यीशु मसीह का ईश्वरत्व
प्रस्तावना
मैनल और रस्सेल्ल के अनुयायी बाइबल के इसी बुनियादी सिद्धान्त पर निरन्तर आक्रमण करते रहते हैं। उद्धार के लिए यीशु मसीह (मसीह) के ईश्वरत्व पर विश्वास करना परमावश्यक है। (रोमियों 10:9 ) “यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, "- न केवल एक भले मनुष्य के रूप में। बाइबल के अध्ययन से यह प्रकट हो जाएगा कि अनेक हृदय-परिवर्तन तभी सम्पन्न हुए जब कि लोगों ने यीशु को प्रभु जानते हुए अंगीकार किया प्रेरितों के काम 9:5 में पौलुस, यूहन्ना 9:38 में वर्णित मनुष्य आदि। यीशु मसीह के ईश्वरत्व से इनकार करना, मानव जाति को एक उद्धारकर्ता से वंचित करना और स्वयं को अनन्तकाल के लिए दोषी ठहराना है। इस अध्याय में हम यीशु मसीह के ईश्वरत्व सम्बन्धी पन्द्रह प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. भजन संहिता 110:1 में यीशु मसीह को प्रभु के रूप में दर्शाया गया है
भजन संहिता 110:1, “मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है कि तू मेरे दाहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं" ("मेरे प्रभु उद्धारकर्त्ता से पिता परमेश्वर की यह वाणी है")।
यीशु ने इस परिच्छेद का मत्ती 22:41-46; मरकुस 12:35 36; लूका 20:39-44 में उल्लेख किया। पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन अपने उपदेश में इसको व्यक्त किया, प्रेरितों के काम 2:3435, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्य है। भविष्यद्वाणी यही थी कि मसीह- उद्धारकर्ता स्वयं दिव्य प्रभु होगा।
2. कुंवारी से जन्म का अर्थ परमेश्वर का मनुष्यों के बीच आकर निवास करना होगा।
यशायाह 7:14, " और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।" यही वह उद्धारकर्ता है जो आने वाला था। मत्ती 1:23 हमें बताता है कि इम्मानुएल का अर्थ, “परमेश्वर हमारे साथ," है, यह बैतलहम में सत्य प्रमाणित हुआ परमेश्वर यीशु मसीह के रूप में देहधारी होकर मनुष्य के संग रहने के लिए आया।*
3. मसीह, प्रभु यीशु मसीह को भविष्यद्वाणी में ईश्वरीय नाम दिए गए
यशायाह 9:6, "क्योंकि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है उसका नाम अद्भूत युक्ति करने वाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।" एकमात्र प्रभु परमेश्वर ही स्वयं ऐसे नामों की पूर्ति हो सकता है। अद्भुत केवल परमेश्वर ही वास्तव में अद्भुत है। देखिए, लूका 18:19, परमेश्वर को छोड़ कोई उत्तम नहीं है। युक्ति करने वाला- केवल सर्वज्ञानी परमेश्वर ही युक्ति करने में सिद्ध है, भजन संहिता 16:7 पराक्रमी परमेश्वर- जिसके विषय में मसीह होने की भविष्यद्वाणी की गई, उसे स्वयं ही परमेश्वर होना था। अनन्तकाल का पिता - यूहन्ना 10:30, यीशु ने कहा, "मैं और पिता एक हैं। " इस मूल पाठ में यीशु मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुआ परन्तु यीशु परमेश्वर के रूप में "दिया गया" (परमेश्वर का अस्तित्व सदाकाल से है)।
4. मसीह जिसके आने की भविष्यद्वाणी की गई थी, उसका अनादि काल से होना अवश्य था।
मीका 5:2, "हे बैतलहम तुझ में से मेरे लिए एक पुरुष निकलेगा जो इस्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन अनादि काल से होता आया है।" मसीह उद्धारकर्ता का स्वयं सनातन, सर्वव्यापी परमेश्वर होना अवश्य था।
5. परमेश्वर और यीशु मसीह दोनों ने ही अपने व्यक्तिगत नाम “ मैं हूँ” व्यक्त किए
निर्गमन 3:14. " परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूँ सो हूँ: फिर उसने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना कि जिनका नाम मैं हूँ, है, उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।" यूहन्ना 8:58, “यीशु ने उनसे कहा, मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि पहले इसके कि इब्राहिम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।"
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6. यीशु मसीह ने पाप क्षमा किए।
मरकुस 2:5, "हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए!" केवल परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है। मरकुस 2:7, "यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है, परमेश्वर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?" यहूदियों का कथन सही था, क्योंकि केवल परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है। चूंकि पाप व्यवस्था का उल्लंघन है, अतः केवल पीड़ित व्यक्ति ही अपराधी को क्षमा प्रदान कर सकता है। पाप क्षमा करने में यीशु या तो परमेश्वर की निन्दा कर रहा था या फिर वह परमेश्वर था। यीशु परमेश्वर था और वह क्षमा प्रदान कर सकता था।
7. यीशु ने परमेश्वर पिता और पवित्र आत्मा के साथ समानता का दावा किया
यह तथ्य मत्ती 28:19 में दिए बपतिस्मा की पद्धति और 2 कुरिन्थियों 13:14 में वर्णित आशीर्वाद से स्पष्ट है जिसमें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को परस्पर सम्बद्ध किया गया है।
8. यीशु ने सर्वव्यापी होने का दावा किया
सर्वव्यापी होना एक ऐसा विशेष गुण है जो केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर में ही विद्यमान है। यह गुण स्वर्गदूतों या मनुष्यों में नहीं हो सकता। मत्ती 18:20 में यीशु कहीं भी तथा हर जगह एक ही समय में उपस्थित रहने की प्रतिज्ञा करता है।
9. यीशु ने सर्वज्ञानी होने का दावा किया
सर्वज्ञानी होना समस्त बातों का ज्ञान रखना है और यह एक ऐसी विशेषता है, जो एकमात्र स्वयं परमेश्वर में ही पाई जाती है। यह वास्तविकता मरकुस 11:2-6 से स्पष्ट है, जिसमें विजयी प्रवेश के लिए गदही के बच्चे का उल्लेख है। यीशु ने भविष्यद्वाणी के वरदान का भी मत्ती 12:40 और मत्ती 24:3-31 में प्रयोग किया।
10. यीशु ने सर्वशक्तिमान होने का दावा किया
सर्वशक्तिमान होना एक अनन्य विशेषता है जो एकमात्र स्वयं प्रभु परमेश्वर में ही विद्यमान हैं। मत्ती 28:18, "स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है।" ऐसा दावा मनुष्य, आत्मा, स्वर्गदूतों, दुष्टात्माओं तथा अतिमानव की सामर्थ्य से बाहर है।
11. यीशु मसीह में सृजनात्मक शक्ति थी
शून्य से वस्तुओं का अस्तित्व स्थापित कर देना, सृजन, केवल परमेश्वर के लिए ही सम्भव है। यीशु मसीह सृजन में क्रियाशील था और वह निरन्तर जगत को सम्भालता है; यूहन्ना 1:1-3; इब्रानियों 1:31 यीशु ने कुछ आश्चर्यकर्मों को सम्पन्न करने में सृजनात्मक शक्ति का प्रयोग किया-पानी से दाखरस बनाने और पाँच हजार लोगों को भोजन खिलाने में।
12. सच्चे परमेश्वर यीशु मसीह का प्रकृति पर पूर्ण अधिकार था।
लूका 8:24, " (यीशु) ने आँधी को और पानी की लहरों को डांटा और वे थम गए और शान्त हो गया। " मरकुस 4:39. यीशु ने समुद्र की प्रचण्ड लहरों को शान्त कर दिया ऐसी शक्ति मनुष्य की नहीं, केवल परमेश्वर की ही है। मत्ती 14:25, 26, यीशु पानी पर चला ऐसी क्षमता से साधारण मनुष्य वंचित है।
13. यीशु मसीह की आराधना उस रूप में की गई जिसका अधिकारी केवल परमेश्वर है
यूहन्ना 9:38 जिस अन्धे व्यक्ति को दृष्टि प्रदान की गई थी उसने उद्धारकर्ता को पहचान लिया और कहा, “हे प्रभु मैं विश्वास करता हूँ : और उसे दण्डवूत किया।" यीशु ने परमेश्वर होने के नाते उचित रूप में इस आराधना को स्वीकार किया। लूका 4:8, यीशु ने परीक्षा के समय शैतान से कहा, "लिखा है कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना (आराधना) कर।" प्रभु परमेश्वर को छोड़ अन्य किसी की आराधना करना भयानक पाप है। यीशु ने आराधना को स्वीकार करके संसार पर प्रकट किया कि, “मैं प्रभु परमेश्वर हूँ।"
14. यीशु ने थोमा की साक्षी को स्वीकार किया
यूहन्ना 20:28, "यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" यदि थोमा भूल कर रहा होता और उसका यह कथन अनुचित तथा बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया कथन होता तो यीशु निश्चय ही उसकी भूल सुधार देता।थोमा ने सच कहा था क्योंकि यीशु प्रभु परमेश्वर था, वह अनादि अनन्त था और उसका अस्तित्व अनादि काल से था।
15. यीशु के पुनरुत्थान की वास्तविकता
यह सबसे दृढ और अटल तर्क है कि यीशु परमेश्वर है। रोमियों 1:4, वह " पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।" यह पद विशेष रूप से बताता है कि यीशु का पुनर्जीवित हो उठना इस वास्तविकता की घोषणा है कि वह परमेश्वर का पुत्र है। यदि यीशु धोखा देने वाला, मिथ्यावादी, ढोंगी या मात्र मनुष्य या अतिमानव होता तो परमेश्वर उसे अन्तिम न्याय दिवस तक कब्र में पड़ा रहने देता और फिर उसे तर्क के लिए दोषी ठहराता। रोमियों 6:4 के अनुसार यह स्वयं पिता परमेश्वर ही था जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। इस प्रकार पिता परमेश्वर संसार पर यीशु मसीह के ईश्वरत्व को निर्णयक रूप में घोषित करता
सारांश
हम इससे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि यीशु परमेश्वर है क्योंकि उसमें परमेश्वर के विशिष्ट दस गुण विद्यमान है:
1) अनादि अनन्तः मीका 5:2, उसका अस्तित्व अनादि काल से है। इसके अतिरिक्त यूहन्ना 8:58; कुलुस्सियों 1:17; प्रकाशितवाक्य 1:8 ।
2) अपरिवर्तनशीलः इब्रानियों 13:8, “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक सा है। "
3) सर्वशक्तिमानः लूका 8:24, यीशु ने समुद्र की प्रचण्ड लहरों को शन्त किया; मत्ती 28:18 भी देखिए ।
4) सर्वव्यापी: मत्ती 18:20; यूहन्ना 1:48; यूहन्ना 3:13: मत्ती 28:20 5) सर्वज्ञानी: मरकुस 11:2-6; यूहन्ना 2:24, 25; लूका 5:22; मत्ती 24:3-31 ।
6) पवित्र: मरकुस 1:24, “यीशु परमेश्वर का पवित्र जन" है। निष्पापः 1 पतरस 2:22; यूहन्ना 19:4
7) न्यायी: यूहन्ना 2:14-17, मन्दिर का शुद्ध किया जाना; प्रेरितों के काम 17:31; धर्म से न्याय करने वाला; यूहन्ना 5:22, 27 8) प्रेममयः यूहन्ना 15:13, “इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं," यूहन्ना 11:36 भी देखिए।
9) करुणामयः तीतुस 3:5, "उसने अपनी दया के अनुसार हमारा उद्धार किया" वह हमारे लिए मर गया।
10 ) विश्वासयोग्य: 2 तीमुथियुस 2:13, "यदि हम अविश्वासी भी हो तौभी वह विश्वासयोग्य बना रहता है। " परमेश्वर के पाँच कार्य भी यीशु में निहित है। सृजन, संरक्षण, क्षमा करना, मृतकों को पुनः जीवित करना और न्याय - यूहन्ना 1:3; इब्रानियों 1:3; लूका 7:48; यूहन्ना 6:39; यूहन्ना 5:22।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. मसीह के ईश्वरत्व का सिद्धान्त इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
2. आप भजन संहिता 110:1 को किस प्रकार स्पष्ट करेंगे?
3. यशायाह 7:14 और मत्ती 1:23 से स्पष्ट कीजिए कि परमेश्वर किस प्रकार मनुष्य के संग हो सकता है?
4. उद्धारकर्ता के पाँच नाम लिखिए जो यशायाह 9:6,7 में दिए गए हैं?
5. एक भविष्यद्वाणी बताइए जो यह स्पष्ट कर दे कि आने वाले उद्धारकर्ता के लिए अनादि अनन्त होना अवश्य था।
6. यूहना 8:58 59 का क्या महत्व है?
7. मरकुस 2:5 किस प्रकार प्रमाणित करता है कि यीशु परमेश्वर है?
8. प्रमाणित कीजिए कि यीशु में परमेश्वर की पाँच स्वाभाविक विशेषताएँ मौजूद है।
9. लूका 8:24 किस प्रकार प्रमाणित करता है कि यीशु ईश्वरीय है?
10. यीशु के ईश्वरत्व के प्रति अटल तर्क क्या है?

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