यीशु मसीह की पापहीनता

प्रस्तावना

    हमने सीखा है कि यीशु मूल-पाप से रहित जन्मा था, बिना मानवीय पिता के, कुंवारी से जन्म की वास्तविक घटना के कारण उसमें पापी स्वभाव नहीं था।

     इस पाठ में हम एक कदम और आगे बढ़ कर देखेंगे कि यीशु ने अपना समस्त जीवन निष्पाप अवस्था में व्यतीत किया, उसने एक भी पाप नहीं किया। उसका सम्पूर्ण जीवन मृत्यु- पर्यन्त पाप के कलंक से पूर्णतः शुद्ध रहा। यह सच है कि यीशु मसीह एक संकर नहीं था, वह आधा परमेश्वर और आधा मनुष्य नहीं था। वह वास्तविक परमेश्वर और वास्तविक मनुष्य था, वह इन दोनों स्वभावों के मिश्रण से रहित था।

     उद्धारकर्ता के ये दोनों स्वभाव सभी बातों में पृथक और भिन्न थे।

    यीशु का मनुष्यतत्व मौलिक रूप से हमारे समान है, यह एक विशेष मानवीय तथ्य है। वह एक आदर्श पुरुष था। वह पूर्ण तथा सामान्य मनुष्य था। यीशु इसलिए अद्वितीय है क्योंकि उसका जीवन निष्पाप और पूर्णतः कलंक रहित था।

 1. यीशु मसीह की पापहीनता का अर्थ 

    पापमयता, परमेश्वर की इच्छा की अनुकूलता से रहित होना है, पापहीनता परमेश्वर की इच्छा के प्रति पूर्ण अनुकूलता है।

     इब्रानियों 10:7, "देख मैं आ गया हूँ ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूँ। " यूहन्ना 17:4, “जो काम तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।" पापमयता परमेश्वर की इच्छा का विरोध है और पथभ्रष्ट होकर पाप के मार्ग की ओर फिरना 

     (गुमराही) है। पाप बाहरी है (झूठ, चोरी, हत्या), परन्तु यह भीतरी भी है। मत्ती 15:19, मन के विचार ही बाद के बुरे कामों की जड़ होते हैं। यीशु बाहरी और भीतरी दोनों ही रूप में निष्पाप था।

     वह पूर्णतः उसके अनुरूप था, जो सदा ही उत्तम और पवित्र है। इब्रानियों 7:26 में यीशु की पापहीनता को इस प्रकार व्यक्त किया गया है, " (वह) पवित्र और निष्कपट और निर्मल और पापियों से अलग है " पवित्रता का अर्थ है दूषण से स्वतंत्रता ।

     पतरस इस पापहीनता को इस प्रकार व्यक्त करता है: “निर्दोष और निष्कलंक मेम्ना " 1 पतरस 1:19, यही विचार इब्रानियों 9:14 में भी पाया जाता है।


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 2. यीशु मसीह की पापहीनता की वास्तविकता 

     प्रेरितों के काम 4:27, 30 में यह अभिव्यक्ति, "तेरा पवित्र सेवक यीशु" दो बार दोहराई गई है, इससे स्पष्ट है कि यीशु जन्म से ही पवित्र, शुद्ध, निष्पाप और दूषण से स्वतंत्र था। दुष्टात्माएँ यीशु को "परमेश्वर के पवित्र जन" के रूप में पहचानती है, मरकुस 1:24; लूका 4:34 में दुष्टात्मा ने चिल्ला कर कहा, "तैं तूझे जानता हूँ कि तू कौन है? तू परमेश्वर का पवित्र जन है।

     यीशु की पापहीनता का दृढ प्रमाण दुष्टात्माओं की साक्षी नहीं है, वरन परमेश्वर का सुस्पष्ट और ईश्वर प्रेरित वचन है। हमारा विश्वास है कि परमेश्वर का वचन सच्चा है। 1 पतरस 2:21, 22, “न तो उस (यीशु) ने पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली।"

     1 यूहन्ना 3:5, “तुम जानते हो कि वह इसलिए प्रगट हुआ कि पापों को हर ले जाए और उसके स्वभाव में पाप नहीं । " हमारे धन्य प्रभु और उद्धारकर्ता में पाप का लेश-मात्र अंश भी नहीं है। 2 कुरिन्थियों 5:21, " जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया, " अर्थात् उसकी पाप से कभी जान-पहचान नहीं हुई; यीशु और पाप पूर्णत: अजनबी रहे।

     इब्रानियों 4:15, "क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके, वरन वह सब बातों में हमारी नाई परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। मसीह के दूसरे आगमन की आशा रखता है "वह अपने आप को वैसा 1 यूहन्ना 3:3, जो कोई यीशु ही पवित्र करता है जैसा वह (मसीह) पवित्र है। "

 3. यीशु मसीह की पापहीनता के प्रति साक्षी

 1) यीशु मसीह की अपनी साक्षी: उसने दूसरों में पाप देखा, परन्तु स्वयं में कोई पाप नहीं देखा। यूहन्ना 8:46, “तुममें से कौन मुझे पापी ठहराता है?" वह निष्पाप था। आदम के पतन के बाद यीशु मसीह ही एकमात्र ऐसा मनुष्य था जो सत्यनिष्ठा के साथ ऐसा दावा कर सकता था। यीशु ने कभी भी कोई दोष स्वीकार नहीं किया या कभी भी किसी पाप के लिए क्षमा नहीं माँगी। उसके सिद्ध और पवित्र मस्तिष्क में कभी किसी दुष्ट विचार ने वास नहीं किया। 

2) पुन्तियुस पीलातुस जो यीशु का न्यायी था, उसने यीशु की जाँच करने के बाद कहा, "मैं तो उसमें कोई दोष नहीं पाता, " यूहन्ना 18 : 38। एक अधिकारी और जिम्मेवार न्यायी की यह कैसी सुस्पष्ट साक्षी है। 

3) श्रीमती पुन्तियुस पीलातुस-वह एक स्त्री थी, न्यायी की पत्नी थी और उसकी यीशु में कोई व्यक्तिगत रूचि नहीं थी, न ही वह उसके पक्ष में थी और न उसके विरुद्ध। उसने स्वप्न देखा और अपने पति के पास यह सन्देश भिजवाया: “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना," (शुद्ध, पवित्र, धर्मीजन) मत्ती 27:19 |

4) क्रूस पर टंगे हुए डाकू ने लूका 23:41 के अनुसार यीशु के विषय में कहा, "इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।" यह एक अपराधी हत्यारे की साक्षी है जो क्रूस पर अपने पापों के कारण मर रहा था।

5) यहूदा इस्करियोती, पृथ्वी पर सेवकाई के काल में हमारे प्रभु का एक चेला था। यदि यीशु में कोई त्रुटि या दुर्बलता या पाप ढूंढ सकता था तो वह व्यक्ति उसके चेलों में से ही कोई हो सकता था, क्योंकि वे ही उसके साथ रहते थे और साथ खाते-पीते थे; वे ही उसके साथ चलते और उससे बातचीत करते रहते थे। यहूदा ने आश्चर्यकर्म देखे, उसकी शिक्षाओं को सुना और निकट से उसे ध्यानपूर्वक देखा। अन्त में चांदी के तीस टुकड़ों के लिए उसने यीशु से विश्वासघात किया। यहूदा ने दोषी ठहराए जाने के बाद साक्षी दी; मत्ती 27:4, "मैंने निर्दोषी को घात के लिए पकड़वा कर पाप किया है," यीशु पाप से निर्दोष था।

6) रोमी सूबेदार लूका 23:47, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।" एक कठोर रोमी सैनिक की यह एक अद्भूत साक्षी है। 

4. उद्धारकर्ता की पापहीनता के विरुद्ध तर्क 

 1) कुछ लोग इस बात को नहीं मानते कि पापहीनता सम्भव है। यह तथ्य कि पापहीनता तर्क के विपरीत है, बाइबल में व्यक्त वास्तविकताओं के दृष्टिकोण में नगण्य है। यीशु निष्पाप है।

2) कुछ लोगों का विचार है कि चूंकि यह एक वास्तविकता है कि उसकी परीक्षा ली गई, इसलिए वह अवश्य ही पाप से प्रभावित रहा होगा। परीक्षा स्वयं में पाप नहीं है, परीक्षा में गिर जाना पाप है। यीशु की परीक्षा शैतान द्वारा ली गई, संसार और परिस्थितियों द्वारा पाप में गिराने के लिए उसे परखा गया, परन्तु वह इसमें नहीं गिरा।

 3) कुछ लोग परीक्षा सम्बन्धी यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि मत्ती 4: 1-11 के अनुसार यदि यीशु सिद्ध था तो परीक्षाएँ अवास्तविक होनी चाहिए। एक सिद्ध व्यक्ति की परीक्षा कैसे ली जा सकती है?

 जब आदम-हव्वा की रचना की गई थी तो वे पूर्ण वे मूल-पाप से रहित थे, इसलिए सिद्ध थे। उनकी परीक्षा ली गई और वे उसमें गिर गए, इससे प्रमाणित हो जाता है कि परीक्षा वास्तविक है और सिद्ध व्यक्ति के लिए भी वास्तविक है।

 4) कुछ लोगों का कहना है कि बुराई वहाँ कैसे प्रवेश कर सकती है, जहाँ कि न तो बुराई के प्रति पक्षपात है, और न ही पाप के प्रति दुर्बलता है? आदम और हव्वा ने पाप किया क्योंकि उनकी यह अभिलाषा थी कि परिपक्वता और विकास के बोध से वे परमेश्वर के समान बन जाएँ। परीक्षा वास्तविक थी और उन्होंने पाप किया। हमारा विश्वास कि यीशु का ऐसा गठन किया गया था कि यदि वह अभिलाषा करता तो पाप कर सकता था, क्योंकि वह पूर्ण मनुष्य था, वह परमेश्वर - मनुष्य (या मिश्रण) नहीं था। यीशु की विजय चरम और पूर्ण थी क्योंकि उसने एक बार भी पाप के सन्मुख समर्पण नहीं किया।

5. यीशु मसीह की पापहीनता से इन्कार के परिणाम

     यदि यीशु पापी था तो उसे कलवरी पर अपने पापों के लिए मरना पड़ा और हम अब तक अपने पापों में फँसे हैं। यदि यीशु पापी था, तो वह न तो परमेश्वर पुत्र था और न ही मनुष्य का पुत्र, उद्धारकर्ता था। यदि यीशु पापी था तो इसका कलवरी पर एक बलिदान होना असम्भव था।

    यदि यीशु पापी था तो कलीसिया की नींव धसने वाली रेत पर डाली गई है और वह शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी। यीशु मसीह की पापहीनता से इनकार करना, मनुष्यों को उद्धारकर्ता और उद्धार से वंचित करना है। परमेश्वर की स्तुति हो कि बाइबल बताती है कि वह निष्पाप था इसलिए आज हमें उद्धार प्राप्त है।

6. यीशु मसीह की पापहीनता का दोहरा प्रकटीकरण 

 1. नकारात्मक रूप से उसने विचारों बातों और कर्मों द्वारा कभी कोई पाप नहीं किया। 

 2. सकारात्मक रूप से उसने विचारों, बातों और कर्मों द्वारा वही कार्य किया जो परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला कार्य था। पवित्रता दोहरी होती है:

 (1) धार्मिकता के प्रति प्रेम और

 (2) दुष्टता से घृणा

     यीशु पूर्णतः सन्तुलित था, क्योंकि उसने पूर्ण पापहीनता के प्रत्येक पहलू की पूर्ति की।

 7. यीशु मसीह की पापहीनता के परिणाम 

 1) निष्पाप होते हुए वह मानव जाति के लिए परमेश्वर का पूर्ण प्रकाशन था।

 2 ) मानव और निष्पाप होना, सिद्ध मध्यस्थ होने की एक गारन्टी है। यह दर्शाता है कि वह नीचे उतर कर मानव स्तर पर आ गया, उसकी परीक्षा तो हो सकती थी, परन्तु उसमें परीक्षा पर प्रबल होने और उसको रोकने की शक्ति थी।

 3) मानव और निष्पाप होते हुए वह कलवरी पर हमारे पापों के लिए स्वीकार्य बलिदान बन गया।

 4) उसने हमारे सन्मुख अपने पद-चिह्नों पर चलने के लिए एक सिद्ध आदर्श प्रस्तुत किया है; 1 पतरस 2:21, 22

 5) यह स्वर्ग में हमारे घर के उस मार्ग की ओर संकेत करता है जो निष्पाप उद्धारकर्ता ने हमारे लिए तैयार किया है।

सारांश

     आइए खड़े होकर परमेश्वर की स्तुति करें कि यीशु मूल-पाप रहित अवस्था में आया और निष्पाप दशा में स्वर्ग को वापिस लौट गया, क्योंकि उसने पूर्ण दक्ष नैतिक जीवन व्यतीत किया।

     आइए उसके सामने झुक कर उसकी आराधना करें और उसकी आश्चर्यजनक विजय के लिए उसकी स्तुति और प्रशंसा करें।

     यह उन लोगों तक पहुँचाने के लिए कैसा अद्भुत सन्देश है जो पाप वासना गन्दी आदत और दुष्ट अभिलाषाओं की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। उनके लिए स्वतंत्रता और विजय एक पूर्ण विजयी उद्धारकर्ता के द्वारा उपलब्ध है।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न

 1. जबकि यीशु की माता मानव और पिता ईश्वरीय था, तो क्या वह एक मिश्रण है? स्पष्ट कीजिए।

 2. यीशु मसीह की पापहीनता से क्या आशय है?

 3. बाइबल का वह प्रमुख पद कौन सा है जो यीशु मसीह की पापहीनता को प्रमाणित करता है?  

 4. यीशु मसीह की पापहीनता के पाँच गवाह और उनकी संक्षिप्त गवाहियाँ बताइए।

 5. मत्ती 4:1-11 में दी गई परीक्षाओं में क्या यीशु पाप में गिर सकता था? क्यों?

 6. क्या यीशु ही एकमात्र सिद्ध प्राणी था जिसकी परीक्षा ली गई? और किसकी परीक्षा ली गई? 

 7. यदि यीशु में पाप होता तो इसके जो परिणाम होते उनमें से चार बताइए।

 8. यीशु की पापहीनता का दोहरा प्रकटीकरण क्या है?

 9. यीशु की पापहीनता के तीन परिणाम बताइए। 

10. यीशु की पापहीनता बाइबल का छोटा सिद्धान्त है या प्रधान सिद्धान्त है? क्यों?