भविष्यद्राणियाँ और यीशु मसीह का जीवन
प्रस्तावना
यीशु के जन्म से बहुत समय पूर्व ही यह भविष्यद्वाणी की जा चुकी थी कि वह आएगा (उत्पत्ति 3:15)। यीशु पृथ्वी पर आने की घोषणा के बिना नहीं आया। वह तब आया "जब समय पूरा हुआ, (गलतियों 4:4 )।
जब हम इन भविष्यद्वाणियों का अध्ययन करते हैं, जो छोटी से छोटी बात में भी पूरी हुई, तो परमेश्वर में हमारा विश्वास और भी बढ़ता है ऐसा परमेश्वर जो न केवल सब बातों की योजना बनाता है परन्तु प्रत्येक विवरण की रूप रेखा (Blueprint) भी तैयार करता है।
जब हम देखते हैं कि ये भविष्यद्वाणियाँ अक्षरशः पूरी हुई है, तब पवित्रशास्त्र की ईश्वरीय प्रेरणा में हमारा विश्वास और भी दृढ हो जाता है, जो यह दर्शाती है कि बाइबल भिन्न-भिन्न लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों का समूह मात्र नहीं है परन्तु एक ही लेखक-परमेश्वर द्वारा लिखी गई एक ही पुस्तक है। यह कल्पना करना कि ये बातें अचानक ही घट गई एक विकासवादी की कल्पना से भी परे है !
परमेश्वर का जन पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरणा पाकर हर्ष से उनकी साक्षी को स्वीकार कर लेता है और थोमा के साथ पुकार उठता है, "हे मेरे प्रभु हे मेरे परमेश्वर ।" पूरी हुई भविष्यद्वाणियों से हमारा विश्वास शक्ति पाता है और दृढ़ता के साथ बिना डगमगाए बना रहता है।
1. यीशु मसीह के आने के विषय में भविष्यवाणियाँ
1) यीशु मसीह इस्राएल में से आएगा। गिनती 24:17-19, "याकूब में से एक तारा उदय होगा और इस्राएल में से एक राजदण्ड उठेगा।" यीशु मसीह एक यहूदी घर में पैदा हुआ और इब्राहिम, इसहाक, याकूब और दाऊद का वंशज था; मत्ती 1:1-17
2) यीशु मसीह दाऊद के घराने और यहूदा के गोत्र में पैदा होगा। उत्पत्ति 49:10. "जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा।" यशायाह 11:1, "तब यिशै के ठूंठ में से एक डाली फूट निकलेगी और उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी।" ये भविष्यद्वाणियाँ हमारे उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह में पूरी हुई; (लूका 1:31-33 )।
3) मसीह बैतलहम में पैदा होगा। मीका 5:2, "हे बैतलहम एप्राता,, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझमें से मेरे लिए एक पुरुष निकलेगा जो इस्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन अनादि काल से होता आया है। " मसीह बैतलहम में पैदा हुआ (लूका 2:4-7)।
4) यीशु मसीह एक कुंवारी से पैदा होगा। यशायाह 7:14, “सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।" यीशु मसीह एक कुंवारी से पैदा हुआ (मत्ती 1:18, 22, 23)।
5) यीशु मसीह के आने का समय बताया गया था। दनिय्येल 9: 24-26 “तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिए सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म प्रायश्चित किया जाए और बासठ सप्ताहों के बीतने पर अभिषिक्त पुरुष काटा जाएगा।" अभिषिक्त अर्थात् यीशु मसीह यरूशलेम के पुनः बसाए जाने के 490 वर्ष बाद काट डाला (क्रूस पर चढ़ाया) गया। यीशु मसीह एकदम सही (पहले से ठहराए गए) समय पर क्रूस पर चढ़ाया गया। उससे पहले या बाद और कोई अन्य व्यक्ति मसीह (यीशु मसीह ) नहीं हो सकता।
6) मसीह का आना एक अग्रदूत द्वारा घोषित किया जाएगा। यशायाह 40:3, "किसी की पुकार सुनाई देती है, जंगल में यहोवा का मार्ग सुधारो, हमारे परमेश्वर के लिए अराबा में एक राजमार्ग चौरस करो।" यह भविष्यद्वाणी यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले में पूरी हुई (मत्ती 3:3 )।
7) अभिषिक्त (मसीह) स्वयं परमेश्वर होगा यशायाह 9:6 का अद्भुत पद "पराक्रमी परमेश्वर।"
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2. यीशु मसीह के जीवन के सम्बन्ध में भविष्यवाणियाँ
1) वह अपने बचपन का कुछ समय मिस्र में बिताएगा। होशे 11:1, "जब इस्राएल बालक था, तब मैंने उससे प्रेम किया और अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।"
(2) वह दुःख उठाएगा और संसार के पापों का प्रायश्चित करेगा। यशायाह 53:4-6 की भविष्यद्वाणी मसीह को पूरी करनी थी। 2 कुरिन्थियों 5:21 में इस भविष्यद्वाणी के पूरा होने का वर्णन है, "जो पाप से आज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया, कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ। "
3) वह गदही के बच्चे पर सवार होकर यरूशलेम में प्रवेश करेगा। जकर्याह 9:9, "हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा;. वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा।" खजूर के इतवार पर इस भविष्यद्वाणी के पूरा होने का सम्पूर्ण विवरण मत्ती 21:2-5 में पाया जाता है।
4) क्रूस पर उसकी यातना के समय उसे पित्त (Gall) और सिरका दिया जाएगा। भजन 69:21, " और लोगों ने मेरे खाने के लिए इन्द्रायन 44 (Gall) दिया और मेरी प्यास बुझाने के लिए मुझे सिरका पिलाया। " यह भविष्यद्वाणी, मत्ती 27:34 में रोमी सैनिकों द्वारा क्रूस पर पूरी की गई।
(5) उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जाएगी, जो कि क्रूस देने की रोमी प्रथा के विपरीत था। भजन 34:20, "वह उसकी हड्डी-हड्डी की रक्षा करता है; और उनमें से एक भी टूटने पाती। " फसह के मेम्ने की भी कोई हड्डी नहीं तोड़ी जाती थी (निर्गमन 12:46 ) । साधारणतः क्रूस पर चढ़ाए गए कैदियों के पैर तोड़ दिये जाते थे जिससे कि वे भाग न सकें परन्तु उन्होंने इस प्रथा का उल्लंघन किया और यीशु के पैर या हड्डी नहीं तोड़ी, (यूहन्ना 19:33-36 )
6) लोग उसके कपड़ों के लिए पासा फेकेंगे। भजन 22:18, “वे मेरे वस्त्र आपस में बाँटते हैं और मेरे पहिरावे पर चिट्ठी डालते हैं। " यह भविष्यद्वाणी जैसी कही गई थी, मत्ती 27:35 में सैनिकों द्वारा ठीक-ठीक वैसी ही पूरी हुई।
7) मृत्यु की घोर व्यथा में मसीह कुछ विशेष शब्द बोलेगा। भजन 22:1, “हे मेरे परमेश्वर हे मेरे परमेश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ? " यह भविष्यद्वाणी क्रूस पर से कहे गए चौथे कलमें रूप में पूरी हुई ( मरकुस 15:34)।
8) वह मरे हुओं में से फिर जी उठेगा। भजन- 16:9, "क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, "न अपने पवित्र भक्त को सड़ने देगा।" हमने यीशु मसीह के ईश्वरत्व के विषय अध्ययन में सीख था कि यीशु परमेश्वर था (यूहन्ना 1:14)। पतरस ने प्रेरितों के काम 2:23, 24 में इस भविष्यद्वाणी का समर्थन किया कि यह अक्षरशः और वास्तविक रूप से पूरी हुई।
3. यीशु मसीह का जीवन
1) देह धारण से पूर्व, परमेश्वर के रूप में यीशु सदा से अस्तित्व में है। वह अन्य सभी वस्तुओं पहले से विद्यमान है।
2) कुंवारी मरियम से यीशु के जन्म का वर्णन मत्ती और लूका की पुस्तक में लिखा है।
3 ) आठवें दिन यीशु का खतना हुआ, (लूका 2:21 ) ।
4) यीशु को 12 वर्ष की आयु में यरूशलेम के मन्दिर में ले जाया गया (लूका 2:41-48 ) ।
(5) यीशु ने अपने जीवन के आरम्भ के वर्ष नासरत में एक बढ़ई के रूप में बिताए (मरकुस 6:3 ) ।
6 ) यीशु ने अपनी सेवा यहूदिया, सामरिया और गलील के प्रदेशों में आरम्भ की। यह सेवा छः महीने तक रही।
7 ) यीशु ने अपना सबसे पहला आश्चर्यकर्म गलील प्रदेश के काना नगर में किया' (यूहन्ना 2:11); और उसका दूसरा आश्चर्यकर्म, राजा के कर्मचारी के पुत्र को चंगा करना था, जो कफरनहूम में हुआ (यूहन्ना 4:46, 54 ) ।
8 ) यीशु के सेवा कार्य का दूसरा चरण छ: से आठ माह का था जो कफरनहूम और गलील में रहा। उसने अनेक आश्चर्यकर्म किए, बीमारों को चंगा किया और सुसमाचार सुनाया।
9) सेवा कार्य का तीसरा चरण लगभग एक वर्ष का था जो गलील के आसपास के क्षेत्रों में रहा। भीड़ उसका अनुसरण करती थी। उसने पहाड़ी उपदेश आदि प्रवचन दिए (मत्ती 56 और 7 अध्याय)।
10 ) अगले चरण में फरीसी उसकी जान लेने के लिए उसके पीछे लगे रहे। यीशु ने कफरनहूम, फिनीके, बैतसैदा, कैसरिया फिलिप्पी की यात्रा की और अन्त में दुबारा गलील में प्रवेश किया।
11 ) अन्त में छः महीने शिक्षा देने, प्रचार करने तथा यात्रा करने में व्यतीत हुए।
12 ) अन्तिम सप्ताह: खजूर का इतवार, अन्तिम भोज, गतसमनी, मुकदमे और क्रूस पर मृत्यु ।
13 ) भविष्यद्वाणी के अनुसार, तीसरे दिन यीशु मृत्तकों में से जी उठा।
14 ) पुनरुत्थान के चालीस दिन बाद वह सबके देखते देखते शरीर के साथ स्वर्ग पर उठा लिया गया (प्रेरितों 1:9-11)
4. यीशु के आश्चर्यकर्म
आश्चर्यकर्म का अर्थ है एक निम्न नियम का स्थान एक उच्च नियम द्वारा ले लिया जाना निम्न नियम पृथ्वी और प्रकृति के स्वाभाविक भौतिक नियम है। केवल परमेश्वर ही इन नियमों के प्रतिकूल कार्य कर सकता है। यदि यीशु ने सचमुच आश्चर्यकर्म किए तो वह परमेश्वर है, क्योंकि मनुष्य कभी भी यथार्थ आश्चर्यकर्म नहीं कर सकता (प्राकृतिक नियमों के प्रतिकूल कार्य)।
प्रभु यीशु ने आश्चर्यकर्म, प्रदर्शन या मनोरंजन के लिए नहीं किए, परन्तु अपने परमेश्वरत्व को सिद्ध करने तथा मनुष्यों को अपने में तथा अपने सन्देश और व्यक्तित्व में विश्वास दिलाने के लिए किए (यूहन्ना 2:11; यूहन्ना 20:31 )। यीशु ने प्रकृति पर विश्वसनीय आश्चर्यकर्म किए। उसने तूफान को रोका, हवा और पानी को शान्त किया। वह पानी पर भी चला (मत्ती 8:26 27; मत्ती 14:25 )।
यीशु ने दुष्ट आत्माओं पर आश्चर्यकर्म किए (मरकुस 5:12,13; मत्ती 8:28-32; आदि)। यीशु ने रोग पर आश्चर्यकर्म किए-कोढ़ियों को शुद्ध किया; लंगड़ों-लूलों को चंगा किया; अन्धों की आँखें खोली; बहरों के कान ठीक किए; बुखार को भगाया (मत्ती 8:3; मत्ती 12:10-13; आदि)
यीशु ने मृत्यु पर आश्चर्यकर्म किए। उसने प्रकृति के इस नियम के विरुद्ध, कि एक मरे हुए मनुष्य को मरा ही रहना चाहिए, अनेक मृतकों को जीवित किया (यूहन्ना 11:44; मत्ती 9:23-25; लूका 7:12-15)। हमारे प्रभु के आश्चर्यकर्म नियन्त्रित और पूर्णत: विश्वासयोग्य थे। उसके आश्चर्यकर्म अनेक गवाहों के समक्ष खुले रूप में किए गए और ईश्वरीय प्रेरणा से हमारे लिए लिखे गए कि हम पढ़ें और विश्वास करें।
सारांश
यीशु मसीह द्वारा पृथ्वी पर बिताए गए जीवन का सार प्रेरितों• 10:38 के शब्दों में इस प्रकार है, "वह भलाई करता, और सबको जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा।" प्रभु यीशु हमारे लिए एक आदर्श छोड़ गया है जिस पर हमें चलना है। 1 पतरस 2:21, "तुम इसी के लिए बुलाए भी गये हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिए दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है कि तुम भी उसके (पद) - चिन्ह पर चलो।" हम स्वयं वैसे ही चलें जैसा वह चलता था, 1 यूहन्ना 2:6 मसीह इसलिए आया कि परमेश्वर की इच्छा पूरी करे और हमें भी यही करना चाहिए; यूहन्ना 8:21; इब्रानियों 10:7
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
1. यीशु का इस पृथ्वी पर आना क्यों एक अप्रत्याशित (अचानक) घटना नहीं थी?
2. उद्धारकर्त्ता को किस देश में पैदा होना था? किस गोत्र में? 3. मसीह को कब आना था?
4. क्या यह एक संयोग की बात थी कि यीशु को क्रूस पर पित्त और सिरका दिया गया? क्यों
5. यूहन्ना 19:33 का क्या महत्व है?
6. मसीह के पुनरुत्थान के विषय में पुराने नियम की भविष्यद्वाणी क्या थी?
7. यीशु के पहले दो आश्चर्यकर्म क्या थे?
8. यूहन्ना 13, 14, 15, 16 अध्याय मसीह के जीवन के किस समय का वर्णन है?
9. आश्चर्यकर्म क्या है? यीशु ने आश्चर्यकर्म क्यों किए?
10. बाइबल से तीन पद देकर बताए कि यीशु ने पृथ्वी पर किस प्रकार का जीवन व्यतीत किया।

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