार कर दिया। "

 

3. यीशु के आश्चर्यकर्मों का कार्यक्षेत्र

क) प्रकृति परः मत्ती 8:26, 27, " तब उसने उठकर आंधी और पानी को डांटाऔर सब शान्त हो गयाऔर लोग अचम्भा करके कहने लगे कि यह कैसा मनुष्य है कि आंधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं। "

ख) दुष्टात्माओं परः यीशु ने मरकुस 5:12, 13 के अनुसार दुष्टात्माओं को निकाला (दुष्टात्माएं सुअरों में पैठ गईं ) । मत्ती 8:28-32; 9:32, 33; 15:22-28; 17:14-18; मरकुस 1:23-27 भी देखिए।

ग) रोगों परः झोले का मारामत्ती 8:13; 9:6; अड़तीस वर्ष से रोगीयूहन्ना 5:9 सूखे हाथ वाले को चंगा करनामत्ती 12:13; दुर्बल करने वाली आत्मालूका 13:12; लोहू बहने वाली रोगिणीमत्ती 9:22; जलन्धर के रोगी को चंगा कियालूका 14:4; ज्वर से चंगा कियामत्ती 8:15; गूंगे को बोलने की शक्ति दीमत्ती 9:33; अंधे को दृष्टि यूहन्ना 9:1-38; बहरे को सुनने की शक्ति दीमत्ती 11:5; कोढ़ से चंगा कियामत्ती 8:3; लूका 17:19; यीशु ने कम से कम दस विभिन्न रोगों से लोगों को चंगा किया।

घ) मृत्यु परः उसने लाजर को मृतकों में से जिलायायूहन्ना 11:43, 44; इसके अतिरिक्त मत्ती 9:18-26, याईर की बेटीलूका 7:12-15, नाईन नगर की विधवा का पुत्र।

च) विविधः पानी से दाखरसयूहन्ना 2:1-11; पाँच हजार को भोजन खिलानायूहन्ना 6:1-14; समुद्र के पानी पर चलनायूहन्ना 6:15-21; चार हजार लोगों को खिलानामत्ती 15:32-39; अंजीर के वृक्ष को सुखानामत्ती 21:18-22; मछली के मुँह से सिक्का प्राप्त करनामत्ती 17:27; जाल में मछलियों की भरमारलूका 5:1-11; और एक बार फिर यही यूहन्ना 21:6 में । "

छ) उसका अपना पुनरुत्थान सबसे महान आश्चर्यकर्म रोमियों 1:4 | था । 1 कुरिन्थियों 15:4;

 

4. यीशु के आश्चर्यकर्मों की विश्वसनीयता

    यीशु के आश्चर्यकर्म बाइबल के ताने बाने हैंऔर इनको बाइबल से अलग नहीं किया जा सकता। इन आश्चर्यकर्मों के विवरण सनसनीखेज नहीं हैंया इनको चमक-दमक के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है। ये आश्चर्यकर्म खुले रूप में बहुत से साक्षियों की उपस्थिति में सम्पन्न किए गए जिससे सभी उनको देख सकें। चंगा करने के आश्चर्यकर्मों को वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने कभी भी असत्य प्रमाणित नहीं किया है। न ही उनमें से कोई एक भी आश्चर्यकर्म कर सका है।

    यीशु के आश्चर्यकर्म अद्वितीय थे। यीशु ने कभी भी कोई आश्चर्यकर्म अनैतिक या अनुपयुक्त अभिप्राय से सम्पन्न नहीं किया। उसका उद्देश्य सदा ही उचित था।

    यीशु के आश्चर्यकर्म तुरन्त सम्पन्न हुए। चंगाई तात्कालिक और अलौकिक थी। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की इस पूछ-ताछ को कि वह मसीह हैयीशु ने आश्चर्यकर्म सम्पन्न करके प्रमाणित किया (मत्ती 11:3-6)

    आश्चर्यकर्मों को समझाने का प्रयास करना यीशु मसीह   की सामर्थ्य और उसकी सम्पूर्णता का अपमान करना है।

    आश्चर्यकर्म वास्तविक हैऔर हम प्रसन्नतापूर्वक अपने विश्वास की पुष्टि करते हैं कि परमेश्वर का व सच्चा है।

 

5. यीशु के आश्चर्यकर्मों के प्रति आपत्तियाँ

1) कुछ लोगों का कहना है कि यीशु का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उसकी चंगाई के कार्य उसके दृढ़ प्रभाव से सम्पन्न हो जाते थे। जिससे वह कुछ स्नायु सम्बन्धी विकारों को दूर कर देता था। यह पूर्णतः असन्तोषजनक आपत्ति है।

2) आश्चर्यकर्मों के स्पष्टीकरण के लिए मूर्खतापूर्ण सुझाव देना वक्ता की स्थिति को हास्यास्पद बना देता है और उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। समुद्र उथला था और यीशु वास्तव में भूमि पर चला था। जब लड़के ने अपनी रोटियां और मछलियां दे दीं तो सभी ने अपना अपना भोजन निकाल लिया और प्रसन्नतापूर्वक सब में बाँट दिया। मृतक वास्तव में मरे नहीं थेकेवल सो रहे थेइत्यादि।

3 ) भौतिकतावाद ईश्वरीय शक्ति को मानने से इनकार करता है तथा वह केवल भौतिक शक्तियों को ही स्वीकार करता हैइसलिए वह आश्चर्यकर्मों को सीधे अस्वीकार कर देता है।

4) सर्वेश्वरवादी के लिए जो केवल प्रकृति के नियमों को मान्यता देता हैआश्चर्यकर्म असम्भव है।

5) अज्ञेयवाद आश्चर्यकर्मों का इनकार करता है क्योंकि वह आश्चर्यकर्मों के श्रोतस्वयं परमेश्वर को नहीं मानता।

6) प्रकृतिवादी कहता है कि प्रकृति की एकरूपता आश्चर्यकर्म को वर्जित करती है। दर्शनशास्त्र का तर्क यह है कि आश्चर्यकर्म विचार की निरन्तरता

7 ) में व्यवधान उत्पन्न करता हैइसलिए उसकी आवश्यकता नहीं है। आशावादी (या आदर्शवादी) के लिए पदार्थ इतने अधिक उत्तम है कि आश्चर्यकर्मों की आवश्यकता ही नहीं है। 

8) दूसरे लोग केवल यह कहकर आश्चर्यकर्मों को अस्वीकार कर देते हैं कि उनके "अपर्याप्त प्रमाण" है।

9) हमारे लिए बाइबल की सच्चाई इतनी महत्वपूर्ण है कि हम लिखित वचन को बिना कोई प्रश्न किए स्वीकार करते हैं।

 

6. यीशु के आश्चर्यकर्मों का महत्व

    हमारे लिए आश्चर्यकर्म यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में पहचानने के प्रमाण हैं। यीशु ने आश्चर्यकर्मों को सम्पन्न करके अपने व्यक्ति और अपने परमेश्वरत्व को प्रमाणित किया।

    आश्चर्यकर्म अतिमानवीय शक्ति के प्रमाण हैं 2 थिस्सलुनीकियों 2:9 (मसीह विरोधी की शक्ति शैतान की ओर से है)। यीशु ने अपनी अतिमानवीय शक्ति कहीं और या किसी और से प्राप्त की। किससेपरमेश्वर से (वह स्वयं परमेश्वर था ) ।

    आश्चर्यकर्म किसी का उद्धार नहीं करेंगे (यूहन्ना 12:37), परन्तु आश्चर्यकर्म किसी मनुष्य को विश्वास की ओर अग्रसर करते हैं। मत्ती 8:27. आश्चर्यकर्म निरचित रूप से उन लोगों के विश्वास को अधिक दृढ़ करते हैं जो पहले ही से विश्वास करते हैं।

    व्यक्तिगत रूप सेमुझे प्रसन्नता है कि यीशु ने आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए क्योंकि ये मेरे अन्दर से किसी भी ऐसे अविश्वास को चकनाचूर कर देते हैंजो मेरे अन्दर विद्यमान हो सकता हैऔर मुझे स्पष्ट रूप में बिना भय के उस पर विश्वास करने की शिक्षा देते हैं। ये मेरे इस अविश्वास को नष्ट कर देते हैं कि वह मेरे अन्दर उस उद्धार को पूरा करने में समर्थ नहीं हैजो उसने मेरे अन्दर उत्पन्न किया हैफिलिप्पियों 1:6 ।

 

7. आज आश्चर्यकर्म सम्पन्न होने की सम्भावना

    आश्चर्यकर्म पुराने नियम में भी मूसाएलिय्याह और एलीशा जैसे मनुष्यों द्वारा सम्पन्न किए गए। यीशु ने चारों सुसमाचारों के काल में बहुत से आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए। स्वर्गारोहण के पश्चात् पतरसपौलुस तथा दूसरे प्रेरितों द्वारा भी आश्चर्यकर्म सम्पन्न किए गए।

    यदि परमेश्वर की शक्ति द्वारा आश्चर्यकर्म सम्पन्न हुए और निश्चित रूप से हुए भीतो जैसे परमेश्वर कभी नहीं बदलता वैसे ही आश्चर्यकर्म आज भी सम्पन्न होने सम्भव हैं। इब्रानियों 13:8 ।

    फिर भी एक बात बदल गई हैबहुधा आश्चर्यकर्म सन्देश वाहक के सन्देश को प्रमाणित ठहराने के लिए सम्पन्न होते थे परन्तु इसमें आज बहुत कमी हो गई है।

   हमें यह प्रमाणित करने के लिए आश्चर्यकर्मों की आवश्यकता नहीं है कि यीशु परमेश्वर हैक्योंकि ईश्वर प्रेरित बाइबल यह बात बताती है। .

 

सारांश

    आइए आश्चर्यकर्मों को प्रत्यक्ष महत्व के आधार परजैसा ये परमेश्वर के पवित्र वचन में लिखे गए हैंस्वीकार करके प्रभु को आदर दें ।

    हम अपनी बुद्धि द्वारा परमेश्वर का निरादर न करें और उसके बयानों पर अविश्वास में होकर सन्देह न करें।

    इसकी अपेक्षा हम उस नीग्रो महिला के समान हो जिसने कहा, "मैं विश्वास करती हूँ कि ह्वेल मछली ने योना को निगल लियाक्योंकि बाइबल ऐसा बताती हैयदि बाइबल यह बताती कि योना ने ह्वेल मछली को निगल लिया था तो मैं उस पर भी विश्वास कर लेती ।

 

पुनर्विचार के लिए प्रश्न

1. वैज्ञानिकों ने ्यों आश्चर्यकर्मों को अस्वीकार कर दिया?

2. क्या सभी तथाकथित आश्चर्यकर्म वास्तव में आश्चर्यकर्म होते है?

3. आश्चर्यकर्म क्या है?

 4. कौन-सी तीन बातों में यीशु के आश्चर्यकर्म अद्वितीय थे?

5. सात प्रकार के आश्चर्यकर्म बताइए जो यीशु ने सम्पन्न किए।

6.आठ रोगों और शारीरिक विकारों को बताइए जिनको यीशु ने चंगा किया?

7. हमें यीशु मसीह   के आश्चर्यकर्मों पर क्यों विश्वास करना चाहिए?

8. वे कौन से पाँच कारण हैं जिनके आधार पर कुछ लोग आश्चर्यकर्मों पर आपत्ति उठाते हैं?

9. यीशु के आश्चर्यकर्मों के तीन महत्व बताइये ।

10. क्या आश्चर्यकर्म आज भी सम्भव है?