यीशु मसीह का चरित्र

प्रस्तावना

    इस अध्याय में यह बताने का प्रयास किया गया है कि यीशु वास्तव में किस प्रकार का मनुष्य था। आर० ए० टोर्रे ने अपनी पुस्तक "What the Bible Teaches" में इस विषय पर 56 पृष्ठ लिखे हैं। 

    हम बहुधा प्रार्थना करते या गीत गाते हैं, "मैं यीशु के समान बनना चाहता हूँ।" हमारा इससे क्या आशय होता हैयह अत्यन्त महान अभिलाषा हैपरन्तु हमें एक से अधिक बातों में उसका अनुसरण करने की आवश्यकता है। 

    वह हमारा आदर्श है, 1 पतरस 2:21, न केवल कार्य में वरन चरित्र में भी।

    रोमियों 8:29, पुत्र के स्वरूप में होना बुनियादी रूप से उसके चरित्र के स्वरूप में होना है।

 1. यीशु मसीह पवित्र था

     इस विषय को यीशु मसीह की पापहीनता वाले अध्याय में स्पष्ट किया जा चुका है। यीशु मसीह पवित्र थापूर्णतः पवित्र थाक्योंकि जन्म से ही उसमें पाप का स्वभाव नहीं था। इससे भी अधिक उसने कोई पाप नहीं किया और सदा वहीं किया जो उचित और शुद्ध था। 

    प्रेरितों के काम 3:14 में पतरस यीशु को, “पवित्र और धर्मी" कहता हैं।

    उद्धारकर्ता ने अपनी पवित्रताधार्मिकता से प्रेम और दुष्टता से घृणा द्वारा प्रकट की। यह पवित्रता मन्दिर के शुद्ध किए जाने और पाप तथा पाखण्ड की निन्दा करने में दिखाई देती है। यीशु पाप से इतनी अधिक घृणा करता है कि वह पाप को पराजित करने और उन सबकोजो उसमें विश्वास करेंगेधार्मिकता प्रदान करने के लिएक्रूस पर मरने के लिए तैयार था। गलातियों 3:13 बताता है कि यीशु मसीह व्यवस्था के आधीन हमारे लिए समर्पित बन गया। रोमियों 4:6 बताता है कि परमेश्वर उनको धार्मिकता प्रदान करता हैजो यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करते हैं। देखिए प्रकाशितवाक्य 19:8


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 2. यीशु मसीह प्रेममय था

     उद्धारकर्ता का प्रेम दो तरह से प्रकट किया गया (1) अपने पिता के प्रति और (2) मानव जाति के प्रति। यूहन्ना 14:31, “संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ। "

     यीशु ने यह प्रेम पिता की आज्ञाकारिता द्वारा प्रकट किया। यूहन्ना 6: 38, "क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहींवरन अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।" यूहन्ना 14:31 भी देखिए । यीशु ने वह काम पूरा किया जो परमेश्वर ने उसे पूरा करने के लिए सौंपा थायूहन्ना 17:4 और 19:30

    यीशु कलीसिया से विशेष रूप से प्रेम रखता है: इफिसियों 5:25, "मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया।" यीशु अपने लोगों से विशेष प्रेम रखता हैयूहन्ना 13:1, “अपने लोगों से जो जगत में थे जैसा प्रेम वह रखता था।" यीशु पापियों से भी प्रेम रखता है. लूका 19:10 में बताया गया है कि वह खोए हुओं को ढूंढने और बचाने के लिए आया है।

     मत्ती 9:13 दर्शाता है कि यीशु मत्ती 5:44 में दी गई अपनी शिक्षा के प्रति आज्ञाकारी रहाऔर उसने अपने शत्रुओं से प्रेम कियालूका 23:34 | यीशु बच्चों से प्रेम रखता था। बाइबल मरकुस 10:13-16 में वर्णित दृश्यों में इसका सुन्दर विवरण प्रस्तुत करती है। यीशु मसीह ने निर्धन बन कर अपना प्रेम प्रदर्शित किया जिससे हम धनवान बन सकें, 2कुरिन्थियों 8:9, “तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिए कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।" 

    उसके श्रेष्ठ प्रेम का प्रमाण यह है कि वह स्वेच्छा से हमारे लिए मरा। यूहन्ना 15:13, "इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे।" यीशु निरन्तर दिन-प्रतिदिन हमारी देखभाल और भरण-पोषण करके हम पर अपना प्रेम प्रकट करता रहता है. मत्ती 6:33

 3. आत्माओं के प्रति यीशु मसीह का प्रेम 

    आइए अपने उद्धारकर्ता के मनुष्यों की आत्माओं के प्रति अनन्त प्रेम का अनुसरण करें जो कि पाप में भटकने बालों के लिए उसके हृदय में है। वह एक अच्छा चरवाहा बन कर आया जिससे वह यहूदी और गैर-यहूदी दोनों ही में भटकी हुई भेड़ों को खोज निकाले। यूहन्ना 10:16, “मेरी और भी भेड़े हैं जो इस भेड़शाला की नहींमुझे उनका भी लाना अवश्य है।

     यीशु जनसाधारण से प्रेम रखता था। वह संसार के लिए मरने आया- समस्त मानव जाति के लिए यूहना 3:16। परन्तु उसकी सेवकाई अधिकतर एक आत्मा को जीतने में प्रयोग की गईवह एक एक करके व्यक्तिगत रूप से उन तक पहुँचता था।

     यूहन्ना के प्रथम अध्याय में उसके इस व्यवहार का उल्लेख हैजिसमें यूहन्ना के दो चेलों अन्द्रियास और उसके मित्र का वर्णन हैपद 37-40, पतरसपद 40; फिलिप्पुस पद 43; नतनएल पद 47

     यूहन्ना अध्याय में नीकुदेमुसयूहन्ना अध्याय में सामरिया के कुंए पर स्त्रीयूहन्ना में जन्म के अन्धे व्यक्ति के साथ हमें एक आत्मा के साथ घंटों व्यतीत करने से घबराना नहीं चाहिए। लूका 15: 4 में उसने भटके हुओं की खोज में जाने के लिए अपना हृदय खाली कर दिया, "तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें होंऔर उनमें से एक खो जाएतो वह निन्यानवे को जंगल में छोड़कर उस खोई हुई भेड़ को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे?" 

    यीशु ने भटके हुए पापी को पा लेने के आनन्द में भाग लियालूका 15:5-7। लूका 15:24 में यीशु कहता है कि जब उड़ाऊ पुत्र अपने घर वापिस लौट आया तो वे " आनन्द करने लगे।" इसी प्रकार उस प्रत्येक आत्मा के लिए उसे गहरा शोक हुआ जो उसे अस्वीकार करती थीलूका 19:41, 42

     यीशु यरूशलेम की हठधर्मी पर रोयावह नगर पर नहींपरन्तु उसमें रहने वालों की आत्मा के लिए रोया। आइए प्रार्थना करें कि हम उसके आत्माओं और व्यक्तियों के प्रति ऐसे प्रेम के अनुरूप बन जाएं।

 4. यीशु मसीह करुणामय था।

     यीशु मसीह करुणामय थाक्योंकि बाइबल का एक छोटा पद कहता है, "यीशु के आँसू बहने लगे" (यूहन्ना 11:35 ) । यीशु ने भीड़ के प्रति करुणा प्रकट की मरकुस 6:34 "उसने निकल कर बड़ी भीड़ देखी और उन पर तरस खाया क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे जिनका कोई रखवाला न हो," काश ऐसी करुणा हमारे अन्दर भी हो। 

    यीशु की करुणा ने उसके हृदय में लोगों की शारीरिक आवश्यकता के लिए चिन्ता उत्पन्न कर दी: यूहन्ना 6:5। यीशु की करुणा ने उसे अन्धे को दृष्टि प्रदान करने के लिए बाध्य कर दिया यूहन्ना 9:1-38: मत्ती 20:34

    दुष्टात्माओं द्वारा सताए गए लोगों के प्रति उसके हृदय में करुणा थी: मरकुस 9:22, 25; मरकुस 5:1-13; लूका 4:41 यीशु के हृदय में असहाय कोढ़ियों के प्रति करुणा थी: मरकुस 1:40, 41; लूका 5:12-15

    हम बहुधा कहा करते हैं कि हमारे हृदय में करुणा हैपरन्तु यीशु ने अपनी करुणा को कार्यों द्वारा प्रदर्शित किया। वह खोई हुई भेड़ों के लिए चरवाहा बनावह नाश होने वालों के लिए उद्धारकर्ता बनाउसने रोगियों को चंगा किया और उसने दुष्टात्माओं को निकाला। आइए हम वचन और कर्म दोनों ही के द्वारा प्रेम करें।

 5. यीशु मसीह प्रार्थनाशील था 

    हमें चारों सुसमाचारों में उद्धारकर्ता के महान् प्रार्थनापूर्ण जीवन की झलक मिलती हैपरन्तु सबसे अधिक प्रभावशाली विवरण इब्रानियों 5:7 में पाया जाता है, "उसने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार पुकार कर और आँसू बहा बहाकर प्रार्थनाएँ और विनती कीं।" यीशु के लिए सम्पूर्ण रात्रि प्रार्थना करना असाधारण बात नहीं थीलूका 6:12; मरकुस 1:35

    यीशु ने अपने बपतिस्मेपरीक्षा आदि महान अनुभवों से पहले प्रार्थना कीलूका 3:21; यूहन्ना 6:15। उसने आश्चर्यकर्मों के लिए खुले रूप में पिता से प्रार्थना कीमत्ती 14:19; यूहन्ना 11:41, 42

    यीशु ने अपने होठों पर पिता से प्रार्थना के साथ अपना पार्थिव जीवन समाप्त कियालूका 23: 46। यीशु बहुधा प्रार्थना के लिए एकान्त खोजा करता थावह पर्वत पर या किसी एकान्त स्थान पर चला जाता था। 

    कभी वह अकेले प्रार्थना करता थामत्ती 14:13; और कभी चेलों के साथलूका 9:28, 22:39,46। यीशु ने व्यक्तियों के लिए प्रार्थना कीपतरस के लिएलूका 22:32; "अपने लोगों के लिए, " यूहन्ना 17:9, 20 उसने गतसमनी में पिता की इच्छा के आधीन नम्रतापूर्वक प्रार्थना कीमत्ती 26:42

     यीशु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया और हमें भी ऐसा ही करने को कहामत्ती 6:9-13। प्रार्थना द्वारा वह परीक्षा पर प्रबल हुआउसने आश्चर्यकर्म सम्पन्न किएमृत्यु से बचापरमेश्वर की महिमा की।

 6. यीशु मसीह दीन था

     दीनता मस्तिष्क का व्यवहार हैयह निष्ठुरता और कलह विरोधी होती है, (टोरें)। दीनता अपना प्रकटीकरण दूसरों के प्रति कोमलता और स्नेह के द्वारा करती है।

    यीशु स्वयं कहता है कि वह दीन हैमत्ती 11:29, "मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लोऔर मुझसे सीखोक्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ." यही मत्ती 12:20 का भी अभिप्राय है।

     पौलुस ने कुरिन्थियों से यह प्रश्न किया: कुरिन्थियों 4:21, “तुम क्या चाहते होक्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊँ या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ?" मसीही होने के नाते हमें दीनता सीखनी है। गलातियों 6:1, “नम्रता के साथ ऐसे को सम्भालो और अपनी भी चौकसी रखो। " तीमुथियुस 2:24, 25, “ और प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिएपर सबके साथ कोमल और शिक्षा में निपुण और सहनशील हो । "

     यीशु ने दीनता का प्रकटीकरण कुचले हुए सरकंडे को तोड़कर नहीं और न ही धुंआ देती बत्ती को बुझा कर कियामत्ती 12:20। उसने कुचले हुओं से नम्रता का व्यवहार किया और बुझती हुई अग्नि को प्रज्वलित किया। 

यीशु मसीह नम्र था

     यीशु मसीह नम्र और दीन दोनों था, “नम्र और मन में दीन, " 11 मत्ती 11:29 के अनुसार वह नम्र थाक्योंकि वह अपनी महिमा नहींवरन् पिता की महिमा का खोजी थायूहन्ना 8:50 । उद्धारकर्ता लोकप्रियता और विस्मयकारी ख्याति से दूर रहता थाजिससे अभिमान का पोषण होता है। 

     यीशु की नम्रता ने उसे पापियों और महसूल लेने वालों से मिलने-जुलने की अनुमति दीलूका 15:1,2। यीशु की नम्रता ने उसे अपने ऊपर घृणित अभियोगों के लगाए जाने के उपरान्त भी शान्त रखायशायाह 53:7; 1 पतरस 2:23 

     यीशु ने अपनी नम्रता का प्रदर्शन अपने शिष्यों के पांव धोकर कियायूहन्ना 13:45। फिलिप्पियों 2:8, “और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन कियाऔर यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु हाँ क्रूस की मृत्यु भी सह ली। "

 सारांश 

    फिलिप्पयों 2:5, "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव थावैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। "

     आइएहम उद्धारकर्ताप्रभु यीशु मसीह की पवित्रता प्रेमकरुणादीनता और नम्रता की नकल न करें वरन् उनको पुनः उत्पन्न करें। यीशु के समान होना-बाहरी नहींपरन्तु भीतरी तौर पर शुद्धसत्यवादी और प्रार्थनाशील होना हैजैसा कि वह है। जब हम स्वयं को उसे समर्पित कर देते हैं तो वह यह चाहता है कि वह वैसे ही चरित्र का जीवन हम में रह कर फिर व्यतीत करे।

    रोमियों 6:19, आइए हम, “अपने अंगों को पवित्रता के लिए धर्म के दास करके (प्रभु को) सौंप दें।

 पुनर्विचार के लिए प्रश्न 

 1. मसीह के चरित्र के विषय में सात बातें बताइए।

 2. कौन से दो साधनों के द्वारा उद्धारकर्ता ने अपना प्रेम प्रकट किया?

 3. पाँच विभिन्न व्यक्ति बताइए जिनसे यीशु प्रेम रखता था।

 4. यूहन्ना 10:16 की विशेषता क्या है

 5. यीशु ने जन-समूह में प्रचार करने में विशेषज्ञता प्राप्त की या व्यक्तिगत प्रचार में?

 6. सात प्रकार के लोग बताइए जिनके प्रति यीशु के हृदय में करुणा थी। 

 7. यीशु ने प्रार्थना सम्बन्धी जो शिक्षा हमें दी हैउनमें से आप सबसे बड़ी शिक्षा किसे मानते हैं?

 8. शब्द "दीन" का क्या अर्थ है

 9. प्रमाणित कीजिए कि यीशु दीन था।

 10. यीशु ने अपनी नम्रता किस प्रकार प्रदर्शित की? (5 बातें )।